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Sunday, December 31, 2023

blog on ending 2023

 


Sunday, December 24, 2023

ऑनलाइन सॉफ्टवेयर सहायता विंडो (Online Software Help Window)

शीघ्र ही उपलब्ध होगा............... 
 धन्यवाद!

                               डॉ. धनजी प्रसाद 

सोशल मीडिया ट्रोल के प्रकार


स्रोत : दैनिक भास्कर

लिंक : https://www.bhaskar.com/women/news/negative-comments-and-suicide-on-social-media-132337586.html
 

Saturday, December 23, 2023

IIT Patna : Date Extended

 Dear All,

This is to inform you that the application date for the post of JRF/SRF/Lexicographer-RA-LO at IIT Patna under the various ongoing projects sponsored by Industries and government bodies has been extended till 25th December 2023. Interested candidates can apply with the essential documents on the respective email ids as mentioned in the advertisement.

Advt. Link: https://www.iitp.ac.in/index.php/2-uncategorised/1649-advertisement-no-r-d-692-690-605-556-cse-322-dated-08-12-2023-for-various-posts

Thursday, December 21, 2023

भाषा और बोली


 

भाषाओं का आकृतिमूलक वर्गीकरण


 

Friday, December 15, 2023

21वीं शताब्दी में हिंदी शिक्षण : विशेषांक (बहुवचन 2018)




 21वीं शताब्दी में हिंदी शिक्षण संबंधी उक्त लेखों को बहुवचन में पढ़ने के लिए इस लिंक पर जाएँ-

https://mgahv.in/Pdf/Publication/Bahuvachan_58_11_10_2018.Pdf

IIT Patna


 

Thursday, December 7, 2023

Semantics : Oxford, Cambridge



 

Tuesday, December 5, 2023

प्लेटो की नज़र में किसी समाज की सफलता का राज़ क्या है?

 

प्लेटो की नज़र में किसी समाज की सफलता का राज़ क्या है?

प्लेटो

इमेज स्रोत,GETTY IMAGES

  • Author,क्रिस्टिना जे. ओर्गाज़
  • पदनाम,बीबीसी न्यूज़ वर्ल्ड

प्लेटोनिक समाज में हरेक की भूमिका होती है, ग़ुलामों से लेकर आज़ाद लोगों तक, लेकिन समाज के चलने के लिए इसके ढांचे में वर्गीकरण होना चाहिए और हर चीज़ के ऊपर एक नेता होगा.

प्लेटो (418 ईसा पूर्व से 347 ईसा पूर्व), ग्रीक दार्शनिक और पश्चिमी दर्शन में सबसे रचनात्मक और प्रभावी विचारकों में से एक थे. उन्हें उनके राजनीतिक और नैतिक लेखों और लोकतांत्रिक संस्थानों के कट्टर आलोचक के तौर जाना जाता है.

प्लेटों के मुताबिक, आदर्श राज्य तीन वर्गों से मिलकर बना होता है. आर्थिक ढांचा व्यापारी वर्ग पर निर्भर करता है. सुरक्षा सैनिकों के कंधों पर होती है. और राजनीतिक नेतृत्व दार्शनिक राजाओं को ग्रहण करना चाहिए.

राजा ही बाकी लोगों के दिमागों को इतना तैयार करता है कि बाकी दूसरे वर्ग के लोग विचारों को समझने में सक्षम होते हैं और इसलिए जनता से उलट समझदारी भरा निर्णय लेते हैं.

नॉर्थवेस्टर्न यूनिवर्सिटी में क्लासिकल थॉट्स की प्रोफ़ेसर सारा मोनोसोन के अनुसार, “प्लेटो के विचार से उनमें तार्किक क्षमता होती है और उनके पास दुनिया में घटित होने वाली मुश्किल चीजों से निपटने का बहुत सारा अनुभव और ट्रेनिंग होती है. ये राजनीतिक सत्ता के सबसे मूल्यवान लोग हैं.”

प्लेटो के नज़रिए से, दार्शनिक राजा अपने लिए सत्ता नहीं चाहता है, ऐसे लोग ईमानदार और गंभीर होते हैं, इसीलिए वे भ्रष्टाचार से आकर्षित नहीं होते हैं और सबसे भरोसेमंद सत्ता प्रतिष्ठान बन जाते हैं.

एथेंस को ही लीजिए, डेमोक्रेसी (लोकतंत्र) का उद्गम (डेमोस- लोग, क्रेटीन- शासन) निर्विवाद नहीं था, लेकिन मोनोसोन का कहना है कि प्लेटो ख़ासकर सूचना-विहीन जनता के ख़तरे को लेकर चिंतित थे.

