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Tuesday, October 31, 2017

SCONLI-12 के आयोजन के संबंध में सूचना




Monday, October 30, 2017

डॉट नेट में मशीनी अधिगम प्रणाली निर्माण

परिचय और आरंभिक प्रोग्राम के उदाहरण द्वारा इस प्रकार से समझ सकते हैं-
(Datahub से साभार)

What is machine learning?

If you check out on Wikipedia, you will find a fairly abstract definition of machine learning:
“Machine learning explores the study and construction of algorithms that can learn from and make predictions on data. Such algorithms operate by building a model from example inputs in order to make data-driven predictions or decisions, rather than following strictly static program instructions.”
I like to think of machine learning as computer programs that produce different results as they are exposed to more information without changing their source code (and consequently needed to be redeployed). For example, consider a game that I play with the computer.
I show the computer this picture  and tell it “Blue Circle”. I then show it this picture  and tell it “Red Circle”. Next I show it this picture  and say “Green Triangle.”
Finally, I show it this picture  and ask it “What is this?”. Ideally the computer would respond, “Green Circle.”
This is one example of machine learning. Although I did not change my code or recompile and redeploy, the computer program can respond accurately to data it has never seen before. Also, the computer code does not have to explicitly write each possible data permutation. Instead, we create models that the computer applies to new data. Sometimes the computer is right, sometimes it is wrong. We then feed the new data to the computer to retrain the model so the computer gets more and more accurate over time—or, at least, that is the goal.
Once you decide to implement some machine learning into your code base, another decision has to be made fairly early in the process. How often do you want the computer to learn? For example, if you create a model by hand, how often do you update it? With every new data row? Every month? Every year? Depending on what you are trying to accomplish, you might create a real-time ML model, a near-time model, or a periodic model.

Why .NET?

If you are a Windows developer, using .NET is something you do without thinking. Indeed, a vast majority of Windows business applications written in the last 15 years use managed code—most of it written in C#. Although it is difficult to categorize millions of software developers, it is fair to say that .NET developers often come from nontraditional backgrounds. Perhaps a developer came to .NET from a BCSC degree but it is equally likely s/he started writing VBA scripts in Excel, moving up to Access applications, and then into VB.NET/C# applications. Therefore, most .NET developers are likely to be familiar with C#/VB.NET and write in an imperative and perhaps OO style.
पूरा पढ़ने के लिए इस लिंक पर जाएँ-
https://datahub.packtpub.com/tutorials/welcome-to-machine-learning-using-the-net-framework/

Sunday, October 29, 2017

हिंदी व्याकरण (Hindi Vyaakaran)

हिंदी व्याकरण : कामताप्रसाद गुरु
प्रथम संस्करण- 1920 , नागरी प्रचारिणी सभा
बाद में अनेक संस्करण कई प्रकाशकों द्वारा।




Friday, October 27, 2017

ई-पी.जी. पाठशाला में भाषाविज्ञान


ई-पी.जी. पाठशाला में भाषाविज्ञान
ई-पी.जी. पाठशाला के माध्यम से भाषाविज्ञान के महत्वपूर्ण विषयों पर पाठ फाइलें और विडियो सामग्री उपलब्ध है। इन्हें को पढ़ने और विडियो देखने के लिए इस लिंक पर जाकर Paper Name और Module Name का चयन करें-

https://epgp.inflibnet.ac.in/Home/ViewSubject?catid=18

इस लिंक पर जाने के बाद निम्नलिखित वेबपृष्ठ खुलेगा-


इसमें Paper और Module को  इस प्रकार सलेक्ट करें-
Paper Name –       P-05. Bhashavigyan

Module Name -   . .....  

ई-पी.जी. पाठशाला के माध्यम से भाषाविज्ञान के महत्वपूर्ण विषयों पर पाठ फाइलों के लिंक-
भाषा की परिभाषा और स्वरूप
भाषा के अभिकल्प लक्षण
सैद्धांतिक बनाम अनुप्रयुक्त भाषाविज्ञान
भाषा संरचना के विभिन्न स्तर और उनके अंतःसंबंध
ऐतिहासिक भाषाविज्ञान
संकेतप्रयोगविज्ञान

स्वनविज्ञान
वाक् उत्पादन प्रक्रिया
स्वर-व्यंजन
स्वनिमविज्ञान
स्वनिम
स्वनिमिक विश्लेषण के सिद्धांत
स्वनगुण
व्यावर्तक अभिलक्षण
आई.पी.ए.

