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Thursday, April 26, 2018

प्रत्यय

प्रत्यय  

प्रत्यय= प्रति (साथ में पर बाद में)+ अय (चलनेवाला) शब्द का अर्थ है,पीछे चलना। जो शब्दांश शब्दों के अंत में विशेषता या परिवर्तन ला देते हैं, वे प्रत्यय कहलाते हैं। जैसे- दयालु= दया शब्द के अंत में आलु जुड़ने से अर्थ में विशेषता आ गई है। अतः यहाँ 'आलू' शब्दांश प्रत्यय है। प्रत्ययों का अपना अर्थ कुछ भी नहीं होता और न ही इनका प्रयोग स्वतंत्र रूप से किया जाता है। प्रत्यय के दो भेद हैं-

कृत् प्रत्यय

वे प्रत्यय जो धातु में जोड़े जाते हैं, कृत प्रत्यय कहलाते हैं। कृत् प्रत्यय से बने शब्द कृदंत (कृत्+अंत) शब्द कहलाते हैं। जैसे- लेख् + अक = लेखक। यहाँ अक कृत् प्रत्यय है, तथा लेखक कृदंत शब्द है।
क्रमप्रत्ययमूल शब्द\धातुउदाहरण
1अकलेख्, पाठ्, कृ, गैलेखक, पाठक, कारक, गायक
2अनपाल्, सह्, ने, चर्पालन, सहन, नयन, चरण
3अनाघट्, तुल्, वंद्, विद्घटना, तुलना, वन्दना, वेदना
4अनीयमान्, रम्, दृश्, पूज्, श्रुमाननीय, रमणीय, दर्शनीय, पूजनीय, श्रवणीय
5सूख, भूल, जाग, पूज, इष्, भिक्ष्सूखा, भूला, जागा, पूजा, इच्छा, भिक्षा

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Wednesday, April 25, 2018

उपसर्ग

उपसर्ग  

उपसर्ग = उप (समीप) + सर्ग (सृष्टि करना) का अर्थ है- किसी शब्द के समीप आ कर नया शब्द बनाना। जो शब्दांश शब्दों के आदि में जुड़ कर उनके अर्थ में कुछ विशेषता लाते हैं, वे उपसर्ग कहलाते हैं। 'हार' शब्द का अर्थ है पराजय। परंतु इसी शब्द के आगे 'प्र' शब्दांश को जोड़ने से नया शब्द बनेगा - 'प्रहार' (प्र + हार) जिसका अर्थ है चोट करना। इसी तरह 'आ' जोड़ने से आहार (भोजन), 'सम्' जोड़ने से संहार (विनाश) तथा 'वि' जोड़ने से 'विहार' (घूमना) इत्यादि शब्द बन जाएँगे। उपर्युक्त उदाहरण में 'प्र', 'आ', 'सम्' और 'वि' का अलग से कोई अर्थ नहीं है, 'हार' शब्द के आदि में जुड़ने से उसके अर्थ में इन्होंने परिवर्तन कर दिया है। इसका मतलब हुआ कि ये सभी शब्दांश हैं और ऐसे शब्दांशों को उपसर्ग कहते हैं। हिन्दी में प्रचलित उपसर्गों को निम्नलिखित भागों में विभाजित किया जा सकता है।
  1. संस्कृत के उपसर्ग,
  2. हिन्दी के उपसर्ग,
  3. उर्दू और फ़ारसी के उपसर्ग,
  4. अंग्रेज़ी के उपसर्ग,
  5. उपसर्ग के समान प्रयुक्त होने वाले संस्कृत के अव्यय।

संस्कृत के उपसर्ग

क्रमउपसर्गअर्थशब्द
1अतिअधिकअत्यधिक, अत्यंत, अतिरिक्त, अतिशय
2अधिऊपर, श्रेष्ठअधिकार, अधिपति, अधिनायक
3अनुपीछे, समानअनुचर, अनुकरण, अनुसार, अनुशासन
4अपबुरा, हीनअपयश, अपमान, अपकार
5अभिसामने, चारों ओर, पासअभियान, अभिषेक, अभिनय, अभिमुख
6अवहीन, नीचअवगुण, अवनति, अवतार, अवनति
7तक, समेतआजीवन, आगमन
8उत्ऊँचा, श्रेष्ठ, ऊपरउद्गम, उत्कर्ष, उत्तम, उत्पत्ति
9उपनिकट, सदृश, गौणउपदेश, उपवन, उपमंत्री, उपहार
10दुर्बुरा, कठिनदुर्जन, दुर्गम, दुर्दशा, दुराचार
11दुस्बुरा, कठिनदुश्चरित्र, दुस्साहस, दुष्कर
12निर्बिना, बाहर, निषेधनिरपराध, निर्जन, निराकार, निर्गुण
13निस्रहित, पूरा, विपरितनिस्सार, निस्तार, निश्चल, निश्चित
14निनिषेध, अधिकता, नीचेनिवारण, निपात, नियोग, निषेध
15पराउल्टा, पीछेपराजय, पराभव, परामर्श, पराक्रम
16परिआसपास, चारों तरफपरिजन, परिक्रम, परिपूर्ण, परिणाम
17प्रअधिक, आगेप्रख्यात, प्रबल, प्रस्थान, प्रकृति
18प्रतिउलटा, सामने, हर एकप्रतिकूल, प्रत्यक्ष, प्रतिक्षण, प्रत्येक
19विभिन्न, विशेषविदेश, विलाप, वियोग, विपक्ष
20सम्उत्तम, साथ, पूर्णसंस्कार, संगम, संतुष्ट, संभव
21सुअच्छा, अधिकसुजन, सुगम, सुशिक्षित, सुपात्र
पूरा पढ़नेे के लिए यहाँ जाएँँ--
http://bharatdiscovery.org/india/%E0%A4%89%E0%A4%AA%E0%A4%B8%E0%A4%B0%E0%A5%8D%E0%A4%97

विभाग का ब्रोशर


Tuesday, April 17, 2018

Socio-Linguistics (A Study of Code Switching) : Lalita Malik






Thursday, April 12, 2018

प्रवेश सूचना : MGAHV

प्रवेश सूचना-

2018-19

विश्वविद्यालय की वेबसाइट पर प्रवेश सूचना-

विवरणिका -

ऑनलाइन आवेदन के लिए लिंक-

आवेदन पत्र (एम.फिल)

आवेदन पत्र (पी.एच.डी.)

