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Sunday, December 30, 2018

हिंदी भाषा के विकास में विश्वविद्यालय के बढ़ते कदम


हिंदी भाषा के विकास में विश्वविद्यालय के बढ़ते कदम
डॉ. धनजी प्रसाद
सहायक प्रोफेसर, (भाषा-प्रौद्योगिकी)
महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय, वर्धा (महाराष्ट्र)
dhpr.langtech@gmail.com
स्थापना दिवस (29-12-2018) हेतु वक्तव्य

महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय, वर्धा अपनी स्थापना के बाद से ही हिंदी भाषा के विकास के प्रति अग्रसर है। हिंदी भाषा वर्तमान समय में विश्व पटल पर एक सशक्त भाषा के रूप में स्थापित रखने के लिए इसे कंप्यूटर और इंटरनेट की भाषा बनाना आवश्यक है। इस संदर्भ में विश्वविद्यालय ने विभिन्न दिशाओं से प्रयास किए हैं। विश्वविद्यालय द्वारा विकसित हिंदी समय  (http://www.hindisamay.com/) इस दिशा में एक उल्लेखनीय कदम है, जिसमें हिंदी के प्रमुख साहित्यकारों की रचनाओं की सामग्री पाँच लाख पृष्ठों से अधिक मात्रा में उपलब्ध है और आगे भी कार्य निरंतर जारी है। हिंदी के विविध रचनाकारों को इसमें वर्णानुक्रम में उनके नाम के अनुसार खोजा जा सकता है, अथवा हिंदी साहित्य के विविध क्षेत्रों के लिए दिए गए टैबों को क्लिक करके भी आवश्यक सामग्री प्राप्त की जा सकती है-

