(दूर शिक्षा, म.गा.अं.हिं.वि.,वर्धा के एम.ए. हिंदी की पाठ्य सामग्री में)
पाठ्यचर्या का
शीर्षक : हिंदी भाषा एवं भाषा-शिक्षण
खंड: 2– हिंदी
भाषा-संरचना
इकाई – 4 : वाक्य संरचना
2.0 प्रस्तावना
‘भाषा’ ध्वनि प्रतीकों
के माध्यम से विचारों, भावों और सूचनाओं के संप्रेषण की
व्यवस्था है। इस व्यवस्था में कई स्तर पाए जाते हैं, जिनमें ‘वाक्य’ आधारभूत स्तर है। संपूर्ण भाषा व्यवहार
वाक्यों के माध्यम से ही किया जाता है, इसीलिए वाक्य को भाषा
व्यवहार की मूलभूत इकाई कहते हैं। व्याकरणिक रचना की दृष्टि से ‘वाक्य’ किसी भी भाषा की सबसे बड़ी इकाई है और
संप्रेषण की दृष्टि से सबसे छोटी इकाई। व्याकरणिक रचना की दृष्टि से किसी भाषा की
सबसे बड़ी इकाई कहने से तात्पर्य है- वाक्य ऐसी सबसे बड़ी भाषिक इकाई है, जिसकी संरचना का व्याकरणिक दृष्टि से विश्लेषण किया जा सकता है। भाषा का
मूल कार्य है- संप्रेषण। संप्रेषण की दृष्टि से वाक्य को सबसे छोटी इकाई इसलिए कहा
जाता है, कि संप्रेषण के लिए वक्ता द्वारा कम से कम एक वाक्य
का प्रयोग किया ही जाता है। संप्रेषण की दृष्टि से सबसे बड़ी भाषिक इकाई ‘प्रोक्ति’ है। प्रोक्ति किसी एक कथ्य या संदर्भ से
जुड़े वाक्यों का समूह है, जैसे- कोई कथा, कहानी, कविता, व्याख्यान, कार्यक्रम आदि।
3.0 वाक्य : परिभाषा एवं स्वरूप
किसी भी भाषा में तीन इकाइयाँ
आधारभूत होती हैं- ध्वनि, शब्द और वाक्य। ध्वनियों के योग से शब्द या पद बनते हैं और शब्दों या
पदों के योग से ‘वाक्य’ बनते हैं।
ध्वनियों का अपना कोई अर्थ नहीं होता, किंतु शब्दों का अर्थ
होता है। शब्दों के केवल अर्थ संप्रेषणीय नहीं होते, अर्थात
केवल एक शब्द का प्रयोग करके किसी सूचना का संप्रेषण नहीं किया जा सकता, जैसे- मोहन, राम, घर, बाजार, जाना, गया, जाता आदि कोई एक शब्द सुनकर श्रोता किसी संप्रेषणीय बात को नहीं समझ
सकता। इनमें से आवश्यक शब्दों को उचित संक्रम में मिला देने पर संप्रेषण संभव हो
जाता है, जैसे- राम गया, मोहन घर जाता
है आदि। शब्दों का उचित संक्रम में यही योग ‘वाक्य’ कहलाता है। वाक्य शब्दों के योग से बनता है, किंतु
शब्द जब वाक्य में आते हैं, तो वे पद बन जाते हैं। इसलिए
वाक्य को परिभाषित करते हुए कह सकते हैं कि ‘पदों का वह
समुच्चय वाक्य है जो उचित संक्रम में हो तथा जिससे कम-से-कम एक सूचना का संप्रेषण
होता हो।’ अतः शब्दों या पदों के उचित संक्रम में योग से
वाक्य निर्मित होते हैं। एक वाक्य में आने वाले पद विभिन्न प्रकार्यों को पूरा
करते हैं। ‘क्रिया’ वाक्य का केंद्र
होती है। वाक्य निर्माण के लिए क्रिया पद
