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Sunday, November 12, 2017

डिजिटल हिंदी : स्वरूप एवं संभावनाएँ

डिजिटल हिंदी : स्वरूप एवं संभावनाएँ
(Annals of Multi-Disciplinary Research, ISSN 2249–8893, Volume VI, Issue 4, December, 2016, पृ. 336-340)
डॉ. धनजी प्रसाद
सहा. प्रो., भाषा प्रौद्योगिकी, म.गां.अं.हिं.वि., वर्धा
ई-मेल : dhpr.langtech@mgail.com
एक अनुमान के अनुसार “यदि इसी तरह पेड़ काटे जाते रहे और नए पेड़ नहीं लगाए गए तो अगले 10-15 वर्षों के बाद हमारे पास पढ़ने-लिखने के लिए कागज नहीं होगा।” यदि यह अनुमान सही हो जाए तो हमारी अगली पीढ़ी की पढ़ाई-लिखाई कैसे होगी? यदि ऐसा कुछ नहीं भी हुआ तो जिस गति से कंप्यूटर और सूचना प्रौद्योगिकी का विकास हो रहा है, उसमें 10-15 वर्षों के बाद हमारे पढ़ने-लिखने की व्यवस्था में कंप्यूटर का क्या योगदान होगा? ऐसे कुछ प्रश्न हैं जो वर्तमान शिक्षा प्रणाली में डिजिटल माध्यमों के जोड़े जाने हेतु हमें प्रेरित करते हैं। ऐसी स्थिति में डिजिटल शिक्षण’ (Digital Teaching) और डिजिटल अधिगम (Digital Learning) जैसी प्रणालियाँ आज चल पड़ी है। भविष्य में उन्हीं समाजों और उन्हीं भाषाओं का अस्तित्व रहेगा जो डिजिटल माध्यमों से अपने-आप को जोड़ सकेंगे। इन्हीं सब बातों को देखते हुए हिंदी को वर्तमान ग्लोबल जगत में मजबूती से स्थापित करने के लिए यह आवश्यक है कि डिजिटल हिंदी पर भी हिंदी के शोधकर्ताओं और विद्वानों द्वारा कार्य किया जाए।
डिजिटल हिंदी एक व्यापक संकल्पना है। इसमें मुख्य रूप से चार बातों को रखा जा सकता है- डिजिटल प्लेटफॉर्म पर हिंदी सामग्री का विकास, डिजिटल कार्यक्रमों या सॉफ्टवेयरों द्वारा हिंदी शिक्षण, डिजिटल हिंदी माध्यम से अन्य विषयों का शिक्षण और हिंदी के भाषिक सॉफ्टवेयरों का विकास। प्रस्तुत शोध-आलेख में इन पर संक्षेप में चर्चा की जा रही है।
1.0 डिजिटल प्लेटफॉर्म पर हिंदी सामग्री का विकास
यह डिजिटल हिंदी का प्राथमिक स्तर या पक्ष है। इसका संबंध किसी भाषा को डिजिटल करने करने से न होकर डिजिटल स्तर पर संपन्न करने से है, जिसका तात्पर्य है डिजिटल रूप में अर्थात कंप्यूटर में उस भाषा की सामग्री का अधिक-से-अधिक विकास करना। यह दो रूपों में किया जा सकता है- ऑनलाइन और ऑफलाइन। वैसे सामग्री ऑनलाइन हो तो उसे डाउनलोड करके ऑफलाइन प्रयोग किया जा सकता है। इसी प्रकार सी.डी. या डी.वी.डी. आदि माध्यमों से ऑफलाइन सामग्री उपलब्ध कराई जा सकती है। आज इस दिशा में हिंदी के लिए अनेकानेक कार्य हो रहे हैं। ये कार्य ऑनलाइन भी पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध हैं जिनका विश्व में कहीं भी और कभी भी उपयोग किया जा सकता है। ऑनलाइन ये वेबसाइट, ब्लॉग, पोर्टल, कोश आदि किसी भी रूप में हो सकते हैं। इसी यह पाठ, चित्र, ऑडियो, विडियो आदि में से किसी भी प्रकार की सामग्री हो सकती है।