Wednesday, April 11, 2018

समसामयिक भाषाविज्ञान : कविता रस्तोगी






वैश्विक परिदृश्य में ई-हिंदी की भूमिका


        भाषा               
                                                
              वैश्विक परिदृश्य में ई-हिंदी की  भूमिका
                                      प्रो. वशिनी शर्मा
                                  पूर्व प्रोफेसर एवं विभागाध्यक्ष\
                                  सूचना एवं  भाषा प्रौद्योगिकी विभाग
                                  केंद्रीय हिंदी संस्थान,आगरा
              इक्कीसवीं सदी बीसवीं शताब्दी से भी ज्यादा तीव्र परिवर्तनों वाली तथा चमत्कारिक उपलब्धियों वाली शताब्दी सिद्ध हो रही है। विज्ञान एवं तकनीक के सहारे पूरी दुनिया एक वैश्विक गाँव में तब्दील हो रही है और स्थलीय व भौगोलिक दूरियां अपनी अर्थवत्ता खो रहीं हैं। वर्तमान विश्व व्यवस्था आर्थिक और व्यापारिक आधार पर ध्रुवीकरण तथा पुनर्संघटन की प्रक्रिया से गुजर रही है। ऐसी स्थिति में विश्व के शक्तिशाली राष्ट्रों के महत्त्व का क्रम भी बदल रहा है।
बदलती दुनिया बदलते भाषिक परिदृष्य

यदि हम विगत तीन शताब्दियों पर विचार करें तो कई रोचक निष्कर्ष पा सकते हैं। यदि अठारहवीं सदी आस्ट्रिया और हंगरी के वर्चस्व की रही है तो उन्नीसवीं सदी ब्रिटेन और जर्मनी के वर्चस्व का साक्ष्य देती है। इसी तरह बीसवीं सदी अमेरिका एवं सोवियत संघ के वर्चस्व के रूप में विश्व नियति का निदर्शन करने वाली रही है। आज स्थिति यह है कि लगभग विश्व समुदाय दबी जुबान से ही सही, यह कहने लगा है कि इक्कीसवीं सदी भारत और चीन की होगी। इस सदी में इन दोनों देशों की तूती बोलेगी। इस भविष्यवाणी को चरितार्थ करने वाले ठोस कारण हैं। आज भारत और चीन विश्व की सबसे तीव्र गति से उभरने वाली अर्थव्यवस्थाओं में से हैं तथा विश्व स्तर पर इनकी स्वीकार्यता और महत्ता स्वत: बढ रही है। इन देशों के पास अकूत प्राकृतिक संपदा तथा युवतर मानव संसाधन है जिसके कारण ये भावी वैश्विक संरचना में उत्पादन के बडे स्रोत बन सकते हैं। अपनी कार्य निपुणता तथा निवेश एवं उत्पादन के समीकरण की प्रबल संभावना को देखते हुए ही भारत और चीन को निकट भविष्य की विश्व शक्ति के रूप में देखा जाने लगा है।

जाहिर है कि जब किसी राष्ट्र को विश्व बिरादरी अपेक्षाकृत ज्यादा महत्त्व और स्वीकृति देती है तथा उसके प्रति अपनी निर्भरता में इजाफा पाती है तो उस राष्ट्र की तमाम चीजें स्वत: महत्त्वपूर्ण बन जाती हैं। ऐसी स्थिति में भारत की विकासमान अंतरराष्ट्रीय हैसियत हिंदी के लिए वरदान-सदृश है। यह सच है कि वर्तमान वैश्विक परिवेश में भारत की बढती उपस्थिति हिंदी की हैसियत का भी उन्नयन कर रही है। आज हिंदी राष्ट्रभाषा की गंगा से विश्वभाषा का गंगासागर बनने की प्रक्रिया में है। (उपाध्याय ,2012 )
हिंदी की  वैश्विक संदर्भ की विशेषताएँ-
आखिर, वे कौन सी विशेषताएँ हैं जो किसी भाषा को वैश्विक संदर्भ प्रदान करती हैं। ऐसा करके हम हिंदी के विश्व संदर्भ का वस्तुपरक विश्लेषण कर सकते हैं। जब हम हिंदी को विश्व भाषा में रूपांतरित होते हुए देख रहे हैं और यथावसर उसे विश्वभाषा की संज्ञा प्रदान कर रहे हैं, तब यह जरूरी हो जाता है कि हम सर्वप्रथम विश्वभाषा का स्वरूप विश्लेषण कर लें। संक्षेप में विश्वभाषा के निम्नलिखित लक्षण निर्मित किए जा सकते हैं:-
  •  उसके बोलने-जानने तथा चाहने वाले भारी तादाद में हों और वे विश्व के अनेक देशों में फैले हों।
  • उस भाषा में साहित्य-सृजन की प्रदीर्घ परंपरा हो और प्राय: सभी विधाएँ वैविध्यपूर्ण एवं समृद्ध हों। उस भाषा में सृजित कम-से-कम एक विधा का साहित्य विश्वस्तरीय हो।
  • उसकी शब्द-संपदा विपुल एवं विराट हो तथा वह विश्व की अन्यान्य बडी भाषाओं से विचार-विनिमय करते हुए एक -दूसरे को प्रेरित -प्रभावित करने में सक्षम हो।
  • उसकी शाब्दी एवं आर्थी संरचना तथा लिपि सरल, सुबोध एवं वैज्ञानिक हो। उसका पठन-पाठन और लेखन सहज-संभाव्य हो। उसमें निरंतर परिष्कार और परिवर्तन की गुंजाइश हो।
  • उसमें ज्ञान-विज्ञान के तमाम अनुशासनों में वाङमय सृजित एवं प्रकाशित हो तथा नए विषयों पर सामग्री तैयार करने की क्षमता हो।
  • वह नवीनतम वैज्ञानिक एवं तकनीकी उपलब्धियों के साथ अपने-आपको पुरस्कृत एवं समायोजित करने की क्षमता से युक्त हो।
  • वह अंतरराष्ट्रीय राजनीतिक संदर्भों, सामाजिक संरचनाओं, सांस्कृतिक चिंताओं तथा आर्थिक विनिमय की संवाहक हो।
  • वह जनसंचार माध्यमों में बडे पैमाने पर देश-विदेश में प्रयुक्त हो रही हो।
  •  उसका साहित्य अनुवाद के माध्यम से विश्व की दूसरी महत्त्वपूर्ण भाषाओं में पहुँच रहा हो।
  •  उसमें मानवीय और यांत्रिक अनुवाद की आधारभूत तथा विकसित सुविधा हो जिससे वह बहुभाषिक कम्प्यूटर की दुनिया में अपने समग्र सूचना स्रोत तथा प्रक्रिया सामग्री (सॉफ्टवेयर) के साथ उपलब्ध हो। साथ ही, वह इतनी समर्थ हो कि वर्तमान प्रौद्योगिकीय उपलब्धियों मसलन ई-मेल, ई-कॉमर्स, ई-बुक, इंटरनेट तथा एस.एम.एस. एवं वेब जगत में प्रभावपूर्ण ढंग से अपनी सक्रिय उपस्थिति का अहसास करा सके ।
  • उसमें उच्चकोटि की पारिभाषिक शब्दावली हो तथा वह विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी की नवीनतम आविष्कृतियों को अभिव्यक्त करते हुए मनुष्य की बदलती जरूरतों एवं आकांक्षाओं को वाणी देने में समर्थ हो।
  • वह विश्व चेतना की संवाहिका हो। वह स्थानीय आग्रहों से मुक्त विश्व दृष्टि सम्पन्न कृतिकारों की भाषा हो, जो विश्वस्तरीय समस्याओं की समझ और उसके निराकरण का मार्ग जानते हों।

