पाठ विश्लेषण
विशेष व्याख्यान
प्रो. उमाशंकर उपाध्याय
Text linguistics : Bugrain andersalar
पाठ विवेचन का भी प्रोक्ति की तरह सिद्धांत विकसित नहीं हो सका है।
पाठ और प्रोक्ति
पाठ एक भौतिक उत्पाद है। प्रोक्ति dynamic प्रक्रिया है।
पाठ बाह्य संरचना है। प्रोक्ति गहन
पाठ अमूर्त है प्रोक्ति उसका मूर्तन है।
पाठ लिखित-प्रोक्ति वाचिक : लेकिन ऐसा नहीं है।
एकालाप-वार्तालाप : लेकिन ऐसा नहीं है।
लघु- दीर्घ।: लेकिन ऐसा नहीं है।
पाठ क्या है?
क्या पाठ की कोई संरचना होती है?
क्या कुछ वाक्यों का समुच्चय पाठ है?
एक paragraph के वाक्यों का क्रम बदल दें तो?
पाठ के 7 प्रतिमान (standards of texuality) हैं-
1. संसक्ति (cohesion) : पाठ संसक्त होना चाहिए। वाक्य एक दूसरे से संबद्ध होने चाहिए।
क. कोशीय युक्तियाँ-
* पुनरुक्ति : राजा था। राजा की तीन रानियाँ थीं। तीनों एक दूसरे से ईर्ष्या करती थीं।....
* पर्याय
* अधिनाम
*
ख. व्याकरणिक युक्तियाँ-
* प्रतिस्थापन - अन्वादेश, Catephora. प्रतिस्थापित शब्द मूल शब्द की अन्वितिपरक विशेषताओं को ग्रहण करता है।
* लोप : मैंने चाय पी और उसने कॉफी।
2. संगति (coherence) : पाठ के वाक्यों के बीच तर्कसंगत संबंध होना चाहिए।
उपरोक्त दोनों पाठ केंद्रित प्रतिमान हैं। संसक्ति form से संबंधित है और संगति content से संबंधित है।
3. सोदेश्यता (intentionality) : यह वक्ता/लेखक केंद्रित प्रतिमान है। वह पाठ को संसक्त और संगत मानकर चलता है।
4. स्वीकार्यता (acceptability) : श्रोता /पाठक का पक्ष है। उसे भी स्वीकार्य होना चाहिए।
....।......
. कई बार पाठ में संसक्ति और संगति दिखाई नहीं पड़ती। पाठक को खोजना पड़ता है। जैसे- कबीर की उलटबसियाँ।
Processing effort कम होगा तो पाठ ऊबाऊ होगा। बहुत अधिक हो तो कठिन हो जाएगा। इसलिए मध्य पर होना चाहिए।
5. सूचनात्मकता (informativity) - पाठ में सूचना होनी चाहिए। पाठक/श्रोता के लिए कुछ नया होना चाहिए।
Information science- सूचना की values अलग अलग होती हैं। best communication में भी 80% ही communicate होता है।
अज्ञात या unexpected तत्व प्राप्त होने में ही सूचना की value है।
Upgradation of information
Degradation of information
6. स्थित्यात्मकता (situationality) : प्रत्येक पाठ किसी स्थिति (situation) से जुड़ा होता है।
दो भाग-
स्थिति का आकलन - स्थिति कैसी है?
स्थिति का प्रबंधन - अब क्या किया जाए?
