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Wednesday, January 25, 2023

जनकृति : भाषा प्रौद्योगिकी विशेषांक

 जनकृति के भाषा प्रौद्योगिकी विशेषांक के लिए इस विषय से जुड़े विद्वानों के आलेख आमंत्रित हैं। अपने लेखन के माध्यम से इस क्षेत्र में हिंदी में सामग्री संवर्धन करने में योगदान करने का अनुरोध है...

10 मार्च तक निम्नलिखित ईमेल आईडी पर आलेख भेजें अथवा डॉ. कुमार गौरव मिश्र को सीधे भी भेजे जा सकते हैं-

jankritipatrika@gmail.com

या/और

ltstudymat@gmail.com

नोट- इसमें पहला कैरेक्टर स्माल एल है।






Saturday, January 14, 2023

मैक्समूलर





 संदर्भ- 


सर विलियम जोन्स

 


संदर्भ- 




Wednesday, January 11, 2023

सर्जनात्मक हिंदी (Creative Hindi)

 सर्जनात्मक हिंदी (Creative Hindi)

सर्जना का अर्थ है- 'कुछ नया निर्मित करना'। मनुष्य के अंदर ऐसी स्वाभाविक प्रतिभा होती है कि उसके माध्यम से वह बाह्य संसार में देखी या महसूस की जाने वाली वस्तुओं की प्रतिकृति निर्मित कर सकता है अथवा इस प्रकार की एकाधिक वस्तुओं के संयोजन से या अपनी कल्पना शक्ति का प्रयोग करते हुए नई वस्तुएं, संकल्पनाएँ आदि भी निर्मित कर सकता है। नवीनता के साथ निर्माण की यही क्रिया सर्जना कहलाती है। इसके लिए 'प्रतिभा' का होना आवश्यक है और यह प्रतिभा प्रकृति-प्रदत्त होती है।

सर्जना करने की शक्ति मन या मस्तिष्क में होती है। उसे अभिव्यक्त करने के लिए किसी न किसी माध्यम की आवश्यकता होती है। यह माध्यम कोई पदार्थ, जैसे- मिट्टी, लोहा, प्लास्टिक आदि अथवा रंग, कागज या 'भाषा' कुछ भी हो सकता है। दूसरे शब्दों में कहा जाए तो अन्य वस्तुओं या पदार्थों के साथ-साथ 'भाषा' भी मानव मस्तिष्क में चलने वाली सर्जना की अभिव्यक्ति का माध्यम बनती है। यह बात विश्व की किसी भी भाषा के साथ लागू होती है जिनमें से 'हिंदी' भी एक है। अतः जब हम 'सर्जनात्मक हिंदी' की बात करते हैं, तो हमारा तात्पर्य इस बात से है कि हिंदी में सर्जनात्मक रचनाओं का निर्माण कैसे किया जाता है। इसे हिंदी में सर्जनात्मक लेखन (Creative Writing in Hindi) के रूप में समझ सकते हैं। जब किसी भी भाषा में सर्जनात्मक अभिव्यक्ति की बात की जाती है, जो उसे सामान्यतः 'सर्जनात्मक लेखन' (Creative Writing) कहते हैं।

इसे चित्र रूप में निम्नलिखित प्रकार से दर्शा सकते हैं- 


अतः सर्जनात्मक हिंदी का संबंध हिंदी भाषा में किए जाने वाले सर्जनात्मक लेखन से है। यह कार्य विश्व की किसी भी भाषा में किया जा सकता है।

भाषा में अभिव्यक्ति और संप्रेषण की आधारभूत इकाई 'वाक्य' (Sentence) है। वाक्य वह इकाई है, जिसके माध्यम से कम से कम एक सूचना का संप्रेषण होता है, किंतु केवल एक वाक्य रखने से या भिन्न-भिन्न प्रकार के एकाधिक वाक्यों की रचना करने से सर्जनात्मक अभिव्यक्ति नहीं होती। उसके लिए सुगठित वाक्यों के समूह 'प्रोक्ति' (Discourse) की आवश्यकता पड़ती है।