के साथ कम एक संज्ञा पद अवश्य होते हैं। वैसे संदर्भ आधारित वाक्य एक शब्द के भी
हो सकते हैं, किंतु वेवाक्य तभी कहलाते हैं, जब उनका संदर्भ श्रोता को पता हो, जैसे- यदि कोई
पूछे- ‘कौन आया’ और उत्तर मिले- ‘राम’, तो इसका अर्थ यह हुआ कि ‘राम आया’। इसमें ‘आया’ शब्द नहीं बोला गया है, क्योंकि ‘कौन आया?’ प्रश्न में इसकी सूचना प्राप्त हो चुकी है।
वाक्य की रचना के लिए संस्कृत आचार्यों द्वारा तीन आवश्यक तत्वों की बात की गई है-
(क) आकांक्षा – जब किसी शब्द का वाक्य में प्रयोग होता है तो उसे अन्य
शब्दों की आवश्यकता होती है। इस आवश्यकता को ही संस्कृत आचार्यों ने आकांक्षा कहा
है, जैसे- वाक्य में कर्ता शब्द के आते ही
क्रिया (और सकर्मक क्रियाओं में कर्ता) की आकांक्षा।
(ख) योग्यता : वाक्य में प्रकार्य के स्तर पर एक शब्द के साथ दूसरे
शब्द के जुड़ सकने की क्षमता को योग्यता कहते हैं। इसके दो प्रकार हैं- अर्थमूलक
योग्यता, व्याकरणमूलक योग्यता। अर्थमूलक योग्यता से
तात्पर्य है- अर्थ की दृष्टि से शब्दों का आपस में प्रयुक्त हो सकने की क्षमता, जैसे- घमंडी बच्चा, *घमंडी पेड़। व्याकरणमूलक योग्यता
से तात्पर्य है- व्याकरण की दृष्टि से शब्दों का आपस में प्रयुक्त हो सकने की
क्षमता, जैसे- अच्छा लड़का, *अच्छा
लड़की।
(ग) सन्निधि : वाक्य निर्माण के लिए उच्चरित या अभिव्यक्त शब्दों का
एक-दूसरे के पास या समीप होने की अवस्था सन्निधि है। इसे आसक्ति भी कहा गया है।
वाक्य पर कई दृष्टियों से विचार किया
जा सकता है। सूरजभान सिंह (2000) द्वारा ‘हिंदी का वाक्यात्मक व्याकरण’ में वाक्य पर कई
दृष्टियों से चर्चा की गई है। इन्होंने दर्शनपरक दृष्टिकोण,
संस्कृत व्याकरण परंपरा, अर्थपरक दृष्टिकोण, संरचनात्मक दृष्टिकोण, भाषा विशिष्ट दृष्टिकोण, मनोवादी दृष्टिकोण, प्रकार्यपरक दृष्टिकोण और
संदर्भपरक दृष्टिकोण से वाक्य को परिभाषित और व्याख्यायित किया है। ‘वाक्य संरचना’ को समझने के लिए हमें वाक्य के घटकों
पर विचार करना होगा। इस दृष्टि से तीन इकाइयों का अध्ययन आवश्यक है- पदबंध, उपवाक्य और वाक्य। आगे इस इकाई में तीनों इकाइयों की विस्तृत चर्चा की जा
रही है।
4.0 पदबंध : स्वरूप एवं प्रकार
पदबंध ही वह आधारभूत भाषिक इकाई है, जिससे वाक्य की रचना होती है। पदबंधों के
योग से ही वाक्य निर्मित होते हैं। पदबंध को परिभाषित करते हुए कहा गया है- कोई भी
एक पद या एक से अधिक पदों का समूह जो वाक्य में किसी एक ही प्रकार्य को संपन्न
करता हो, पदबंध है। डॉ. अनिल कुमार पाण्डेय के अनुसार, “पद या पदों का विस्तार पदबंध है।” अर्थात एक अकेला पद भी एक पदबंध का
