संज्ञान का स्वरूप
संज्ञान उस संपूर्ण प्रक्रिया या
प्रक्रियात्मक इकाई का नाम है, जो मानव मन को बाह्य
संसार से जोड़ती है। इसके अंतर्गत मानव मस्तिष्क में जानने,
विचार करने, समझने, अनुभव करने आदि से
संबंधित वे सभी चीजें आ जाती हैं, जो किसी व्यक्ति के बाह्य
संसार या परिवेश के साथ काम करने में सहायक होती हैं। अतः इसमें अनुभव और बुद्धि
दोनों पक्ष आ जाते हैं। इस कारण हमारा ज्ञान, बोध, स्मृति, तर्क और निर्णय भी संज्ञान के अंग होते
हैं। संज्ञान के क्षेत्र में मुख्य रूप से 20वीं शताब्दी में बहुत अधिक कार्य किया
गया है और ‘संज्ञानात्मक विज्ञान’ का
तेजी से विकास हुआ है। चूँकि भाषा इससे सीधे-सीधे संबंधित है, इस कारण संज्ञानात्मक भाषाविज्ञान के क्षेत्र में भी पिछले कुछ वर्षों
में बहुत अधिक कार्य हुआ है।
https://www.slideshare.net/scaruffi/tat1-47012477 देखना है।
संज्ञान (Cognition) की कुछ परिभाषाएँ-
1. James B. Brewer, ... Allyson C. Rosen,
in Textbook of Clinical Neurology (Third Edition), 2007 के
अनुसार-
“Cognition refers to the mental
processes of knowing, including high‐level
perception, language, and reasoning.”
2. John F.
Kihlstrom, in Reference Module in Neuroscience and Biobehavioral Psychology, 2018
“Cognition encompasses the mental
functions by which knowledge is acquired, retained, and used: perception,
learning, memory, and thinking.”
3. https://www.britannica.com/topic/cognition-thought-process
में कहा गया है-
“Cognition includes all conscious
and unconscious processes by which knowledge is accumulated, such as
perceiving, recognizing, conceiving, and reasoning. Put differently, cognition
is a state or experience of knowing that can be distinguished from an
experience of feeling or willing.”
इस प्रकार स्पष्ट है कि ‘संज्ञान’ मानव मन का वह भाग है जिसमें बाह्य संसार
से सूचनाओं का संग्रह संसाधन और अंतरक्रिया होती है। अतः इसमें मानव मन और
मस्तिष्क की अनेक युक्तियाँ लगी होती हैं, जिनमें से कुछ
प्रमुख को सूचीबद्ध रूप से आगे देख सकते हैं।
संज्ञान की युक्तियाँ (Devices
of Cognition)
§ स्मृति
(memory)
§ ध्यान
(attention)
§ भाषा
(language)
§ बोधन
(perception)
§ संकल्पना
निर्माण (concept formation)
§ पैटर्न
अभिज्ञान (pattern recognition)
§ कार्य
(action)
§ तर्क
और निर्णय (logic and decision)
§ समस्या
निवारण (problem
solving)
इन सभी में एक सबसे महत्वपूर्ण युक्ति
‘भाषा’ है। संज्ञान और भाषा के संदर्भ में विस्तार से
आगे चर्चा की जाएगी।
संज्ञान के संबंध में दो बातें स्पष्ट
है कि यह उन युक्तियों का समुच्चय है जिनके माध्यम से प्राणी बाह्य संसार से इनपुट
प्राप्त करते हैं और उसके प्रति अनुक्रिया (response) करते हैं। इस संबंध में
चेतना (Consciousness)
की संकल्पना भी महत्वपूर्ण है। चेतना प्राणियों को उनके अस्तित्व का बोध कराती है।
इस बोध में अपने संज्ञान का बोध भी समाहित है। चेतना
का अनुभव करने के संदर्भ में ध्यान, तपस्या
आदि माध्यमों की बात की जाती है। इस संबंध में भारतीय
मनीषियों द्वारा अनेक प्रकार के उपक्रम किए गए हैं। पश्चिम में भी आधुनिक काल में
इस दिशा में पर्याप्त अध्ययन-विश्लेषण का काम हुआ है।
Craik (1943) द्वारा संज्ञान
संबंधी युक्तियों को इस प्रकार से दर्शाया गया है-
इसमें मानव मस्तिष्क
में प्रतीक परत संसाधन संबंधित बात देखी जा सकती है जो मनुष्य के पास भाषा के रूप
में होती है।
मानव मन में संज्ञान संबंधी युक्तियों
को मशीनी दृष्टि से समझने-समझाने या निरूपित करने के लिए ज्ञान निरूपण (Knowledge
Representation) की बात की गई है।
व्यापक स्तर पर संज्ञान को पदार्थ का
एक सामान्य गुण कहा गया है जो सीखने और याद करने की क्षमता से युक्त होता है तथा
स्थिति के अनुसार अनुक्रिया करने में सक्षम होता है।
कुछ विद्वानों द्वारा ऐसा माना जाता है कि प्रकृति प्रदत्त सभी
चीजों में किसी न किसी स्तर पर संज्ञान होता है। प्राणियों
में यह अपने सर्वोच्च रूप में होता है।
संदर्भ-