इसके माध्यम से लाखों पृष्ठ की हिंदी सामग्री डिजिटल रूप में विश्व-पटल पर उपस्थित हो सकी है और आज इसे विश्व के कोने-कोने से देखा जा रहा है। विश्वविद्यालय ने UGC-MHRD की EPG पाठशाला नामक महत्वाकांक्षी परियोजना के अंतर्गत हिंदी में 280 पाठ और ऑडियो-विडियो निर्मित किए हैं, जिनमें से 40 भाषा से संबंधित हैं।
इसी प्रकार विश्वविद्यालय द्वारा हिंदी भाषा से संबंधित कुछ सॉफ्टवेयरों का विकास भी किया गया है, जिनमें टंकण और फॉन्ट परिवर्तन संबंधी टूल्स हैं, जिनका मुख्य संबंध कंप्यूटर पर हिंदी माध्यम से टंकण करने और उसका किसी भी कंप्यूटर पर प्रयोग करने से है। कृतिदेव-यूनिकोड में परस्पर अंतरण संबंधी टूल विश्वविद्यालय की वेबसाइट पर उपलब्ध है। इस क्रम में प्रखर देवनागरी फॉन्ट परिवर्तक आदि भी उल्लेखनीय हैं। इसी प्रकार विराम-चिह्न, वर्तनी, मानक प्रयोग और व्याकरण आदि में होने वाली त्रुटियों का विभिन्न सॉफ्टवेयरों के माध्यम से स्वचलित सुधार आवश्यक है, जिनमें मुख्य रूप से वर्तनी जाँचक की बात की जाती है। ये सॉफ्टवेयर वर्तनी संबंधी त्रुटियों की पहचान करते हैं और सुझाव प्रस्तुत करते हैं। विश्वविद्यालय में सक्षम और कुशल नामक वर्तनी जाँचक भी विकसित किए गए हैं। व्याकरण संबंधी त्रुटियाँ होने पर उनका परीक्षण कर सुधार प्रस्तुत करना एक अधिक उच्च स्तर का कार्य है। इस दिशा में विश्वविद्यालय द्वारा प्रयास किया जा रहा है और आचार्य नामक व्याकरण जाँचक निर्माणाधीन है। इसी प्रकार हिंदी के भाषायी संसाधन से संबंधित टूल्स, जैसे- रूप विश्लेषक (Morph Generator) : ऐसे सॉफ्टवेयर जो पदों (वाक्य में प्रयुक्त होने वाले शब्दों) का रूपिमिक विश्लेषण करते हैं, रूप प्रजनक (Morph Analyzer) : ऐसे सॉफ्टवेयर जो शब्दों से पदों (वाक्य में प्रयुक्त होने वाले रूपों) का प्रजनन करते हैं,  टैगर (Tagger) : ऐसे सॉफ्टवेयर जो किसी पाठ के प्रत्येक शब्द के साथ उसके टैग से संबंधित सूचनाएँ जोड़ देते हैं, आदि की दिशा में पहल की गई है।
शब्दकोश और व्याकरण किसी भी भाषा के आधार होते हैं। हिंदी को समय के साथ अद्यतन बनाए रखने के लिए यह आवश्यक है कि हिंदी के शब्दकोश और व्याकरण निरंतर प्रकाशित किए जाते रहें। विश्वविद्यालय ने इस क्षेत्र में योगदान दिया है और न केवल हिंदी भाषा बल्कि हिंदी समाज, संस्कृति, लोक और हिंदी के अंतरराष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य को समाहित करते हुए विविध कोश निर्मित किए हैं, जिनमें वर्धा हिंदी शब्दकोश, समाज-विज्ञान विश्वकोश, अहिंसा-विश्वकोश, भोजपुरी-हिंदी-अंग्रेजी शब्दकोश, स्पेनी-अंग्रेजी-हिंदी शब्दकोश, जापानी-अंग्रेजी-हिंदी शब्दकोश आदि प्रमुख हैं। वर्तमान में मानक हिंदी प्रयोग कोश परियोजना के माध्यम से हिंदी शब्दों को उनके वास्तविक प्रयोगों के माध्यम से अर्थ को देखने का प्रयास एक बड़ी योजना है, जिसमें अब तक लगभग 10,000 प्रविष्टियाँ डाली जा चुकी हैं। हिंदी का संगणकीय व्याकरण’,  हिंदी का अंतरराष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य आदि व्याकरण और हिंदी शिक्षण से संबंधित नवीन पुस्तकों में हैं। विश्वविद्यालय निरंतर पत्र-पत्रिकाओं का प्रकाशन भी कर रहा है, जिनमें बहुवचन, पुस्तक-वार्ता, Hindi Language Discourse Writing, निमित्त, अनुसृजन आदि में विविध प्रकार के शोध-आलेख देखे जा सकते हैं। ब्लॉग और सोशल मीडिया प्लेटफार्मों द्वारा भी हिंदी सामग्री उपलब्ध कराने की दिशा में विश्वविद्यालय के कुछ विभागों ने अभिनव प्रयास किए हैं, जिनमें से भाषा और भाषा प्रौद्योगिकी (https://lgandlt.blogspot.com/) को देखा जा सकता है।
आज देश-विदेश में हिंदी सीखने वालों की भरमार है। उन सभी को उनकी आवश्यकता के अनुसार शिक्षण सामग्री उपलब्ध कराने का हिंदी विश्वविद्यालय द्वारा निरंतर प्रयास किया गया है। अब तक 500 से अधिक विदेशी विद्यार्थी विभिन्न पाठ्यक्रमों के माध्यम से हिंदी सीख चुके हैं, जो चीन, थाईलैंड, जापान, श्रीलंका, जर्मनी, इटली, फ्रांस इजराइल आदि विविध देशों से रहे हैं। थाईलैंड और श्रीलंका के विद्यार्थियों ने विश्वविद्यालय से एम.ए. और पीएच.डी. की उपाधियाँ भी प्राप्त की हैं। विश्वविद्यालय ने उनके लिए चार सप्ताह, एक माह, तीन माह, छह माह, एक वर्ष आदि विविध समयावधियों के पाठ्यक्रम तैयार किए हैं और तदनुरूप पाठ्य-सामग्री भी विकसित की है।  हिंदी को एक भाषा के रूप में सीखने वाले विद्यार्थियों को सॉफ्टवेयर या प्रोग्राम के माध्यम से हिंदी की भाषिक सामग्री उपलब्ध कराने का प्रयास भी विश्वविद्यालय द्वारा किया जा रहा है।
विश्वविद्यालय में हिंदी के शिक्षण-प्रशिक्षण और सामग्री विकास के साथ ही हिंदी के विविध पक्षों पर शोधकार्य भी निरंतर किया जा रहा है। ये शोधकार्य हिंदी भाषा, तकनीकी, अनुवाद, साहित्य, मीडिया, शिक्षा, डायस्पोरा, गांधी विचार (अहिंसा आदि), स्त्री, दलित, जनजाति, आदिवासी चिंतन, हिंदी और अन्य भारतीय भाषाएँ तथा लोक सभी क्षेत्रों से जुड़े हैं।