काम कर सकता है और एक से अधिक पद भी एक ही पदबंध का कार्य कर सकते हैं। उदाहरण के
लिए निम्नलिखित वाक्यों को देखा जा सकता है-
·
लड़का सब्जी लाएगा।
पदबंध-1 पदबंध-2
पदबंध-3
·
मेरा
लड़का हरी सब्जी लाता है।
पदबंध-1 पदबंध-2
पदबंध-3
·
मेरा
बड़ा लड़का बहुत हरी सब्जी लाता रहा है।
पदबंध-1 पदबंध-2 पदबंध-3
·
मेरा
सबसे बड़ा लड़का बहुत अधिक हरी
सब्जी ले जा रहा है।
पदबंध-1 पदबंध-2 पदबंध-3
उपर्युक्त वाक्यों में हम देख सकते
हैं कि आरंभ में एक-एक शब्द या पद पदबंध का काम कर रहे हैं। किंतु बाद के वाक्यों
में शब्दों या पदों की संख्या तो बढ़ रही है, लेकिन पदबंधों की नहीं। दूसरे वाक्य में दो-दो शब्द मिलकर एक पदबंध का निर्माण
कर रहे हैं; तीसरे वाक्य में तीन-तीन शब्द मिलकर एक पदबंध का
निर्माण कर रहे हैं और इसी प्रकार चौथे वाक्य में चार-चार शब्द मिलकर एक पदबंध का
निर्माण कर रहे हैं। एक पदबंध बनाने के लिए यह महत्वपूर्ण नहीं है कि कितने पद एक
साथ प्रयुक्त हो रहे हैं, बल्कि यह महत्वपूर्ण है कि कितने
पद एक ही प्रकार्य को संपन्न कर रहे हैं। इसी कारण एक पद या एक से अधिक पदों के
समूह को पदबंध कहा गया है। कौन-कौन से पद एक साथ मिलकर एक पदबंध का कार्य कर सकते
हैं? इसे समझने के लिए पदबंध के प्रकारों को जानना होगा।
पदबंध के प्रकार
भाषाविज्ञान में पदबंध को दो
दृष्टियों से वर्गीकृत किया गया है- संरचना की दृष्टि से और प्रकार्य की दृष्टि से।
§ संरचना की दृष्टि से पदबंध के प्रकार
संरचना की दृष्टि से पदबंध के दो वर्ग
किए गए हैं- अंतःकेंद्रिक और बाह्य
केंद्रीय।
(1) अंतःकेंद्रिक पदबंध
वे पदबंध जिनका शीर्ष (या केंद्र) पदबंध
में उपस्थित होता है , अंतःकेंद्रिक
पदबंध कहलाते हैं। ‘शीर्ष’ पद बंद का
वह हिस्सा या भाग होता है, जो अकेले संपूर्ण पदबंध के स्थान पर
प्रयुक्त होने की क्षमता रखता है। उदाहरण के लिए निम्नलिखित वाक्य को देखें-
वह लड़का सादा
पानी पीता है।
पदबंध-1 पदबंध-2
पदबंध-3
इस वाक्य में ‘वह लड़का’ में ‘लड़का’ तथा ‘सादा पानी’ में ‘पानी’ शब्द शीर्ष हैं।
क्योंकि संपूर्ण पदबंध की जगह केवल इनका प्रयोग करके भी सार्थक वाक्य निर्मित किया
जा सकता है-
लड़का पानी
पीता है।
पदबंध-1 पदबंध-2
पदबंध-3
अंतःकेंद्रिक पदबंध के तीन प्रकार
हैं-
(क) सविशेषक (Attributive)
पदबंध : वे
पदबंध जिनमें एक पद शीर्ष होता है और अन्य पद उस पर आश्रित होते हैं, सविशेषक पदबंध कहलाता है। बिना परसर्ग के संज्ञा
पदबंध सविशेषक पदबंध होते हैं, जिनमें मुख्य पद ‘संज्ञा’ होता है, और विशेषण या
अन्य शब्द वर्गों के शब्द उस पर आश्रित होते हैं, जैसे-
