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Tuesday, November 21, 2017

पाठ विश्लेषण

पाठ विश्लेषण
विशेष व्याख्यान
प्रो. उमाशंकर उपाध्याय

Text linguistics : Bugrain andersalar

पाठ विवेचन का भी प्रोक्ति की तरह सिद्धांत विकसित नहीं  हो सका है।

पाठ और प्रोक्ति
पाठ एक भौतिक उत्पाद है। प्रोक्ति dynamic प्रक्रिया है।
पाठ बाह्य संरचना है। प्रोक्ति गहन
पाठ अमूर्त है प्रोक्ति उसका मूर्तन है।
पाठ लिखित-प्रोक्ति वाचिक : लेकिन ऐसा नहीं है।
एकालाप-वार्तालाप : लेकिन ऐसा नहीं है।
लघु- दीर्घ।: लेकिन ऐसा नहीं है।

पाठ क्या है?
क्या पाठ की कोई संरचना होती है?
क्या कुछ वाक्यों का समुच्चय पाठ है?
एक paragraph के वाक्यों का क्रम बदल दें तो?

पाठ के 7 प्रतिमान (standards of texuality) हैं-
1. संसक्ति (cohesion) : पाठ संसक्त होना चाहिए। वाक्य एक दूसरे से संबद्ध होने चाहिए।
क. कोशीय युक्तियाँ-
   * पुनरुक्ति : राजा था। राजा की तीन रानियाँ थीं। तीनों एक दूसरे से ईर्ष्या करती थीं।....
    * पर्याय
    * अधिनाम
    *
ख. व्याकरणिक युक्तियाँ-
     * प्रतिस्थापन - अन्वादेश, Catephora. प्रतिस्थापित शब्द मूल शब्द की अन्वितिपरक विशेषताओं को ग्रहण करता है।
    * लोप : मैंने चाय पी और उसने कॉफी।
2. संगति (coherence) : पाठ के वाक्यों के बीच तर्कसंगत संबंध होना चाहिए।
उपरोक्त दोनों पाठ केंद्रित प्रतिमान हैं। संसक्ति form से संबंधित है और संगति content से संबंधित है।
3. सोदेश्यता (intentionality) : यह वक्ता/लेखक केंद्रित प्रतिमान है। वह पाठ को संसक्त और संगत मानकर चलता है।
4. स्वीकार्यता (acceptability) : श्रोता /पाठक का पक्ष है। उसे भी स्वीकार्य होना चाहिए।
....।......
. कई बार पाठ में संसक्ति और संगति दिखाई नहीं पड़ती। पाठक को खोजना पड़ता है। जैसे- कबीर की उलटबसियाँ।
Processing effort कम होगा तो पाठ ऊबाऊ होगा। बहुत अधिक हो तो कठिन हो जाएगा। इसलिए मध्य पर होना चाहिए।
5. सूचनात्मकता (informativity) - पाठ में सूचना होनी चाहिए। पाठक/श्रोता के लिए कुछ नया होना चाहिए।
Information science- सूचना की values अलग अलग होती हैं। best communication में भी 80% ही communicate होता है।
अज्ञात या unexpected तत्व प्राप्त होने में ही सूचना की value है।
Upgradation of information
Degradation of information
6. स्थित्यात्मकता (situationality) : प्रत्येक पाठ किसी स्थिति (situation) से जुड़ा होता है।
दो भाग-
स्थिति का आकलन - स्थिति कैसी है?
स्थिति का प्रबंधन - अब क्या किया जाए?
कई बार रचनाकार आकलन करके छोड़ देता है, हल नहीं प्रस्तुत करता है। किंतु वह कम से कम जागरूक तो करता है।
7. अंतरपाठीयता (intertexuality) - किसी भी पाठ का लेखन आकस्मिक नहीं होता। वह ऐतिहासिक परंपरा और समकालीन साहित्य के बीच खड़ा होता है और उनसे संबद्ध होता है -
Form के स्तर पर प्रभाव
Content के स्तर पर प्रभाव
उद्धरण
Style के स्तर पर




Monday, November 20, 2017

प्रोक्ति विश्लेषण

प्रोक्ति विश्लेषण
विशेष व्याख्यान
प्रो. उमाशंकर उपाध्याय
प्रोक्ति के साथ विज्ञान शब्द का प्रयोग नहीं होता बल्कि विश्लेषण शब्द का प्रयोग होता है क्योंकि विज्ञान होने के लिए एक सिद्धांत होना आवश्यक है। अभी इसका कोई सिद्धांत विकसित नहीं हुआ है।
इसी प्रकार व्यतिरेकी विश्लेषण की भी बात की जाती है।