अगली पीढ़ी की हिंदी भाषा
वर्तमान उत्तर आधुनिक परिवेश में विशाल जनसंख्या भारत और चीन के साथ-साथ हिंदी और चीनी के लिए भी फायदेमंद सिद्ध हो रही है। हमारे देश में १९८० के बाद ६५ करोड से ज्यादा बच्चे पैदा हुए हैं। जो विद्यालयों, महाविद्यालयों, विश्वविद्यालयों तथा अंतरराष्ट्रीय शैक्षणिक संस्थानों में शिक्षित प्रशिक्षित हो रहे हैं। वे सन् तक 2025 विधिवत प्रशिक्षित पेशेवर के रूप में अपनी सेवाएँ देने के लिए विश्व के समक्ष उपलब्ध होंगे। दूसरी ओर जापान की साठ प्रतिशत से ज्यादा आबादी साठ साल पार करके बुढापे की ओर बढ रही है। यही हाल आगामी पंद्रह सालों में अमेरिका और यूरोप का भी होने वाला है । ऐसी स्थिति में विश्व का सबसे तरुण मानव संसाधन होने के कारण भारतीय पेशेवरों की तमाम देशों में लगातार मांग बढेगी। जाहिर है कि जब भारतीय पेशेवर भारी तादाद में दूसरे देशों में जाकर उत्पादन के स्रोत बनेंगे। वहाँ की व्यवस्था परिचालन का सशक्त पहिया बनेंगे तब उनके साथ हिंदी भी जाएगी। ऐसी स्थिति में जहाँ भारत आर्थिक महाशक्ति बनने की प्रक्रिया में होगा वहाँ हिंदी स्वत: विश्वमंच पर प्रभावी भूमिका का वहन करेगी। इस तरह यह माना जा सकता है कि हिंदी आज जिस दायित्व बोध को लेकर संकल्पित है वह निकट भविष्य में उसे और भी बडी भूमिका का निर्वाह करने का अवसर प्रदान करेगा। हिंदी जिस गति तथा आंतरिक ऊर्जा के साथ अग्रसर है उसे देखकर यही कहा जा सकता है कि सन 2020 तक वह दुनिया की सबसे ज्यादा बोली व समझी जाने वाली भाषा बन जाएगी।
यदि हम  आँकडों पर विश्वास करें तो संख्याबल के आधार पर हिंदी विश्वभाषा है। हाँ, यह जरूर संभव है कि यह मातृभाषा न होकर दूसरी, तीसरी अथवा चौथी भाषा भी हो | हिंदी और देवनागरी दोनों ही पिछले कुछ दशकों में परिमार्जन व मानकीकरण की प्रक्रिया से गुजरी हैं जिससे उनकी संरचनात्मक जटिलता कम हुई है। हम जानते हैं कि विश्व मानव की बदलती चिंतनात्मकता तथा नवीन जीवन स्थितियों को व्यंजित करने की भरपूर क्षमता हिंदी भाषा में है बशर्ते इस दिशा में अपेक्षित बौद्धिक तैयारी तथा सुनियोजित विशेषज्ञता हासिल की जाए। आखिर, उपग्रह चैनल हिंदी में प्रसारित कार्यक्रमों के जरिए यही कर रहे हैं।
मीडिया और वेब पर हिंदी
यह सत्य है कि हिंदी में अंग्रेजी के स्तर की विज्ञान और प्रौद्योगिकी पर आधारित पुस्तकें नहीं हैं। उसमें ज्ञान विज्ञान से संबंधित विषयों पर उच्चस्तरीय सामग्री की दरकार है। विगत कुछ वर्षों से इस दिशा में उचित प्रयास हो रहे हैं। अभी हाल ही में महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय वर्धा द्वारा हिंदी माध्यम में एम.बी.ए.का पाठ्यक्रम आरंभ किया गया। इसी तरह "इकोनामिक टाइम्स' तथा "बिजनेस स्टैंडर्ड' जैसे अखबार हिंदी में प्रकाशित होकर उसमें निहित संभावनाओं का उद्घोष कर रहे हैं। पिछले कई वर्षों में यह भी देखने में आया कि "स्टार न्यूज' जैसे चैनल जो अंग्रेजी में आरंभ हुए थे वे विशुद्ध बाजारीय दबाव के चलते पूर्णत: हिंदी चैनल में रूपांतरित हो गए। साथ ही, "ई.एस.पी.एन' तथा "स्टार स्पोर्ट्स' जैसे खेल चैनल भी हिंदी में कमेंट्री देने लगे हैं। हिंदी को वैश्विक संदर्भ देने में उपग्रह-चैनलों, विज्ञापन एजेंसियों, बहुराष्ट्रीय निगमों तथा यांत्रिक सुविधाओं का विशेष योगदान है। वह जनसंचार-माध्यमों की सबसे प्रिय एवं अनुकूल भाषा बनकर निखरी है।
आज विश्व में सबसे ज्यादा पढे जानेवाले समाचार पत्रों में आधे से अधिक हिन्दी के हैं। इसका आशय यही है कि पढा-लिखा वर्ग भी हिन्दी के महत्त्व को समझ रहा है। वस्तुस्थिति यह है कि आज भारतीय उपमहाद्वीप ही नहीं बल्कि दक्षिण पूर्व एशिया, मॉरीशस,चीन,जापान,कोरिया, मध्य एशिया, खाडी देशों, अफ्रीका, यूरोप, कनाडा तथा अमेरिका तक हिंदी कार्यक्रम उपग्रह चैनलों के जरिए प्रसारित हो रहे हैं और भारी तादाद में उन्हें दर्शक भी मिल रहे हैं। आज मॉरीशस में हिंदी सात चैनलों के माध्यम से धूम मचाए हुए है। विगत कुछ वर्षों में एफ.एम. रेडियो के विकास से हिंदी कार्यक्रमों का नया श्रोता वर्ग पैदा हो गया है। हिंदी अब नई प्रौद्योगिकी के रथ पर आरूढ होकर विश्वव्यापी बन रही है। उसे ई-मेल, ई-कॉमर्स, ई-बुक, इंटरनेट, एस.एम.एस. एवं वेब जगत में बडी सहजता से पाया जा सकता है। इंटरनेट जैसे वैश्विक माध्यम के कारण हिंदी के अखबार एवं पत्रिकाएँ दूसरे देशों में भी विविध साइट्स पर उपलब्ध हैं।
माइक्रोसाफ्ट, गूगल, सन, याहू, आईबीएम तथा ओरेकल जैसी विश्वस्तरीय कंपनियाँ अत्यंत व्यापक बाजार और भारी मुनाफे को देखते हुए हिंदी प्रयोग को बढावा दे रही हैं। संक्षेप में, यह स्थापित सत्य है कि अंग्रेजी के दबाव के बावजूद हिंदी बहुत ही तीव्र गति से विश्वमन के सुख-दु:ख, आशा-आकांक्षा की संवाहक बनने की दिशा में अग्रसर है। आज विश्व के दर्जनों देशों में हिंदी की पत्रिकाएँ निकल रही हैं तथा अमेरिका, इंग्लैंड, जर्मनी, जापान, आस्ट्रिया जैसे विकसित देशों में हिंदी के कृति रचनाकार अपनी सृजनात्मकता द्वारा उदारतापूर्वक विश्वमन का संस्पर्श कर रहे हैं। हिंदी के शब्दकोश तथा विश्वकोश निर्मित करने में भी विदेशी विद्वान सहायता कर रहे हैं।