आश्रित शीर्ष
सुंदर लड़का
नया कपड़ा
बहुत अधिक नया कपड़ा
इसी प्रकार विशेषण पदबंध में ‘विशेषण’ शीर्ष होता है
और अन्य प्रविशेषण आदि पद उस पर आश्रित होते हैं, जैसे-
आश्रित शीर्ष
बहुत नया
बहुत अधिक नया
(ख) समवर्गीय (Appositional) पदबंध : समवर्गीय
पदबंध वे पदबंध होते हैं, जिनमें
एक से अधिक शीर्ष पद होते हैं और दोनों में से कोई भी एक पद संपूर्ण पदबंध का
कार्य करने की क्षमता रखता है। उदाहरण के लिए ‘घर और दुकान’, ‘चावल और दाल’, ‘कुर्ता या पजामा’ आदि। सामान्यतः इन पदबंधों में
दोनों शीर्षों के बीच ‘और, या’ जैसे संयोजक प्रयुक्त होते हैं, जैसा कि इन उदाहरणों
में देखा जा सकता है।
(ग) समानाधिकरण (Coordinative) पदबंध : समानाधिकरण पदबंधों की रचना ऐसे दो पदबंधों के योग से होती
है जो बाह्य संसार में एक ही इकाई को व्यक्त करते हैं अतः उन दोनों में से किसी एक
का प्रयोग करने पर भी पूरे पदबंध का अर्थ आ जाता है उदाहरण के लिए राष्ट्रपति
रामनाथ कोविंद आज भाषण देंगे इस वाक्य में राष्ट्रपति राम और रामनाथ कोविंद दोनों
में से किसी एक को रखकर के वाक्य बनाया जा सकता है जैसे राष्ट्रपति आज भाषण देंगे
रामनाथ कोविंद आज भाषण देंगे इसी प्रकार अमेरिका की राजधानी न्यूयॉर्क में यह घटना
घटी इस वाक्य में अमेरिका की राजधानी और न्यू यार समानाधिकरण प्रबंध की रचना कर
रहे हैं इसे हम अमेरिका की राजधानी में यह घटना घटी और निर्यात में यह घटना घटी
में से किसी के भी द्वारा व्यक्त कर सकते हैं
(2) बाह्यकेंद्रिक पदबंध
ऐसे पदबंध जिनमें पदबंध के अंदर शीर्ष नहीं होता, बाह्यकेंद्रिक पदबंध कहलाते हैं। अर्थात ऐसे
पदबंध जिनमें से कोई भी पद स्वतंत्र रूप से संपूर्ण पदबंध की तरह प्रयुक्त होने की
क्षमता नहीं रखता, बाह्यकेंद्रिक पदबंध कहलाते हैं। ऐसे
पदबंधों में कोई भी शीर्ष पदबंध नहीं होता। बाह्यकेंद्रिक पदबंधों के दो प्रकार
होते हैं-
(क) अक्ष-संबंधक (Axis relater) पदबंध : ऐसे पदबंध जिनमें एक घटक अक्ष या केंद्र होता है और दूसरा
घटक उसे वाक्य के दूसरे अंगों से जोड़ता है, अक्ष-संबंधक पदबंध कहलाते हैं। इन पदबंधों में दूसरा पद संबंध-तत्व होता
है, जिसका काम केंद्रीय घटक (अक्ष) को दूसरे वाक्य के दूसरे
तत्वों से जोड़ना होता है, जैसे-
· राम ने रावण को बाण से मारा।
इस वाक्य में ‘राम ने, रावण को, बाण से’ तीन संज्ञा पदबंध हैं। इन तीनों में ‘राम, रावण और बाण’ अक्ष हैं, जिन्हें क्रमशः ‘ने, को, से’ संबंध-तत्व वाक्य के अन्य घटकों से जोड़कर
वाक्य की रचना करते हैं। अतः हिंदी में परसर्गों के साथ बनने वाले पदबंध अक्ष-संबंधक
