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Thursday, June 14, 2018

हिंदी की वाक्य संरचना


(दूर शिक्षा, म.गा.अं.हिं.वि.,वर्धा के एम.ए. हिंदी की पाठ्य सामग्री में)
पाठ्यचर्या का शीर्षक :  हिंदी भाषा एवं भाषा-शिक्षण
खंड: 2– हिंदी भाषा-संरचना
इकाई – 4 : वाक्य संरचना

2.0 प्रस्तावना
भाषा ध्वनि प्रतीकों के माध्यम से विचारों, भावों और सूचनाओं के संप्रेषण की व्यवस्था है। इस व्यवस्था में कई स्तर पाए जाते हैं, जिनमें वाक्य आधारभूत स्तर है। संपूर्ण भाषा व्यवहार वाक्यों के माध्यम से ही किया जाता है, इसीलिए वाक्य को भाषा व्यवहार की मूलभूत इकाई कहते हैं। व्याकरणिक रचना की दृष्टि से वाक्य किसी भी भाषा की सबसे बड़ी इकाई है और संप्रेषण की दृष्टि से सबसे छोटी इकाई। व्याकरणिक रचना की दृष्टि से किसी भाषा की सबसे बड़ी इकाई कहने से तात्पर्य है- वाक्य ऐसी सबसे बड़ी भाषिक इकाई है, जिसकी संरचना का व्याकरणिक दृष्टि से विश्लेषण किया जा सकता है। भाषा का मूल कार्य है- संप्रेषण। संप्रेषण की दृष्टि से वाक्य को सबसे छोटी इकाई इसलिए कहा जाता है, कि संप्रेषण के लिए वक्ता द्वारा कम से कम एक वाक्य का प्रयोग किया ही जाता है। संप्रेषण की दृष्टि से सबसे बड़ी भाषिक इकाई प्रोक्ति है। प्रोक्ति किसी एक कथ्य या संदर्भ से जुड़े वाक्यों का समूह है, जैसे- कोई कथा, कहानी, कविता, व्याख्यान, कार्यक्रम आदि।
3.0 वाक्य : परिभाषा एवं स्वरूप
किसी भी भाषा में तीन इकाइयाँ आधारभूत होती हैं- ध्वनि, शब्द और वाक्य। ध्वनियों के योग से शब्द या पद बनते हैं और शब्दों या पदों के योग से वाक्य बनते हैं। ध्वनियों का अपना कोई अर्थ नहीं होता, किंतु शब्दों का अर्थ होता है। शब्दों के केवल अर्थ संप्रेषणीय नहीं होते, अर्थात केवल एक शब्द का प्रयोग करके किसी सूचना का संप्रेषण नहीं किया जा सकता, जैसे- मोहन, राम, घर, बाजार, जाना, गया, जाता आदि कोई एक शब्द सुनकर श्रोता किसी संप्रेषणीय बात को नहीं समझ सकता। इनमें से आवश्यक शब्दों को उचित संक्रम में मिला देने पर संप्रेषण संभव हो जाता है, जैसे- राम गया, मोहन घर जाता है आदि। शब्दों का उचित संक्रम में यही योग वाक्य कहलाता है। वाक्य शब्दों के योग से बनता है, किंतु शब्द जब वाक्य में आते हैं, तो वे पद बन जाते हैं। इसलिए वाक्य को परिभाषित करते हुए कह सकते हैं कि पदों का वह समुच्चय वाक्य है जो उचित संक्रम में हो तथा जिससे कम-से-कम एक सूचना का संप्रेषण होता हो। अतः शब्दों या पदों के उचित संक्रम में योग से वाक्य निर्मित होते हैं। एक वाक्य में आने वाले पद विभिन्न प्रकार्यों को पूरा करते हैं। क्रिया वाक्य का केंद्र होती है। वाक्य निर्माण के लिए  क्रिया पद के साथ कम एक संज्ञा पद अवश्य होते हैं। वैसे संदर्भ आधारित वाक्य एक शब्द के भी हो सकते हैं, किंतु वेवाक्य तभी कहलाते हैं, जब उनका संदर्भ श्रोता को पता हो, जैसे- यदि कोई पूछे- कौन आया और उत्तर मिले- राम’, तो इसका अर्थ यह हुआ कि राम आया। इसमें आया शब्द नहीं बोला गया है, क्योंकि कौन आया?’ प्रश्न में इसकी सूचना प्राप्त हो चुकी है। वाक्य की रचना के लिए संस्कृत आचार्यों द्वारा तीन आवश्यक तत्वों की बात की गई है-
(क) आकांक्षा – जब किसी शब्द का वाक्य में प्रयोग होता है तो उसे अन्य शब्दों की आवश्यकता होती है। इस आवश्यकता को ही संस्कृत आचार्यों ने आकांक्षा कहा है, जैसे- वाक्य में कर्ता शब्द के आते ही क्रिया (और सकर्मक क्रियाओं में कर्ता) की आकांक्षा।
(ख) योग्यता : वाक्य में प्रकार्य के स्तर पर एक शब्द के साथ दूसरे शब्द के जुड़ सकने की क्षमता को योग्यता कहते हैं। इसके दो प्रकार हैं- अर्थमूलक योग्यता, व्याकरणमूलक योग्यता। अर्थमूलक योग्यता से तात्पर्य है- अर्थ की दृष्टि से शब्दों का आपस में प्रयुक्त हो सकने की क्षमता, जैसे- घमंडी बच्चा, *घमंडी पेड़। व्याकरणमूलक योग्यता से तात्पर्य है- व्याकरण की दृष्टि से शब्दों का आपस में प्रयुक्त हो सकने की क्षमता, जैसे- अच्छा लड़का, *अच्छा लड़की।
(ग) सन्निधि : वाक्य निर्माण के लिए उच्चरित या अभिव्यक्त शब्दों का एक-दूसरे के पास या समीप होने की अवस्था सन्निधि है। इसे आसक्ति भी कहा गया है।
वाक्य पर कई दृष्टियों से विचार किया जा सकता है। सूरजभान सिंह (2000) द्वारा हिंदी का वाक्यात्मक व्याकरण में वाक्य पर कई दृष्टियों से चर्चा की गई है। इन्होंने दर्शनपरक दृष्टिकोण, संस्कृत व्याकरण परंपरा, अर्थपरक दृष्टिकोण, संरचनात्मक दृष्टिकोण, भाषा विशिष्ट दृष्टिकोण, मनोवादी दृष्टिकोण, प्रकार्यपरक दृष्टिकोण और संदर्भपरक दृष्टिकोण से वाक्य को परिभाषित और व्याख्यायित किया है। वाक्य संरचना को समझने के लिए हमें वाक्य के घटकों पर विचार करना होगा। इस दृष्टि से तीन इकाइयों का अध्ययन आवश्यक है- पदबंध, उपवाक्य और वाक्य। आगे इस इकाई में तीनों इकाइयों की विस्तृत चर्चा की जा रही है।
4.0 पदबंध : स्वरूप एवं प्रकार
पदबंध ही वह आधारभूत भाषिक इकाई है, जिससे वाक्य की रचना होती है। पदबंधों के योग से ही वाक्य निर्मित होते हैं। पदबंध को परिभाषित करते हुए कहा गया है- कोई भी एक पद या एक से अधिक पदों का समूह जो वाक्य में किसी एक ही प्रकार्य को संपन्न करता हो, पदबंध है। डॉ. अनिल कुमार पाण्डेय के अनुसार, “पद या पदों का विस्तार पदबंध है।” अर्थात एक अकेला पद भी एक पदबंध का काम कर सकता है और एक से अधिक पद भी एक ही पदबंध का कार्य कर सकते हैं। उदाहरण के लिए निम्नलिखित वाक्यों को देखा जा सकता है-
·       लड़का                  सब्जी                लाएगा।
पदबंध-1               पदबंध-2            पदबंध-3
·       मेरा लड़का            हरी सब्जी           लाता है।
पदबंध-1               पदबंध-2            पदबंध-3
·       मेरा बड़ा लड़का      बहुत हरी सब्जी   लाता रहा है।
पदबंध-1                   पदबंध-2        पदबंध-3
·       मेरा सबसे बड़ा लड़का          बहुत अधिक हरी सब्जी     ले जा रहा है।
पदबंध-1                                    पदबंध-2               पदबंध-3