विदेशो में हिंदी-
हिंदी विश्व के प्राय: सभी महत्त्वपूर्ण देशों के विश्व विद्यालयों में अध्ययन अध्यापन में भागीदार है। अकेले अमेरिका में ही लगभग एक सौ पचास से ज्यादा शैक्षणिक संस्थानों में हिंदी का पठन-पाठन हो रहा है जिनमें हिंदी ऑनलाइन और वेब आधारित हिंदी पाठ्यक्रम का समावेश हो  चुका है ।बिज़नेस हिंदी का एक ऑनलाइन पाठ्यक्रम एम.बी.ए. के लिए सफलता पूर्वक तैयार हो  चुका  है । भारतीय और  विदेशी प्रमुख संस्थानों और विश्वविद्यालयों की पाठ्यसामग्री और सहायक सामग्री ऑनलाइन या मल्टीमीडिया  के रूप में  देश-विदेश में उपल्ब्ध है ।
   आज जब 21 वीं सदी में वैश्वीकरण के दबावों के चलते विश्व की तमाम संस्कृतियाँ एवं भाषाएँ आदान -प्रदान व संवाद की प्रक्रिया से गुजर रही हैं तो हिंदी इस दिशा में विश्व मनुष्यता को निकट लाने के लिए सेतु का कार्य कर सकती है। उसके पास पहले से ही बहु सांस्कृतिक परिवेश में सक्रिय रहने का अनुभव है जिससे वह अपेक्षाकृत ज्यादा रचनात्मक भूमिका निभाने की स्थिति में है। हिंदी सिनेमा अपने संवादों एवं गीतों के कारण विश्व स्तर पर लोकप्रिय हुए हैं। उसने सदा-सर्वदा से विश्वमन को जोडा है। हिंदी की मूल प्रकृति लोकतांत्रिक तथा रागात्मक संबंध निर्मित करने की रही है। वह विश्व के सबसे बडे लोकतंत्र की ही राष्ट्र भाषा नहीं है बल्कि पाकिस्तान, नेपाल, भूटान, बांग्लादेश, फिजी, मॉरीशस, गुयाना, त्रिनिदाद तथा सुरीनाम जैसे देशों की सम्पर्क भाषा भी है। वह भारतीय उपमहाद्वीप के लोगों के बीच खाडी देशों, मध्य एशियाई देशों, रूस, समूचे यूरोप, कनाडा, अमेरिका तथा मैक्सिको जैसे प्रभावशाली देशों में रागात्मक जुडाव तथा विचार-विनिमय का सबल माध्यम है।
यदि निकट भविष्य में बहुध्रुवीय विश्व व्यवस्था निर्मित होती है और संयुक्त राष्ट्र संघ का लोकतांत्रिक ढंग से विस्तार करते हुए भारत को स्थायी प्रतिनिधित्व मिलता है तो वह यथाशीघ्र इस शीर्ष विश्व संस्था की भाषा बन जाएगी। यदि ऐसा नहीं भी होता है तो भी वह बहुत शीघ्र वहाँ पहुँचेगी। वर्तमान समय भारत और हिंदी के तीव्र एवं सर्वोन्मुखी विकास का द्योतन कर रहा है और हम सब से यह अपेक्षा कर रहे हैं कि हम जहाँ भी हैं, जिस क्षेत्र में भी कार्यरत हैं वहाँ ईमानदारी से हिंदी और देश के विकास में हाथ बँटाएँ। सारांश यह कि हिंदी विश्व भाषा बनने की दिशा में उत्तरोत्तर अग्रसर है।

  आज हिंदी साहित्य की विविध विधाओं में जितने रचनाकार सृजन कर रहे हैं उतने बहुत सारी भाषाओं के बोलनेवाले भी नहीं हैं। केवल संयुक्त राज्य अमेरिका में ही दो सौ से अधिक हिंदी साहित्यकार सक्रिय हैं जिनकी पुस्तकें छप चुकी हैं। यदि अमेरिका से "विश्वा', हिंदी जगत तथा श्रेष्ठतम वैज्ञानिक पत्रिका "विज्ञान प्रकाश' हिंदी की दीपशिखा को जलाए हुए हैं तो मॉरीशस से विश्व हिंदी समाचार, सौरभ, वसंत जैसी पत्रिकाएँ हिंदी के सार्वभौम विस्तार को प्रामाणिकता प्रदान कर रही हैं। संयुक्त अरब इमारात से वेब पर प्रकाशित होने वाले हिंदी पत्रिकाएँ अभिव्यक्ति और अनुभूति पिछले ग्यारह से भी अधिक वर्षों से लोकमानस को तृप्त कर रही हैं और दिन पर दिन इनके पाठकों की संख्या बढ़ती ही जा रही है। । (उपाध्याय , 2011 )