पदबंध कहलाते हैं।
(ख) गुंफित (Closed-knit) पदबंध : ऐसे पदबंध जिनमें सभी घटक पद सम्मिलित रूप से पदबंध का
कार्य कर रहे होते हैं, गुंफित पदबंध
कहलाते हैं। ऐसे पदबंधों के पदों के बीच न तो हम कोई शीर्ष और अन्य जैसा संबंध
पाते हैं, और ना ही अक्ष-संबंधक जैसा कोई संबंध पाते हैं।
हिंदी के क्रिया पदबंध को इस श्रेणी में रखा जाता है। उदाहरण के लिए ‘गया, जाएगा, खाता है, खा रहा होगा’ आदि को देखा जा सकता है।
§
पदबंधों
का प्रकार्यात्मक वर्गीकरण
प्रकार्यात्मक दृष्टि से पदबंधों को दो रूपों
में वर्गीकृत किया गया है- संरचनात्मक प्रकार्य की दृष्टि से और व्याकरणिक प्रकार्य
की दृष्टि से।
(1) संरचनात्मक प्रकार्य की दृष्टि
से वर्गीकरण - संरचनात्मक प्रकार्य
के आधार पर पदबंधों के निम्नलिखित वर्ग किए जाते हैं-
(क) संज्ञा पदबंध : ऐसा पदबंध जिसका शीर्ष पद संज्ञा होता है, संज्ञा पदबंध कहलाता है। संज्ञा पदबंध रचनाएँ
अंतःकेंद्रिक पदबंध रचनाएँ होती हैं। उदाहरण के लिए ‘लड़का, अच्छा लड़का, बहुत अच्छा लड़का, सबसे अधिक अच्छा लड़का’ आदि ये सभी संज्ञा पदबंध हैं।
(ख) सर्वनाम पदबंध : वे पदबंध जिनका शीर्ष पद सर्वनाम होता है, सर्वनाम पदबंध कहलाते हैं। सर्वनाम पदबंध सामान्यतः
एक शब्द या दो शब्द से बनते हैं, क्योंकि सर्वनामों के साथ
विशेषक नहीं लगते, जैसे- मैं, तुम, तुम लोग आदि। आधुनिक वाक्य विश्लेषण में इन्हें संज्ञा पदबंध के अंतर्गत
ही विश्लेषित किया जाता है।
(ग) विशेषण पदबंध : वे पदबंध जिनका शीर्ष पद विशेषण होता है, विशेषण पदबंध कहलाते हैं, जैसे- सुंदर, बहुत सुंदर,
बहुत अधिक सुंदर, सबसे अधिक सुंदर और सरल आदि।
(घ) क्रिया पदबंध : वे पदबंध जो क्रिया पदों से निर्मित होते हैं, क्रिया पदबंध कहलाते हैं। हिंदी में क्रिया
पदबंध की रचना मुख्य क्रिया तथा सहायक क्रिया के योग से होती है। हिंदी के क्रिया
पदबंध बाह्य केंद्रक पदबंध होते हैं। हिंदी क्रिया पदबंधों के चार प्रकार किए गए
हैं- सरल क्रिया पदबंध, मिश्र क्रिया पदबंध, यौगिक क्रिया पदबंध और संयुक्त क्रिया पदबंध।
(ङ) क्रियाविशेषण पदबंध : वे पदबंध जो वाक्य में क्रियाविशेषण का कार्य करते हैं, क्रियाविशेषण पदबंध कहलाते हैं। हिंदी में
कुछ क्रियाविशेषण शब्द पाए जाते हैं। ऐसे पदों के शार्ष होने पर क्रियाविशेषण
पदबंधों की रचना होती है, जैसे- तेज,
सबसे तेज, बहुत अधिक तेज आदि। इसी प्रकार कुछ कृदंत और अन्य
घटक भी क्रियाविशेषण पदबंध का कार्य करते हैं।
(च) अव्यय पदबंध : हिंदी में कुछ
ऐसी पदबंध स्तरीय इकाइयाँ पाई जाती हैं, जो वाक्य में स्वतंत्र प्रकार्य करती हैं, किंतु