एक दूसरे से जुड़े हुए सतत वाक्यों का समूह प्रोक्ति है। यह संरचना या व्याकरण की इकाई नहीं है। संरचना का प्रकार्य संप्रेषण है।
 प्रोक्ति speech event या Communicative event को गठित करने वाले उच्चारों के समुच्चय से युक्त व्यावहारिक इकाई है।
वाक्य व्याकरण का शब्द है, उच्चार संप्रेषण का शब्द है।
प्रोक्ति का संबंध भाषा व्यवस्था के साथ न हो
प्रर भाषा व्यवहार के साथ है। व्यवस्था जान लेने से आप व्यवहार भी कर लें, यह आवश्यक नहीं है।
इसीलिए dell hymns द्वारा communicative competence की बात की गई है। इसी प्रकार literary competence की भी बात की जा सकती है।
आगे
प्रोक्ति अभिव्यक्ति (expression) और निर्वचन (interpretation) की सतत प्रक्रिया है।
इसके प्रकार्य को समाजभाषावैज्ञानिक, मनोभाषावैज्ञानिक और भाषावैज्ञानिक विधियों का प्रयोग करके समझा जा सकता है।

 मनोभाषावैज्ञानिक - वक्ता के मन में क्या है।
 समाजभाषावैज्ञानिक- परिवेश क्या है।
भाषावैज्ञानिक- आधारभूत

वाक्य व्याकरण और संप्रेषण का संधिस्थल है।
हे राम! (महात्मा गांधी) : एक प्रोक्ति है।

प्रोक्ति को उपप्रोक्तियों में बाँटा जा सकता है।
विवाद-
गहन संरचना या बाह्य संरचना
Monologue or dialogue
एक वाक्य या अनेक वाक्य
लिखित या मौखिक
मूर्त या अमूर्त

तीन पक्ष
पाठ (text): प्रोक्ति में प्रयुक्त भाषा पाठ है। पदार्थ के रूप में यह dull होता है। पाठ में भाषा का संरचनात्मक पक्ष रहता है।
संदर्भ (context): उसे जीवंतता प्रदान करता है। text को context सक्रिय करता है।
प्रोक्ति के बारे में पूछा जाता है कि इसमें हम वह भी कैसे समझ लेते हैं जो नहीं कहा गया है। उसका कारण संदर्भ ही है।
प्रकार्य (function) : पाठ से वक्ता क्या करवाना चाहता है।

भाषा का पूरा प्रयोग प्रोक्ति आधारित है। प्रयोक्ता में प्रोक्ति competence भी होता है। केवल वाक्य तक जानकर हम किसी भाषा के ज्ञान का दावा नहींकर सकते।

....................................

Reader oriented text
संदर्भ के प्रकार
1. स्थित्यात्मक (Situational)- बात होने की जगह का भौतिक परिवेश।
कमरे में अँधेरा हो रहा है = खिड़की खोल दो।
गर्मी लग रही है = पंखा चला दो
Immediate physical presence
2. पृष्ठभूमिक ज्ञान (background knowledge):
दो प्रकार
2.1 अंतरवैयक्तिक ज्ञान (interpersonal knowledge) का संदर्भ : वक्ता श्रोता का एक दूसरे के संदर्भ में। बात या प्रसंग। यह हर दो व्यक्तियों के बीच भिन्न होता है।
2.2 साझा सांस्कृतिक ज्ञान का संदर्भ : हम जिस समाज या समुदाय में रहते हैं, उसके ज्ञान की बात। संबंध, खानपान, जीवन शैली आदि। समाज में सांस्कृतिक समुदाय होते हैं। जैसे जैसे क्षेत्र सीमित होता है वैसे वैसे साझा ज्ञान अधिक होता है।
3. अंतरपाठीयता का संदर्भ: कोई भी पाठ शून्य में खड़ा नहीं होता। वह पूर्व पाठ या संबंधित समकालीन पाठ के संदर्भ में खड़ा होता है।
इनके अलावा कुछ युक्तियाँ
1. संदर्भ निर्देशी तत्व
अंतर्मुखी (endophoric) संदर्भ निर्देश : यह co textual संदर्भ है जो पाठ में ही होता है। दो प्रकार-
क. Anaphora - पहले नाम, बाद में संदर्भ शब्द = सर्वनाम।
ख. Cataphora - पश्चोन्मुखी। सर्वनाम पहले, नाम बाद में।

