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Saturday, October 30, 2021

विभेदक अभिलक्षण (Distinctive Features)

 विभेदक अभिलक्षण (Distinctive Features)

विभेदक  = भेद उत्पन्न करने वाला

विभेदक का शाब्दिक अर्थ है- भेद उत्पन्न करने वाला। किसी भाषा की ध्वनि व्यवस्था में दो ध्वनियों में भेद उत्पन्न करने वाले अभिलक्षणों को विभेदक अभिलक्षण कहते हैं। भेद उत्पन्न करने से यहाँ तात्पर्य है कि उस अभिलक्षण के साथ जुड़कर बनने वाली दूसरी ध्वनि में अर्थभेद की क्षमता हो।

अर्थभेद की क्षमता का अर्थ है- नई ध्वनि से निर्मित शब्द का पुरानी ध्वनि से निर्मित शब्द के अर्थ से अलग अर्थ हो।

उदाहरण-

ध्वनि + अभिलक्षण      = नई ध्वनि

    + प्राणत्व   = 

  + घोषत्व               = ग

अब इन ध्वनियों से बनने वाले शब्दों को देखते हैं-

क से = कल, काल ; ख से खल, खाल

क से = कल, काल ; ग से गल, गाल

इनमें खल, खाल अथवा गल, गाल शब्दों के अर्थ कल, काल शब्दों के अर्थ से भिन्न हैं। अतः प्राणत्व और घोषत्व विभेदक अभिलक्षण हैं।

Saturday, October 23, 2021

मेटावर्स :.BBC Hindi

 

इंटरनेट का भविष्य बताए जाने वाला 'मेटावर्स' आख़िर है क्या?

मेटावर्स, वर्चुअल रियलिटी (वीआर) का ही सुधरा हुआ रूप है.

इमेज स्रोत,GETTY IMAGES

फ़ेसबुक ने हाल में घोषणा की है कि 'मेटावर्स' का विकास करने के लिए वो यूरोप में 10,000 लोगों को बहाल करेगी.

मेटावर्स एक कॉन्सेप्ट है, जिसे कई लोग 'इंटरनेट का भविष्य' भी बता रहे हैं. लेकिन ये वास्तव में है क्या?

मेटावर्स आख़िर है क्या?

बाहरी लोगों को लग सकता है कि मेटावर्स, वर्चुअल रियलिटी (वीआर) का ही सुधरा हुआ रूप है. हालांकि कई लोग इसे इंटरनेट का भविष्य तक मानते हैं.

वास्तव में, कई लोगों को लगता है कि वीआर के लिहाज से मेटावर्स वही तकनीक साबित हो सकती है, जैसा अस्सी के दशक वाले भद्दे फोन की तुलना में आधुनिक स्मार्टफोन साबित हुआ है।

मेटावर्स में सभी प्रकार के डिजिटल वातावरण को जोड़ने वाले 'वर्चुअल वर्ल्ड' में दाख़िल होने के लिए कंप्यूटर की जगह केवल हेडसेट का उपयोग किया जा सकता है.

पर इस वर्चुअल वर्ल्ड का उपयोग व्यावहारिक तौर पर किसी भी काम के लिए हो सकता है. जैसे- काम, खेल, संगीत कार्यक्रम, सिनेमा या बाहर घूमने के लिए.

अधिकांश लोग सोचते हैं कि मेटावर्स का मतलब ये होगा कि हमारे पास स्वयं का प्रति​निधित्व करने वाला एक 3डी अवतार होगा.

पर मेटावर्स अभी तक सिर्फ़ एक विचार है. इसलिए इसकी कोई एक सहमत परिभाषा नहीं है.

फेसबुक की तकनीक.

इमेज स्रोत,REUTERS

अचानक यह बड़ी चीज क्यों बन गई?

डिजिटल वर्ल्ड और ऑगमेंटेड रियलिटी यानी एआर (सच्ची दुनिया को दिखाने वाली उन्नत डिजिटल तकनीक) को लेकर हर कुछ सालों में काफी प्रचार होता है, लेकिन कुछ समय बाद यह ख़त्म हो जाता है.