हिन्दी के लिए सुगम सूचना टैक्नोलॉजी

    हिन्दी प्रकाशन मे बेहतर प्रस्तुति, संग्रह, उत्तरोत्तर संशोधन सुविधा, शैली परिष्कार, तुलनात्मक विश्लेषण, अनुवाद-स्वरूप सूचना टैक्नोलॉजी, अर्थात् कंप्यूटर, कम्यूनिकेशन और (मल्टीमीडिया) कंटेंट की संगम टैक्नोलॉजी के प्रयोग से संभव हो सकते हैं ।  हिन्दी में शब्द संसाधन संभव है, डाटाबेस बनाए जा सकते हैं ।  हिन्दी में विविध फौंट चुनकर आकर्षक प्रकाशन  किया जा रहा है, सीमित स्तर पर कंप्यूटर से अनुवाद प्रारूप तैयार किए जा सकते हैं ।  हिन्दी के कंप्यूटर के संदेश देश-विदेश में भेजे जा सकते है । हिन्दी के कंप्यूटर, इलेक्टॉनिक डायरी, प्रिंटर, वर्ण पहचान यंत्र आदि उपलब्ध हो रहे है ।  आवश्यकता है इन यंत्रों के प्रयोग संवर्धन की, जिससे और बेहतर टैक्नोलॉजी का विकास संभव हो और हिन्दी लेखन में सृजनात्मकता और शैली सौष्ठव बढे़, संप्रेषणीयता और  रोचकता बढ़े

    टैक्नोलॉजी ट्रांसफर (अंतरण), टैक्नोलॉजी व्यापार और प्रशासनिक कार्यों में हिन्दी के व्यवहार संवर्धन में अंग्रेजी-हिन्दी मशीनी अनुवाद प्रणाली महत्वपूर्ण सिद्ध होगी ।  हिन्दी में विविध फोंट्स के साथ प्रकाशन-सॉफ्टवेयर पैकेज भी उपलब्ध हैं जिनमें सुंदर, सस्ता, शीघ्र पकाशन संभव हो गया है ।  अंतरराष्ट्रीय संदर्भ में भी अंग्रेजी, फ्रांसीसी, जर्मन, जापानी, रूसी आदि विदेशी भाषाओं की तकनीकी और व्यापारिक ज्ञान सामग्री को अधिकांश भारतीयों तक हिन्दी के माध्यम से पहुंचाना युक्ति संगत होगा ।  संयुक्त राष्ट्र संघ में सूचना टैक्नोलॉजी के माध्यम से हिन्दी को सार्थक स्थान दिलाया जा सकता है ।  विश्व के कई देशों में बसे प्रवासी भारतीयों को हिन्दी के लिए उपलब्ध सूचना टैक्नोलॉजी की जानकारी पहुंचाना भी उपयोगी होगा ताकि वे कंप्यूटर पर हिन्दी में शब्द संसाधन, डाटाबेस प्रबंधन, प्रकाशन, पेजन आदि कर सकें । इसके अतिरिक्त मल्टीलिंग्वल मल्टीमीडिया में और कल्पायन ( Semantic Web ) इंटरनेट पर हिन्दी प्रयोग संवर्धन के लिए विकास कार्य किए जाएं । (ओम विकास; 2008)   
  हिंदी समर्थित वेब सर्विसेज़ (ई-मेल, अनुवाद ,तेक्स्ट तु स्पीच,ई-कॉमर्स क्लाउड आधारित सर्विसेज़) करनाबहुत जटिल नहीं रहा ।हर नए ऑपरेटिंग सिस्टम में (विंडोज़,मैकिंतोश और र्लिनक्स में यूनिकोड की कृपा से हिंदी-देवनागरी पहले  से विद्यमान है । अधिकांश हैंड-हेल्ड डिवाइसेज़ (टैब्लेट ,स्मार्टफोन आदि)में भी हिंदी में लिखना तो नहीं पर कम से कम पढ‌ना  और हिंदी की वेब्साइटों को देखना तो आसान हो गया है। दूर संचार जगत में एंड्रायड ओपरेटिंग सिसृटम काफी कोकप्रिय हो गया है ।यह गूगल की तरफ से शुरूकी गई मुफ्त (ओपन सोर्स )परियोजना है।अच्छी बात यह है कि आई ओ एस और एंड्रायड के नए संस्करणों में हिंदी-देवनागरी समर्थन मौज़ूद है। मोबाइल और टैब्लेट्स के क्षेत्र में  एप्लीकेशनों ने भी मज़बूत  उपस्थिति दर्शाई  है ।