इस दृष्टि से हिंदी बहुत अधिक सामग्री उपलब्ध है जो दिनों-दिन बढ़ती जा रही है। उदाहरण के लिए महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय, वर्धा के http://www.hindisamay.com/ को देखा जा सकता है, जिसमें हिंदी के प्रमुख साहित्यकारों की रचनाओं की सामग्री लगभग पाँच लाख पृष्ठों में उपलब्ध है और आगे भी कार्य निरंतर जारी है। हिंदी के विविध रचनाकारों को इसमें वर्णानुक्रम में उनके नाम के अनुसार खोजा जा सकता है, अथवा हिंदी साहित्य के विविध क्षेत्रों के लिए दिए गए टैबों को क्लिक करके भी आवश्यक सामग्री प्राप्त की जा सकती है-

हिंदी माध्यम से अनेक विषयों पर सूचनाएँ एवं ज्ञान प्राप्त करने के लिए हिंदी विकिपीडिया भी एक उत्तम स्रोत है-
  

इसी प्रकार http://www.shabdkosh.com/, http://bharatdiscovery.org/india/मुखपृष्ठ, http://kavitakosh.org/kk/कविता_कोश_मुखपृष्ठ, http://www.hindikunj.com/, http://jkhealthworld. com/hindi/ और हिंदी शब्द-तंत्र (Hindi WordNet) आदि अनेक स्रोत हैं जहाँ से हिंदी माध्यम से विविध प्रकार की सामग्री को हिंदी में प्राप्त किया जा सकता है।
2.0 डिजिटल कार्यक्रमों या सॉफ्टवेयरों द्वारा हिंदी शिक्षण
हिंदी भारत की राजभाषा होने के साथ-साथ हमारी संपर्क भाषा भी है। यह विश्वभाषा बनने की ओर भी प्रयत्नशील है। आज देश-विदेश में हिंदी सीखने वालों की भरमार है। उन सभी को उनकी आवश्यकता के अनुसार शिक्षण सामग्री उपलब्ध कराना हिंदी के शिक्षण प्रतिष्ठानों की जिम्मेदारी है। अभी तक यह सामग्री पाठ्य-पुस्तकों या ई-टेक्स्ट के रूप में उपलब्ध हो सकी है। डिजिटल हिंदी के अंतर्गत हिंदी को एक भाषा के रूप में सीखने वाले सभी विद्यार्थियों और अध्येताओं को सॉफ्टवेयर और प्रोग्राम के रूप में हिंदी की भाषिक सामग्री उपलब्ध कराई जाए। इस कार्यक्रम को डिजिटल हिंदी शिक्षण नाम दिया जा सकता है। इसे दो आधारों पर देखा जा सकता है-
2.1 भाषाक्षेत्र के आधार पर : इस दृष्टि से डिजिटल हिंदी शिक्षण के तीन प्रकार किए जा सकते हैं-
हिंदीभाषी क्षेत्र : हिंदीभाषी क्षेत्रों में हिंदी शिक्षण के लिए एकभाषिक सॉफ्टवेयर प्रयोग में लाए जा सकते हैं। इन सॉफ्टवेयरों में हिंदी शिक्षण की सामग्री भी होगी और माध्यम भी।
हिंदीतर भारतीय भाषा क्षेत्र : इसका तात्पर्य उन भारतीय क्षेत्रों से है जिनकी मातृभाषा या प्रथम भाषा हिंदी नहीं है। इन क्षेत्रों में शिक्षण की सामग्री तो हिंदी होगी, किंतु माध्यम संबंधित क्षेत्र की मातृभाषा या प्रथम भाषा होगी। अतः शिक्षण संबंधी निर्देश और अन्य बातें विद्यार्थियों की अपनी भाषा में होंगी, शिक्षण सामग्री हिंदी होगी। आवश्यकतानुसार उसे भी द्विभाषी किया जा सकेगा।