हालांकि, धनी निवेशकों और बड़ी टेक कंपनियों के बीच मेटावर्स को लेकर बहुत उत्साह है.

और कोई भी यह सोचकर पीछे नहीं रहना चाहता कि कहीं यह इंटरनेट का भविष्य न बन जाए.

वीआर गेमिंग और कनेक्टिविटी में पर्याप्त तरक्की हो जाने से अब ये महसूस हो रहा है कि प्रौद्योगिकी पहली बार वहां पहुंची है, जहां इसके होने की ख़्वाहिश थी.

पूरा पढ़ें-

https://www.bbc.com/hindi/science-58957004

मारथा विनयार्ड और न्यूयार्क शहरों का अध्ययन : लेबॉव

मारथा विनयार्ड और न्यूयार्क शहरों का अध्ययन : लेबॉव

लेबॉव को समाजभाषाविज्ञान के आधुनिक जनक के रूप में देखा जाता है। उनका उद्देश्य भाषा को एकरूप व्यवस्था (homogeneity) में देखने के बजाय उसके वैविध्य को सामने लाना था। इस क्रम में उन्होंने मारथा विनयार्ड शहर का सबसे पहले अध्ययन किया, जिसमें उन्होंने विभिन्न सामाजिक संदर्भों में इस शहर के भाषायी प्रयोगों का विस्तृत विश्लेषण किया था। मारथा विनयार्ड शहर न्यू-इंग्लैंड के पास है, जहाँ से यूरोपीय लोग ज्यादा आते रहे हैं। इस शहर के निवासियों को मूलतः तीन भागों में बांटा जा सकता है- अंग्रेज यांकी, भारतीय और पुर्तगाली लोग (English Yankee settlers, aboriginal Indians and recent Portuguese settlers)। भाषायी व्यवहार की दृष्टि से यह शहर विविधताओं से युक्त है, क्योंकि इसमें भिन्न-भिन्न देशों के लोग रही हैं और यहाँ पर्यटन के लिए भी लोगों का आना-जाना लगा रहता है। इन सब चीजों को ध्यान में रखते हुए 1961 में लेबॉव ने यहाँ के लोगों के भाषा व्यवहार का अध्ययन किया और उनके भाषाई व्यवहार में परिवर्तन संबंधी अनेक महत्वपूर्ण बिंदु प्रस्तुत किए।

इसी प्रकार लेबॉव ने न्यूयॉर्क शहर का भी अध्ययन किया। 1966 ई. में लेबाव द्वारा किया गया यह अध्ययन समाजभाषाविज्ञान के क्षेत्र में उनके योगदान का एक स्तंभ है। इस अध्ययन में लेबॉव की परिकल्पना इस प्रकार देखी जा सकती है-

 “If any two subgroups of New York City speakers are ranked in a scale of social stratification, then they will be ranked in the same order by their differential use of (r)” (Labov, 1972:44)

इस परिकल्पना के निर्माण के लिए युवाओं ने पहले कई सारे साक्षात्कार भी किए थे और उनके आधार पर उन्होंने  अपना अध्ययन प्रस्तावित किया बाद में उन्होंने अपनी परिकल्पना को इस प्रकार से परिवर्तित भी किया था-

“Salespeople in the highest ranked store will have the highest values of (r); those in the middle ranked store will have intermediate values of (r); and those in the lowest ranked store will show the lowest values”. (Labov, 1966:65)

इसके लिए उन्होंने शहर के विभिन्न क्षेत्रों में विभिन्न प्रकार के सूचकों के माध्यम से सूचनाओं का विस्तृत संग्रह किया और उसके आधार पर निष्कर्ष भी दिए जिन्हें http://www.maria-juchem.de/Labov.PDF पर ‘Case Study Martha’s Vineyard and New York’ में संक्षेप में अंग्रेजी में देखा जा सकता है।

संदर्भ-

§  Labov, William. The Social Stratification of English in New York City. Washington, DC: Center for Applied Linguistics. 1966