उपर्युक्त वाक्यों में हम देख सकते हैं कि आरंभ में एक-एक शब्द या पद पदबंध का काम कर रहे हैं। किंतु बाद के वाक्यों में शब्दों या पदों की संख्या तो बढ़ रही है, लेकिन पदबंधों की नहीं। दूसरे वाक्य में दो-दो शब्द मिलकर एक पदबंध का निर्माण कर रहे हैं; तीसरे वाक्य में तीन-तीन शब्द मिलकर एक पदबंध का निर्माण कर रहे हैं और इसी प्रकार चौथे वाक्य में चार-चार शब्द मिलकर एक पदबंध का निर्माण कर रहे हैं। एक पदबंध बनाने के लिए यह महत्वपूर्ण नहीं है कि कितने पद एक साथ प्रयुक्त हो रहे हैं, बल्कि यह महत्वपूर्ण है कि कितने पद एक ही प्रकार्य को संपन्न कर रहे हैं। इसी कारण एक पद या एक से अधिक पदों के समूह को पदबंध कहा गया है। कौन-कौन से पद एक साथ मिलकर एक पदबंध का कार्य कर सकते हैं? इसे समझने के लिए पदबंध के प्रकारों को जानना होगा।
पदबंध के प्रकार
भाषाविज्ञान में पदबंध को दो दृष्टियों से वर्गीकृत किया गया है- संरचना की दृष्टि से और प्रकार्य की दृष्टि से।
§  संरचना की दृष्टि से पदबंध के प्रकार
संरचना की दृष्टि से पदबंध के दो वर्ग किए गए हैं-  अंतःकेंद्रिक और बाह्य केंद्रीय।
 (1) अंतःकेंद्रिक पदबंध
वे पदबंध जिनका शीर्ष (या केंद्र) पदबंध में उपस्थित होता है , अंतःकेंद्रिक पदबंध कहलाते हैं। शीर्ष पद बंद का वह हिस्सा या भाग होता है, जो अकेले संपूर्ण पदबंध के स्थान पर प्रयुक्त होने की क्षमता रखता है। उदाहरण के लिए निम्नलिखित वाक्य को देखें-
वह लड़का             सादा पानी           पीता है।
पदबंध-1               पदबंध-2            पदबंध-3
इस वाक्य में वह लड़का में लड़का तथा सादा पानी में पानी शब्द शीर्ष हैं। क्योंकि संपूर्ण पदबंध की जगह केवल इनका प्रयोग करके भी सार्थक वाक्य निर्मित किया जा सकता है-
लड़का                  पानी                  पीता है।
पदबंध-1               पदबंध-2            पदबंध-3
अंतःकेंद्रिक पदबंध के तीन प्रकार हैं-
(क) सविशेषक (Attributive) पदबंध : वे पदबंध जिनमें एक पद शीर्ष होता है और अन्य पद उस पर आश्रित होते हैं, सविशेषक पदबंध कहलाता है। बिना परसर्ग के संज्ञा पदबंध सविशेषक पदबंध होते हैं, जिनमें मुख्य पद संज्ञा होता है, और विशेषण या अन्य शब्द वर्गों के शब्द उस पर आश्रित होते हैं, जैसे-
आश्रित                शीर्ष
सुंदर                     लड़का
नया                      कपड़ा
बहुत अधिक नया    कपड़ा  
इसी प्रकार विशेषण पदबंध में विशेषण शीर्ष होता है और अन्य प्रविशेषण आदि पद उस पर आश्रित होते हैं, जैसे-
आश्रित                शीर्ष
बहुत                     नया
बहुत अधिक          नया
(ख) समवर्गीय (Appositional) पदबंध : समवर्गीय पदबंध वे पदबंध होते हैं, जिनमें एक से अधिक शीर्ष पद होते हैं और दोनों में से कोई भी एक पद संपूर्ण पदबंध का कार्य करने की क्षमता रखता है। उदाहरण के लिए घर और दुकान’, चावल और दाल’, कुर्ता या पजामा आदि। सामान्यतः इन पदबंधों में दोनों शीर्षों के बीच और, या जैसे संयोजक प्रयुक्त होते हैं, जैसा कि इन उदाहरणों में देखा जा सकता है।
(ग) समानाधिकरण (Coordinative) पदबंध : समानाधिकरण पदबंधों की रचना ऐसे दो पदबंधों के योग से होती है जो बाह्य संसार में एक ही इकाई को व्यक्त करते हैं अतः उन दोनों में से किसी एक का प्रयोग करने पर भी पूरे पदबंध का अर्थ आ जाता है उदाहरण के लिए राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद आज भाषण देंगे इस वाक्य में राष्ट्रपति राम और रामनाथ कोविंद दोनों में से किसी एक को रखकर के वाक्य बनाया जा सकता है जैसे राष्ट्रपति आज भाषण देंगे रामनाथ कोविंद आज भाषण देंगे इसी प्रकार अमेरिका की राजधानी न्यूयॉर्क में यह घटना घटी इस वाक्य में अमेरिका की राजधानी और न्यू यार समानाधिकरण प्रबंध की रचना कर रहे हैं इसे हम अमेरिका की राजधानी में यह घटना घटी और निर्यात में यह घटना घटी में से किसी के भी द्वारा व्यक्त कर सकते हैं
(2) बाह्यकेंद्रिक पदबंध
 ऐसे पदबंध जिनमें पदबंध के अंदर शीर्ष नहीं होता, बाह्यकेंद्रिक पदबंध कहलाते हैं। अर्थात ऐसे पदबंध जिनमें से कोई भी पद स्वतंत्र रूप से संपूर्ण पदबंध की तरह प्रयुक्त होने की क्षमता नहीं रखता, बाह्यकेंद्रिक पदबंध कहलाते हैं। ऐसे पदबंधों में कोई भी शीर्ष पदबंध नहीं होता। बाह्यकेंद्रिक पदबंधों के दो प्रकार होते हैं-
(क) अक्ष-संबंधक (Axis relater) पदबंध : ऐसे पदबंध जिनमें एक घटक अक्ष या केंद्र होता है और दूसरा घटक उसे वाक्य के दूसरे अंगों से जोड़ता है, अक्ष-संबंधक पदबंध कहलाते हैं। इन पदबंधों में दूसरा पद संबंध-तत्व होता है, जिसका काम केंद्रीय घटक (अक्ष) को दूसरे वाक्य के दूसरे तत्वों से जोड़ना होता है, जैसे-
·       राम ने रावण को बाण से मारा।
इस वाक्य में राम ने, रावण को, बाण से तीन संज्ञा पदबंध हैं। इन तीनों में राम, रावण और बाण अक्ष हैं, जिन्हें क्रमशः ने, को, से संबंध-तत्व वाक्य के अन्य घटकों से जोड़कर वाक्य की रचना करते हैं। अतः हिंदी में परसर्गों के साथ बनने वाले पदबंध अक्ष-संबंधक पदबंध कहलाते हैं।
(ख) गुंफित (Closed-knit) पदबंध : ऐसे पदबंध जिनमें सभी घटक पद सम्मिलित रूप से पदबंध का कार्य कर रहे होते हैं, गुंफित पदबंध कहलाते हैं। ऐसे पदबंधों के पदों के बीच न तो हम कोई शीर्ष और अन्य जैसा संबंध पाते हैं, और ना ही अक्ष-संबंधक जैसा कोई संबंध पाते हैं। हिंदी के क्रिया पदबंध को इस श्रेणी में रखा जाता है। उदाहरण के लिए गया, जाएगा, खाता है, खा रहा होगा आदि को देखा जा सकता है।
§  पदबंधों का प्रकार्यात्मक वर्गीकरण
 प्रकार्यात्मक दृष्टि से पदबंधों को दो रूपों में वर्गीकृत किया गया है- संरचनात्मक प्रकार्य की दृष्टि से और व्याकरणिक प्रकार्य की दृष्टि से।
(1) संरचनात्मक प्रकार्य की दृष्टि से वर्गीकरण - संरचनात्मक प्रकार्य के आधार पर पदबंधों के निम्नलिखित वर्ग किए जाते हैं-
(क) संज्ञा पदबंध : ऐसा पदबंध जिसका शीर्ष पद संज्ञा होता है, संज्ञा पदबंध कहलाता है। संज्ञा पदबंध रचनाएँ अंतःकेंद्रिक पदबंध रचनाएँ होती हैं। उदाहरण के लिए लड़का, अच्छा लड़का, बहुत अच्छा लड़का, सबसे अधिक अच्छा लड़का आदि ये सभी संज्ञा पदबंध हैं।
(ख) सर्वनाम पदबंध : वे पदबंध जिनका शीर्ष पद सर्वनाम होता है, सर्वनाम पदबंध कहलाते हैं। सर्वनाम पदबंध सामान्यतः एक शब्द या दो शब्द से बनते हैं, क्योंकि सर्वनामों के साथ विशेषक नहीं लगते, जैसे- मैं, तुम, तुम लोग आदि। आधुनिक वाक्य विश्लेषण में इन्हें संज्ञा पदबंध के अंतर्गत ही विश्लेषित किया जाता है।