वो कहती हैं, “प्लेटो के लिए, बिना दार्शनिक शिक्षा के, नागरिकों के इस्तेमाल किए जाने और चालाक नेता द्वारा बहकाए जाने का ख़तरा होता है.”

“ये ख़तरा इतना बड़ा होता है कि प्लेटो ने सोचा कि जनता से ही तानाशाह उभरते हैं. वो ऐसा व्यक्ति होता है जो बाकी लोगों को भरोसा दिलाता है कि वही सारी समस्याओं का हल है, लेकिन इससे भी आगे, जब वो सत्ता में जम जाता है तो खुद अत्याचारी बन जाता है.”

प्लेटो

साथ सहअस्तित्व और इंसाफ़ की साझा खोज करन के काबिल बनाता है.

इन सभी को हासिल करने के लिए प्लेटो असली ज़िंदगी में इसे करने के तरीक़े सुझाते हैं. इनमें से एक है, बुज़ुर्ग लोगों के साथ रहना और अधिक परिपक्व लोगों का सम्मान करना.

एक लीडर को चुनना एक बहुत जोख़िम भरा काम है क्योंकि मतदाता बहुत आसानी से ग़ैरज़रूरी विशेषताओं से प्रभावित हो जाते हैं.

इमेज स्रोत,GETTY IMAGES

इमेज कैप्शन,

एक लीडर को चुनना एक बहुत जोख़िम भरा काम है क्योंकि मतदाता बहुत आसानी से ग़ैरज़रूरी विशेषताओं से प्रभावित हो जाते हैं.

प्लेटो ऐसी व्यावहारिक शिक्षा के बारे में भी बात करते हैं जो कला, संगीत और नृत्य को निखारे. इस तरह के विषयों का पुरातन ग्रीस में बहुत महत्व होता था.

387 ईसा पूर्व प्लेटो ने एथेंस में एक एकेडमी की स्थापना की, जिसे पहली यूरोपीय यूनिवर्सिटी भी माना जाता है.

इसका पाठ्यक्रम बहुत विस्तृत था जिसमें खगोलशास्त्र, जीव विज्ञान, गणित, राजनीतिक सिद्धांत और दर्शन शामिल था. अरस्तू उनके सबसे प्रतिभावान छात्र थे.

असल में, प्लेटो की आदर्श शिक्षा प्रणाली सबसे पहले और सबसे महत्वपूर्ण, दार्शनिक राजा तैयार करने के लिए बनाई गई थी.

पूरा पढ़ने के लिए इस लिंक पर जाएँ-

https://www.bbc.com/hindi/articles/crgpj1n3l6yo


लघुत्तम युग्म (Minimal Pair)

 लघुत्तम युग्म (Minimal Pair)

इसका संबंध स्वनिमों (Phonemes) और संस्वनों (Allophones) की पहचान से है। जब किसी भाषा की दो ध्वनियों के बीच हमें यह देखना होता है कि वे ध्वनियाँ दो अलग-अलग स्वनिम हैं या एक ही स्वनिम के संस्वन हैं, तो इसके लिए हम लघुत्तम युग्म’ (minimal pair) का प्रयोग करते हैं, जिसमें केवल उन्हीं दो ध्वनियों का अंतर होता है, बाकी सभी ध्वनियाँ समान होती हैं।

उदाहरण :

शब्द 1     : कमला

शब्द 2     : गमला

परीक्षण ध्वनियाँ => क और ग

समान ध्वन्यात्मक परिवेश =>  ‘… + मला

यहाँ और ध्वनियों की पहचान के लिए लघुत्तम युग्म दिया गया है, जिसमें इन दोनों को छोड़कर बाकी ध्वनियाँ एक जैसी हैं।

Monday, December 4, 2023

व्यतिरेकी और परिपूरक (Contrastive and Complementary Distribution)

 व्यतिरेकी और परिपूरक (Contrastive and Complementary Distribution)

किसी भाषा के स्वनिमों के परस्पर प्रयोग की स्थितियों का निर्धारण करने के लिए भाषावैज्ञानिकों द्वारा उनके वितरण’ (Distribution) को आधार के रूप में देखा जाता है। इसके दो प्रकार हैं-

(क) व्यतिरेकी वितरण (Contrastive Distribution)

जब किसी शब्द में एक स्वन की जगह दूसरे स्वन को रखने पर बनने वाले शब्द का अर्थ बदल जाता है, तो उनके बीच व्यतिरेकी वितरण’ (Contrastive Distribution) होता है, जैसे-