§  Labov, William. Sociolinguistic Patterns. Philadelphia: University of Pennsylvania Press. 1972

 

द्विभाषिकता और बहुभाषिकता (Bilingualism and Multilingualism)

 द्विभाषिकता और बहुभाषिकता (Bilingualism and Multilingualism)

किसी समाज में दो भाषाओं के व्यवहार की स्थिति को द्विभाषिकता (Bilingualism) और दो से अधिक भाषाओं के व्यवहार की स्थिति को बहुभाषिकता (Multilingualism) कहते हैं। इन्हें सूत्र रूप में इस प्रकार से दिखा सकते हैं-

द्विभाषिकता  = दो भाषाओं के व्यवहार की स्थिति

बहुभाषिकता = दो से अधिक भाषाओं के व्यवहार की स्थिति

 द्विभाषिकता और बहुभाषिकता (Bilingualism and Multilingualism) दोनों को ही दो स्तरों पर देख सकते हैं-

§  व्यक्तिगत स्तर

§  सामाजिक स्तर

(क) व्यक्तिगत स्तर

कोई व्यक्ति द्विभाषी (Bilingual) या बहुभाषी (Polyglot) हो सकता है। यह व्यक्ति की विशेषता है। उसका अध्ययन अनुवाद, भाषा शिक्षण आदि में अनुप्रयोग की दृष्टि से किया जा सकता है, किंतु व्यक्ति विशेष की द्विभाषिकता या बहुभाषिकता का अध्ययन समाजभाषाविज्ञान का विषय नहीं है।

(ख) सामाजिक स्तर

यह द्विभाषिकता या बहुभाषिकता की वह स्थिति है, जो किसी भाषा के पूरे समाज में पाई जाती है। कोई भाषा मूलतः जिस समाज में बोली जाती है या जहाँ की मातृभाषा होती है, उसे उस भाषा का भाषी समाज कहते हैं, जैसे-

§  हिंदी भाषी समाज

§  अंग्रेजी भाषी समाज

§  मराठी भाषी समाज                      आदि।

सामाजिक द्विभाषिकता या बहुभाषिकता ही समाजभाषाविज्ञान के अध्ययन की विषयवस्तु है।

प्रत्येक भाषा का एक निश्चित भौगोलिक क्षेत्र भी होता है। उस भाषा के समाज में द्विभाषिकता या बहुभाषिकता की स्थिति का परीक्षण करने के लिए हमें उसी क्षेत्र में जाकर देखना होगा। उदाहरण के लिए भोजपुरी भाषी समाज की द्विभाषिकता और बहुभाषिकता की स्थिति का परीक्षण मुंबई या कलकत्ता में रहने वाले भोजपुरी भाषियों के अध्ययन से नहीं किया जा सकता, उसके लिए मूल भोजपुरी क्षेत्र में जाकर देखना होगा।

इसी प्रकार द्विभाषिकता या बहुभाषिकता के संदर्भ में स्थानीयता (Locality) का संदर्भ भी महत्व रखता है। हम किसी भाषा के मूल समाज में जाकर तो अध्ययन कर ही सकते हैं, किसी शहर या स्थान विशेष में प्रयुक्त होने वाली भाषाओं तथा उनकी स्थिति का भी अध्ययन कर सकते हैं। अतः इस दृष्टि से स्थानीय संदर्भ महत्व का होगा, जैसे-

मुंबई में प्रयुक्त भाषाओं की भाषायी स्थिति का अध्ययन या कोलकाता में प्रयुक्त भाषाओं की भाषायी स्थिति का अध्ययन आदि।

§  मुंबई की मराठी पर अन्य भाषाओं का प्रभाव और इस कारण हो रहे विभेद या परिवर्तन।

§  मुंबई की हिंदी पर अन्य भाषाओं का प्रभाव और इस कारण हो रहे विभेद या परिवर्तन।

§  कोलकाता की बंगाली पर अन्य भाषाओं का प्रभाव और इस कारण हो रहे विभेद या परिवर्तन।