अन्य देश : भारत के बाहर जिस देश के भी लोग हिंदी सीखते हैं या सीखना चाहते हैं, उन्हें उनकी भाषा में हिंदी शिक्षण की सामग्री सॉफ्टवेयर के रूप में उपलब्ध कराई जा सकती है। अतः इसमें माध्यम के रूप में विदेशी भाषाएँ रहेंगी।
2.2 शैक्षिक स्तर के आधार पर : इस दृष्टि से भी डिजिटल हिंदी शिक्षण के तीन प्रकार किए जा सकते हैं-
प्राथमिक शिक्षा : प्राथमिक विद्यालयों में कक्षा-1 से कक्षा-5 तक किया जाने वाला शिक्षण इसके अंतर्गत आएगा। प्राथमिक शिक्षा के स्तर पर ही डिजिटल उपकरणों का प्रयोग करने की पर्याप्त आवश्यकता रहती है, क्योंकि ऑडियो-विजुअल सामग्री और एनिमेशन आदि के माध्यम से शिक्षण को अधिक प्रभावशाली तथा मनोरंजक बनाया जा सकता है।
माध्यमिक शिक्षा : माध्यमिक शिक्षा से तात्पर्य कक्षा-6 से कक्षा-8 तक के शिक्षण से है। इस स्तर पर भी हिंदी की सामग्री को डिजिटल रूप में प्रस्तुत कर सॉफ्टवेयर द्वारा शिक्षण किया जा सकता है।
उच्च शिक्षा : इसमें उच्च माध्यमिक शिक्षा और उच्च शिक्षा दोनों समाहित है। जैसे-जैसे हम उच्च शिक्षा की ओर बढ़ते हैं, वैसे-वैसे विश्लेषणात्मक सामग्री की आवश्यकता बढ़ने लगती है। अतः इस स्तर पर विश्लेषणात्मक और गंभीर सामग्री के निर्माण की आवश्यकता होगी। इसके अलावा उच्च शिक्षा में विद्यार्थी स्वतंत्र रूप से सोचता है, ऐसी स्थिति में उसके अंदर कुछ बिल्कुल नए प्रश्न उठ सकते हैं। ऑनलाइन प्रश्नोत्तर का माध्यम भी होना चाहिए, जिससे विद्यार्थी विभिन्न विद्वानों और विषय-विशेषज्ञों के साथ अपने प्रश्नों को साझा करके समुचित उत्तर प्राप्त कर सकें।
3.0 डिजिटल हिंदी के माध्यम से अन्य विषयों का शिक्षण
डिजिटल हिंदी में केवल डिजिटल स्तर पर हिंदी का शिक्षण ही नहीं है, बल्कि हिंदी माध्यम में अन्य विषयों का शिक्षण भी इसमें सम्मिलित है। आरंभ में प्राथमिक स्तर पर एक सॉफ्टर्वेयर के अंतर्गत सभी विषयों को रखा जा सकता है। बाद में सामग्री बढ़ने के कारण सभी विषयों के अलग-अलग सॉफ्टवेयर बनाकर कक्षा आधारित पैक बनाए जा सकते हैं। उदाहरण के लिए डिजिटल हिंदी : 6 एक पैक हो सकता है, जिसमें कक्षा-6 के लिए आवश्यक और पढ़ाए जाने वाले सभी विषयों के अलग-अलग सॉफ्टवेयर एक साथ दिए गए हों। इसी प्रकार अन्य कक्षाओं हेतु सामग्री के पैक भी बनाए जा सकते हैं।
4.0 हिंदी के भाषिक सॉफ्टवेयरों का विकास
यह हिंदी को डिजिटल स्तर पर ले जाने की उच्चतम अवस्था है। इसका संबंध हिंदी के लिए और हिंदी से संबंधित सभी प्रकार के सॉफ्टवेयरों के विकास से है। ये सॉफ़्टवेयर भी कई प्रकार हैं। इन्हें निम्नलिखित उपशीर्षकों के अंतर्गत समझा जा सकता है-