काल शब्द में  की जगह  करने पर => खाल

काल शब्द में  की जगह  करने पर => गाल

स्वनिम आपस में व्यतिरेकी वितरण में होते हैं। अतः समान परिवेश में एक स्वन की जगह दूसरे स्वन को रखने पर बनने वाले शब्द का अर्थ बदल जाता है, तो वे भिन्न-भिन्न स्वनिम होते हैं। इसलिए उक्त उदाहरणों में हिंदी के लिए ’, ‘ और  तीन अलग-अलग स्वनिम हैं।

(ख) परिपूरक वितरण(Complementary Distribution)

जब किसी शब्द में एक स्वन की जगह दूसरे स्वन को रखने पर बनने वाले शब्द का अर्थ नहीं बदलता है, तो उनके बीच परिपूरक वितरण’ (Complementary Distribution) होता है, जैसे-

पढ़ाई शब्द में  की जगह  करने पर => पढाई

सड़क शब्द में  की जगह  करने पर => सडक

स्वनिम और संस्वन आपस में परिपूरक वितरण में होते हैं। अतः समान परिवेश में एक स्वन की जगह दूसरे स्वन को रखने पर बनने वाले शब्द का अर्थ नहीं बदलता है, तो वे परस्पर स्वनिम और संस्वन होते हैं। इसलिए उक्त उदाहरणों में हिंदी के लिए ढ और ढ़’, ‘ड और ड़ स्वनिम और संस्वन हैं। बिहार के भोजपुरी और मैथिली क्षेत्रों में  और  आपस में संस्वन की तरह प्रयुक्त होते हैं।

परिपूरक वितरण का ही एक प्रकार मुक्त वितरण’ (Free Distribution) है।

Blog milestone 8 lakhs

 




Sunday, December 3, 2023

Admission Notice IGNTU 2023

 Go to the link- 

https://www.igntu.ac.in/admission/Document%20Submission2023-24.pdf

Friday, December 1, 2023

भाषा नियोजन क्या है? (What is Language Planning)

 भाषा नियोजन (Language Planning)

 किसी क्षेत्र की एक या एकाधिक भाषाओं के प्रकार्यसंरचना एवं भाषा अर्जन या अधिगम हेतु किया जाने वाला नियोजन भाषा नियोजन कहलाता है। यहाँ क्षेत्र से तात्पर्य भाषायी समाज, देश का एक निश्चित भौगोलिक क्षेत्र आदि से है। नियोजन का अर्थ है- योजनाबद्ध ढंग से प्रभावित करना। चूँकि इसमें लिए जाने वाले निर्णय विशाल जनसंख्या को प्रभावित करते हैं, इस कारण प्रायः यह कार्य सरकार द्वारा किया जाता है, किंतु साथ ही इसमें अनेक सरकारी/ गैर-सरकारी संस्थाएँ एवं व्यक्ति भी सहभागी होते हैं। इसमें सहभागी होने वाले लोगों के लिए भाषाविज्ञान या समाजभाषाविज्ञान का ज्ञान आवश्यक होता है। यद्यपि अन्य प्रकार के लोग भी इसमें सहभागी होते हैं, किंतु भाषाओं की स्थिति और प्रकार्य के निर्धारण में समाजभाषावैज्ञानिकों की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण होती है, क्योंकि वे द्विभाषिकताबहुभाषिकता,  भाषाद्वैत, भाषा विस्थापन, भाषा निष्ठा, भाषा संरक्षण आदि संबंधी स्थितियों से भली-भाँति परिचित होते हैं।

भाषा-नियोजन के अंतर्गत मुख्य रूप से निम्नलिखित कार्य आते हैं-

(1) स्थिति नियोजन (Status planning)- जब किसी भाषायी समाज में एक से अधिक भाषाओं का व्यवहार होता है, तो यह निर्धारित करना कि किस भाषा का प्रयोग किस प्रयोजन के लिए होगा? स्थिति नियोजन के अंतर्गत आता है। इसमें हम केवल प्रयोजन का ही निर्धारण नहीं करते हैं, बल्कि उन भाषाओं के प्रयोग की स्थितियों का निर्धारण करते हैं। उदाहरण के लिए हिंदी भाषी समाज में हिंदी और अंग्रेजी के संदर्भ में स्थितियों का निर्धारण किया गया है। जैसे उच्च न्यायालय एवं उच्चतम न्यायालय की मूल भाषा अंग्रेजी होगी तथा आवश्यकतानुसार कहीं-कहीं हिंदी के प्रयोग की अनुमति है। यह विधि के क्षेत्र में इन भाषाओं की स्थिति का निर्धारण है।