बहिर्मुखी (exocentric) संदर्भ-
तीन प्रकार-
1. प्रथमोल्लेख- प्रोक्ति में पहली बार उल्लेख।
2. स्थिति निर्देशक तत्व Deixis - 3 प्रकार.
        व्यक्ति निर्देश (person)
        समय निर्देश (time)
        स्थान निर्देश (place)
3. अंतरपाठीयता (intertexuality) : वक्ता श्रोता के बीच का इतिहास।
परिभाषा-
अंतरपाठीयता वार्तालाप कर्ताओं के बीच का अंतर्भेदी (intersectional) अंश है।
..............
प्रकार्य
लघुअवधिक प्रयोजन -
प्यास लगी है - पानी लाएगा।
दीर्घअवधिक प्रयोजन-
जो लंबे समय के लिए हो।

Tact- अपने हित को दूसरे के हित की तरह प्रस्तुत करना।

जब दो लोग बात करते हैं तो दोनों एक दूसरे को mold करने का प्रयास करते हैं।






लघुसिद्धांतकौमुदी (Laghusiddhaant kaumudee)

लघुसिद्धांतकौमुदी – वरदराज

व्याख्याकार- रामअवध पाण्डेय, रविनाथ मिश्र, 2012 विश्वविद्यालय प्रकाशन 





शोध प्रविधि : भाषा प्रौद्योगिकी

शोध प्रविधि : भाषा प्रौद्योगिकी
विशेष व्याख्यान
प्रो. उमाशंकर उपाध्याय
किसी भी प्रकार के शोध के लिए एक प्रविधि आवश्यक है।
सबके लिए।
शोध के विषय और discipline के अनुसार प्रविधियों में कुछ परिवर्तन करना पड़ता है। विषय की प्रकृति के अनुरूप शोध प्रविधि को ढालना आवश्यक है।
हमारे लिए भाषाविज्ञान और भाषा प्रौद्योगिकी।
इसके लिए-
John Lyons के अनुसार-
भाषा संबंधी शोध किसी भाषावैज्ञानिक सिद्धांत के परिप्रेक्ष्य में ही होना चाहिए। 
हमारे यहाँ ऐसा बहुत कम हो पाता है। हमारा मुख्य रूप से संरचनावाद आधारित है, जो बहुत पुराना हो चुका है।
माडल का चुनाव एक चुनौती है। अपने विषय की प्रकृति के अनुरूप चुनें। (सैद्धांतिक शोध में) हर model की अपनी विशिष्टताएँ होती हैं।
शोध भाषा व्यवस्था को लेकर होना चाहिए, भाषा व्यवहार को लेकर नहीं।
अब धीरे धीरे व्यवहार पर भी शोध के लिए छूट। इसमें बहुत अधिक विभेद होते हैं। इस पर शोध करने पर भेदों को संदर्भ से जोड़कर प्रस्तुत किया जाना चाहिए। केवल नाम न गिनाएँ।
अनुप्रयुक्त क्षेत्रों में सैद्धांतिक के अलावा खुद उन क्षेत्रों के माडलों को भी लेना होगा। जैसे-
अनुवाद है तो अनुवाद के सिद्धांत। समतुल्यता या प्रभावसमता।
शैलीविज्ञान में भी कई पद्धतियाँ
वहाँ भी भाषा के प्रयोगों को संदर्भों के साथ जोड़ना पड़ता है।
भाषा शिक्षण में भी यही बात।

 बोली के अध्ययन में फील्ड अध्ययन आवश्यक है। एक क्षेत्र विशेष में ही करें लेकिन प्रामाणिक रूप से करें।

प्राक्कल्पना बनाते समय भी सैद्धांतिक व्याकरण की पृष्ठभूमि आवश्यक है।





Thursday, November 16, 2017

व्याकरण महाभाष्य

व्याकरण महाभाष्य : पतंजलि
अनुवादक एवं विवरणकार : चारुदेव शास्त्री
प्रथम संस्करण- 1968 पुनर्मुद्रण-1988, 1994, 1995, 1999, 2002, 2009, 2011, 2012
प्रकाशक : मोतीलाल बनारसीदास, दिल्ली