दूसरे शब्दों में कहा जाए तो भाषा के माध्यम से जब हम सर्जना करते हैं तो वाक्य से ऊपर की इकाई 'प्रोक्ति' के स्तर पर करते हैं। अतः सर्जनात्मक हिंदी या सर्जनात्मक लेखन को समझने से पहले प्रोक्ति पर थोड़ी चर्चा अपेक्षित है।

प्रोक्ति क्या है?

प्रोक्ति भाषिक अभिव्यक्ति की वह इकाई है, जिससे कम से कम एक संदेश या संपूर्ण विचार का संप्रेषण होता है। इसका गठन सामान्यतः एकाधिक वाक्यों से होता है। किसी प्रकरण विशेष में कोई एक वाक्य भी प्रोक्ति का काम कर सकता है, किंतु ऐसा बहुत कम होता है। प्रोक्ति में दो आधारभूत चीजें होती हैं- पाठ और संदर्भ (Text and Context)। दोनों का जब योग हो जाता है तो प्रोक्ति बन जाती है।

किसी रचना विशेष में लिखी हुई बात को 'पाठ' कहते हैं और वह पाठ जब संदर्भ से जुड़ता है तो प्रोक्ति बन जाता है। सभी प्रकार की रचनाएं, जैसे- कोई कहानी, कविता, निबंध, पुस्तक आदि अपने आप में एक प्रोक्ति होती हैं।

यहाँ भाषा और प्रोक्ति के संदर्भ में मानव मनः मस्तिष्क की प्रकृति से संबंधित एक और पक्ष पर बात की जा सकती है, जिसमें कहा जाता है कि भाषा प्रोक्तियों को गठित करने वाली व्यवस्था है और मानव मन संसार की वस्तुओं, इकाइयों घटनाओं आदि को प्रोक्ति के रूप में ही समझता है, किंतु उसे प्रोक्ति के रूप में अभिव्यक्त भी कर दे, यह आवश्यक नहीं है। किसी विषयवस्तु के बारे में प्रोक्ति के रूप में अभिव्यक्त करना सीखने की प्रक्रिया ही सर्जनात्मक लेखन या अभिव्यक्ति है।

इस संबंध में अन्य शीर्षक (Topics) देखें- 

प्रोक्ति /रचना और सर्जना

 प्रोक्ति /रचना और सर्जना

भाषा के माध्यम से प्रोक्ति के रूप में निर्मित की जाने वाली रचनाओं के 02 वर्ग किए जा सकते हैं- सूचनात्मक रचनाएं या ज्ञानपरक रचनाएँ तथा कलात्मक रचनाएं या सर्जनात्मक रचनाएँ । इन दोनों ही प्रकार की रचनाओं के निर्माण हेतु प्रतिभा की आवश्यकता पड़ती है, किंतु सूचनात्मक या ज्ञानपरक रचनाओं में किसी वस्तु या विषय के बारे में जानकारी दी जाती है, जबकि कलात्मक या सर्जनात्मक रचनाओं में वक्ता द्वारा अभिप्रेत संदेश विशेष होता है, जिसकी प्रस्तुति विशिष्ट होती है। सूचनात्मक रचनाओं में भी एक से अधिक वाक्य एक व्यवस्थित क्रम में सुगठित रूप से अभिव्यक्त किए जाते हैं, तथा एक बड़ी इकाई के बारे में पूर्ण या संदेश स्तर की सूचना दी जाती है, किंतु उसमें रस या आनंद का भाव नहीं होता बल्कि उसे पढ़ने के उपरांत हमें केवल संबंधित विषय वस्तु के बारे में ज्ञान या सूचनाओं की सामूहिक रूप से प्राप्ति होती है। ऐसी रचनाओं को पढ़ते हुए पाठक इस बात पर केंद्रित होता है कि 'क्या कहा गया है?' 'कैसे कहा गया है?' इस पर उसका ध्यान नहीं जाता ।

