मातृभाषा शिक्षण /प्रथम भाषा शिक्षण
(क) जब मातृभाषा और प्रथम भाषा एक ही हो
जब मातृभाषा और प्रथम भाषा एक ही हो, तब अलग से
प्रथम भाषा शिक्षण करने (या इसके बारे में पढ़ने-पढ़ाने) की आवश्यकता नहीं होती।
उदाहरण के लिए दिल्ली में ‘हिंदी’ महाराष्ट्र में मराठी, बंगाल में
बंगाली आदि। इसमें बच्चा परिवेश से वही भाषा (सुनना, बोलना) सीखकर
आता है और शिक्षक इन कौशलों में वृद्धि करता है तथा मुख्यतः पढ़ना और लिखना सिखाता
है।
दूसरे शब्दों में स्कूल जाने की अवस्था आने तक बच्चा मात्र
दो कौशल- सुनना एवं बोलना के माध्यम से भाषा को सुनकर समझना एवं बोलना सीख लेता
है। भाषा के अन्य दो कौशल हैं- पढ़ना एवं लिखना। इसका काम मातृभाषा शिक्षण के
अंतर्गत विशेष रूप से किया जाता है इसका मुख्य काम अक्षर का ज्ञान करना होता है।
वाचन की कला सीखना, अक्षर लेखन एवं लेखन कला का विकास करना। यह मातृभाषा शिक्षण
में सिखाया जाता है। भाषा शिक्षण में एक शिक्षक होता है तथा दूसरा विद्यार्थी होता
है और इसके अलावा वह भाषा होती है जो सिखाई जाती है। शिक्षण का वर्गीकरण किया जाता
है मातृभाषा शिक्षण या अन्य भाषा शिक्षण मदर लैंग्वेज एंड अदर लैंग्वेज टीचिंग
बच्चा मातृभाषा स्वतः सीख लेता है।
(ख) जब मातृभाषा और प्रथम भाषा भिन्न-भिन्न हो
कई बार ऐसी स्थिति पाई जाती है कि बच्चे की मातृभाषा और
प्रथम भाषा अलग-अलग होती है। उदाहरण के लिए हिंदी और इसकी बोलियों के क्षेत्र में मातृभाषा
तथाकथित बोलियाँ होती हैं, और प्रथम भाषा हिंदी होती है। ऐसी स्थिति में बच्चा परिवार
में मातृभाषा सीखता है और प्रथम भाषा का कुछ-कुछ इनपुट रहता है, जैसे- टी.वी.
देखकर, आस-पास के औपचारिक वार्तालाप या कार्यक्रम सुनकर। विद्यालय
में उसे प्रथम भाषा ही पढ़ाई जाती है। इसलिए यहाँ शिक्षक की भूमिका बढ़ जाती है। वह
मुख्यतः पढ़ना और लिखना कौशलों को तो सिखाता ही है, सुनना, बोलना कौशलों
में का भी समुचित विकास करता है।
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