अनुवाद विज्ञान की भूमिका (Anuvad Vigyan ki Bhumika)

अनुवाद विज्ञान की भूमिका : कृष्ण कुमार गोस्वामी

राजकमल : नई दिल्ली। पहला छात्र संस्करण- 2012



Tuesday, November 14, 2017

भाषाविज्ञान की भूमिका

भाषाविज्ञान की भूमिका (Bhashavigyan ki Bhumika) : देवेंद्रनाथ शर्मा
राधाकृष्ण प्रकाशन प्राइवेट लिमिटेड, नई दिल्ली
प्रथम संस्करण- 1966

संशोधित एवं परिवर्धित संस्करण : 2001







हिंदी संबंधी पुस्तक सूची

 *****   1. हिंदी व्याकरण  *****
(1) हिंदी व्याकरण : कामता प्रसाद गुरु
(2) हिंदी भाषा की संरचना (Hindi Bhasha ki sanrachana) : 
भोलानाथ तिवारी

(3) हिंदी शब्दानुशासन (Hindi Shabdanushasan) : किशोरीदास वाजपेयी 
(4) हिंदी का वाक्यात्मक व्याकरण (Hindi ka vaakyaatmak vyaakaran) : 
सूरजभान सिंह
(5) हिंदी संरचना के विविध पक्ष : 
अनिल कुमार पाण्डेय
(6) व्याकरण : सिद्धांत और व्यवहार (KHS आगरा-1983)
(7) हिंदी में प्रत्यय विचार (
मुरारी लाल उप्रैति)

(8) Hindi: An Essential Grammar (R.K. Agnihotri)
(9) Hindi: Yamuna Kachru
(10)  Outline of Hindi Grammar (with Examples)
(11) 
HINDI GRAMMAR : Edwin Greaves

(12) 

*****2. हिंदी भाषा *****

(1) हिंदी: उद्भव विकास और रूप

(2) हिंदी भाषा का इतिहास (धीरेंद्र वर्मा)

(3) पूर्वांचल प्रदेश में हिंदी भाषा और साहित्य : डॉ. सी.ई. जीनी

(4) पूर्वांचल प्रदेश में हिंदी भाषा और साहित्य : डो. सी.ई. जीनी

(5)   भारतीय पुरालिपि : राजबली पांडेय (सहायक ग्रंथ सूची)

(6) भारतीय पुरा लिपि (राजबली पांडेय)

(7) आंध्र प्रदेश में हिंदी शिक्षण की समस्याएं (परिशिष्ट)

(8) आंध्र प्रदेश में हिंदी शिक्षण की समस्याएं

(9) हिंदी एवं मलयालम में आगत संस्कृत शब्दावली (व्यतिरे...

 

                        *****    3. अनुप्रयुक्त/प्रयोजनमूलक हिंदी *****
(1) कार्यालयीन हिंदी : ठाकुर दास
(2) प्रयोजनमूलक हिंदी : कैलाशचंद्र भाटिया 

(3) प्रयोजनमूलक हिंदी (डॉ. राजनाथ भट्ट)

(4) प्रयोजनमूलक हिंदी : सिद्धांत और प्रयोग : दंगल झाल्टे


                           *****   4. 
शब्दकोश   *****                       
(1) वर्धा हिंदी शब्दकोश : MGAHV
(2) समाज-विज्ञान विश्वकोश : MGAHV 
(3) भारतीय संस्कृति कोश : लीलाधर शर्मा 'पर्वतीय'
(4) उर्दू-हिंदी शब्दकोश : मद्दाह
(5) बृहत् पारिभाषिक शब्द संग्रह-1 (विज्ञान)
(6) भोजपुरी-हिंदी-अंग्रेजी शब्दकोश (वर्धा)
(7) भोजपुरी-हिंदी-इंग्लिश लोक शब्दकोश (आगरा)
(8) 
वर्धा हिंदी शब्दकोश (संशोधित संस्करण)      2019
(9) भाषाविज्ञान परिभाषा कोश (खंड-1&2)

(10) अवधी कोश

 हिंदी-तुर्की शब्दकोश

……..