दूसरी ओर कलात्मक या सर्जनात्मक रचनाएं ऐसी रचनाएँ होती हैं, जिन्हें पढ़ने या सुनने के बाद हमें संदेश की प्राप्ति के साथ-साथ आनंद की भी प्राप्ति होती है अथवा हमारी संवेदनाएं जागृत हो जाती हैं। ऐसी भाषिक अभिव्यक्तियों को कलात्मक अभिव्यक्ति या सर्जनात्मक अभिव्यक्ति कहते हैं। ऐसी रचनाओं के निर्माण में 'क्या कहा गया है?' के साथ-साथ 'कैसे कहा गया है?' की भी उतनी ही महत्वपूर्ण भूमिका होती है। 

इन दोनों प्रकार की रचनाओं में अभिव्यक्ति की स्थिति को सूत्र रूप में इस प्रकार से दर्शाया जा सकता है-

रचना का प्रकार                                             विषय वस्तु/ अभिव्यक्ति की स्थिति 

सूचनात्मक रचनाएं या ज्ञानपरक रचनाएँ                   क्या कहा गया है (केंद्र)

कलात्मक रचनाएं या सर्जनात्मक रचनाएँ                  क्या कहा गया है तथा कैसे कहा गया है

एक सर्जनात्मक अभिव्यक्ति का केवल कलात्मक अभिव्यक्ति होना आवश्यक नहीं है, वह सूचनात्मक या ज्ञानपरक भी हो सकती है, किंतु ऐसी रचना कहीं से सूचनाओं को पढ़कर उनकी वैसे ही प्रस्तुति नहीं होती, बल्कि उसमें लेखक या वक्ता द्वारा अपनी रचनात्मक शक्ति का भी मिश्रण कर दिया जाता है। इस प्रकार से उसमें सौंदर्य तत्व का भी योग हो जाता है।

सर्जनात्मक लेखन और निबंध लेखन

 सर्जनात्मक लेखन और निबंध लेखन 

सर्जनात्मक लेखन का सबसे प्राथमिक उदाहरण 'निबंध लेखन' है। प्रारंभ में जब हम निबंध लिखना सीखते हैं तो हमें एक विषय दे दिया जाता है और उस पर हम अपने मन से कुछ सूचनाओं को क्रमबद्ध रूप से गठित करते हुए लिखते हैं। बचपन में हम लोगों ने 'गाय' पर या 'विज्ञान : वरदान या अभिशाप', 'भारत देश हमारा' जैसे विषयों पर निबंध लिखे हैं। इस तरह से निबंध लिखवाने का उद्देश्य विद्यार्थी की सर्जनात्मक शक्ति को जागृत करना होता है। निबंध लिखने के क्रम में विद्यार्थी जाने-अनजाने में वाक्य से ऊपर उठकर वाक्यों के समूह को एक विशेष व्यवस्था में प्रस्तुत करना सीखता है। इस प्रकार के निबंध लेखन संबंधी विषय भी कई प्रकार या कई स्तर के होते हैं, जैसे-

(क) वस्तुपरक विषय 

इस प्रकार के विषय स्थूल विषय होते हैं जिनको हम अपने आसपास देख सकते हैं महसूस कर सकते हैं अथवा जिनमें हम जी रहे होते हैं अतः केवल उनके बारे में हमें बताना होता है, जैसे - गाय, मेरा विद्यालय, मेरा परिवार आदि। ऐसे विषयों पर लेखन करते समय सर्जनात्मक शक्ति के प्रयोग  के लिए कम स्थान रहता है।