(ग) विशेषण पदबंध : वे पदबंध जिनका शीर्ष पद विशेषण होता है, विशेषण पदबंध कहलाते हैं, जैसे- सुंदर, बहुत सुंदर, बहुत अधिक सुंदर, सबसे अधिक सुंदर और सरल आदि।
(घ) क्रिया पदबंध : वे पदबंध जो क्रिया पदों से निर्मित होते हैं, क्रिया पदबंध कहलाते हैं। हिंदी में क्रिया पदबंध की रचना मुख्य क्रिया तथा सहायक क्रिया के योग से होती है। हिंदी के क्रिया पदबंध बाह्य केंद्रक पदबंध होते हैं। हिंदी क्रिया पदबंधों के चार प्रकार किए गए हैं- सरल क्रिया पदबंध, मिश्र क्रिया पदबंध, यौगिक क्रिया पदबंध और संयुक्त क्रिया पदबंध।
(ङ) क्रियाविशेषण पदबंध : वे पदबंध जो वाक्य में क्रियाविशेषण का कार्य करते हैं, क्रियाविशेषण पदबंध कहलाते हैं। हिंदी में कुछ क्रियाविशेषण शब्द पाए जाते हैं। ऐसे पदों के शार्ष होने पर क्रियाविशेषण पदबंधों की रचना होती है, जैसे- तेज, सबसे तेज, बहुत अधिक तेज आदि। इसी प्रकार कुछ कृदंत और अन्य घटक भी क्रियाविशेषण पदबंध का कार्य करते हैं।
(च) अव्यय पदबंध :  हिंदी में कुछ ऐसी पदबंध स्तरीय इकाइयाँ पाई जाती हैं, जो वाक्य में स्वतंत्र प्रकार्य करती हैं, किंतु उपर्युक्त में से किसी के अंतर्गत नहीं आतीं। इन सभी को अव्यय पदबंध के अंतर्गत रखा गया है, जैसे- नकारात्मक-सकारात्मक प्रयोग (न, नहीं, मत, हाँ), समुच्चयबोधक, विस्मयादिबोधक आदि।
(2) व्याकरणिक प्रकार्य की दृष्टि से पदबंध के प्रकार
वाक्य में सभी पदबंध विभिन्न प्रकार्यात्मक भूमिकाओं के माध्यम से आपस में जुड़े होते हैं। इन भूमिकाओं को व्याकरणिक प्रकार्य कहते हैं। इस दृष्टि से पदबंधों को कर्ता पदबंध, कर्म पदबंध, करण पदबंध, (अर्थात सभी कारक संबंध) और पूरक पदबंध आदि में वर्गीकृत किया जाता है।
5. उपवाक्य : स्वरूप एवं प्रकार
उपवाक्य पदबंध से बड़ी किंतु वाक्य से छोटी इकाई है। यह वाक्य स्तर की ही इकाई है। उपवाक्य को परिभाषित करते हुए कहा जा सकता है कि उपवाक्य वह वाक्य स्तरीय भाषिक इकाई है, जो अपने से बड़े वाक्य का अंग होती है। एक उपवाक्य में वाक्य की तरह उद्देश्य और विधेय आवश्यक घटक होते हैं, किंतु बड़े वाक्यों का अंग होने के कारण वाक्य ही उपवाक्य बनते हैं। उपवाक्य मिश्र वाक्य और संयुक्त वाक्य में पाए जाते हैं, जिनकी चर्चा आगे वाक्य वाले खंड में की जाएगी।
§  उपवाक्य के प्रकार
उपवाक्य के दो प्रकार किए गए हैं- मुख्य उपवाक्य और आश्रित उपवाक्य। इन्हें संक्षेप में इस प्रकार समझ सकते हैं-
(1) मुख्य उपवाक्य : किसी असरल वाक्य का वह उपवाक्य जिसके अर्थ को समझने के लिए दूसरे संबंधित उपवाक्य के अर्थ को समझने की आवश्यकता नहीं होती, मुख्य उपवाक्य कहलाता है, जैसे-
·       मैंने कहा कि तुम घर जाओ।
इस वाक्य में मैंने कहा मुख्य उपवाक्य है। यदि इसमें कहा के बाद पूर्ण विराम लगा दिया जाए, तो भी यह वाक्य पूर्ण और संप्रेषणीय है।
(2) आश्रित उपवाक्य : ऐसा उपवाक्य जिसके अर्थ या संदर्भ को समझने के लिए दूसरे उपवाक्य का बोध आवश्यक होता है, आश्रित उपवाक्य कहलाता है, जैसे- उपर्युक्त उदाहरण मैंने कहा कि तुम घर जाओ में कि तुम घर जाओ आश्रित उपवाक्य है, क्योंकि यह अपने पूरे अर्थ को व्यक्त नहीं कर रहा है। इसी प्रकार वह लड़का बाहर बैठा है जो कल आया था वाक्य में वह लड़का बाहर बैठा है मुख्य उपवाक्य है जबकि जो कल आया था आश्रित उपवाक्य है, क्योंकि जो कल आया था को सुनकर  पूरे अर्थ की अनुभूति नहीं हो पा रही है। आश्रित उपवाक्य के तीन प्रकार किए गए हैं-
(क) संज्ञा उपवाक्य : वे आश्रित उपवाक्य जो मुख्य उपवाक्य में संज्ञा के स्थान पर प्रयुक्त होने की क्षमता रखते हैं, संज्ञा उपवाक्य कहलाते हैं। ये सामान्यतः मुख्य उपवाक्य में कर्ता और कर्म के स्थान पर आने की क्षमता रखते हैं, जैसे- मैंने कहा कि तुम घर जाओ में कि तुम घर जाओ संज्ञा उपवाक्य है। इसे मुख्य उपवाक्य में स्थानांतरित करते हुए वाक्य को मैंने तुम्हें घर जाने को कहा के रूप में भी लिखा जा सकता है।
(ख) विशेषण उपवाक्य : वे  उपवाक्य जो मुख्य उपवाक्य में विशेषण के स्थान पर प्रयुक्त होने की क्षमता रखते हैं, विशेषण उपवाक्य कहलाते हैं, जैसे- वह लड़का बाहर बैठा है जो कल आया था वाक्य में जो कल आया था विशेषण उपवाक्य है क्योंकि इस वाक्य को कल आया हुआ लड़का बाहर बैठा है के रूप में भी लिखा जा सकता है, जिसमें कल आया हुआ विशेषण का काम कर रहा है।
(ग) क्रियाविशेषण उपवाक्य : वे उपवाक्य जो मुख्य उपवाक्य में क्रियाविशेषण का कार्य करते हैं, क्रियाविशेषण उपवाक्य कहलाते हैं, जैसे- ज्योंही बिजली आई, पंखा चलने लगा वाक्य में ज्योंही बिजली आई क्रियाविशेषण उपवाक्य है, क्योंकि यह पंखा चलने की विशेषता बता रहा है।
6. वाक्य : घटक एवं प्रकार
 वाक्य वह इकाई है जो पूर्ण अर्थ की प्रतीति कराती है। एक पूर्ण वाक्य द्वारा कम-से-कम एक मंतव्य व्यक्त किया जाता है। इसके लिए एक संज्ञा पदबंध और क्रिया पदबंध का होना आवश्यक होता है, जिसकी चर्चा ऊपर की जा चुकी है। यहाँ पर हम वाक्य के घटकों एवं प्रकारों की चर्चा करेंगे।
6.1 वाक्य के घटक
वाक्य को मूलतः दो घटकों से निर्मित माना जाता है-
(क) उद्देश्य (Subject) : वाक्य का वह भाग जिसके बारे में कुछ कहा जाता है, उसे उद्देश्य कहते हैं, जैसे-
·       लड़का बीमार है।
·       मोहन विद्यालय जाता है।
इन वाक्यों में लड़का और मोहन उद्देश्य हैं, क्योंकि वाक्य में इन्हीं के बारे में सूचना दी जा रही है।
(ख) विधेय (Predicate) :  वाक्य का वह भाग जिसके माध्यम से उद्देश्य के बारे में कुछ कहा जाता है, विधेय कहलाता हैं, जैसे-
·       लड़का बीमार है।
·       मोहन विद्यालय जाता है।
इन वाक्यों में बीमार है और विद्यालय जाता है विधेय हैं, क्योंकि वाक्य में इन्हीं के माध्यम से उद्देश्य के बारे में सूचना दी जा रही है।
कुछ आधुनिक भाषावैज्ञानिकों द्वारा उद्देश्य को टॉपिक और विधेय को कमेंट कहा गया है।
6.2 वाक्य के प्रकार
वाक्य को मुख्यतः दो आधारों पर वर्गीकृत किया जा सकता है-
संरचना की दृष्टि से-  संरचना की दृष्टि से वाक्य के तीन प्रकार होते हैं-
(क) सरल वाक्य : ऐसे वाक्य जिनमें केवल एक समापिका क्रिया होती है, सरल वाक्य कहलाते हैं। ऐसे वाक्यों में केवल एक उद्देश्य और एक विधेय होते हैं, जैसे-
·       वह घर जाता है।
·       मैं खाना नहीं खाता हूँ।
·       तुम बाजार कब जाओगे?