4.1 टंकण और फॉन्ट : इनका मुख्य संबंध कंप्यूटर पर हिंदी माध्यम से टंकण करने और उसका किसी भी कंप्यूटर पर प्रयोग करने से है। इससे संबंधित कुछ प्रमुख कार्य इस प्रकार हैं-
(क)     फॉन्ट डिजाइनिंग
(ख)     फॉन्ट परिवर्तन
(ग)       यूनिकोड तकनीक आदि।
4.2 शोधन : यहाँ शोधन से तात्पर्य है- किसी टंकित पाठ में आवश्यक सुधार करना। यह सुधार विराम-चिह्न, वर्तनी, मानक प्रयोग और व्याकरण आदि में होने वाली त्रुटियों के संबंध में हो सकता है। अतः इसके अंतर्गत निम्नलिखित कार्यों से जुड़े सॉफ्टवेयर आते हैं-
(क)  विराम चिह्न सामान्यीकरण संबंधी प्रणाली : ऐसे सॉफ्टवेयर जो विराम-चिह्न संबंधी त्रुटियों में सुधार करते हैं।
(ख)  वर्तनी परीक्षण प्रणाली/वर्तनी जाँचक : ऐसे सॉफ्टवेयर जो वर्तनी संबंधी त्रुटियों की पहचान करते हैं और सुझाव प्रस्तुत करते हैं।
(ग)    मानक प्रयोग संबंधी प्रणाली : किसी भाषा में लेखन में मानक और अमानक और प्रयोग होने की स्थिति में अमानक प्रयोगों को मानक में परिवर्तित करने वाले सॉफ्टवेयर इस वर्ग में आएँगे।
(घ)    व्याकरण परीक्षण प्रणाली/ व्याकरण जाँचक : व्याकरण संबंधी त्रुटियाँ होने पर उनका परीक्षण कर सुधार प्रस्तुत करने वाले सॉफ्टवेयर इसके अंतर्गत आते हैं।
4.3 हिंदी का भाषिक अनुप्रयोग : इसका संबंध हिंदी के भाषायी ज्ञान को मशीन में स्थापित करने से है, जहाँ हिंदी के सभी भाषिक स्तरों- ध्वनि, शब्द, पदबंध, वाक्य से संबंधित विश्लेषण और प्रजनन से संबंधित नियम दिए जाते हैं। इसके अंतर्गत निम्नलिखित प्रकार के सॉफ्टवेयर आते हैं-

(क)  इलेक्ट्रानिक शब्दकोश (Electronic Lexicon) : इसमें मशीन में और मशीन के लिए बनाए गए शब्दकोश (lexicon) आते हैं। ये शब्दकोश एकभाषी, द्विभाषी अथवा बहुभाषी हो सकते हैं।
(ख)  रूप विश्लेषक (Morph Generator) : ऐसे सॉफ्टवेयर जो पदों (वाक्य में प्रयुक्त होने वाले शब्दों) का रूपिमिक विश्लेषण करते हैं।
(ग)    रूप प्रजनक (Morph Analyzer) : ऐसे सॉफ्टवेयर जो शब्दों से पदों (वाक्य में प्रयुक्त होने वाले रूपों) का प्रजनन करते हैं।
(घ)    टैगर (Tagger) : ऐसे सॉफ्टवेयर जो किसी पाठ के प्रत्येक शब्द के साथ उसके टैग से संबंधित सूचनाएँ जोड़ देते हैं। ये दो प्रकार के होते हैं- संदर्भ-मुक्त और संदर्भ-युक्त।
(ङ)   टोकनाइजर (Tockenizer) : यह प्रत्येक पद (शब्द) या पद (शब्द) स्तरीय इकाई को चिह्नित करने की प्रणाली है।
(च)  पदबंध चिह्नक (Phrase Marker) : किसी वाक्य के पदबंधों को उनके संरचनत्मक और व्याकरणिक प्रकार्य के आधार पर चिह्नित करने वाले सॉफ्टवेयर इसके अंतर्गत आते हैं।