रूपवैज्ञानिक प्रक्रियाएँ
रूपविज्ञान : परिभाषा एवं स्वरूप
रूपिम की अवधारणा और पहचान
शब्दवर्ग और व्याकरणिक कोटियाँ

वाक्य की परिभाषा एवं स्वरूप
वाक्य की संरचनात्मक एवं प्रकार्यात्मक कोटियाँ
प्रोक्ति एवं पाठ
अर्थ की अवधारणा और प्रकार
आशय संबंध

भाषा भूगोल
आकृतिमूलक वर्गीकरण
पारिवारिक वर्गीकरण
भाषा परिवर्तन
लिपि एवं लेखिमविज्ञान
प्रजनक व्याकरण
प्रमुख आधुनिक परवर्ती व्याकरण

भाषाशिक्षण
कोशविज्ञान
अनुवाद
शैलीविज्ञान
संगणनात्मक भाषाविज्ञान और भाषा-संसाधन




Thursday, October 12, 2017

डिसएबिलिटी और भावना

डिसएबिलिटी वाले लोगों की भावनाओं को व्यक्त करता हुआ एक अच्छा लेख... (BBC HINDI)

मेरी डिज़ायर का मेरी डिसएबिलिटी से कोई लेना-देना नहीं है




इलस्ट्रेशन

मैं देख नहीं सकती तो क्या? चाहत के अहसास और इश्क की ज़रूरत तो सबको होती है.
मुझे भी है. उतनी ही शिद्दत से, जैसे आपको. मेरी 'डिज़ायर' का मेरी 'डिसएबिलिटी' से कोई लेना-देना नहीं है.
बस उसे महसूस करने का मेरा अनुभव अलग है.
दरअसल बचपन में मैं आप जैसी ही थी. देख सकती थी. एक छोटे शहर के 'नॉर्मल' स्कूल में पढ़ती थी.
पर तब छोटी थी तो लड़कों के साथ सिर्फ़ दोस्ती का रिश्ता था.
नवीं क्लास में अचानक मेरी आंखों की रौशनी जाने लगी और साल भर में ही पूरी तरह ख़त्म हो गई.
मुझे 'ब्लाइंड' बच्चों के 'स्पेशल' स्कूल में दिल्ली भेज दिया गया. आम लड़कों से कोई मेलजोल नहीं रहा.







ब्लाइंड लड़की की सच्ची प्रेम कहानी

चाहत का ब्लाइंड होने से कोई रिश्ता नहीं

फिर कॉलेज में आई. फिर से आम दुनिया में. एक जवान लड़की के सवालों और सपनों के साथ.
मैं आकर्षक तो लगना चाहती थी पर लड़कों से थोड़ी दूरी भी बनाए रखना चाहती थी.
इसका मेरे 'ब्लाइंड' होने से कोई लेनादेना नहीं था. बस, एक लड़की होने के नाते ये चाहत थी.
जो सब लड़कों के लिए 'डिज़ायरेबल' होना चाहती है पर सिर्फ़ एक ख़ास लड़के के लिए 'अवेलेबल'.
लेकिन स्पेशल स्कूल की वजह से आम दुनिया से मिलने-जुलने की आदत और सलीका छूट गया था.
जब देख सकती थी तो लड़कों की आंखों से उनकी नीयत का पता चल जाता था पर अब लड़कों के बीच आत्मविश्वास ही खो जाता था.
कैंटीन, क्लास या लाइब्रेरी तक जाने के लिए मदद लेने में कोफ़्त होती थी, पर वो मजबूरी बन गई थी.
हाथ पकड़ना इतना आम था कि पहली बार हाथ पकड़ने की झिझक या गर्मजोशी का अहसास मायने ही नहीं रखता था. पर चाहत बरक़रार थी.



इलस्ट्रेशन

जान पहचान से शुरुआत

फिर मुझे वो लड़का मिला. या यूं कहूं कि उस लड़के ने मुझे ढूंढ लिया.
वो 'ब्लाइंड' नहीं है पर उसे काफ़ी कम दिखाई देता है. तकनीकी तौर पर वो 'पार्शली-साइटिड' है.
यानी वो मुझे देख सकता है.
पूरा पढ़ने के लिए इस लिंक पर जाएँ-

Monday, October 9, 2017

हिंदी भाषा की संरचना

(Hindi Bhasha ki sanrachana)
भोलानाथ तिवारी, वाणी प्रकाशन
1st Ed. 1999, 2nd Ed. 2004



हिंदी शब्दानुशासन

(Hindi Shabdanushasan)
आचार्य किशोरीदास वाजपेयी
नागरी प्रचारिणी सभा (1976) 3rd Ed.