उपर्युक्त में से किसी के अंतर्गत नहीं आतीं। इन सभी को अव्यय पदबंध के अंतर्गत
रखा गया है, जैसे- नकारात्मक-सकारात्मक प्रयोग (न, नहीं, मत, हाँ), समुच्चयबोधक, विस्मयादिबोधक आदि।
(2) व्याकरणिक
प्रकार्य की दृष्टि से पदबंध के प्रकार
वाक्य में सभी पदबंध विभिन्न
प्रकार्यात्मक भूमिकाओं के माध्यम से आपस में जुड़े होते हैं। इन भूमिकाओं को व्याकरणिक
प्रकार्य कहते हैं। इस दृष्टि से पदबंधों को ‘कर्ता पदबंध, कर्म पदबंध, करण
पदबंध, (अर्थात सभी कारक संबंध) और पूरक पदबंध आदि में
वर्गीकृत किया जाता है।
5. उपवाक्य : स्वरूप एवं प्रकार
उपवाक्य पदबंध से बड़ी किंतु वाक्य
से छोटी इकाई है। यह वाक्य स्तर की ही इकाई है। उपवाक्य को परिभाषित करते हुए कहा
जा सकता है कि उपवाक्य वह वाक्य स्तरीय भाषिक इकाई है, जो अपने से बड़े वाक्य का अंग होती है। एक
उपवाक्य में वाक्य की तरह ‘उद्देश्य और विधेय’ आवश्यक घटक होते हैं, किंतु बड़े वाक्यों का अंग होने
के कारण वाक्य ही उपवाक्य बनते हैं। ‘उपवाक्य’ ‘मिश्र वाक्य’ और ‘संयुक्त वाक्य’ में पाए जाते हैं, जिनकी चर्चा आगे ‘वाक्य’ वाले
खंड में की जाएगी।
§
उपवाक्य
के प्रकार
उपवाक्य के दो प्रकार किए गए हैं-
मुख्य उपवाक्य और आश्रित उपवाक्य। इन्हें संक्षेप में इस प्रकार समझ सकते हैं-
(1) मुख्य उपवाक्य : किसी असरल वाक्य का वह उपवाक्य जिसके अर्थ को समझने के
लिए दूसरे संबंधित उपवाक्य के अर्थ को समझने की आवश्यकता नहीं होती, मुख्य उपवाक्य कहलाता है, जैसे-
· मैंने कहा कि तुम घर जाओ।
इस वाक्य में ‘मैंने कहा’ मुख्य
उपवाक्य है। यदि इसमें ‘कहा’ के बाद पूर्ण
विराम लगा दिया जाए, तो भी यह वाक्य पूर्ण और संप्रेषणीय है।
(2) आश्रित उपवाक्य : ऐसा उपवाक्य जिसके अर्थ या संदर्भ को समझने के लिए दूसरे
उपवाक्य का बोध आवश्यक होता है,
आश्रित उपवाक्य कहलाता है, जैसे- उपर्युक्त उदाहरण ‘मैंने कहा कि तुम घर जाओ’ में ‘कि तुम घर जाओ’ आश्रित उपवाक्य है, क्योंकि यह अपने पूरे अर्थ को व्यक्त नहीं कर रहा है। इसी प्रकार ‘वह लड़का बाहर बैठा है जो कल आया था’ वाक्य में ‘वह लड़का बाहर बैठा है’ मुख्य उपवाक्य है जबकि ‘जो कल आया था’ आश्रित उपवाक्य है, क्योंकि ‘जो कल आया था’ को
सुनकर पूरे अर्थ की अनुभूति नहीं हो पा रही
है। आश्रित उपवाक्य के तीन प्रकार किए गए हैं-
(क) संज्ञा उपवाक्य : वे आश्रित उपवाक्य जो मुख्य उपवाक्य में संज्ञा के स्थान
पर प्रयुक्त होने की क्षमता रखते हैं, संज्ञा उपवाक्य कहलाते हैं। ये सामान्यतः मुख्य उपवाक्य में ‘कर्ता’ और ‘कर्म’ के स्थान पर आने की क्षमता रखते हैं, जैसे- ‘मैंने कहा कि तुम घर जाओ’ में ‘कि तुम घर जाओ’ संज्ञा उपवाक्य है। इसे मुख्य