मानक हिंदी वर्तनी 2016

UGC CARE LIST : HINDI

 


Sunday, November 12, 2017

परिचयात्मक जापानी भाषा


परिचयात्मक जापानी भाषा
(Introductory Japanese Language)





धनजी प्रसाद
सहायक प्रोफेसर, भाषा प्रौद्योगिकी



(2014)
प्रिय साहित्य सदन, सोनिया विहार
नई दिल्ली 110094
ISBN- 978-93-82699-05-7




भूमिका
भाषा हमारे आपसी संप्रेषण और दैनिक व्यवहर का माध्यम है। हमारे सभी प्रकार के कार्यों में भाषा की भूमिका किसी--किसी रूप में रहती है। अत: मानव जीवन में भाषा के बिना कुछ भी करने को सोच पाना संभव नहीं है। प्रत्येक व्यक्ति अपनी मातृभाषा में भाषिक व्यवहार करता है। किंतु आज ज्ञान-विज्ञान और तकनीकी साधनों के विकास के कारण एक स्थान से दूसरे स्थान पर जाना और कार्य करना सामान्य बात हो गई है। ऐसी स्थिति में आज के इस वैश्विक दौर में जब एक से अधिक देशों, संस्कृतियों एवं भाषाओं के लोग आपस में मिल रहे हैं तो एक से अधिक भाषाओं के ज्ञान की आवश्यकता स्वत: ही महसूस होने लगती है।
किसी भी नई भाषा को सीखना एक कठिन कार्य होता है। यह कार्य और कठिन तब हो जाता है जब वह भाषा विदेशी भाषा हो और अध्येता से उसका किसी प्रकार का संबंध हो। अत: इस प्रकार की भाषा को सीखना अपने आप में चुनौतीपूर्ण कार्य होता है। जब हम किसी नई भाषा को सीखने चलते हैं तो हमारी मातृभाषा भी व्याघात उत्पन्न करती है। अत: ठीक प्रकार से सीखने के लिए अध्यापक के अलावा  हमें सरल पाठ्य-पुस्तकों, ऑडियो-विजुअल सामग्री आदि की आवश्यकता होती है। प्रस्तुत पुस्तक इसी आवश्यकता को देखते हुए जापानी के लिए तैयार की गई है।
भारतीय परिप्रेक्ष्य में जापानी भाषा एक विदेशी भाषा है। हिंदी माध्यम से जापानी सीखने-सीखाने की बात करें तो इस कार्य हेतु सरल पुस्तकों का सामान्यत: अभाव ही दिखाई पड़ता है। वैसे भी हिंदी के सापेक्ष जापानी की व्यवस्था में अनेक जटिलताएँ दिखाई पड़ती हैं। अत: भिन्न-भिन्न दृष्टि से जापानी में पाए जाने वाले शब्दों उनके विविध वर्गों, शब्द रूपों एवं प्रयोगों से यह पुस्तक परिचय कराती है। जापानी में हिरागाना, काताकाना और कांजी तीन लिपियों का प्रयोग किया जाता है। इस पुस्तक में शब्दों को कांजी तथा हिरागाना (या काताकाना) में दिया गया है जिससे कि पाठक कांजी रूप के साथ-साथ हिरागाना उच्चारण को भी समझ सके।
इस पुस्तक में मुख्य रूप से विविध शब्द-वर्गों यथा- संज्ञा, सर्वनाम, विशेषण, क्रिया, क्रियाविशेषण के अंतर्गत आने वाले शब्दों एवं उनके वाक्यात्मक प्रयोगों को सरल से सरल विधि द्वारा समझाया गया है। इसे भाषा शिक्षण के दृष्टिकोण से देखें तो कह सकते हैं कि इसमें मुख्य रूप से व्याकरण विधि का प्रयोग किया गया है। वैसे तो सभी प्रकार शब्दों और उनके प्रयोग को समझाने के लिए उदाहरण वाक्य दिए गए हैं फिर भी एक अध्याय में जापानी भाषा में बातचीत के आधारभूत वाक्यों का संग्रह है जिन्हें जानना जापानी सीखने के लिए आवश्यक है। इसके अलावा अंतिम अध्याय जापानी संस्कृति एवं साहित्य का परिचय देता है।
यह पुस्तक जापानी सीखने के लिए हिंदी और अँग्रेज़ी में उपलब्ध सरल पुस्तकों एवं अन्य सामग्री के अध्ययन पर आधारित है। साथ ही इसमें जापानी शिक्षण से जुड़ी ऑनलाइन वेबसाइटों पर उपलब्ध सामग्री का भी अवलोकन एवं उपयुक्त सामग्री का समावेश किया गया है। वैसे तो यह छोटी से पुस्तक जापानी का परिचयात्मक ज्ञान ही उपलब्ध कराती है किंतु फिर भी स्वरूप एवं लेखन शैली की विशिष्टता प्रदान करते हुए इसे आकर्षक बनाया गया है। मुझे आशा है कि आपको यह पुस्तक अवश्य पसंद आएगी।
जापानी भाषा को日本語 (निहोंगो) कहते हैं जिसमें日本 (निहों) का अर्थ है: जापान और (गो) का अर्थ है: भाषा। अर्थात्日本語 (निहोंगो) का अर्थ हुआ: जापान की भाषा। इसकी भाषिक स्थिति को यदि भौगोलिक दृष्टि से देखें तो इसे इस प्रकार से प्रदर्शित किया जा सकता है:
(विकिपेडिया से साभार)
अत: इसमें वैविध्य भी है। प्रस्तुत पुस्तक बहुप्रचलित रूप से प्रचलित कराएगी।
प्रस्तुत पुस्तक के लेखन में कुछ विशिष्ट लोगों की महत्वपूर्ण भूमिका रही है। इस क्रम में मैं अपने जापानी भाषा के गुरु श्री आकियो हागा के प्रति कृतज्ञता ज्ञापित करता हूँ जिन्होंने दो वर्षों तक हमें जापानी सिखाई। इसके साथ जापान की ही एरी किकुची के प्रति मैं आभार व्यक्त करता हूँ जिन्होंने जापानी में लिखी गई सामग्री को देखा और अनेक महत्वपूर्ण सुझाव दिए। साथ-ही प्रस्तुत पुस्तक के लेखन हेतु प्रेरित करने के लिए मैं अपनी सहपाठी नूरिश परवीन को दिल से धन्यवाद देता हूँ। इसके अलावा अपने अन्य सहपाठियों शिल्पा, अमित्रा, रिंजू एवं सुहास का भी आभारी हूँ। मैं पुस्तक के लेखन हेतु परिवेश प्रदान करने के लिए .गां.अं.हिं.वि.वि. के कुलपति एवं  सभी शिक्षकों के प्रति कृतज्ञता ज्ञापित करता हूँ।
यह पुस्तक जापानी में दो वर्ष का पाठ्यक्रम पूर्ण करने के उपरांत लिखी गई है। अत: त्रुटियाँ होना स्वाभाविक है। इस संदर्भ में सुधि पाठकों के विचार आमंत्रित हैं।