§  कोलकाता की हिंदी पर अन्य भाषाओं का प्रभाव और इस कारण हो रहे विभेद या परिवर्तन।

सुप्रसिद्ध समाजभाषावैज्ञानिक विलियम लेबाव (W. Labov) ने मारथा विनेयार्ड और न्यूयॉर्क शहरों का अध्ययन किया था। इसे http://www.maria-juchem.de/Labov.PDF पर ‘Case Study Martha’s Vineyard and New York’ में संक्षेप में देखा जा सकता है। हिंदी में इसे https://lgandlt.blogspot.com/2021/10/blog-post_19.html पर संक्षेप में पढ़ सकते हैं।

द्विभाषिकता और बहुभाषिकता का वर्तमान परिप्रेक्ष्य

मानव सभ्यता के विकास के साथ ही यातायात के साधनों में निरंतर वृद्धि हुई है और इस कारण भिन्न-भिन्न भाषा समुदाय के लोगों का अत्यंत तीव्रता के साथ सम्मिलन हुआ है। कुछ आदिवासी समाजों को अपवादस्वरूप छोड़ दिया जाए तो आज कोई भी ऐसा समाज मिलना कठिन जिसमें द्विभाषिकता और बहुभाषिकता न पाई जाती हो। अतः द्विभाषिकता और बहुभाषिकता की दृष्टि से वर्तमान परिप्रेक्ष्य अत्यंत समृद्ध है।

भाषा प्रभुत्त्व (Language Dominance)

 भाषा प्रभुत्त्व (Language Dominance)

किसी भाषायी समाज में एक से अधिक भाषाओं का व्यवहार होने की स्थिति में किसी एक भाषा का व्यवहार अधिक प्रभुत्वशाली माना जाना भाषा प्रभुत्व कहलाता है, जैसे- हिंदी भाषी समाज में अंग्रेजी का व्यवहार प्रभुत्वशाली माना जाता है। यद्यपि यह पूर्णतः एक काल्पनिक मानसिक वृत्ति है। फिर भी चूँकि यह वृत्ति व्यापक स्तर पर पाई जाती है, इसलिए इसके कुछ कारण इस प्रकार से देखे जा सकते हैं-

§  समाज में उच्च वर्ग (शिक्षा, प्रतिष्ठा, आर्थिक स्थिति आदि की दृष्टि से) द्वारा व्यवहार - इस वर्ग के लोगों द्वारा जिस भाषा का प्रयोग किया जाता है, उसे ही प्रभुत्वशाली भाषा मान लिया जाता है। यह सबसे महत्वपूर्ण कारण है।

§  अधिक भौगोलिक विस्तार – अधिक क्षेत्र या देशों में प्रचलन ।

§  ज्ञान-विज्ञान की उपलब्धता – जिस भाषा में ज्ञान-विज्ञान संबंधी सामग्री की अधिक उपलब्धता होती है, वह भी अधिक प्रभुत्व रखती है।

                                                                   आदि।

 इस प्रकार के कुछ कारणों से किसी भाषायी समाज में कोई भाषा प्रभुत्वशाली होती है, तो कुछ को कम प्रभुत्वशाली मान लिया जाता है। भाषा प्रभुत्व कालांतर में भाषा विस्थापन (Language Shift) का कारण बनता है।

भाषा विस्थापन (Language Shift)

 भाषा विस्थापन (Language Shift)

इसे हिंदी में भाषा अंतरण भी कहते हैं। जब किसी भाषायी समाज में एक से अधिक भाषाएँ प्रचलित होती हैं, तो उनमें से कोई भाषा अधिक प्रभुत्वशाली (Dominant) होती है, तो कोई क्रम। इस कारण अधिक प्रभुत्वशाली भाषा की ओर भाषाभाषियों का झुकाव होना स्वाभाविक होता है। इसलिए कालांतर में देखा जाता है कि एक भाषा समाज के लोग अपनी भाषा को छोड़कर प्रभुत्वशाली भाषा का ही अधिक व्यवहार कर रहे हैं। जब संपूर्ण समाज के लोग ऐसा करने लगते हैं, तो इस स्थिति को भाषा विस्थापन कहते हैं। हिंदी और भोजपुरी के संदर्भ में इसे निम्नलिखित प्रकार से दर्शा सकते हैं-

