भाषा अर्जन और संज्ञान
मनुष्य एक बुद्धिमान प्राणी है। वह
बाह्य संसार के साथ अन्य प्राणियों की तुलना में सर्वाधिक दक्षता के साथ अंतरक्रिया
(interaction)
करता है। इस क्रम में वह बाह्य संसार में उपस्थित चीजों की संरचना को समझने, उनके प्रति अनुक्रिया करने तथा आवश्यक अनुकृतियाँ निर्मित करने की भी
क्षमता रखता है। उसकी इस क्षमता में मानव संज्ञान की विभिन्न युक्तियों का विशेष
योगदान होता है, जिनका उल्लेख ऊपर किया जा चुका है। इन युक्तियों
में ‘भाषा’ एक अत्यंत महत्वपूर्ण युक्ति
है। संज्ञानात्मक युक्तियों के विकास में भाषा की विशेषता भूमिका होती है, किंतु मानव शिशु के ‘भाषा अर्जन’ (Language Acquisition)
में भी संज्ञान संबंधी युक्तियों की विशेष भूमिका होती है। इस संबंध में
संज्ञानात्मक वैज्ञानिकों और मनोवैज्ञानिकों द्वारा विभिन्न प्रकार के सिद्धांत
दिए गए हैं। भाषा अर्जन के संबंध में पियाजे का सिद्धांत देखा जा सकता है।
संज्ञानात्मक विकास के चरण : पियाजे (Jean Piaget)
इसी प्रकार अन्य सिद्धांत भी देखे जा सकता
है।
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