तकनीकी विश्व में हिंदी की बहार दिखाई  देने लगी है-सोशल नेटवर्किंग और ब्लॉगिंग में -जिस अंदाज़ में विश्व ने फेसबुक को अपनाया है वह अद्भुत है । दिल्ली और मुम्बई जैसी महानगरों को भूल जाइए --छोटे गाँवों और कस्बों तक के युवा, बुज़ुर्ग, बच्चे फेसबुक पर आ जमे हैं और खूब बातें कर रहे हैं हिंदी में। व्हाट्सअप ने पिछले एक-डेढ़ साल में तेज़ी से लोकप्रियता हासिल की है।सुखद है कि वहाँ भी हिंदी में कोई बाधा नहीं है।
हिंदी विकीपीडिया के अनुसार  हिंदी चिट्ठे  हिंदी मे लिखे ब्लॉग या 'चिट्ठे' है। हिंदी में कुछ चिट्ठे केवल कविताओं पर केन्द्रित हैं, कुछ संगीत शास्त्रज्योतिष, यात्राओं और फ़ोटोग्राफी पर भी हैं। कुछ चिट्ठों पर संगीत सुना भी जा सकता है और फ्लैश चलचित्र भी देखे जा सकते हैं। हिन्दी रचनाकारों के लिए तो यह सर्वोत्तम माध्यम है। अपनी कविता, कहानी, उपन्यास, व्यंग्य और ललित निबंध सब इस पर निरंतर लिखते हैं और लगातार प्रकाशित करते हैं, यानी चिट्ठाकारों की अपनी पत्रिका। हिन्दी ब्लॉग उन साहित्य एवं साहित्यकारों की रचनात्मकता को वैश्विक धरातल प्रदान कराते है जो अंतर्जाल मे हिन्दी की अनिवार्यता एवं खास तकनीक में दक्षता के बगैर अपनी अभिव्यक्ति कौशल के बावजूद बौने जैसे रह गये थे। इसके माध्यम से अब वे रचनाकार जो इंटरनेट पर अपनी रचनाओं का प्रकाशन करना चाहते हैं वे इसका फायदा उठाते हैं। (वशिनी शर्मा 2008 )
  ब्लॉगिंग समुदाय  की बदौलत हिंदी में विविधताओं से भरी सामग्री  की धारा बह निकली है जो अधिक सजीव ,जीवंत और हिंदी की विशुद्ध खुशबू  लिए हुए है ।हिंदी जगत में जिस किस्म के विवाद .धमाल .उठापटक ,हंगामे और बह्सें यहाँ पर भी हैं और  शायद इसीलिए इन सबको पढ़ना खांटी हिंदी पाठक के लिए अधिक रुचिकर भी है। वैसे सोशल नेट्वर्किंग की हिंदी भी अपने आप में विलक्षण है- हिंदी,अंग्रेज़ी,देशज ,तकनीकी , चित्रात्मक और अनौपचारिक शब्दावली से भरी हुई।–लेकिन है बहुत दिलचस्प ।----लेकिन है तो यह हिंदी ही,शायद हिंदी न कि एक अलग खुशबू ।
 ई-हिंदी का सफर :कागज़ से  डिजिटल दुनिया
 जब कोई लेखक या प्रकाशक अपनी किताब को पाठकों के सामने पारंपरिक रूप से प्रस्तुत करने के स्थान पर उसका इलेक्ट्रोनिक या डिजिटल रूप प्रकट करता है तब हम उसे किताब का ई-संस्करण या ई-बुक कहते हैं। इसे यूं भी समझा जा सकता है कि ई-बुक स्वभाव से मुद्रित किताब के समान ही होती है। बस  अंतर इतना है कि ई-बुक पढ़ते समय हम कागजों की खुशबू से नहीं डिजिटल तरंगों से गुजरते हैं। फिर भी बुक हो या ई-बुक अंतर महज माध्यम का ही है। इससे कथ्य, तथ्य या भाव में कोई अन्तर नहीं आता। ई-बुक फार्म में तब्दील होकर भी न सूरका रससूखता है और न शैलीके आंसू ............ भावों की नदी हमें अब भी वैसे ही भिगोती है, जैसे कभी किताबों के बहाने किस्से बुनने के जमाने में भिगोती थीं। ऐसा भी नहीं कि यहां केवल बौद्धिक और गंभीर साहित्य मिलता हो। हल्के-फुल्के मनोरंजन के लिए भी तमाम पत्र-पत्रिकाएं इंटरनेट पर उपलब्ध हैं, जिन्हें आप कभी भी अपने ई-बुक रीडर के माध्यम से पढ़ सकते हैं। आजकल  बाजार में कई प्रतिष्ठित कंपनियों ने अपने ई-बुक रीडर लॉन्च किए हैं, जिनमें से एक आप अपनी आवश्यकतानुसार चुन सकते हैं। कम्प्यूटर जैसी सुविधाओं से युक्त इस पोर्टेबल डिवाइस में अब इलेक्ट्रॉनिक पेपर टेक्नोलॉजी को भी जोड़ दिया गया है, जिससे उसकी उपयोगिता और अधिक बढ़ गई है, लेकिन ई-बुक पढ़ने के लिए ई-बुक रीडर एकमात्र साधन नहीं।  जो पाठक अलग से ई-बुक रीडर खरीदना नहीं चाहते उनके लिए कम्प्यूटर, लैपटॉप, टैबलेट और आईपैड के साथ-साथ प्यारे स्मार्ट फोन के रूप में कई विकल्प हैं। बेहद आम हो चुके यह गेजेट्स पुस्तक प्रेमियों को अपने पसंदीदा विषयों पर किताबें पढ़ने, सुनने और अपनी प्रति सुरक्षित करने यानी डाउनलोड करने की सुविधा देते हैं। विंडोज आधारित डिवाइस में माइक्रोसॉफ्ट रीडर भी डिजिटल फार्म में पढ़ने-पढ़ाने का बेहतर अनुभव प्रदान करता है।
इंटरनेट और ऑनलाइन मार्केटिंग
नब्बे के दशक में इंटरनेट की सेवा का भारत में प्रवेश हुआ। 1996 से लेकर 1999 के बीच बड़ी तेजी से भारत में तरह-तरह की वेबसाइट खुलने लगीं और इसने भारतीय परिवार, व्यापार-उद्योग-धंधों, शिक्षा, सामाजिक जीवन, स्वास्थ्य और जीवन से जुड़े तमाम पक्षों को नए सिरे से परिभाषित करने का नाम किया। इंटरनेट सिर्फ सूचनाओं का सागर नहीं था, इसने एक आभासी संसार रचा, जिसके जरिए दुनिया में कहीं भी बैठे, कहीं से भी, कोई भी सामान खरीदा या बेचा जा सकता है। इंटरनेट की इस खूबी ने ऑनलाइन मार्केटिंग की अवधारणा को जन्म दिया।