भोजपुरी भाषी समाज à व्यवहृत भाषाएँ

                               भोजपुरी                    हिंदी

                               मूलभाषा                  प्रभुत्वशाली भाषा

पुरानी पीढ़ी (भोजपुरी का अत्यधिक प्रयोग)

नई पीढ़ी (हिंदी का अत्यधिक प्रयोग)

यदि ऐसी स्थिति में धीरे-धीरे भोजपुरी समाज के लोग भोजपुरी छोड़कर हिंदी को अपनाने लगते हैं, तो इसे भोजपुरी से हिंदी भाषा विस्थापन कहते हैं।

इसी बात को हिंदी और अंग्रेजी के संदर्भ में इस प्रकार से देख सकते हैं-

हिंदी भाषी समाज à व्यवहृत भाषाएँ

                               हिंदी                         अंग्रेजी

                               मूलभाषा                  प्रभुत्वशाली भाषा

पुरानी पीढ़ी (हिंदी का अत्यधिक प्रयोग)

नई पीढ़ी (अंग्रेजी का अत्यधिक प्रयोग)

यदि ऐसी स्थिति में धीरे-धीरे हिंदी समाज के लोग हिंदी छोड़कर अंग्रेजी को अपनाने लगते हैं, तो इसे हिंदी से अंग्रेजी भाषा विस्थापन कहते हैं।

संकटापन्न भाषाएँ (Endangered Languages)

 संकटापन्न भाषाएँ (Endangered Languages)

भाषा विस्थापन के कारण कुछ भाषाओं के संदर्भ में यह स्थिति देखने को मिलती है कि उसका प्रयोग करने वालों की संख्या बहुत कम रह जाती है। साथ ही यदि उस भाषायी समाज की नई पीढ़ी उस भाषा के  बजाए किसी अन्य भाषा को सीखने या प्रयोग करने में प्राथमिकता देती है, तो ऐसी भाषाओं को संकटापन्न भाषाएँ कहते हैं।

अतः किसी भाषा के संकटापन्न होने के दो मुख्य पैमाने हैं-

§  प्रयोग करने वालों की संख्या बहुत कम हो।

§  उस भाषायी समाज की नई पीढ़ी द्वारा उस भाषा के बजाए किसी अन्य भाषा को सीखना या प्रयोग करना।

चूँकि ऐसी भाषा के विलुप्त होने होने का संकट उत्पन्न हो जाता है, इसलिए ऐसी भाषाओं को संकटापन्न भाषाएँ कहते हैं।

संकटापन्न भाषाओं के प्रकार- संकटापन्न भाषाओं को मुख्यतः चार वर्गों में बाँटा जाता है-  

§  संवेदनशील (Vulnerable)

§  निश्चित संकटापन्न (Definitely endangered)

§  अति-संकटापन्न (Severely endangered)

§  गंभीर संकटापन्न (Critically endangered)

कुछ संकटापन्न भाषाएँ-

विकिपेडिया पर कुछ संकटापन्न भाषाओं की सूची इस प्रकार से दी गई है-

India

The following table lists the 191 languages of India that are classified as vulnerable or endangered.

India

Language

Status

Comments

ISO 639-3

A'tong language

Severely endangered[1]

 

aot

Adi language

Vulnerable[1]

Also spoken in: China

adi

Aimol language

Critically endangered[1]

 

aim

Aiton language

Severely endangered[1]

 

aio

Anal language

Vulnerable[1]

 

anm

Angami language

Vulnerable[1]

 

njm

Angika language

Vulnerable[1]

Also spoken in: Nepal

anp

Ao language

Vulnerable[1]

 

ngo

भारत की संकटापन्न भाषाओं को  https://en.wikipedia.org/wiki/List_of_endangered_languages_in_India  पर जाकर विस्तार से देखा जा सकता है।