वर्गात्मक प्रस्तुति (Categorical Representation)
बाह्य संसार में
वस्तुओं की व्यवस्था देखकर ही स्पष्ट हो जाता है कि उन्हें वर्गों, उपवर्गों में
विभाजित करते हुए बहुत हद तक प्रस्तुत किया जा सकता है। उदाहरण के लिए ‘कुत्ता’ और ‘बिल्ली’ आपस में उसी
प्रकार से संबंधित हैं, जैसे ‘आम’ और ‘नीम’ आपस में
संबंधित हैं। इसी प्रकार के संबंधों को देखते हुए यह माना गया है कि हमारा मन या
संज्ञान भी एक प्रक्रिया के माध्यम से चीजों और उनसे जुड़ी गतिविधियों को समझने का
प्रयास करता है, जिसे ‘वर्गात्मक
प्रस्तुति’ नाम दिया जाता है।
इसके अनुसार हमारा
मन कुछ वर्ग-उपवर्ग बनाता है और किसी वर्ग विशेष की विशेषता को उसके सदस्य
उपवर्गों पर भी लागू करता है। उदाहरण के लिए ‘पशु’ एक वर्ग है
और ‘कुत्ता, बिल्ली, ऊँट, गाय आदि’ इसके उपवर्ग
हैं। अतः यदि कहा जाए कि ‘पशु के चार
पैर होते हैं’ तो यह बात ‘कुत्ता, बिल्ली, ऊँट, गाय आदि’ सभी उपवर्गों
के लिए सत्य होगी। आर्थी इकाइयों की इस प्रकार की प्रस्तुति को वर्गात्मक
प्रस्तुति कहते हैं। इस प्रस्तुति की अवधारणा पर कुछ संज्ञानात्मक व्याकरण भी
विकसित किए गए हैं, जैसे- कोट्यात्मक व्याकरण (Categorial Grammar) और शब्द व्याकरण (Word
Grammar) आदि।
‘वर्गात्मक
प्रस्तुति’ में बनाए जाने वाले कुछ संबंध इस
प्रकार हैं-
वर्ग – उपवर्ग
संबंध :- जैसे-
प्राणी- जानवर – कुत्ता
वर्ग/उपवर्ग –
सदस्य संबंध :- जैसे- लड़की –
सीता
(नोट- जब
वर्ग-उपवर्ग बनाते हुए अंतिम इकाई तक पहुँच जाते हैं, जिसका एकल
अस्तित्व होता है, तो वह सदस्य कहलाता है)
इकाई -
अंग संबंध :- जैसे- शरीर – हाथ
समानस्तरीय
संबंध :-
कुत्ता- बिल्ली-गाय- भैंस (एक ही स्तर के संबंध = sister term)
इस प्रस्तुति
में कुछ समस्याएँ भी आती हैं, जैसे- जलचर
और थलचर दो समानस्तरीय वर्ग हैं। हाथी, कुत्ता आदि
थलचर हैं तो मछली, कछुआ आदि, जलचर। किंतु
मेंढक दोनों जगह पाया जाता है।
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