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Thursday, December 7, 2023
Semantics : Oxford, Cambridge

Tuesday, December 5, 2023
प्लेटो की नज़र में किसी समाज की सफलता का राज़ क्या है?
प्लेटो की नज़र में किसी समाज की सफलता का राज़ क्या है?

इमेज स्रोत,GETTY IMAGES
- Author,क्रिस्टिना जे. ओर्गाज़
- पदनाम,बीबीसी न्यूज़ वर्ल्ड
प्लेटोनिक समाज में हरेक की भूमिका होती है, ग़ुलामों से लेकर आज़ाद लोगों तक, लेकिन समाज के चलने के लिए इसके ढांचे में वर्गीकरण होना चाहिए और हर चीज़ के ऊपर एक नेता होगा.
प्लेटो (418 ईसा पूर्व से 347 ईसा पूर्व), ग्रीक दार्शनिक और पश्चिमी दर्शन में सबसे रचनात्मक और प्रभावी विचारकों में से एक थे. उन्हें उनके राजनीतिक और नैतिक लेखों और लोकतांत्रिक संस्थानों के कट्टर आलोचक के तौर जाना जाता है.
प्लेटों के मुताबिक, आदर्श राज्य तीन वर्गों से मिलकर बना होता है. आर्थिक ढांचा व्यापारी वर्ग पर निर्भर करता है. सुरक्षा सैनिकों के कंधों पर होती है. और राजनीतिक नेतृत्व दार्शनिक राजाओं को ग्रहण करना चाहिए.
राजा ही बाकी लोगों के दिमागों को इतना तैयार करता है कि बाकी दूसरे वर्ग के लोग विचारों को समझने में सक्षम होते हैं और इसलिए जनता से उलट समझदारी भरा निर्णय लेते हैं.
नॉर्थवेस्टर्न यूनिवर्सिटी में क्लासिकल थॉट्स की प्रोफ़ेसर सारा मोनोसोन के अनुसार, “प्लेटो के विचार से उनमें तार्किक क्षमता होती है और उनके पास दुनिया में घटित होने वाली मुश्किल चीजों से निपटने का बहुत सारा अनुभव और ट्रेनिंग होती है. ये राजनीतिक सत्ता के सबसे मूल्यवान लोग हैं.”
प्लेटो के नज़रिए से, दार्शनिक राजा अपने लिए सत्ता नहीं चाहता है, ऐसे लोग ईमानदार और गंभीर होते हैं, इसीलिए वे भ्रष्टाचार से आकर्षित नहीं होते हैं और सबसे भरोसेमंद सत्ता प्रतिष्ठान बन जाते हैं.
एथेंस को ही लीजिए, डेमोक्रेसी (लोकतंत्र) का उद्गम (डेमोस- लोग, क्रेटीन- शासन) निर्विवाद नहीं था, लेकिन मोनोसोन का कहना है कि प्लेटो ख़ासकर सूचना-विहीन जनता के ख़तरे को लेकर चिंतित थे.
वो कहती हैं, “प्लेटो के लिए, बिना दार्शनिक शिक्षा के, नागरिकों के इस्तेमाल किए जाने और चालाक नेता द्वारा बहकाए जाने का ख़तरा होता है.”
“ये ख़तरा इतना बड़ा होता है कि प्लेटो ने सोचा कि जनता से ही तानाशाह उभरते हैं. वो ऐसा व्यक्ति होता है जो बाकी लोगों को भरोसा दिलाता है कि वही सारी समस्याओं का हल है, लेकिन इससे भी आगे, जब वो सत्ता में जम जाता है तो खुद अत्याचारी बन जाता है.”

साथ सहअस्तित्व और इंसाफ़ की साझा खोज करन के काबिल बनाता है.
इन सभी को हासिल करने के लिए प्लेटो असली ज़िंदगी में इसे करने के तरीक़े सुझाते हैं. इनमें से एक है, बुज़ुर्ग लोगों के साथ रहना और अधिक परिपक्व लोगों का सम्मान करना.