(ख) विचारपरक विषय

इस प्रकार के विषय अमृत विषय होते हैं जिन पर हमें अपना विचार देना होता है अर्थात उसमें हमें स्वयं विचार करके कुछ बातें करनी होती हैं जो उसके पक्ष या विपक्ष में हमारी धारणा की अभिव्यक्ति हो सकती है, जैसे - विज्ञान वरदान या अभिशाप, प्रकृति और हम आदि। ऐसे विषयों पर लिखते समय वस्तु पर विषयों की तुलना में सर्जनात्मक शक्ति के प्रयोग के लिए अधिक स्थान रहता है।

(ग) स्वतः अभिव्यक्त विषय

जब धीरे-धीरे हमारे अंदर सर्जनात्मक शक्ति की अभिव्यक्ति संबंधी व्यवस्था का विकास हो जाता है, तो हमारे मन में स्वतः है कुछ विषय स्फूर्त रूप से आ जाते हैं, जिन पर कुछ नया लिखने की इच्छा होती है। ऐसा लेखन करना सर्जनात्मक लेखन की वास्तविक स्थिति है। यहां पर हम अपनी सर्जनात्मक शक्ति का जितना चाहे उतना प्रयोग कर सकते हैं।

लेखन के क्रम धीरे-धीरे आगे बढ़ते हुए हमारे अंदर जैसे-जैसे गहराई बढ़ती जाती है, वैसे-वैसे लेखन में कलात्मकता भी आती जाती है और अंततः हमारा लेखन उच्च कोटि का सर्जनात्मक लेखन बन जाता है।

सर्जनात्मक लेखन के प्रकार

 सर्जनात्मक लेखन के प्रकार

विविध आधारों पर सर्जनात्मक लेखन के विभिन्न वर्ग-उपवर्ग किए जा सकते हैं। उपयोगिता के आधार पर सर्जनात्मक  लेखन के व्यापक रूप में दो प्रकार किए जा सकते हैं- अभिव्यक्तिपरक या मूल (CORE) साहित्यिक लेखन और आजीविकापरक या व्यावसायिक लेखन। विभिन्न प्रकार की साहित्यिक विधाओं में अपने अंदर उठने वाले भावों, विचारों आदि को कलात्मक रूप से कृतियों के रूप में अभिव्यक्त करने की भावना से लिखना अभिव्यक्तिपरक साहित्यिक लेखन है। इसमें लेखक केवल अपने भावों या विचारों को अभिव्यक्त करने पर केंद्रित रहता है। उसकी अभिव्यक्ति श्रोता को किस प्रकार से प्रभावित करेगी, इस ओर लेखक ध्यान नहीं देता। हो सकता है कि वह श्रोताओं को पसंद आ जाए या ना भी आए। 

इसके विपरीत श्रोता को प्रभावित करने के उद्देश्य से किया जाने वाला लेखन व्यवसायिक लेखन है। इस प्रकार का लेखन लेखक द्वारा अपनी आजीविका के लिए अथवा धन के अर्जन के लिए किया जाता है। इसमें लेखक  सर्जनात्मक लेखन के दूसरे पक्ष - 'कैसे कहा गया है या कैसे कहा जाएका पूरा ध्यान रखता है।  वह अपनी बात को जानबूझकर इस तरह से प्रस्तुत करता है कि उसकी बात श्रोता को पसंद ही आए, क्योंकि ऐसा नहीं होने पर उसके लेखन से धन का अर्जन नहीं हो सकेगा । 

 'सर्जनात्मक लेखन' मूल रूप से स्वाभाविक रूप से मानव मन में पाई जाने वाली 'प्रतिभा' से संबंधित है। इस बात की बहुत कम संभावना है कि हमारे अंदर नई बातें सृजित करने वाली प्रतिभा का अभाव हो तथा किसी और से सीखकर हम सर्जनात्मक लेखन करें। फिर भी थोड़ी बहुत प्रतिभा हो तो उसे दूसरों की सर्जनात्मक कृतियों का विश्लेषण करते हुए या उनकी लेखन पद्धति को समझते हुए कुछ हद तक अपनी प्रतिभा पर उसे लागू करके लेखन शैली को और उपयुक्त बनाया जा सकता है।