इसी प्रकार किसी देश की राजभाषा का निर्धारण, राष्ट्रभाषा की स्थिति पर विचारकिसी भाषा की लिपि का निर्धारण/विकास आदि संबंधी कार्य भी इसके अंतर्गत आते हैं। हिंदी अंग्रेजी और अन्य भारतीय भाषाओं की स्थिति के निर्धारण के संबंध में राजभाषा अधिनियम 1976 के अंतर्गत भारत सरकार द्वारा किए गए प्रावधानों को निम्नलिखित लिंक पर 15.6.2 संपर्क भाषा शीर्षक के अंतर्गत देखा जा सकता है-

 हिंदी का अधुनिक विकास और संवैधानिक स्थिति

(2) कॉर्पस नियोजन (Corpus planning)- तकनीकी रूप से किसी भाषा के वास्तविक व्यवहार से संकलित पाठों का विशाल संग्रह कार्पस कहलाता है। पाठों का यह संग्रह इतना विशाल और इतना वैविध्यपूर्ण होता है कि उसमें उस भाषा के व्यवहार के सभी प्रयोग क्षेत्रउनकी प्रयुक्तियाँ (registers),  शब्दावली तथा विविध प्रकार की वाक्य रचनाएँ आदि सभी का समावेश हो जाता है। किंतु हम जानते हैं कि भाषा निरंतर परिवर्तनशील एवं विकासशील इकाई है। अतः समय के साथ नये शब्दोंअभिव्यक्तियों का सृजन आदि होता ही रहता है। अतः उसके लिए आवश्यक शब्दावली, अभिव्यक्ति रूपों तथा भाषा के मानक रूप का निर्माण, जैसे- वर्तनी और व्याकरणशब्दकोश निर्माणभाषायी शुद्धता बनाए रखने संबंधी कार्य आदि कार्पस नियोजन के अंतर्गत आते हैं।

हिंदी के संदर्भ में देखा जाए तो भारत सरकार द्वारा केंद्रीय हिंदी निदेशालय के अंतर्गत वैज्ञानिक एवं तकनीकी शब्दावली निर्माण आयोग को मानक हिंदी वर्तनी तथा शब्दावली के विकास का कार्य दिया गया है। आयोग द्वारा समय-समय पर मानक हिंदी वर्तनी संबंधी पुस्तिका का प्रकाशन किया जाता है इनमें से 2016 में प्रकाशित मानक हिंदी वर्तनी संबंधी पुस्तिका को इस लिंक पर देख सकते हैं-

https://lgandlt.blogspot.com/2020/08/2016.html

(3) अर्जन नियोजन (Acquisition planning)- मानव शिशु जन्म के पश्चात अपने परिवार और परिवेश में प्राप्त भाषा को सीखता है, जिसे उसकी मातृभाषा कहते हैं, किंतु जब उस समाज में एक से अधिक भाषाओं का प्रयोग होता है या हो रहा होता है, तो ऐसी स्थिति में उसके प्राथमिक शिक्षण के दौरान कौन-सी भाषा का किस रूप में शिक्षण किया जाए तथा किस भाषा के माध्यम से शिक्षण प्रक्रिया संपन्न की जाए? आदि इसके अंतर्गत आते हैं।

 अतः इसमें प्रथम भाषा का शिक्षणद्वितीय भाषा का शिक्षणशिक्षण की माध्यम भाषा का निर्धारण आदि संबंधी बिंदु आते हैं। उदाहरण के लिए भारतीय समाज में अंग्रेजी का प्रभुत्व धीरे-धीरे बढ़ता जा रहा है। इस कारण अब माता-पिता प्रारंभ से ही बच्चों को अंग्रेजी माध्यम के विद्यालयों में प्रवेश दिलाते हैं, किंतु विभिन्न शोधों द्वारा स्पष्ट हुआ है कि कोई भी बच्चा अपनी मातृभाषा में ही अपना सर्वोत्तम विकास कर सकता है।

 इसे ध्यान में रखते हुए भारत सरकार द्वारा राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 जारी की गई है, जिसमें बच्चों को प्राथमिक शिक्षा उनकी मातृभाषा में ही दिए जाने पर बल दिया गया है। यह भाषा अर्जन संबंधी नियोजन का एक उपयुक्त उदाहरण है ।

भाषा नियोजन के लक्ष्य

भाषा नियोजन के निम्नलिखित लक्ष्य हैं-

§  भाषा शुद्धि 

§  भाषा पुनरुद्धार के भीतर से विचलन

§  भाषा सुधार

§  भाषा एकीकरण

§  भाषा के बोलने वालों की संख्या बढ़ाने का प्रयास

§  शब्दकोशीय समृद्धि

§  शब्दावली एकीकरण

§  लेखन शैली सरलीकरण

§  अंतरभाषायी संप्रेषण

§  भाषा संरक्षण

§  सहायक-कोड विकास (मूक बधिरों आदि के लिए)