उपर्युक्त वाक्यों में जाना, खाना, जाना समापिका क्रिया हैं। इनमें प्रत्येक वाक्य के माध्यम से एक ही सूचना का संप्रेषण किया जा रहा है। सरल वाक्य कितने भी लंबे हों, उनसे केवल एक ही काम के संपन्न होने की सूचना प्राप्त होती है।
(ख) मिश्र वाक्य : ऐसे वाक्य जिनमें एक मुख्य उपवाक्य होता है ,और एक या एक से अधिक आश्रित उपवाक्य होते हैं, मिश्र वाक्य कहलाता है, जैसे-
·       उसने कहा कि तुम्हारा नाम बहुत अच्छा है।
·       यदि तुम घर जाओगे तो मैं बाजार से मिठाई लाऊँगा।
उपवाक्य के बारे में ऊपर चर्चा की जा चुकी है। मिश्र वाक्यों की रचना मुख्य उपवाक्य के साथ संज्ञा, विशेषण और क्रियाविशेषण सभी प्रकार के उपवाक्यों के योग से होती है। इनकी रचना में दो पक्षों के बीच व्यधिकरण समुच्चयबोधकों (Subordinating conjunctions), जैसे- कि, जो, जो...कि, जिस, क्योंकि, इसलिए आदि का प्रयोग किया जाता है।
(ग) संयुक्त वाक्य : ऐसे वाक्य जिनमें एक से अधिक मुख्य उपवाक्यों का प्रयोग होता है तथा वे आपस में समानाधिकरन समुच्चयबोधकों (Coordinating conjunctions) के माध्यम से जुड़े होते हैं, संयुक्त वाक्य कहलाते हैं, जैसे-
·       मैं घर जाऊँगा और तुम बाजार जाओगे।
·       आज बारिश होगी या ओले पड़ेंगे।
अर्थ की दृष्टि से - अर्थ की दृष्टि से वाक्य के कई प्रकार किए जाते हैं, जिन्हें मुख्यतः निम्नलिखित वर्गों में विभाजित करके देखा जा सकता है-
(क) कथनात्मक वाक्य : ऐसे वाक्य जिनमें किसी व्यक्ति, वस्तु आदि के बारे में कोई कथन उद्धृत किया जाता है या कोई बात कही जाती है, कथनात्मक वाक्य कहलाते हैं। सभी प्रकार के सरल और सूचनात्मक वाक्य कथनात्मक होते हैं, जैसे-
·       घोड़ा सुंदर है।
·       लड़का बाजार जाता है।
इन वाक्यों का नकारात्मकीकरण करने पर नकारात्मक वाक्य बनते हैं, जैसे- घोड़ा सुंदर नहीं है, लड़का बाजार नहीं जाता है आदि। इसी प्रकार प्रश्न का भाव देने पर प्रश्नवाचक वाक्य बनते हैं, जैसे- क्या घोड़ा सुंदर है?, घोड़ा कितना सुंदर है?, क्या लड़का बाजार जाता है?, लड़का कैसे बाजार जाता है?
(ख) आज्ञार्थक वाक्य : वे वाक्य जिनमें वक्ता का उद्देश्य श्रोता को निर्देशित या प्रभावित करना होता है, आज्ञार्थक वाक्य कहलाते हैं। इनमें तीन प्रकार की चीजें पाई जाती हैं- आज्ञा, परामर्श और निवेदन। उदाहरण-
·       तुम वहाँ बैठे रहो।
·       हमें शोर नहीं करना चाहिए ।
·       कृपया आप बाहर जाइए।
आज्ञार्थक वाक्यों के केवल नकारात्मक रूप ही बनते हैं। कुछ विशेष परिस्थितियों में ही उनके प्रश्नवाचक रूप बन पाते हैं।
(ग) मनोभावात्मक वाक्य : ऐसे वाक्य जिनमें वक्ता अपने मनोभावों या संवेगों को व्यक्त करता है, मनोभावात्मक वाक्य कहलाते हैं। इनमें वक्ता अपनी स्वयं की बात को व्यक्त करना चाहता ह।, इच्छा, विस्मय आदि से संबंधित वाक्य इसमें आते हैं, जैसे-
·       आपकी यात्रा मंगलमय हो।
·       काश, आज बारिश होती।
·       ओह! बहुत दुखद समाचार है।

मनोभावात्मक वाक्यों के प्रश्नवाचक और नकारात्मक रूप नहीं बनते।
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पूरा पढ़ने के लिए इस लिंक पर खुलने वाली फाइल में पृष्ठ 123 पर जाएँ-

हिंदी की रूप संरचना

(दूर शिक्षा, म.गा.अं.हिं.वि.,वर्धा के एम.ए. हिंदी की पाठ्य सामग्री में)

पाठ्यचर्या का शीर्षक :  हिंदी भाषा एवं भाषा-शिक्षण
खंड: 2– हिंदी भाषा-संरचना
इकाई – 3 : रूप-संरचना

2.0 प्रस्तावना
किसी भी भाषा में तीन इकाइयाँ आधारभूत होती हैं- ध्वनि, शब्द और वाक्य। किंतु भाषावैज्ञानिक दृष्टि से अध्ययन करने पर निम्नलिखित इकाइयाँ प्राप्त होती हैं-
(ध्वनि/स्वन) स्वनिम à रूपिम à शब्द/पद à पदबंध à उपवाक्य à वाक्य à प्रोक्ति
इन इकाइयों में स्वनिम ध्वनि-प्रतीकों का प्रतिनिधित्व करते हैं। स्वनिमों का अपना अर्थ नहीं होता, किंतु ये अर्थभेदक होते हैं। अर्थात ये शब्दों के बीच अर्थ में अंतर उत्पन्न करने की क्षमता रखते हैं। रूपिम किसी भाषा की लघुतम अर्थवान इकाई है। रूपिमों द्वारा कोशीय और व्याकरणिक दोनों प्रकार के अर्थ व्यक्त किए जाते हैं। शब्द किसी भाषा की वह इकाई है, जो स्वतंत्र रूप से अर्थ का वहन करती है। शब्दों के साथ व्याकरणिक सूचनाएँ जुड़ने पर वे पद बन जाते हैं। आधुनिक भाषाविज्ञान में मूल शब्दों नए शब्दों और शब्दरूपों के निर्माण को दो नाम दिए गए हैं- व्युत्पादन और रूपसाधन (derivation and inflection)। व्युत्पादन द्वारा मूल शब्दों से नए-नए शब्दों का प्रजनन किया जाता है। रूपसाधन वह प्रक्रिया है जिसके द्वारा कोशीय शब्दों के उन रूपों को प्रजनित किया जाता है जो वाक्य में प्रयुक्त होते हैं। भारतीय वैयाकरणों द्वारा इन्हें ही पदकहा गया है। इसीलिए रूपसाधन को पदसाधन भी कहा गया है। भाषाविज्ञान में रूपविज्ञान में रूपसाधन के माध्यम से बनने वाले शब्द-रूपों का अध्ययन ही रूप-संरचना के अंतर्गत आता है।
 3.0 रूप-संरचना
ध्वनियों के योग से शब्द या पद बनते हैं और शब्दों के योग से वाक्य बनते हैं। शब्द किसी भाषा की वह इकाई है, जो स्वतंत्र रूप से अर्थ का वहन करती है। उदाहरण के लिए पुस्तक’, मेज शब्दों के स्वतंत्र अर्थ हैं। इन्हें मिलाकर वाक्य बनाया जा सकता है,किंतु केवल शब्दों का योग वाक्य नहीं होता। जब शब्दों को वाक्य में प्रयुक्त किया जाता है, तो उनमें कुछ व्याकरणिक परिवर्तन किए जाते हैं, जिससे संप्रेषणीय वाक्य की रचना होती है। इन परिवर्तनों के बाद शब्द पद में बदल जाते हैं।
4.0 रूप-संरचना और व्याकरणिक कोटियाँ
शब्दों से जब शब्दरूपों (पदों) का निर्माण किया जाता है तो शब्द में शाब्दिक अर्थ के साथ-साथ कुछ अन्य व्याकरणिक सूचनाएँ भी जुड़ जाती हैं। ये सूचनाएँ व्याकरणिक कोटियों (लिंग, वचन, पुरुष, काल, पक्ष, वृत्ति आदि) से संबंधित होती हैं। शब्द के मूल रूप में भी इनसे संबंधित कुछ सूचनाएँ रहती हैं, किंतु वाक्य में प्रयोग होने पर उनमें आवश्यकतानुसार परिवर्तन हो जाता है। अतः रूपसाधन शब्दों में व्याकरणिक सूचनाओं के अनुरूप परिवर्तन करने की प्रक्रिया है। अतः रूप-संरचना में रूपसाधन हेतु विभिन्न प्रकार के शब्दों के साथ लगने वाले प्रत्ययों आदि का अध्ययन करने पूर्व व्याकरणिक कोटियों का ज्ञान आवश्यक है। व्याकरणिक कोटि की सूचना में परिवर्तन से शब्द का रूप परिवर्तित हो जाता है। उदाहरण के लिए निम्नलिखित वाक्य को देखें –