उपवाक्य में स्थानांतरित करते हुए वाक्य को ‘मैंने तुम्हें
घर जाने को कहा’ के रूप में भी लिखा जा सकता है।
(ख) विशेषण उपवाक्य : वे उपवाक्य जो
मुख्य उपवाक्य में विशेषण के स्थान पर प्रयुक्त होने की क्षमता रखते हैं, विशेषण उपवाक्य कहलाते हैं, जैसे- ‘वह
लड़का बाहर बैठा है जो कल आया था’ वाक्य में ‘जो कल आया था’ विशेषण उपवाक्य है क्योंकि इस वाक्य
को ‘कल आया हुआ लड़का बाहर बैठा है’ के
रूप में भी लिखा जा सकता है, जिसमें ‘कल
आया हुआ’ विशेषण का काम कर रहा है।
(ग) क्रियाविशेषण उपवाक्य : वे उपवाक्य जो मुख्य उपवाक्य में क्रियाविशेषण का कार्य
करते हैं, क्रियाविशेषण उपवाक्य कहलाते हैं, जैसे- ‘ज्योंही बिजली आई,
पंखा चलने लगा’ वाक्य में ‘ज्योंही
बिजली आई’ क्रियाविशेषण उपवाक्य है,
क्योंकि यह ‘पंखा चलने’ की विशेषता बता
रहा है।
6. वाक्य : घटक एवं प्रकार
वाक्य वह इकाई है जो पूर्ण अर्थ की प्रतीति
कराती है। एक पूर्ण वाक्य द्वारा कम-से-कम एक मंतव्य व्यक्त किया जाता है। इसके
लिए एक संज्ञा पदबंध और क्रिया पदबंध का होना आवश्यक होता है, जिसकी चर्चा ऊपर की जा चुकी है। यहाँ पर हम
वाक्य के घटकों एवं प्रकारों की चर्चा करेंगे।
6.1 वाक्य के घटक
वाक्य को मूलतः दो घटकों से निर्मित
माना जाता है-
(क) उद्देश्य (Subject) : वाक्य का वह भाग जिसके बारे में कुछ कहा जाता है,
उसे उद्देश्य कहते हैं, जैसे-
·
लड़का
बीमार है।
·
मोहन
विद्यालय जाता है।
इन वाक्यों में ‘लड़का’ और ‘मोहन’ उद्देश्य हैं, क्योंकि
वाक्य में इन्हीं के बारे में सूचना दी जा रही है।
(ख) विधेय (Predicate) : वाक्य का वह भाग जिसके माध्यम से
उद्देश्य के बारे में कुछ कहा जाता है, विधेय कहलाता हैं, जैसे-
·
लड़का
बीमार है।
·
मोहन
विद्यालय जाता है।
इन वाक्यों में ‘बीमार है’ और ‘विद्यालय जाता है’ विधेय हैं,
क्योंकि वाक्य में इन्हीं के माध्यम से उद्देश्य के बारे में सूचना दी जा रही है।
कुछ आधुनिक भाषावैज्ञानिकों द्वारा ‘उद्देश्य’ को ‘टॉपिक’ और ‘विधेय’ को ‘कमेंट’ कहा गया है।
6.2 वाक्य के प्रकार
वाक्य को मुख्यतः दो आधारों पर
वर्गीकृत किया जा सकता है-
संरचना की दृष्टि से- संरचना की दृष्टि
से वाक्य के तीन प्रकार होते हैं-
(क) सरल वाक्य : ऐसे वाक्य जिनमें केवल एक समापिका क्रिया होती है, सरल वाक्य कहलाते हैं। ऐसे वाक्यों में
केवल एक उद्देश्य और एक विधेय होते हैं, जैसे-
·
वह घर
जाता है।
·
मैं
खाना नहीं खाता हूँ।
·
तुम
बाजार कब जाओगे?