यह 1995 की बात है, दुनिया भर में डॉट कॉम बिजनेस मॉडल को परखा जाना शुरू हो गया था। ऑनलाइन रिटेलिंग की दुनिया में  अमेजन डॉट कॉम और ईबे डॉट कॉम की शुरूआत हुई। वेबसाइटों पर तरह-तरह की दुकानें सजने लगीं और वे दुनिया भर के उपभोक्ताओं को रिझाने में जुट गईं। ऑनलाइन स्टोर पर बिकने वाली चीजों की एक लिस्टिंग होती है, जिसमें हर उत्पाद के बारे में बहुत ही तफसील से लिखा रहता है। मिलते-जुलते उत्पादों की आपस में तुलना भी की जा सकती है। ऐसे में, तस्वीर देखकर और उसके बारे में पढ़कर लोग उसे खरीदने के लिए अपना आर्डर रजिस्टर करते हैं। लोग एक साथ कई उत्पादों का चयन करते हुए साथ-साथ ही सबका भुगतान कर सकते हैं। भुगतान होते ही ऑनलाइन स्टोर बताए गए पते पर आपकी खरीदी हुई चीजों को भेज देता है और कुछ दिनों में आपकी मनचाही चीजें आपके हाथों में होती है। इंटरनेट और ऑनलाइन स्टोर्स के आने के साथ ई-बैकिंग के ईजाद ने ई-कॉमर्स को बेहतर और जनसुलभ बनाने का काम किया है। वेबसाइट पर उत्पादों की तस्वीर देखकर, उसके बारे में पढ़कर उनको पसंद तो किया जा सकता था, लेकिन उन्हें खरीदने के लिए भुगतान कैसे हो, यह एक बड़ा सवाल था। इसके जवाब में बैंक ई-बैकिंग की सुविधा के साथ सामने आए। डेबिट व क्रेडिट कार्ड्स के विकल्प ने ऑनलाइन पेमेंट्स को और सरल बनाया है।
ऑनलाइन बाजार तब तरक्की कर रहा था, तो शुरूआती दौर में किसी की नजर किताबों के उस बाजार पर नहीं पड़ी, जो पहले से ही खतहाल चल रहा था, लेकिन पश्चिमी दुनिया में अमेजन डॉट कॉम जैसी वेबसाइट ने पुस्तक व्यापार को इतना प्रभावित किया कि उसके असर से भारत में भी किताबों के कारोबार में नए प्रयोग होने शुरू हुए।
ऑनलाइन बाजार में हिन्दी किताबें
   अमेजन की सफलता ने कभी फ्लिपकार्ट को प्रेरित किया था और फ्लिपकार्ट की सफलता को देखकर अमेजन ने भी भारत में अपना व्यापार अमेजन डॉट इन नाम से 2012 में जोर-शोर से शुरू किया। आज फ्लिपकार्ट और अमेजन भारत में भाँति-भाँति के उत्पादों की सूची बनाकर ऑनलाइन मेगास्टोर का रूप ले चुके हैं, लेकिन यह भूलना नहीं चाहिए कि इन दोनों की पहली पहचान ऑनलाइन बुक स्टोर की ही रही है। अब देखना  यह है कि इन दोनों वेबसाइट्स पर हिन्दी की किताबों का बाजार कितना सजा है।
 फ्लिपकार्ट की वेबसाइट पर रैंडम सर्च करने पर पता चलता है कि उस पर कुल 1,25,72,442 किताबों को सूचीबद्ध किया गया है, जिनमें 93,67,851 किताबें स्टॉक में बिक्री के लिए उपलब्ध है। गौरतलब है कि इन संख्याओं में एक ही किताब के अलग-अलग संस्करणों को अलग किताब मानकर सूचीबद्ध किया गया है। इस तरह से रैंडम सर्च करने पर और भी कई दिलचस्प जानकारियां मिलती हैं, मसलन फ्लिपकार्ट पर अंग्रेजी की 66,94,303 और हिन्दी की 27,930 किताबें बिक्री के लिए उपलब्ध है। फ्लिपकार्ट पर इन अंग्रेजी और हिन्दी के अलावा बांग्ला, तमिल, मराठी, तेलुगू, मलयालम, कन्नड़, गुजराती, पंजाबी, संस्कृत, उर्दू, ओड़िया, नेपाली, भोजपुरी और असमी भाषाओं में किताबें उपलब्ध है। फ्लिपकार्ट की तरह अमेजन डॉट इन पर कुल 1,87,26,047 किताबें हैं, जिनमें अंग्रेजी की 1,35,18,269 और हिन्दी की 34,573 किताबें बिक्री के उपलब्ध हैं। इनके अलावा दुनिया भर की कई दूसरी भाषाओं के साथ-साथ अमेजन पर अन्य भारतीय भाषाओं की किताबें भी उपलब्ध हैं। (प्रसून ,2015)
      आज फ्लिपकार्ट और अमेजन भारतीय प्रकाशकों के ऑनलाइन कारोबार का बड़ा जरिया है। हिन्दी किताबों के रैंडम सर्च से पता चलता है कि राजकमल प्रकाशन की फ्लिपकार्ट पर 1934 और अमेजन पर 1515 किताबें सूचीबद्ध हैं। इसी प्रकाशन समूह के लोकभारती प्रकाशन की 516 किताबें फ्लिपकार्ट पर 310 किताबें अमेजन पर उपलब्ध है। वाणी प्रकाशन की फ्लिपकार्ट पर 1730 और अमेजन पर 1542 किताबें मौजूद है। प्रभात प्रकाशन की फ्लिपकार्ट पर 1979 और अमेजन पर 1391 किताबें बिकने के लिए सजी हुई हैं।  फ्लिपकार्ट पर राजपाल एण्ड सन्स की 614 किताबें और हिन्द पॉकेट बुक्स की 356 किताबें उपलब्ध हैं। इनके अलावा, हिन्दी के दूसरे छोटे-बड़े प्रकाशक अपनी किताबों के साथ मिलकर इन वेबसाइट्स के जरिए पाठकों को हिन्दी की किताबों का बड़ा संसार मुहैया कराते हैं।
ई-बुक्स का अनूठा संसार
   फ्लिपकार्ट किताबों के पेपरबैक और हार्डबाउंड संस्करणों के साथ-साथ पाठकों को ई-बुक्स की सुविधा भी प्रदान करता है। ई-बुक्स किताबों का सबसे आधुनिक स्वरूप है। मोबाइल, टेबलेट और ई-रीडिंग गैजेट्स पर किताबों की तरह पढ़ी जा सकती हैं । ई-बुक्स में कोई वजन नहीं होता और इसे ऑनलाइन टेक्स्ट की तरह पढ़ा जाता है।
फ्लिपकार्ट पर हिन्दी की कुल 604 ई-बुक्स, सेल्फ हेल्प की 29 ई-बुक्स, जीवनियों, आत्मकथाओं व सत्यकथाओं की 70 ई-बुक्स मौजूद है। अमेजन ने किंडल के नाम से एक गैजेट बाजार में उतारा है, जो ई-रीडिंग या ई-बुक्स का अमेजन संस्करण है। अमेजन की वेबसाइट पर 103 किताबें किंडल फॉरमेट में उपलब्ध है, जिनमें 11 जीवनियों, 20 व्यक्तित्व विकास और 44 साहित्य व कथा कहानियों पर केन्द्रित हैं।
राजकमल प्रकाशन समूह के अलिंद माहेश्वरी कहते हैं कि आज ई-कॉमर्स पोर्टल के सेटअप व सर्विस किसी प्रकाशक के सेटअप से ज्यादा बेहतर हैं, तो निश्चित ही प्रकाशक चाहेगा कि वो इन संसधनों का उपयोग करें, ताकि वह पाठकों तक सार्थक तरीके से पहुँच सकंते। सभी वर्गों में हिन्दी का पाठक मौजूद है | जरूरत है उन तक उनके तरीकों से पहुंचने की। अब पाठक हमारी किताबें मोबाइल एप्स व ई-बुक्स के रूप में हमारी वेबसाइट के माध्यम से खरीद और पढ़ पाएंगे। हमारी ई-बुक्स अमेजन, फ्लिपकार्ट जैसी बड़ी वेबसाइट्स व न्यूजहंट जैसे एप्स पर उपलब्ध हैं ।