Ø  बच्चा खाना खाता है।
Ø  बच्चे खाना खाते हैं।
उपर्युक्त वाक्यों में बच्चा और बच्चे शब्द बच्चा कोशीय शब्द के दो रूप हैं, जो दो अलग-अलग वाक्यों में प्रयुक्त हुए हैं। इनमें शब्द के साथ ही लिंग और वचन संबंधी सूचनाएँ निहित हैं। बच्चा शब्द एकवचन, पुल्लिंग है जबकि बच्चे शब्द बहुवचन पुल्लिंग है। इसी प्रकार क्रिया और विशेषण आदि विकारी शब्दवर्गों के शब्दों का भी वाक्य में प्रयोग होने पर उनके साथ व्याकरणिक कोटियों की सूचना आ ही जाती है। यहाँ ध्यान रखने वाली बात है कि यह आवश्यक नहीं है कि प्रत्येक शब्द पर सभी व्याकरणिक कोटियों का प्रभाव हो ही। शब्द के वर्ग और उसकी प्रकृति के अनुसार संबंधित व्याकरणिक कोटि का प्रभाव पड़ता है और उसका रूप परिवर्तित होता है। हिंदी की रूप-संरचना को प्रभावित करने वाली व्याकरणिक कोटियाँ इस प्रकार हैं-
(क) लिंग (Gender)
प्राणियों की वह प्रकृति जिससे उनके नर या मादा होने का बोध होता है, प्राकृतिक लिंग (sex) है। भाषा में इसका बोधन व्याकरणिक लिंग (gender) है। मूल रूप से लिंग के तीन प्रकार किए जा सकते हैं- पुरुष, स्त्री और अन्य। इस आधार पर तीन लिंग होते हैं- पुल्लिंग, स्त्रीलिंग और नपुंसकलिंग। किंतु कुछ भाषाओं में कुछ शब्द ऐसे भी होते हैं, जिनसे पुरुष और स्त्री दोनों प्रकार लिंगों का बोध होता है, जिन्हें उभयलिंग कहते हैं। किंतु इन चारों लिंगों का सभी भाषाओं में पाया जाना आवश्यक नहीं है। सभी भाषाएँ अपनी-अपनी प्रकृति और समाज-सांस्कृतिक पृष्ठभूमि के अनुरूप लिंगों का बोध कराती हैं।
हिंदी में दो लिंग पाए जाते हैं- पुल्लिंग और स्त्रीलिंग। अतः इसमें नर और मादा के अलावा अन्य प्रकार के सभी शब्दों को भी इन्हीं दो लिंगों में विभक्त करके देखा जाता है। हिंदी में लिंग के आधार पर संज्ञा, विशेषण और क्रिया के रूप प्रभावित होते हैं। इन्हें आगे देखा जाएगा।
(ख) वचन (Number)
वाक्य में प्रयुक्त शब्द द्वारा होने वाला उसकी संख्या का बोध वचन (Number) है। अधिकांश भाषाओं में वचन का विभाजन एकऔर अनेकदो रूपों में किया जाता है। इस आधार पर वचन के दो प्रकार होते हैं- एकवचन और बहुवचन। हिंदी में भी यही स्थिति पाई जाती है। यद्यपि संस्कृत जैसी भाषाओं में द्विवचन भी प्राप्त होता है, किंतु हिंदी में केवल दो ही वचन हैं। वचन के आधार पर भी हिंदी में संज्ञा, विशेषण और क्रिया के रूप प्रभावित होते हैं। हिंदी में संज्ञा शब्दों की रूपरचना को वचन के साथ-साथ परसर्ग भी प्रभावित करते हैं।
(ग) पुरुष (Person)
पुरुष (person) द्वारा यह ज्ञात होता है कि भाषिक उक्ति वक्ता के संबद्ध है या श्रोता से अथवा किसी अन्य से। यह व्याकरणिक कोटि शब्दवर्गों (या शब्दभेदों) में मुख्यत: सर्वनामसे संबंधित है। सभी संज्ञा शब्द सदैव अन्य पुरुष में होते हैं। पुरुष के तीन प्रकार हैं- उत्तम पुरुष या प्रथम पुरुष, मध्यम पुरुष, अन्य पुरुष। हिंदी सर्वनाम तीनों पुरुषों में एकवचन और बहुवचन दोनों रूपों में पाए जाते हैं, जैसे- मैं, हम, तुम, तुम लोग, वह, वे आदि।
(घ) कारक (Case)
कारक (Case) संबंध है जो वाक्य की मुख्य क्रिया को वाक्य में आए संज्ञा पदबंधों से जोड़ता है। यह पदबंध स्तर की इकाई है। कारक को व्यक्त करने के लिए भिन्न-भिन्न भाषाओं में भिन्न-भिन्न प्रकार के प्रत्यय, शब्द आदि प्रयुक्त होते हैं। हिंदी में इन कारक संबंधों की अभिव्यक्ति परसर्गों के माध्यम से होती है। संस्कृत में विभक्तियों द्वारा कारकों की अभिव्यक्ति होती थी। इसी कारण कुछ वैयाकरणों द्वारा परसर्गों को विभक्ति नाम दिया गया है। संज्ञाओं के साथ परसर्ग अलग लिखे जाते हैं और सर्वनामों के साथ जोड़कर। किंतु परसर्गों का प्रयोग होने पर संज्ञाओं के रूप भी बदलते हैं, जैसे- लड़का का बहुवचन रूप लड़के है जो परसर्ग लगने पर लड़कों हो जाता है।
(ङ) काल (Tense)
किसी भाषिक अभिव्यक्ति द्वारा उसमें घटित कार्य-व्यापार के समय की दी जाने वाली सूचना काल है। भिन्न भाषाओं में कालों की संख्या अलग-अलग हो सकती है। फिर भी, अधिकांश भाषाओं में तीन काल पाए जाते हैं, जो हिंदी में भी हैं- वर्तमान काल, भूतकाल और भविष्यकाल। इसका संबंध क्रिया से है। काल के आधार पर हिंदी में केवल क्रियाओं के ही रूप प्रभावित होते हैं। इसका प्रभाव मुख्य क्रिया और सहायक क्रिया दोनों पर देखा जा सकता है।
(च) पक्ष (Aspect)
किसी काल विशेष में घटित होने वाली घटना के घटित होने की अवस्था का बोध कराने वाली व्याकरणिक कोटि पक्ष (Aspect) है। पक्ष और काल एक-दूसरे से जुड़े रहते हैं। काल का संबंध क्रिया के व्यापार के समय को सूचित करने से है तो पक्ष का संबंध उस समय विशेष में व्यापार के घटित होने की अवस्था से। पक्ष के दो प्रकार हैं- पूर्ण और अपूर्ण। अपूर्ण पक्ष के कुछ उपप्रकार भी किए गए हैं, जैसे- स्थित्यात्मक, नित्य, सातत्य आदि।
(छ) वृत्ति (Mood)
विभिन्न भाषाओं में कुछ वाक्य ऐसे होते हैं जिनसे वे सूचनाएँ या क्रिया व्यापार अभिव्यक्त होते हैं जो बाह्य संसार में घटित ही नहीं हुए रहते हैं। उन्हें वक्ता द्वारा विभिन्न प्रकार के कारणों से केवल अभिव्यक्त मात्र किया जाता है। इसमें वक्ता की इच्छा हो सकती है, जैसे- मैं जाना चाहता हूँ।इस वाक्य में जानेका व्यापार घटित नहीं हो रहा है केवल यह वक्ता की इच्छा मात्र है। इसी प्रकार आज्ञा, निवेदन, सलाह और विवशता आदि संबंधी वाक्य भी देखे जा सकते हैं। इस प्रकार के वाक्यों द्वारा व्यक्त भावों को सामूहिक रूप से वृत्ति (Mood) नाम दिया गया है। वृत्ति के संभावनार्थक, आज्ञार्थक/निवेदनार्थक, सामर्थ्यसूचक, बाध्यतासूचक, हेतुहेतुमद्भाव प्रकार किए गए हैं।
(ज) वाच्य (Voice)
वाच्य (Voice) एक वाक्य स्तरीय व्यवस्था है जो क्रिया और वाक्य में उसके अन्विति कर्ता (Agreementizer) के बीच संबंध को निरूपित करती है। कर्ताऔर कर्मक्रिया से सीधे-सीधे जुड़े होते हैं और उसके रूप को प्रभावित करने की क्षमता रखते हैं। अत: क्रिया का रूप कर्ता के आधार पर निर्मित हो रहा है या कर्म के आधार पर या दोनों से नहीं’ – को व्यक्त करने वाली व्याकरणिक कोटि वाच्यहै। इसके तीन प्रकार हैं- कर्तृवाच्य, कर्मवाच्य और भाववाच्य।