Sunday, October 8, 2017

हिंदी का वाक्यात्मक व्याकरण

(Hindi ka vaakyaatmak vyaakaran)
साहित्य सहकार, नई दिल्ली (2000)



Saturday, October 7, 2017

सपीर-वोर्फ परिकल्पना (Sapir- Whorf Hypothesis)

सपीर (Edward Sapir : 1884-1939) ने अमेरिका में भाषा के संरचनात्मक अध्ययन की आधारशिला को मजबूत किया। सपीर ने भाषा पर कई दृष्टियों से चिंतन किया और जहाँ-जहाँ आवश्यक लगा, उन्होंने अपने विचार दिया। वोर्फ (Benjamin Lee Whorf: 1897-1941) उन्हीं के शिष्य थे। दोनों ने मिलकर 1929 ई. में भाषिक सापेक्षवाद (Linguistic relativity) का सिद्धांत दिया। यह सिद्धांत ही बाद में 1950 के दशक में वोर्फ द्वारा इस विषय और कुछ सामग्री के प्रकाशन के बाद प्रसिद्ध हुआ। इसे ही सपीर-वोर्फ परिकल्पना के नाम से जाना जाता है। इस सिद्धांत के अनुसार प्रत्येक व्यक्ति अपनी भाषा के माध्यम से ही विश्व को देखता और समझता है। इसका कारण यह है कि प्रत्येक भाषा की संज्ञानात्मक संरचना (cognitive structure) अलग होती है। इस कारण भाषाएँ अपने बोलने वालों की विचार प्रक्रिया को भी प्रभावित करती हैं। कुछ विद्वानों द्वारा इस परिकल्पना को Whorfianism भी कहा गया है। इसे विद्वानों द्वारा दो रूपों में देखा जाता है-
(क) सपीर-वोर्फ परिकल्पना-I (Strong version) : इसके अनुसार भाषा विचार को निर्धारित करती है और भाषायी वर्ग (linguistic categories) वक्ता के संज्ञानात्मक वर्ग (cognitive categories) को सीमित करती हैं। अर्थात भाषा में किसी वस्तु को अभिव्यक्त करने के लिए जितने शब्द होंगे, वह उतने ही प्रकार से संबंधित वस्तु को संबोधित कर सकेगा। इसे समझने के लिए कहीं बर्फ के लिए 07 शब्द और कहीं एक ही शब्द होने का उदाहरण दिया जाता है।
(ख) सपीर-वोर्फ परिकल्पना-II (Weak version) : इसके अनुसार भाषायी वर्ग विचार और निर्णयों को प्रभावित करते हैं।

अतः परिकल्पना का एक पक्ष यह है कि भाषा की संरचना हमारी संज्ञानात्मक क्षमता को प्रभावित करती है तो दूसरा पक्ष यह है कि भाषा की संरचना हमारे बाह्य संसार को देखने की दृष्टि को निर्धारित करती है। इस संकल्पना में आगे यह भी कहा गया कि विभिन्न भाषाओं की आर्थी व्यवस्थाएँ (semantic systems) अलग-अलग होती हैं। इस संकल्पना को बाद में विभिन्न विद्वानों को कुछ आलोचना के साथ आंशिक रूप से स्वीकार किया गया।

Wednesday, October 4, 2017

विषय सूचियाँ

                                      विषय सूचियाँ
(1) ई-पी.जी. पाठशाला : भाषाविज्ञान (
यहाँ आपको लगभग 40 विषयों पर अध्याय प्राप्त होंगे) 

      विडियो लिंक - http://epgp.inflibnet.ac.in/ahl.php?csrno=18

 

(2) भाषाविज्ञान

(3)
 भाषा प्रौद्योगिकी/प्राकृतिक भाषा संसाधन

(4)
 पुस्तक सूची

(5) कंप्यूटर

(6) हिंदी भाषा (Hindi Language)

(7) डिजिटल हिंदी (Digital Hindi)

(8) हिंदी समय : (
हिंदी साहित्य के लिए)

(9) विभाग और आयोजन

(10) Language Acquisition Process of Dharaa Maurya 
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(11)
अन्य महत्वपूर्ण विषय

                भोजपुरी

(1) हिंदी अउर भोजपुरी में सर्वनाम आ परसर्ग
(2) भोजपुरी-हिंदी लघुकथा समानांतर कार्पस
(3) कैथी लिपि

 

          अन्य

(1) ऋग्वेद के बारे में महत्वपूर्ण जानकारी

(2) हिंदी में ई-सामग्री : वर्तमान स्थिति

(3) मुक्त शिक्षा (Open Education) के महत्वपूर्ण Terms

(4) हिंदी व्याकरण की कुछ महत्वपूर्ण पुस्तकें
(5) 
डिसएबिलिटी और भावना

(6) Springer Text books डाउनलोड करने के लिंक

(7) 

(8) आरक्षण संबंधी सरकारी आदेश (सूची)********

 

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शिक्षा में तकनीकी (Technology in Education)

2O Open Access Journals

ब्लॉग यात्रा का महत्वपूर्ण पड़ाव