वाणी प्रकाशन  की अदिति माहेश्वरी मानती हैं कि हिन्दी में ई-बुक्स का सुनहरा भविष्य है। यह आने वाले समय की मांग है। लोगों के पास समय कम है। लोग यात्राओं के दरमियान पढ़ना चाहते हैं। ऐसे में किताबों को साथ ले जाना बहुत मुश्किल काम है। एक ई-बुक्स डिवाइस में आप हजारों किताब ले जा सकते हैं, लेकिन एक सूटकेस में चार-पांच से अधिक किताबों को ले जाना मुमकिन नहीं हो पाता है। इसके अलावा आज सबसे बड़ा सवाल है कि कैसे किताबें पाठकों तक पहुंचें। इस उपभोक्तावादी समाज में पाठकों को किताबों तक नहीं, बल्कि किताबों को पाठक तक पहुंचना है। इन बातों को ध्यान में रखें, तो ई-बुक्स एक बेहतर विकल्प के रूप में सामने आता है।
राजपाल एण्ड सन्स के प्रणव का कहना है कि ई-बुक्स का चलन अभी यू॰एस॰ और यू॰के॰ के बाजार में है। भारत में इसका इस्तेमाल आने वाले दिनों में ज़ोर-शोर से होगा। राजपाल एंड सन्स अपने सारे अहम शीर्षकों को ई-बुक्स में बदल (कन्वर्ट करवा ) रहा है, ताकि अभी विदेशी बाजार की मांग और आने वाले समय में भारतीय बाजार की मांग को पूरा किया जा सके।
 प्रभात प्रकाशन के निदेशक डॉ0 पीयूष कुमार बताते हैं। कि उनके यहां एक बड़ी टीम हिन्दी के फॉन्ट के अनुसंधान और विकास पर काम कर रही है। आने वाले समय में प्रभात प्रकाशन के 1000 से अधिक ई-बुक्स फ्लिपकार्ट व गूगल बुक्स पर लाइव होने जा रही हैं। 200 पुस्तकें किंडल पर हैं। यही नहीं, शीघ्र ही उनकी ई-बुक्स नूक और कोबो पर भी उपलब्ध होगी। उनकी मानें तो हिन्दी की ई-बुक्स का भविष्य अत्यन्त सुनहरा है। (अहा ! जिंदगी !,2015 )   
ग्राहक की सुविधा-असुविधा          
इंटरनेट एंड मीडिया एसोसिएशन ऑफ इंडिया की ओर से जारी रिपोर्ट के अनुसार पिछले वर्ष भारत में इंटरनेट उपभोक्ताओं की संख्या में सालाना 32 फीसदी का इजाफा हुआ है। इस रिपोर्ट से यह कयास लगाया जा रहा है कि इस साल के अंत तक भारत इंटरनेट के इस्तेमाल में यू॰एस॰ए॰ को पीछे छोड़ देगा। असर साफ है कि किताबों के मुद्रित और ई-संस्करणों की बिक्री जिस तरह से ऑनलाइन माध्यमों से बढ़ती जा रही है, लगता है किताबों का पूरा बाजार ऑनलाइन माध्यम पर शिफ्ट कर जाएगा। दिसम्बर 2014 तक देश में 17 करोड़ से अधिक लोग मोबाइल के जरिए इंटरनेट से जुड़े हुए थे और जानकारों का मानना है कि इस साल जून तक मोबाइल इंटरनेट धारकों की संख्या 21 करोड़ के पार  हो जाएगी। इसी को देखते हुए अब ऑनलाइन मार्केटिंग की सारी वेबसाइट्स मोबाइल एप्पस के जरिए होने वाली खरीदारी को प्रोत्साहित कर रही हैं और कहीं-कहीं तो एप्स डाउनलोड करने पर खरीदारी पर विशेष छूट का प्रावधान  भी रहता है ।
         कम समय में सहज उपलब्धता.....शायद तकनीकी के इसी सुविधाजनक रूप के कारण लोग ई-बुक के प्रति क्रेजी हो रहे हैं। गाँव-खेड़े का आदमी जिससे हिस्से में कल तक सड़क का साहित्यथा, अगर आज उसकी पहुंच के दायरे में विश्व का श्रेष्ठ साहित्यसिमट आया है, तो इसका कारण ई-बुक्स हैं। यही नहीं समकालीन साहित्य एवं साहित्यकारों को जो वैश्विक पाठक और पहचान मिली है उसका श्रेय भी इन्हें ही जाता है। पिछले दिनों अमेजन ने स्वीकार किया कि उनके बुक स्टोर में ई-बुक्स ने मुद्रित किताबों की बिक्री को पछाड़ दिया। कारण साफ है कि ई-बुक्स केवल कलेवर की वजह से नहीं अपनी अन्य विशेषताओं के कारण भी बाजार में तेजी से पैठ बना रही हैं।
अंत मे यह सूचना देना अनुचित न होगा  कि हम अपने  ईबुक्स खुद बना सकते हैं और प्रकाशित भी कर सकते हैं और चाहे तो कमाई  भी कर सकते हैं | बस, विडबुक का प्रयोग कीजिए जैसे मैंने किया और घर बैठे दो ईबुक्स प्रकाशित कीं और अपने मित्रों को आमंत्रित किया कि वे उनका आनंद उठाएँ | चलिए , आप भी अपनी ई बुक बनाइए और प्रकाशित कीजिए |
                        संदर्भ सूची
ओम विकास ,2008 : व्यापक प्रौद्योगिकी और प्रयोजनमूलक हिन्दी ,गवेषणा
2008                                                                      
बालेंदु दाधीच ,2015 : हिंदी की विशुद्ध खुशबू ,गगनांचल 10 वाँ विश्व हिंदी  सम्मेलन विशेषांक (135-138)
वशिनी शर्मा ,2015 : हिंदी की डिजिटल क्रांति : ई-बुक्स का  संसार  गगनांचल ; 10वाँ विश्व हिंदी सम्मेलन ,विशेषांक (पृ.145-146)
वशिनी शर्मा ,2008 : ई-साहित्य और हिंदी ब्लॉग : सार्थक अभिव्यक्ति का एक झरोखा;गवेषणा,के.हि.सं.
रेखा श्रीवास्तव, :2015 : सहयात्री वेब-लिंक्स ; गगनांचल ; 10वाँ विश्व हिंदी सम्मेलन विशेषांक (पृ. 207-8)
दिनेश मलकानी  2014 : ;हकीकत मे तब्दील होती दूर  की कौड़ी ;नई दुनिया  
देवाशीष प्रसून ,2015 –एक डगर किताबों के नए नगर तक - अहा ! जिंदगी  ;फरवरी ;16=19  
उपाध्याय ,करुणाशंकर : हिन्दी का वैश्विक परिदृश्य  ; सामयिकी
उपमा ऋचा-  2015 : पन्नों के पार एक नया संसार – अहा ! जिंदगी ,फरवरी ; 22-23   Ebookweb.in http://ebookweb.in/Ebooks/index.php?dir=/Hindi&p=1&sort=0 http://the-

 hrudyanjali.blogspot.com/2010/08/blog-post_28.html
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