5.0 संज्ञा शब्दों की रूप-संरचना
किसी व्यक्ति, वस्तु, स्थान आदि को इंगित या संकेतित करने वाले शब्दों को जिस वर्ग में रखते हैं, उसे संज्ञा (Noun) कहते हैं। हिंदी में संज्ञा के तीन प्रकार किए हैं- व्यक्तिवाचक, जातिवाचक और भाववाचक। रूप-संरचना की दृष्टि से देखा जाए तो व्यक्तिवाचक संज्ञाओं के रूप में कोई परिवर्तन नहीं होता है, क्योंकि व्यक्तिवाचक संज्ञाएँ किसी का नाम होती हैं और किसी नाम पर व्याकरणिक कोटियों का कोई प्रभाव नहीं पड़ता। जातिवाचक और भाववाचक संज्ञाओं की रूप-संरचना देखी जाती है। इनमें भी दो प्रकार के शब्द पाए जाते हैं- विकारी और अविकारी। विकारी से तात्पर्य उन शब्दों से जिनके रूप में परिवर्तन होता है और अविकारी से तात्पर्य उन शब्दों से जिनके रूप में परिवर्तन नहीं होता है। उदाहरण के लिए चावल अविकारी संज्ञा है जबकि सब्जी विकारी। वचन के आधार पर इनमें की स्थिति विकार देख सकते हैं-
·       चावल पक रहा है।                           (एकवचन)
·       सब्जी पक रही है।                            (एकवचन‌)
·       पूरा बाजार चावल से भरा पड़ा है।        (बहुवचन)
·       पूरा बाजार सब्जियों से भरा पड़ा है।      (बहुवचन)
हिंदी में संज्ञाओं का रूपसाधन मुख्यत: वचन और उनकी परसर्गीय स्थिति  के आधार पर होता है। वचन की दृष्टि से दो रूप होते हैं- एकवचन और बहुवचन। परसर्गीय स्थिति के आधार पर संज्ञा शब्दों के दो रूप माने गए हैं- प्रत्यक्ष रूप और तिर्यक रूप। प्रत्यक्ष रूप’ (Direct form) का अर्थ है- शब्द का वह रूप जिसके बाद परसर्ग न आया हो, तथा तिर्यक/परसर्गीय रूप’ (Oblique form) का अर्थ है- शब्द का वह रूप जिसके बाद परसर्ग आया हो। अब इन चारों को एक-दूसरे के साथ मिला देने पर चार रूप हो जाते हैं- एकवचन प्रत्यक्ष, एकवचन तिर्यक, बहुवचन प्रत्यक्ष और बहुवचन तिर्यक। जब शब्द का रूप परिवर्तित होता है तो उसमें संबंधित सूचना आ जाती है। उदाहरण के लिए निम्नलिखित वाक्यों को देखें
·          वह लड़का घर जा रहा है।
·          उस लड़के को बुलाओ।
·          यहाँ लड़के खेल रहे हैं।
·          यहाँ लड़कों को खेलने दो।
इन वाक्यों में कोशीय शब्द लड़काके चार रूपों– ‘लड़का, लड़के, लड़के और लड़कोंका प्रयोग किया गया है। वाक्य 2और 3में प्रयुक्त लड़केशब्द भले ही दिखने की दृष्टि से एक ही हैं, किंतु इनका प्रयोग अलग-अलग व्याकरणिक सूचनाओं के लिए हुआ है। इन चारों शब्दों द्वारा व्यक्त व्याकरणिक सूचनाएँ इस प्रकार हैं
लड़का : एकवचन प्रत्यक्ष
लड़के : एकवचन परसर्गीय
लड़के : बहुवचन प्रत्यक्ष
लड़कों : बहुवचन परसर्गीय
इसे एक टेबल के रूप में निम्नलिखित प्रकार से प्रदर्शित किया जा सकता है-
वचन
कारक (तिर्यकता)
प्रत्यक्ष
तिर्यक
एकवचन
लड़का
लड़के
बहुवचन
लड़के
लड़कों
लड़के शब्द एकवचन परसर्गीयहै या बहुवचन प्रत्यक्षका निर्धारण उसके आगे आए हुए परसर्ग से होता है। यदि शब्द के बाद परसर्ग आया हो तो वह एकवचन होगा (वाक्य2) और यदि नहीं आया हो तो बहुवचन (वाक्य3)। इसी प्रकार सभी विकारी संज्ञा शब्दों के रूप निर्मित होते हैं। इस प्रकार के अलग-अलग रूप वाले शब्दों और उनके रूपों के संकलन को शब्दरूप टेबल (Word form table) कहते हैं। किसी संज्ञा शब्द के कौन-कौन से शब्दरूप निर्मित होंगे यह उस शब्द के लिंग, अंतिम वर्ण, शब्द के वाक्यात्मक व्यवहार और प्रत्यय जुड़ने की स्थिति पर निर्भर करता है। हिंदी में कुछ विकारी शब्दों के शब्दरूप इस प्रकार से बनाए जा सकते हैं-
क्र.सं.
शब्द
एक.प्रत्यक्ष
एक.तिर्यक
बहु.प्रत्यक्ष
बहु.तिर्यक
1
लड़का
लड़का
लड़के
लड़के
लड़कों
2
लड़की
लड़की
लड़की
लड़कियाँ
लड़कियों
3
साधू
साधू
साधू
साधू
साधुओं
4
सड़क
सड़क
सड़क
सड़कें
सड़कों
5
भाषा/ धेनु/माँ
भाषा
धेनु/माँ
भाषा
धेनु/माँ
भाषाएँ
धेनुएँ/माँएँ
भाषाओं
धेनुओं/माँओं
6
पेड़
पेड़
पेड़
पेड़
पेड़ों
7
राजा/ किटाणु
राजा
किटाणु
राजा
किटाणु
राजा
किटाणु
राजाओं
किटाणुओं
इसी प्रकार अलग रूप-रचना वाले अन्य शब्दों की भी सूची तैयार की जा सकती है। इनमें से प्रत्येक शब्द अपनी तरह के अन्य शब्दों का भी प्रतिनिधित्व करता है। उदाहरण के लिए लड़का शब्द की तरह- छाता, कपड़ा, कमरा, झोला, मेला, खाका, गाना आदि; लड़की शब्द की तरह- बकरी, खिड़की, नारी, कली, रानी आदि; साधू की तरह- बाबू, नींबू, आलू आदि; सड़क की तरह- मेज, कलम, दवात, दुकान, फाइल आदि शब्दों के रूप बनते हैं। किन-किन शब्दों के रूप एक तरह से बनते हैं, इसे भाषा व्यवहार से ही प्राप्त किया जा सकता है। वर्तमान में विभिन्न भाषाओं के कार्पस निर्मित किए गए हैं, जिनमें शब्दों के सभी रूपों को एक स्थान पर प्राप्त किया जा सकता है।
6.0 सर्वनाम शब्दों की रूप-संरचना
संज्ञा शब्दों के स्थान पर आ सकने वाले शब्दों को सर्वनाम कहते हैं। सर्वनाम वाक्य में संज्ञा का ही प्रकार्य संपन्न करते हैं। उनका संदर्भ शब्द सदैव संज्ञा होता है जो श्रोता को ज्ञात होता है अथवा ज्ञात न होने की अवस्था श्रोता उसका संदर्भ से अनुमान लगाता है। वाक्य स्तर पर विवेचन की दृष्टि से सर्वनामों को संज्ञा पदबंध के अंतर्गत ही रखा जाता है। सामान्यतः किसी भी भाषा में सर्वनामों की संख्या बहुत ही सीमित होती है। हिंदी में मूल सर्वनामों (पुरुषवाचक सर्वनामों) की संख्या मात्र 07 है जो निजवाचक, संबंधवाचक, प्रश्नवाचक, निश्चयवाचक और अनिश्चयवाचक सर्वनामों को मिला देने पर लगभग 15 हो जाती है। हिंदी के मूल सर्वनाम इस प्रकार हैं-
(क) पुरुषवाचक सर्वनाम
·       प्रथम/उत्तम पुरुष - मैं, हम
·       मध्यम पुरुष  - तू, तुम और आप
·       अन्य पुरुष  - वह, वे (यह, ये)
(ख) निजवाचक सर्वनाम - अपना, खुद
(ग) संबंधवाचक सर्वनाम  - जो
(घ) प्रश्नवाचक सर्वनाम - क्या, कौन
(ङ)  निश्चयवाचक सर्वनाम  -  यह, वह
(च)  अनिश्चयवाचक सर्वनाम - कोई, कुछ
सर्वनामों में रूपसाधन परसर्गों के योग से होता है। सर्वनामों में परसर्ग जोड़े जाने के बाद कुछ रूपिमिक परिवर्तन भी होते हैं। कुछ सर्वनामों में ये परिवर्तन समान होते हैं तो कुछ में भिन्न। यह भिन्नता इतनी विविधतापूर्ण है कि सभी सर्वनामों की रूप-संरचना के विश्लेषण के लिए एक प्रतिरूप (pattern) नहीं बनाया जा सकता। चूँकि सर्वनामों की संख्या बहुत कम है, इसलिए इनके सभी रूपों को एक टेबल के माध्यम से इस प्रकार से व्यक्त किया जा सकता है-