उपर्युक्त वाक्यों में ‘जाना, खाना, जाना’ समापिका क्रिया हैं। इनमें प्रत्येक वाक्य के
माध्यम से एक ही सूचना का संप्रेषण किया जा रहा है। सरल वाक्य कितने भी लंबे हों, उनसे केवल एक ही काम के संपन्न होने की सूचना प्राप्त होती है।
(ख) मिश्र वाक्य : ऐसे वाक्य जिनमें एक मुख्य उपवाक्य होता है ,और एक या एक से अधिक आश्रित उपवाक्य होते
हैं, मिश्र वाक्य कहलाता है, जैसे-
·
उसने
कहा कि तुम्हारा नाम बहुत अच्छा है।
·
यदि
तुम घर जाओगे तो मैं बाजार से मिठाई लाऊँगा।
उपवाक्य’ के बारे में ऊपर चर्चा की जा चुकी है। मिश्र
वाक्यों की रचना मुख्य उपवाक्य के साथ संज्ञा, विशेषण और
क्रियाविशेषण सभी प्रकार के उपवाक्यों के योग से होती है। इनकी रचना में दो पक्षों
के बीच व्यधिकरण समुच्चयबोधकों (Subordinating conjunctions), जैसे- कि, जो, जो...कि, जिस, क्योंकि, इसलिए आदि का
प्रयोग किया जाता है।
(ग) संयुक्त वाक्य : ऐसे वाक्य जिनमें एक से अधिक मुख्य उपवाक्यों का प्रयोग
होता है तथा वे आपस में समानाधिकरन समुच्चयबोधकों (Coordinating conjunctions) के माध्यम से जुड़े होते हैं, संयुक्त वाक्य कहलाते हैं, जैसे-
·
मैं घर
जाऊँगा और तुम बाजार जाओगे।
· आज बारिश होगी या ओले पड़ेंगे।
अर्थ की दृष्टि से - अर्थ की दृष्टि से वाक्य के कई प्रकार किए जाते हैं, जिन्हें मुख्यतः निम्नलिखित वर्गों में
विभाजित करके देखा जा सकता है-
(क) कथनात्मक वाक्य : ऐसे वाक्य जिनमें किसी व्यक्ति, वस्तु आदि के बारे में कोई कथन उद्धृत किया
जाता है या कोई बात कही जाती है, कथनात्मक वाक्य कहलाते हैं।
सभी प्रकार के सरल और सूचनात्मक वाक्य ‘कथनात्मक’ होते हैं, जैसे-
·
घोड़ा
सुंदर है।
·
लड़का
बाजार जाता है।
इन वाक्यों का नकारात्मकीकरण करने पर
नकारात्मक वाक्य बनते हैं, जैसे-
घोड़ा सुंदर नहीं है, लड़का बाजार नहीं जाता है आदि। इसी प्रकार
प्रश्न का भाव देने पर प्रश्नवाचक वाक्य बनते हैं, जैसे-
क्या घोड़ा सुंदर है?, घोड़ा कितना सुंदर है?, क्या लड़का बाजार जाता है?, लड़का कैसे बाजार जाता
है?
(ख) आज्ञार्थक वाक्य : वे वाक्य जिनमें वक्ता का उद्देश्य श्रोता को निर्देशित
या प्रभावित करना होता है,
आज्ञार्थक वाक्य कहलाते हैं। इनमें तीन प्रकार की चीजें पाई जाती हैं- आज्ञा, परामर्श और निवेदन। उदाहरण-
·
तुम वहाँ
बैठे रहो।
·
हमें
शोर नहीं करना चाहिए ।
·
कृपया
आप बाहर जाइए।
आज्ञार्थक वाक्यों के केवल नकारात्मक
रूप ही बनते हैं। कुछ विशेष परिस्थितियों में ही उनके प्रश्नवाचक रूप बन पाते हैं।
(ग) मनोभावात्मक वाक्य : ऐसे वाक्य जिनमें वक्ता अपने मनोभावों या संवेगों को
व्यक्त करता है, मनोभावात्मक वाक्य
कहलाते हैं। इनमें वक्ता अपनी स्वयं की बात को व्यक्त करना चाहता ह।, इच्छा, विस्मय आदि से संबंधित वाक्य इसमें आते हैं, जैसे-
·
आपकी
यात्रा मंगलमय हो।
·
काश, आज बारिश होती।
·
ओह!
बहुत दुखद समाचार है।
मनोभावात्मक वाक्यों के प्रश्नवाचक
और नकारात्मक रूप नहीं बनते।
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