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एक लीडर को चुनना एक बहुत जोख़िम भरा काम है क्योंकि मतदाता बहुत आसानी से ग़ैरज़रूरी विशेषताओं से प्रभावित हो जाते हैं.
प्लेटो ऐसी व्यावहारिक शिक्षा के बारे में भी बात करते हैं जो कला, संगीत और नृत्य को निखारे. इस तरह के विषयों का पुरातन ग्रीस में बहुत महत्व होता था.
387 ईसा पूर्व प्लेटो ने एथेंस में एक एकेडमी की स्थापना की, जिसे पहली यूरोपीय यूनिवर्सिटी भी माना जाता है.
इसका पाठ्यक्रम बहुत विस्तृत था जिसमें खगोलशास्त्र, जीव विज्ञान, गणित, राजनीतिक सिद्धांत और दर्शन शामिल था. अरस्तू उनके सबसे प्रतिभावान छात्र थे.
असल में, प्लेटो की आदर्श शिक्षा प्रणाली सबसे पहले और सबसे महत्वपूर्ण, दार्शनिक राजा तैयार करने के लिए बनाई गई थी.
पूरा पढ़ने के लिए इस लिंक पर जाएँ-

लघुत्तम युग्म (Minimal Pair)
लघुत्तम युग्म (Minimal Pair)
इसका संबंध स्वनिमों (Phonemes) और संस्वनों (Allophones) की पहचान से है। जब किसी भाषा की दो ध्वनियों के बीच
हमें यह देखना होता है कि वे ध्वनियाँ दो अलग-अलग स्वनिम हैं या एक ही स्वनिम के संस्वन
हैं, तो इसके लिए हम ‘लघुत्तम युग्म’ (minimal pair) का प्रयोग करते हैं, जिसमें केवल उन्हीं दो ध्वनियों का अंतर होता है, बाकी सभी ध्वनियाँ
समान होती हैं।
उदाहरण :
शब्द 1 : कमला
शब्द 2 : गमला
परीक्षण ध्वनियाँ => क और ग
समान ध्वन्यात्मक परिवेश => ‘… + मला’
यहाँ ‘क’ और ‘ग’ ध्वनियों की
पहचान के लिए लघुत्तम युग्म दिया गया है, जिसमें इन दोनों को छोड़कर बाकी ध्वनियाँ एक जैसी
हैं।

Monday, December 4, 2023
व्यतिरेकी और परिपूरक (Contrastive and Complementary Distribution)
व्यतिरेकी और परिपूरक (Contrastive and Complementary Distribution)
किसी भाषा के स्वनिमों के परस्पर प्रयोग की स्थितियों का निर्धारण करने के लिए भाषावैज्ञानिकों द्वारा उनके ‘वितरण’ (Distribution) को आधार के रूप में देखा जाता है। इसके दो प्रकार हैं-
(क) व्यतिरेकी वितरण (Contrastive Distribution)
जब किसी शब्द में एक स्वन की जगह दूसरे स्वन को रखने पर बनने वाले शब्द का अर्थ बदल जाता है, तो उनके बीच ‘व्यतिरेकी वितरण’ (Contrastive Distribution) होता है, जैसे-
काल शब्द में क की जगह ख करने पर => खाल
काल शब्द में क की जगह ग करने पर => गाल
‘स्वनिम’ आपस में व्यतिरेकी वितरण में होते हैं। अतः समान परिवेश में एक स्वन की जगह दूसरे स्वन को रखने पर बनने वाले शब्द का अर्थ बदल जाता है, तो वे भिन्न-भिन्न स्वनिम होते हैं। इसलिए उक्त उदाहरणों में हिंदी के लिए ‘क’, ‘ख’ और ‘ग’ तीन अलग-अलग स्वनिम हैं।
(ख) परिपूरक वितरण(Complementary Distribution)
जब किसी शब्द में एक स्वन की जगह दूसरे स्वन को रखने पर बनने वाले शब्द का अर्थ नहीं बदलता है, तो उनके बीच ‘परिपूरक वितरण’ (Complementary Distribution) होता है, जैसे-
पढ़ाई शब्द में ढ़ की जगह ढ करने पर => पढाई
सड़क शब्द में ड़ की जगह ड करने पर => सडक
‘स्वनिम और संस्वन’ आपस में परिपूरक वितरण में होते हैं। अतः समान परिवेश में एक स्वन की जगह दूसरे स्वन को रखने पर बनने वाले शब्द का अर्थ नहीं बदलता है, तो वे परस्पर स्वनिम और संस्वन होते हैं। इसलिए उक्त उदाहरणों में हिंदी के लिए ‘ढ और ढ़’, ‘ड और ड़’ स्वनिम और संस्वन हैं। बिहार के भोजपुरी और मैथिली क्षेत्रों में ‘र’ और ‘ड़’ आपस में संस्वन की तरह प्रयुक्त होते हैं।
परिपूरक वितरण का ही एक प्रकार ‘मुक्त वितरण’ (Free Distribution) है।