सर्वनाम
(परसर्ग) ने, को, से, के लिए, का/की/के (रा/री/रे) में पर (+ही)
वह
वह, उस, उसने, उसको, उसे, उससे, उसका, उसकी, उसके, उसमें, उसपर, उसी, वही
वे
वे, उन, उन्होंने, उनको, उन्हें, उनसे, उनका, उनकी, उनके, उनमें, उनपर, उन्हीं
तुम
तुम, तुमने, तुमको, तुम्हें, तुमसे, तुम्हारा, तुम्हारी, तुम्हारे, तुममें, तुमपर, तुम्हीं
तू
तू, तूने, तुझको, तुझे, तुझसे, तेरा, तेरी, तेरे, तुझमें, तुझपर, तुझी
आप
आप, आपने, आपको, आपसे, आपका, आपकी, आपके, आपमें, आपपर, आप ही
मैं
मैं, मैंने, मुझको, मुझे, मुझसे, मेरा, मेरी, मेरे, मुझमें, मुझपर, मुझी
हम
हम, हमने, हमको, हमें, हमसे, हमारा, हमारी, हमारे, हममें, हमपर, हम्हीं
यह
यह, इस, इसने, इसको, इसे, इससे, इसका, इसकी, इसके, इसमें, इसपर, इसी, यही
ये
ये, इन, इन्होंने, इनको, इन्हें, इनसे, इनका, इनकी, इनके, इनमें, इनपर, इन्हीं
जो
जो, जिस, जिसने, जिसको, जिसे, जिससे, जिसका, जिसकी, जिसके, जिसमें, जिसपर, जिन, जिन्होंने, जिन्हें, जिनसे, जिनका, जिनकी, जिनके, जिनमें, जिनपर, जिन्हीं
कौन
कौन, किस, किसने, किसको, किसे, किससे, किसका, किसकी, किसके, किसमें, किसपर, किसी किन, किन्होंने, किन्हें, किनसे, किनका, किनकी, किनके, किनमें, किनपर, किन्हीं
7.0 विशेषण शब्दों की रूप-संरचना
विशेषण वे शब्द हैं जो संज्ञा शब्दों की विशेषता बताते हैं। सामान्यतः ये संज्ञा पदंबंधों में आश्रित पद के रूप में प्रयुक्त होते हैं। पूरक (complement) पदबंध के रूप में ये स्वतंत्र रूप से भी वाक्य में प्रयुक्त होते हैं। हिंदी विशेषणों को कई आधारों पर वर्गीकृत किया गया है। इनमें रचना और अर्थ दो मुख्य आधार हैं। रचना के आधार पर दो भेद हैं- मूल और व्युत्पन्न, अर्थ के आधार पर विशेषणों को गुणवाचक, संख्यावाचक, परिमाणवाचक, सार्वनामिक आदि वर्गों में विभक्त किया जाता है।
रूप-संरचना की दृष्टि से देखा जाए तो विशेषणों के भी दो वर्ग किए जा सकते हैं- विकारी और अविकारी। विकारी विशेषणों में रूपिमिक परिवर्तन होता है, जबकि अविकारी विशेषण सदैव एक ही रूप में प्रयुक्त होते हैं। सामान्य रूप में कहा जाता है कि आकारांत (आ से समाप्त होने वाले) विशेषण विकारी होते हैं। इनके एकारांत और ईकारांत रूप बनते हैं, जैसे- अच्छा में अंत में आया है तो अच्छे और अच्छी इसके दो रूप बनेंगे। विशेषणों में यह विकार लिंग और वचन के आधार पर होता है। इसे एक तालिका के माध्यम से निम्नलिखित प्रकार से देख सकते हैं-

लिंग
वचन
पुल्लिंग (Masculine)
स्त्रिलिंग (Feminine)
एकवचन (Singular)
अच्छा
अच्छी
बहुवचन (Plural)
अच्छे
अच्छी
उदाहरण –
Ø  अच्छा लड़का खेल रहा है।
Ø  अच्छे लड़के खेल रहे हैं।
Ø  अच्छी लड़की खेल रही है।
Ø  अच्छी लड़कियाँ खेल रही हैं।
इसके अलावा वाँ अंतिम अक्षर वाले विशेषणों में भी संबंधित संज्ञा के लिंग और वचन के अनुसार परिवर्तन होता है। यह स्थिति संख्यावाची शब्द + वाँ में स्पष्ट दिखाई पड़ती है, जैसे-
Ø  मेरा यहाँ दसवाँ स्थान है।
Ø  मैं दसवीं कक्षा में पढ़ता हूँ।
Ø  मेरा लड़का दसवें स्थान पर आया।
उपर्युक्त उदाहरणों से स्पष्ट है कि (और आँ) से समाप्त होने वाले विशेषणों में रूपिमिक परिवर्तन होता है, किंतु ऐसे सभी विशेषणों में यह स्थिति नहीं प्राप्त होती। उदाहरण के लिए घटिया शब्द को ही लें तो घटिया आदमी (एकवचन, पुल्लिंग), घटिया लोग (बहुवचन, पुल्लिंग), घटिया औरत (एकवचन, स्त्रीलिंग), घटिया औरतें (बहुवचन, स्त्रीलिंग) में किसी भी रूप में कोई परिवर्तन नहीं हो रहा है। अतः ऐसे आकारांत विशेषणों को चिह्नित करना आवश्यक है जिनमें कोई परिवर्तन नहीं होता। भोलानाथ तिवारी (2004) द्वारा हिंदी की भाषा संरचनामें निम्नलिखित पाँच प्रकार के आकारांत अविकारी विशेषण शब्दों की चर्चा की गई है-
(1) यांत सीकिया, टुटपूँजिया, पुरबिया, रसिया, घटिया, बढ़िया, लफाड़िया, झंझटिया, कानपुरिया, बंबइया, ननिया, ममिया,चचिया आदि।
(2) वांत महकौवा, जुड़वाँ, सवा, भगवा, ढलुआ, ढलवाँ, उठौआ, गेरुआ आदि।
(3) संस्कृत तत्सम महा, हर्ता, कर्ता (-धर्ता)।
(4) फ़ारसी- अरबी शब्द जिनमें मूलत: अंत में न होकर अ:था तथा वह हिंदी में आकर हो गया : खुलासा, सोफ़ियाना, सालाना, शायराना, आवारा, संजिंदा, मौजूदा, शर्तिया, शौकिया, दुतरफ़ा, एकतरफ़ा, नाकारा, लापता, बचकाना, माहाना ... आदि। ताज़ाभी इसी वर्ग में है। इसमें भी परिवर्तन नहीं होता है (ताज़ा फल, ताज़ा सब्जी, ताज़ा ख़बर) किंतु कुछ लोग ताज़ा-ताज़ी-ताज़े बोलते हैं, जो मानक नहीं है।
(5) अन्य :
(i) तद्भव आगबाबूला, चौकन्ना, छुट्टा, पोंगा, इकट्ठा।
(ii) विदेशी तनहा, आला।
इसी प्रकार कुछ विशेषणों के ओंकारांत रूप भी बनते हैं, जब वे वाक्य में संज्ञा के रूप में प्रयुक्त होते हैं, जैसे- बूढ़ा के चार रूप बनेंगे- बूढ़ा, बूढ़ी, बूढ़े, बूढ़ों। ऐसे विशेषणों को अलग से चिह्नित किया जाता है।

संख्यावाची विशेषणों की रूप-संरचना
किसी भी भाषा में संख्याओं का संख्यावाची विशेषण के रूप में विश्लेषण किया जाता है। हिंदी में संख्याओं की रूप-संरचना अपेक्षाकृत अधिक जटिल है। प्रत्येक संख्या के कई विकारी रूप प्राप्त होते हैं। इनके संबंध में एक सामान्य नियम तो ओंकारांत रूप का दिया जा सकता है। एक को छोड़कर सभी संख्यावाची विशेषणों के ओंकारांत रूप बनते हैं और अपने ओंकारांत रूप में भी संख्यावाची शब्द विशेषण का ही कार्य करते हैं, जैसे- तीन से तीनों’, चार से चारों आदि। तीन के अंत्य के सादृश्य में दो का ओंकारांत रूप बनाने पर का आगम हो जाता है और दोनों रूप बनता है।
ओंकारांत रूप के अलावा गिनती के क्रम में संख्याओं में विकार होते हैं। भोलानाथ तिवारी (2004) द्वारा हिंदी की भाषा संरचना में इस प्रकार के विकारों की विस्तृत चर्चा की गई है। यहाँ हम उदाहरण के लिए कुछ संख्याओं के रूपों को देख सकते हैं-
रूपिम                  उपरूप              वितरण
एक :                    ग्या                    -रह
इक्या                 -अन, -आसी, -नवे
अक                  -एल
पह                    -ल-
प्रथ                    -म
अव                   -अल
डे                      -ढ़