धनजी प्रसाद



अनुक्रमणिका

अध्याय                                         पृ. सं.
1. जापानी भाषा का परिचय
2. हिरागाना और काताकाना लिपियाँ
2.1 हिरागाना (ひらがな) लिपि
2.2 काताकाना (カタカナ) लिपि
3. जापानी भाषा में गिनती
3.1 आरंभिक दस अंक
3.2 संपूर्ण गिनती
3.3 अन्य संख्याएँ
3.4 जापानी में गणना करना
4. जापानी में बातचीत के आधारभूत वाक्य
5. जापानी में संज्ञा
5.1 शरीर के अंगों के नाम
5.2 फलों एवं सब्जियों के नाम
5.3 पशुओं के नाम
5.4 पक्षियों के नाम
5.5 संबंधियों (Relatives) के नाम
6. जापानी में सर्वनाम
6.1 जापानी में विविध सर्वनाम
6.2 पुरुषवाचक सर्वनामों के वाक्यात्मक प्रयोग
6.3 संकेतवाचक सर्वनाम
6.4 प्रश्नवाचक, अनिश्चयवाचक रूप
6.5 सर्वनामों के साथ प्रयुक्त प्रत्यय
7. जापानी में विशेषण
7.1 इकारांत विशेषण
7.2 नाकारांत विशेषण
7.3 जापानी विशेषणों में रूप परिवर्तन
7.4 जापानी विशेषणों का क्रिया-विशेषण प्रयोग
8. जापानी में क्रिया
8.1 धातुरूप      
8.2 क्रियाओं के विविध रूप
9. जापानी में क्रियाविशेषण
9.1 सामान्य जापानी क्रियाविशेषण
9.2 विशेषणों से निर्मित क्रियाविशेषण
10. जापानी में दिन और महीने
10.1 दिनों के नाम 
10.2 महीनों के नाम