शोध प्रविधि : भाषा प्रौद्योगिकी
विशेष व्याख्यान
प्रो. उमाशंकर उपाध्याय
किसी भी प्रकार के शोध के लिए एक प्रविधि आवश्यक है।
सबके लिए।
शोध के विषय और discipline के अनुसार प्रविधियों में कुछ परिवर्तन करना पड़ता है। विषय की प्रकृति के अनुरूप शोध प्रविधि को ढालना आवश्यक है।
हमारे लिए भाषाविज्ञान और भाषा प्रौद्योगिकी।
इसके लिए-
John Lyons के अनुसार-
भाषा संबंधी शोध किसी भाषावैज्ञानिक सिद्धांत के परिप्रेक्ष्य में ही होना चाहिए।
हमारे यहाँ ऐसा बहुत कम हो पाता है। हमारा मुख्य रूप से संरचनावाद आधारित है, जो बहुत पुराना हो चुका है।
माडल का चुनाव एक चुनौती है। अपने विषय की प्रकृति के अनुरूप चुनें। (सैद्धांतिक शोध में) हर model की अपनी विशिष्टताएँ होती हैं।
शोध भाषा व्यवस्था को लेकर होना चाहिए, भाषा व्यवहार को लेकर नहीं।
अब धीरे धीरे व्यवहार पर भी शोध के लिए छूट। इसमें बहुत अधिक विभेद होते हैं। इस पर शोध करने पर भेदों को संदर्भ से जोड़कर प्रस्तुत किया जाना चाहिए। केवल नाम न गिनाएँ।
अनुप्रयुक्त क्षेत्रों में सैद्धांतिक के अलावा खुद उन क्षेत्रों के माडलों को भी लेना होगा। जैसे-
अनुवाद है तो अनुवाद के सिद्धांत। समतुल्यता या प्रभावसमता।
शैलीविज्ञान में भी कई पद्धतियाँ
वहाँ भी भाषा के प्रयोगों को संदर्भों के साथ जोड़ना पड़ता है।
भाषा शिक्षण में भी यही बात।
बोली के अध्ययन में फील्ड अध्ययन आवश्यक है। एक क्षेत्र विशेष में ही करें लेकिन प्रामाणिक रूप से करें।
प्राक्कल्पना बनाते समय भी सैद्धांतिक व्याकरण की पृष्ठभूमि आवश्यक है।
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