(छ)   चंकर (Chuncker) : यह भी एक प्रकार्य को संपन्न करने वाले शब्द/पद समूहों को चिह्नित करने वाली प्रणाली है।
(ज)   पार्सर (Parser) : किसी वाक्य के सभी घटकों को उनकी रचना के अनुसार विश्लेषित करने वाली प्रणाली पार्सर है, जो सभी इकाइयों के बीच रैखिक और अधिक्रमिक संबंधों को व्यक्त करती है।
4.4 कार्पस संबंधी प्रणालियाँ : आज भाषा संबंधी संगणकीय उपकरणों के निर्माण में कार्पस का विशेष महत्व है। अतः कार्पस निर्माण, अनुरक्षण (maintenance) एवं कार्पस आधारित संसाधन हेतु प्रयोग में आने वाले सॉफ्टवेयर इसके अंतर्गत आएँगे। उदाहरण के लिए इस प्रकार के कुछ प्रमुख सॉफ्टवेयर शब्द आवृत्ति गणक (Word Frequency Counter), संदर्भ में शब्द प्राप्तकर्ता (KeyWord in Context Finder), कॉनकॉर्डेंस प्रोग्राम, कार्पस एलाइनर, शब्द-गुच्छ प्राप्तकर्ता (Word Clusters Finder) आदि हैं।
5. डिजिटल हिंदी : संभावनाएँ
वास्तव में डिजिटल हिंदी एक बहुत ही व्यापक संकल्पना है जिसका उद्देश्य डिजिटल प्लेटफॉर्म पर हर तरह से हिंदी को अनुप्रयोग और संसाधन हेतु सक्षम बनाना है। भाषावैज्ञानिक दृष्टि से हिंदी का यदि अर्थ और प्रोक्ति स्तर पर भी विश्लेषण कर लिया जाता है, तो मशीन को हिंदी में तर्क करने और निर्णय लेने में भी संक्षम बनाया जा सकेगा। यदि संभव हो पाता है तो हिंदी माध्यम के रोबोट भी विकसित किए जा सकेंगे। यद्यपि इसके लिए शब्दकोशीय स्तर पर एक संरचित निरूपण की आवश्यकता है, जो अभी तक नहीं हो सका है। किंतु अगले 5-10 वर्षों में निश्चय ही इस दिशा में कोई-न-कोई उल्लेखनीय कार्य आ जाएगा।
इस प्रकार संक्षेप में, डिजिटल हिंदी के अंतर्गत कंप्यूटर में हिंदी माध्यम से और हिंदी से संबंधित डाटा को उपलब्ध कराने से लेकर मशीन को हिंदी में तर्क करने और निर्णय लेने में सक्षम बनाने तक के सभी कार्य आ जाते हैं। ऑनलाइन और ऑफलाइन सामग्री उपलब्ध कराना इस दृष्टि से प्राथमिक स्तर का कार्य है। आज यह कार्य पर्याप्त मात्रा में हो रहा है। सॉफ्टवेयर द्वारा हिंदी शिक्षण को डिजिटल हिंदी शिक्षण नाम दिया जा सकता है। अभी इस दिशा में काम आरंभ हुए हैं। इसी प्रकार भाषिक सॉफ्टवेयरों के निर्माण का कार्य भी विविध स्तरों पर चल रहा है। संरचित निरूपण और तार्किक संजाल निर्माण के क्षेत्र में अभी बहुत अधिक कार्य किए जाने की संभावना है।
संदर्भ-
1. भाषाविज्ञान का सैद्धांतिक, अनुप्रयुक्त एवं तकनीकी पक्ष (2011)
2. सी.शार्प प्रोग्रामिंग एवं हिंदी के भाषिक टूल्स (2012)
3. कार्पस भाषाविज्ञान (2014)
4. परिचयात्मक जापानी भाषा (2014)

5. हिंदी का कंप्यूटेशनल व्याकरण (शीघ्र प्रकाश्य)

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