ड्यो                   -ढ़-
एक                   अन्यत्र (एक, इक्(ए>इ))
दो:                       ब                      -तीस, -आलीस, -हत्तर, -आसी
बा                     -रह, -ईस, -अन, -सठ, -नवे
बी                     -स (बीस)
जो                     -ड़-
द्वि                     -उक्ति, -आगमन
दोन                   -ओं प्रत्यय (दोनों)
आई                  -ढ
दो                     -अन्यत्र (दो, दू (ओ>ऊ), दु(ओ>उ))
इसी प्रकार तिवारी (2004) की हिंदी की भाषा संरचना में अन्य संख्याओं के रूपों को देखा जा सकता है।

8.0 क्रिया शब्दों की रूप-संरचना
वह शब्दवर्ग है जिसके अंतर्गत आने वाले शब्दों के माध्यम से किसी कार्य के करने या होने का भाव प्रकट होता है, अथवा किसी वस्तु की स्थिति, अवस्था आदि का बोध होता है, क्रिया है। रूप-संरचना की दृष्टि से क्रिया सबसे अधिक जटिल शब्दवर्ग है। हिंदी में क्रिया पर लिंग, वचन, पुरुष, काल, पक्ष, वृत्ति और वाच्य लगभग सभी व्याकरणिक कोटियों का प्रभाव पड़ता है। यह प्रभाव कहीं शब्दरूप में दिखाई पड़ता है तो कहीं पदबंध रचना पर। क्रिया के मूल रूप को धातु को कहते हैं। धातु क्रिया का वह मूलांश है जिसमें कोई प्रत्यय नहीं लगा होता। धातु में ही प्रत्यय लगते हैं तथा क्रियारूपों की रचना होती है। हिंदी में क्रियाओं के ही सबसे अधिक रूप बनते हैं। इनकी कुल संख्या 22 से 28 तक है। किंतु यहाँ ध्यान रखने वाली बात है कि प्रत्येक क्रिया के सभी रूप निर्मित नहीं होते। किस क्रिया के कितने रूप बनेंगे, यह उस क्रिया की आर्थी प्रकृति और संबंधित कर्ता तथा कर्म की स्थिति पर निर्भर करता है। ‘+मानवकर्ता वाली क्रियाओं के सबसे अधिक रूप बनते हैं।
रूप-संरचना की दृष्टि से हिंदी क्रियाओं (धातुओं) के दो वर्ग किए जा सकते हैं- स्वरांत और व्यंजनांत। स्वरांत धातुओं के साथ स्वर वाले प्रत्यय लगते हैं और व्यंजनांत मात्राओं के साथ मात्राओं वाले प्रत्यय। कुछ प्रत्यय दोनों प्रकार की क्रियाओं में समान होते हैं। स्वरात्मक और मात्रात्मक दोनों प्रकार के प्रत्ययों की अलग-अलग गणना करने पर प्रत्ययों की कुल संख्या 41 हो जाती है। किंतु चूँकि मात्राएँ स्वरों का ही प्रतिनिधित्व करती हैं, इसीलिए दोनों को एक साथ रखा जाता है। मात्राओं को भी स्वरों के साथ रखते हुए धातुओं के साथ जुड़ने वाले प्रत्ययों को इस प्रकार सूचीबद्ध किया जा सकता है-
क्र.सं.
चिह्नक
उदाहरण
1
ता
चलता, खाता
2
ती
चलती, खाती
3
ते
चलते, खाते
4
ना
चलना, खाना
5
ने
चलने, खाने
6
नी
चलनी, खानी
7
या/ ा
खाया, चला
8
ई/ ी
खाई, चली
9
/
खाए, चले
10
ईं/ ीं
खाईं, चलीं
11
एँ/ ें
खाएँ, चलें
12
/
खाओ, चलो
13
इए/ िए
खाइए, चलिए
14
इएगा/ िएगा
खाइएगा, चलिएगा
15
ऊँ/ ूँ
खाऊँ, चलूँ
16
एगा/ ेगा
खाएगा, चलेगा
17
एगी/ ेगी
खाएगी, चलेगी
18
एँगे/ ेंगे
खाएँगे, चलेंगे
19
एँगी/ ेंगी
खाएँगी, चलेंगी
20
ओगे/ ोगे
खाओगे, चलोगे
21
ओगी/ ोगी
खाओगी, चलोगी
22
ऊँगा/ ूँगा
खाऊँगा, चलूँगा
23
ऊँगी/ ूँगी
खाऊँगी, चलूँगी
24
कर
चलकर, खाकर
पाना क्रिया या पा धातु की प्रविष्टि प्राप्त होने पर उसके रूप इस प्रकार से दिखाए जा सकते हैं-
पा à पा, पाता, पाती, पाते, पाके, पाना, पानी, पाने, पाकर, पाया, पाए, पाई, पाएगा, पाएगी, पाएँगे, पाएँगी, पाइए, पाइएगा, पाओ, पाऊँ, पाऊँगा, पाऊँगी, पाईं ।
उपर्युक्त सूची में केवल मानक प्रत्ययों को रखा गया है। इनमें से कुछ प्रत्ययों के अमानक रूप भी प्रयुक्त होते हैं, जैसे- ए/ये, ई/यी/, ऊँ/ऊं आदि) इन प्रत्ययों के आधार पर  पाये, पायी, पायेगा, पायेगी, पायेंगे, पायेंगी, पाइये, पाइयेगा, पाऊं, पाऊंगा, पाऊंगी, पायीं रूप भी निर्मित होते हैं।
हिंदी क्रियाओं के जो रूप निर्मित होते हैं उनके, विभिन्न आधारों कई वर्ग बनाए जा सकते हैं। उदाहरण के लिए क्रियाओं का अर्थ या उसके साथ जुड़ने वाले कर्ता द्वारा क्रियाओं के रूप प्रभावित होते हैं, जैसे- जिन क्रियाओं के के कर्ता ‘+मानव होते हैं, उन्हीं क्रियाओं के आज्ञा/सलाह/निवेदन सूचक क्रियारूप बनते हैं-
1.1 तुम दौड़ो। (आज्ञा)
1.2 *तुम भौंको
2.1 आप आइए। (निवेदन)
2.2 *आप भौंकिए
इन वाक्यों में देख सकते हैं कि किसी को दौड़ने का आदेश तो दिया जा सकता है, किंतु भौंकने का नहीं दिया जा सकता। इसके स्वाभाविक कर्ता कुत्ते को तो बिल्कुल नहीं। अत: जिन क्रियाओं कर्ता ‘+मानव होते हैं, उनके तो सभी रूप बनते हैं, किंतु जिनके कर्ता ‘-मानव होते हैं, उनके वे रूप नहीं बनते जो केवल मानव कर्ता पर ही लागू होते हैं। उदाहरण के लिए आदेश, परामर्श, निवेदन के रूप केवल मानव कर्ता वाली क्रियाओं के ही बनते हैं। इसी प्रकार प्रथमपुरुष और मध्यमपुरुष के भविष्यकालिक रूप भी केवल मानव कर्ता वाली क्रियाओं के ही बनते हैं।
सहायक क्रियाओं के भी कुछ रूप बनते हैं, जिनकी चर्चा आगे की जा रही है।
9.0 अन्य शब्दों की रूप-संरचना
हिंदी में मूलतः संज्ञा, सर्वनाम, विशेषण और क्रिया शब्दों के ही रूप बनते हैं। इनके अलावा कुछ अन्य शब्दों के भी कुछ रूप देखे जा सकते हैं। वैसे इनकी संख्या बहुत ही कम है। अन्य वर्गों के निम्नलिखित शब्दों में रूपविकार होता है-
·       प्रश्नवाचक शब्द : प्रश्नवाचक सर्वनाम के रूप में प्रयुक्त होने वाले कौनशब्द का विकार होता है और इसके किसएवं किन दो तिर्यक रूप बनते हैं। फिर इनमें परसर्ग जुड़ते हैं, जैसे- किसने, किसको, किसे, किससे, किसका, किसकी, किसके, किसमें, किसपर, किन्होंने, किन्हें, किनसे, किनका, किनकी, किनके, किनमें, किनपर आदि। इसी प्रकार कैसा से कैसा, कैसी, कैसे और कितना से कितना, कितनी, कितने रूप भी बनते हैं।
·       परसर्ग : का परसर्ग के का, की, के तथा ‘-रा, -री, -रे रूप बनते हैं।
·       क्रियाविशेषण :  यहाँ और वहाँ में ही का योग होने पर यहाँ से यहीं’, वहाँ से वहीं रूप बनते हैं।

·       सहायक क्रिया : मुख्य क्रियाओं के अलावा सहायक क्रियाओं के भी कुछ रूप बनते हैं, जैसे- है सेहै, हैं, हो, हूँ रूप बनते हैं और था सेथा, थी, थे रूप बनते हैं।

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पूरा पढ़ने के लिए इस लिंक पर खुलने वाली फाइल में पृष्ठ 107 पर जाएँ-
http://www.mgahv.in/Pdf/Dist/gen/MAHD_17_hindibhasha_evam_bhasha_shikshan.pdf