कई बार रचनाकार आकलन करके छोड़ देता है, हल नहीं प्रस्तुत करता है। किंतु वह कम से कम जागरूक तो करता है।
7. अंतरपाठीयता (intertexuality) - किसी भी पाठ का लेखन आकस्मिक नहीं होता। वह ऐतिहासिक परंपरा और समकालीन साहित्य के बीच खड़ा होता है और उनसे संबद्ध होता है -
Form के स्तर पर प्रभाव
Content के स्तर पर प्रभाव
उद्धरण
Style के स्तर पर
विशेष व्याख्यान
प्रो. उमाशंकर उपाध्याय
Text linguistics : Bugrain andersalar
पाठ विवेचन का भी प्रोक्ति की तरह सिद्धांत विकसित नहीं हो सका है।
पाठ और प्रोक्ति
पाठ एक भौतिक उत्पाद है। प्रोक्ति dynamic प्रक्रिया है।
पाठ बाह्य संरचना है। प्रोक्ति गहन
पाठ अमूर्त है प्रोक्ति उसका मूर्तन है।
पाठ लिखित-प्रोक्ति वाचिक : लेकिन ऐसा नहीं है।
एकालाप-वार्तालाप : लेकिन ऐसा नहीं है।
लघु- दीर्घ।: लेकिन ऐसा नहीं है।
पाठ क्या है?
क्या पाठ की कोई संरचना होती है?
क्या कुछ वाक्यों का समुच्चय पाठ है?
एक paragraph के वाक्यों का क्रम बदल दें तो?
पाठ के 7 प्रतिमान (standards of texuality) हैं-
1. संसक्ति (cohesion) : पाठ संसक्त होना चाहिए। वाक्य एक दूसरे से संबद्ध होने चाहिए।
क. कोशीय युक्तियाँ-
* पुनरुक्ति : राजा था। राजा की तीन रानियाँ थीं। तीनों एक दूसरे से ईर्ष्या करती थीं।....
* पर्याय
* अधिनाम
*
ख. व्याकरणिक युक्तियाँ-
* प्रतिस्थापन - अन्वादेश, Catephora. प्रतिस्थापित शब्द मूल शब्द की अन्वितिपरक विशेषताओं को ग्रहण करता है।
* लोप : मैंने चाय पी और उसने कॉफी।
2. संगति (coherence) : पाठ के वाक्यों के बीच तर्कसंगत संबंध होना चाहिए।
उपरोक्त दोनों पाठ केंद्रित प्रतिमान हैं। संसक्ति form से संबंधित है और संगति content से संबंधित है।
3. सोदेश्यता (intentionality) : यह वक्ता/लेखक केंद्रित प्रतिमान है। वह पाठ को संसक्त और संगत मानकर चलता है।
4. स्वीकार्यता (acceptability) : श्रोता /पाठक का पक्ष है। उसे भी स्वीकार्य होना चाहिए।
....।......
. कई बार पाठ में संसक्ति और संगति दिखाई नहीं पड़ती। पाठक को खोजना पड़ता है। जैसे- कबीर की उलटबसियाँ।
Processing effort कम होगा तो पाठ ऊबाऊ होगा। बहुत अधिक हो तो कठिन हो जाएगा। इसलिए मध्य पर होना चाहिए।
5. सूचनात्मकता (informativity) - पाठ में सूचना होनी चाहिए। पाठक/श्रोता के लिए कुछ नया होना चाहिए।
Information science- सूचना की values अलग अलग होती हैं। best communication में भी 80% ही communicate होता है।
अज्ञात या unexpected तत्व प्राप्त होने में ही सूचना की value है।
Upgradation of information
Degradation of information
6. स्थित्यात्मकता (situationality) : प्रत्येक पाठ किसी स्थिति (situation) से जुड़ा होता है।
दो भाग-
स्थिति का आकलन - स्थिति कैसी है?
स्थिति का प्रबंधन - अब क्या किया जाए?
कई बार रचनाकार आकलन करके छोड़ देता है, हल नहीं प्रस्तुत करता है। किंतु वह कम से कम जागरूक तो करता है।
7. अंतरपाठीयता (intertexuality) - किसी भी पाठ का लेखन आकस्मिक नहीं होता। वह ऐतिहासिक परंपरा और समकालीन साहित्य के बीच खड़ा होता है और उनसे संबद्ध होता है -
Form के स्तर पर प्रभाव
Content के स्तर पर प्रभाव
उद्धरण
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