संज्ञानात्मक भाषाविज्ञान : परिचय
वह भाषाविज्ञान जो मानव संज्ञान के
सापेक्ष भाषा की स्थिति का अध्ययन करता है, संज्ञानात्मक
भाषाविज्ञान है। साधारण शब्दों में कहा जा सकता है कि word और
world के बीच संबंध की खोज करने का प्रयास संज्ञानात्मक
भाषाविज्ञान करता है। चॉम्स्की का सिद्धांत भाषा को स्वतंत्र संरचना के रूप में
देखता है। उसमें भाषा का विश्लेषण सिद्धांत के अंदर ही करने का प्रयास किया जाता
है। संज्ञानात्मक भाषाविज्ञान इससे आगे बढ़ते हुए भाषा को संसार और मानव संज्ञान की
दृष्टि से भी देखने का प्रयास करता है।
भाषाविज्ञान और संज्ञानात्मक
भाषाविज्ञान
भाषा व्यवस्था के स्तरों- स्वनिम से
प्रोक्ति तक तथा ध्वनि और अर्थ संबंधी अध्ययन मूलतः सैद्धांतिक भाषाविज्ञान में
आता है। इसे चित्र रूप में इस प्रकार से देख सकते हैं-
अतः इस चित्र से स्पष्ट है कि संज्ञानात्मक
भाषाविज्ञान मूलतः सैद्धांतिक भाषाविज्ञान का अंग नहीं है।
अनुप्रयुक्त भाषाविज्ञान के सापेक्ष संज्ञानात्मक
भाषाविज्ञान को भी देखना आवश्यक है। अनुप्रयुक्त भाषाविज्ञान को हम तीन दृष्टियों
से देखते हैं-
(क) अंतरानुशासनिक
अनुप्रयोग- इसमें भाषाविज्ञान के सैद्धांतिक ज्ञान
का अन्य शास्त्रों के ज्ञान से साथ मिलाकर भाषा संबंधी विविध स्थितियों के बारे
में अध्ययन करते हैं। इसमें भाषा से संबद्ध अन्य इकाइयों को भी देखा जाता है। भाषा
के साथ जुड़ने वाली इस प्रकार की कुछ इकाइयाँ और उनसे बनने वाली भाषाविज्ञान की शाखाएँ
इस प्रकार हैं-
भाषा + मन = मनोभाषाविज्ञान
भाषा + समाज = समाजभाषाविज्ञान
भाषा + संज्ञान = संज्ञानात्मक
भाषाविज्ञान
भाषा + साहित्य = शैलीविज्ञान आदि।
अंतरानुशासनिक अनुप्रयोग की दृष्टि से
इसी प्रकार के ढेर सारे विषय बनते हैं। ‘संज्ञानात्मक
भाषाविज्ञान’ उनमें से एक है। इसका उद्देश्य ‘संज्ञान’ के संदर्भ में भाषा की स्थिति का अध्ययन
करना है, जिससे भाषा संबंधी ज्ञान में और अधिक संवर्धन हो
सके। उदाहरण के लिए ‘प्यास लगने पर’
बोले जा सकने वाले निम्नलिखित वाक्यों को देखें-
· पानी
दो/ लाओ/ दीजिए।
· बहुत
प्यास लगी है।
· पानी
मिलेगा क्या?
· पानी
है क्या?
· अरे
यार, पानी दो।
वक्ता इनमें से कोई भी वाक्य बोल सकता
है। संज्ञानात्मक भाषाविज्ञान उस मानसिक संज्ञानात्मक प्रक्रिया का अध्ययन करने का
प्रयास करता है, जिसमें वक्ता इनमें से किसी एक वाक्य
का चयन करता है या नहीं करता है। अर्थात उस वाक्य को बोलने के लिए वक्ता में मन या
संज्ञान में क्या प्रक्रिया हुई और कैसे हुई?
इसी प्रकार श्रोता की दृष्टि से भी संज्ञानात्मक
भाषाविज्ञान में अध्ययन का विषय है कि उक्त वाक्य को सुनने के बाद वह क्या, क्यों और कैसे प्रतिक्रिया देता है, जैसे-
पानी लाकर देना ।
या
· खुद
ही ले लो।
· मैं
खाली नहीं हूँ।
· तुम
क्या कर रहे हो?
· अभी
पानी के लिए मरना था? आदि बोलना।
(ख) व्यावहारिक अनुप्रयोग-
इसके अंतर्गत भाषाविज्ञान के सैद्धांतिक ज्ञान के वास्तविक जीवन में प्रयोग संबंधी
पक्ष तथा उनसे जुड़े विषय आते हैं, जैसे-
· भाषा
शिक्षण
· अनुवाद
एवं निर्वचन
· भाषा
सर्वेक्षण
· भाषा
नियोजन
· वाग्दोष
चिकित्सा आदि।
(ग) तकनीकी अनुप्रयोग-
इसके अंतर्गत भाषाविज्ञान के सैद्धांतिक ज्ञान के तकनीकी डिवाइसों (कंप्यूटर) में
अनुप्रयोग से संबंधित पक्ष तथा उनसे जुड़े विषय आते हैं, जैसे-
· भाषा
प्रौद्योगिकी
· कंप्यूटेशनल
भाषाविज्ञान
· भाषा
अभियांत्रिकी
· कृत्रिम
बुद्धि आदि।
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