'क्या कहना है' और 'कैसे कहना है' कि दृष्टि से विचार किया जाए तो सृजनात्मक लेखन में इस बात का प्रशिक्षण दिया जा सकता है कि किसी रचना में अपनी बात को 'कैसे कहना है''क्या कहना है' का संबंध स्वाभाविक प्रतिभा से ही है और यह लेखक के अंदर से आनी चाहिए। यदि कोई दूसरा व्यक्ति लेखक को 'क्या कहना है' की विषयवस्तु बता रहा है, तो ऐसी स्थिति में लेखक एक प्रभावशाली रचना का निर्माण नहीं कर सकता।

ऐसा भी संभव है कि दो लोगों द्वारा मिलकर लेखन किया जाए। इसमें 'क्या कहना है' वाला पक्ष लेखक के मन में उभरता हो और दूसरा सहायक लेखक जो 'कैसे कहना है' की कला में माहिर हो, तो दोनों के संयोग से एक अच्छी रचना या कृति का निर्माण हो सकता है।

इसी प्रकार साहित्यिक विधा के आधार पर हम इनके विभिन्न वर्ग-उपवर्ग कर सकते हैं, जैसे- कहानी, उपन्यास, निबंध, कविता, नाटक, एकांकी, रिपोर्ताज आदि।

 माध्यम के आधार पर भी कुछ भेद किए जा सकते हैं, जैसे-

§  लिखित रूप में अभिव्यक्त

§  दृश्य रूप में अभिव्यक्त

§  श्रव्य रूप में अभिव्यक्त

§  दृश्य श्रव्य रूप में अभिव्यक्त

 अन्य आधारों पर भी इसी तरह से वर्गीकरण किया जा सकता है ।


सर्जनात्मक रचना का विश्लेषण

सर्जनात्मक रचना का विश्लेषण

किसी सर्जनात्मक लेखन के विश्लेषण के लिए तीन विषयों का ज्ञान आवश्यक है-

§  प्रोक्ति विश्लेषण (Discourse Analysis)

§  शैलीविज्ञान (Stylistics)

§  काव्य भाषा (Poetic Language)

किंतु यहाँ ध्यान रखने वाली बात है कि सर्जनात्मक लेखन करने के लिए इनका ज्ञान आवश्यक नहीं है। किसी व्यक्ति द्वारा किए गए सर्जनात्मक लेखन का आनंद लेने, पठन करने या समझने के लिए इनका ज्ञान आवश्यक नहीं है। किसी विषय पर सर्जनात्मक रूप से हम अपनी बात अभिव्यक्त कर सकते हैं या किसी अन्य व्यक्ति द्वारा अभिव्यक्त की गई बात का बोधन भी कर सकते हैं। यदि एक विशेषज्ञ की तरह इस बात का विश्लेषण करना हो कि लेखक द्वारा किस प्रकार के भाषायी और कलात्मक उपकरणों का प्रयोग करते हुए किसी कृति में कलात्मकता या सर्जनात्मकता पैदा की गई है। इसका वस्तुनिष्ठ या वैज्ञानिक रूप से विश्लेषण करने के लिए इन विषयों का ज्ञान आवश्यक है।

इन्हें निम्नलिखित लिंकों पर जाकर विस्तार से पढ़ें- 

प्रोक्ति-विश्लेषण (Discourse Analysis)

  शैलीविज्ञान (Stylistics)

काव्य भाषा (Poetic Language)

अर्थविज्ञान और व्याकरण दर्शन -विषय सूची (1st Page Sample)

 



Monday, January 9, 2023

UGC issues clarification on eligibility criteria for CAS promotion of university teachers




भाषा का मनोविज्ञान (Psychology of language)

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अर्थविज्ञान और व्याकरण दर्शन -विषय सूची