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Wednesday, October 13, 2021

भाषाविज्ञान की एक शाखा के रूप में समाजभाषाविज्ञान

 भाषाविज्ञान की एक शाखा के रूप में समाजभाषाविज्ञान

उपर्युक्त विवरण से स्पष्ट है कि भाषा व्यवस्था के स्तरों- स्वनिम से प्रोक्ति तक तथा ध्वनि और अर्थ संबंधी अध्ययन मूलतः सैद्धांतिक भाषाविज्ञान में आता है। अतः समाजभाषाविज्ञान मूलतः सैद्धांतिक भाषाविज्ञान का अंग नहीं है। अतः भाषाविज्ञान के दूसरे क्षेत्र अनुप्रयुक्त भाषाविज्ञान के सापेक्ष समाजभाषाविज्ञान को देखना आवश्यक है।

अनुप्रयुक्त भाषाविज्ञान को हम तीन दृष्टियों से देखते हैं- अंतरानुशासनिक अनुप्रयोग, व्यावहारिक अनुप्रयोग और तकनीकी अनुप्रयोग।

(क) अंतरानुशासनिक अनुप्रयोग (Interdisciplinary Application)- इसमें भाषाविज्ञान के सैद्धांतिक ज्ञान का प्रयोग अन्य शास्त्रों के ज्ञान से साथ मिलाकर भाषा संबंधी विविध स्थितियों के बारे में और अधिक अध्ययन के लिए किया जाता है। इसमें भाषा से संबद्ध अन्य इकाइयों को भी देखा जाता है। भाषा के साथ जुड़ने वाली इस प्रकार की कुछ इकाइयाँ और उनसे बनने वाली भाषाविज्ञान की शाखाएँ इस प्रकार हैं-

भाषा + मन = मनोभाषाविज्ञान

भाषा + समाज = समाजभाषाविज्ञान

भाषा + संज्ञान = संज्ञानात्मक भाषाविज्ञान

भाषा + साहित्य = शैलीविज्ञान                               आदि।

अंतरानुशासनिक अनुप्रयोग की दृष्टि से इसी प्रकार के ढेर सारे विषय बनते हैं। इनकी प्रकृति को ध्यान में रखते हुए इन्हें सैद्धांतिक भाषाविज्ञान और अनुप्रयुक्त भाषाविज्ञान के बीच का भी कह सकते हैं या अंतरानुशासनिक भाषाविज्ञान नाम दे सकते हैं, जिसकी शाखा के रूप में उपर्युक्त विषयों को बताया जा सकता है।

समाजभाषाविज्ञान उनमें से एक है। इसका उद्देश्य समाज के संदर्भ में भाषा की स्थिति का अध्ययन करना है, जिससे भाषा संबंधी ज्ञान के सामाजिक पक्षों को भी समझा जा सके। उदाहरण के लिए पानी माँगने के लिए बोले जा सकने वाले निम्नलिखित वाक्यों को देखें-

·       पानी दो/ लाओ।

·       पानी दीजिए /लाइए।

·       अरे यार, पानी दो।

·       सर, थोड़ा पानी पीकर आता हूँ।

इन वाक्यों का उद्देश्य और अर्थ एक ही है, किंतु प्रयोग के सामाजिक संदर्भ भिन्न-भिन्न होंगे। वक्ता इनमें से कोई भी वाक्य बोल सकता है, किंतु इनमें किसी भी वाक्य का चयन करते समय वह सामाजिक परिवेश और वक्ता-श्रोता संबंधों का ध्यान रखता है। समाजभाषाविज्ञान उन सामाजिक स्थितियों का अध्ययन करने का प्रयास करता है, जिसमें वक्ता इनमें से किसी एक वाक्य का चयन करता है या नहीं करता है। इस क्रम में समाजभाषाविज्ञान विभिन्न प्रकार के सामाजिक विभेदों और उनमें भाषा व्यवहार की स्थितियों का अध्ययन करता है। इसलिए सैद्धांतिक भाषाविज्ञान और  समाजभाषाविज्ञान की विषयवस्तु में अंतर करते हुए यह भी कहा जाता है-

सैद्धांतिक भाषाविज्ञान                  = भाषा संरचना का अध्ययन

समाजभाषाविज्ञान                       = भाषा व्यवहार का अध्ययन

प्रसंग की संपूर्णता के लिए शेष दोनों प्रकार के अनुप्रयोगों को भी संक्षेप में देख लेते हैं।

(ख) व्यावहारिक अनुप्रयोग (Practical Application)- इसके अंतर्गत भाषाविज्ञान के सैद्धांतिक ज्ञान के वास्तविक जीवन में प्रयोग संबंधी पक्ष तथा उनसे जुड़े विषय आते हैं, जैसे-

·       भाषा शिक्षण

·       अनुवाद एवं निर्वचन

·       भाषा सर्वेक्षण

·       भाषा नियोजन

·       वाग्दोष चिकित्सा                  आदि।

(ग) तकनीकी अनुप्रयोग (Technological Application)- इसके अंतर्गत भाषाविज्ञान के सैद्धांतिक ज्ञान के तकनीकी डिवाइसों (कंप्यूटर) में अनुप्रयोग से संबंधित पक्ष तथा उनसे जुड़े विषय आते हैं, जैसे-

·       भाषा प्रौद्योगिकी

·       कंप्यूटेशनल भाषाविज्ञान

·       भाषा अभियांत्रिकी

·       कृत्रिम बुद्धि                            आदि।

1 comment:

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