Language Acquisition Process of Dharaa Maurya

Name- Dharaa Maurya
Date of Birth- 29-12-2017
Time- 08:05 AM

Details and Video Links -

Tuesday, December 25, 2018

आधुनिक भाषाविज्ञान

राजमणि शर्मा (2000)
वाणी प्रकाशन








भोजपुरी व्याकरण-लेखन के बढ़ते डेग

दैनिक भास्कर, Patna News (Jul 31, 2017) से साभार

भोजपुरी व्याकरण और भाषा विज्ञान के क्षेत्र में शुरुआती दौर में तो कुछ गंभीर प्रयास जरूर नजर आते हैं, पर युवा साहित्यकारों की अभिरुचि इस दिशा में कम ही जगी है। भोजपुरी के व्याकरण-लेखन की बात है, ‘भोजपुरी शब्दानुशासन’- डॉ. रसिक बिहारी ओझा निर्भीक (1975), ‘भोजपुरी के ठेठ व्याकरण’-शिवदास ओझा (1981), ‘भोजपुरी व्याकरण’-रामदेव त्रिपाठी (1987), ‘मानक भोजपुरी वर्तनी’-विश्वनाथ सिंह (1988) ‘भोजपुरी व्याकरण की रूपरेखा’-विंध्याचल प्रसाद श्रीवास्तव (1999) जैसी पुस्तकें हमारा ध्यान आकृष्ट करती हैं। साथ ही, डॉ. उदय नारायण तिवारी, दयानंद श्रीवास्तव एवं डॉ. शुकदेव सिंह के भोजपुरी के भाषिक अध्ययन के प्रयास भी काफी गंभीर रहे हैं। समीक्ष्य पुस्तक ‘आधुनिक भोजपुरी व्याकरण’ (यशराज पब्लिकेशन, पटना) एक ऐसी कृति है, जो 80 पृष्ठों के संक्षिप्त कलेवर में भी ठोस और सार्थक अध्ययन के रूप में भोजपुरी पाठकों 

में निश्चय ही सुचर्चित होगी। इसके लेखक महामाया प्रसाद विनोद और जीतेन्द्र वर्मा -भोजपुरी के सुपरिचित लेखक हैं, जो अपनी सर्जनात्मक और आलोचनात्मक दोनों तरह की प्रतिभाओं से भोजपुरी साहित्य की श्री-वृद्धि में योगदान देते रहे हैं। इस पुस्तक में भोजपुरी भाषा के व्याकरण और रचना को सात अध्यायों में विभक्त कर प्रस्तुत किया गया है। ‘भोजपुरी भाषा’ नामक प्रथम अध्याय में इस भाषा की उत्पत्ति, नामकरण, क्षेत्र, मानकीकरण और लिपि पर चर्चा हुई है, जबकि वर्ण-विचार शीर्षक दूसरे अध्याय में भोजपुरी की मानक वर्णमाला, संधि तथा वर्तनी संबंधी 

कुछेक नियमों का विश्लेषण प्रस्तुत किया गया है। विराम चिह्न शीर्षक अध्याय में विभिन्न विराम-चिन्हों के सम्यक प्रयोग का उल्लेख है, जबकि शब्द-विचार और शब्द-रचना नामक अध्याय में विभिन्न प्रकार से शब्दों के विभेद और उपसर्ग-प्रत्यय, समास आदि पर विचार हुआ है। पांचवें अध्याय पद और पदभेद के अंतर्गत क्रिया के भेद, काल, अव्यय एवं क्रिया-विषेषण पर विचार हुआ है। वाक्य-रचना शीर्षक अध्याय में वाक्य के अर्थ, उसकी संकल्पना और भेदों पर विचार हुआ है, जबकि पुस्तक का अंतिम अध्याय मुहावरा और लोकोक्ति है। पुस्तक की शैक्षणिक, अकादमिक उपयोगिता काफी है। 
पूरा जानने के लिए इस लिंक पर जाएँ-
https://www.bhaskar.com/bihar/patna/news/BIH-PAT-HMU-MAT-latest-patna-news-040502-3098846-NOR.html

अनुप्रयुक्त भाषाविज्ञान (Applied Linguistics)

(1)  अनुप्रयुक्त भाषाविज्ञान (A.L.)

(2)  भाषाविज्ञान के प्रकार (Types of Linguistics)

(3)  अनुप्रयुक्त भाषाविज्ञान : एक परिचय

(4)  सैद्धांतिक बनाम अनुप्रयुक्त भाषाविज्ञान

 अनुप्रयुक्त भाषाविज्ञान : अंतरानुशासनिक (Interdisciplinary)

(5) समाजभाषाविज्ञान (Sociolinguistics)

(6) मनोभाषाविज्ञान (Psycholinguistics)

(7) संज्ञानात्मक भाषाविज्ञान (Cognitive Linguistics)

(8)  न्यूरोभाषाविज्ञान (Neurolinguistics)

(9) शैलीविज्ञान (Stylistics)

(*) भाषा भूगोल                EPG

 

  अनुप्रयुक्त भाषाविज्ञान : व्यावहारिक (Practical)

(10) अनुवाद (Translation)

(11) भाषा शिक्षण (Language Teaching)

(12) कोशविज्ञान एवं कोशनिर्माण (Lexicology and Lexicography)

(13) भाषा सर्वेक्षण (Language Survey)

(14) भाषा नियोजन (Language Planning)

  अनुप्रयुक्त भाषाविज्ञान : तकनीकी (Technological)

(15) मशीनी अनुवाद (Machine Translation)

(16) कंप्यूटर साधित भाषा शिक्षण/अधिगम (Computer Assisted Language Teaching/Learning)

(17) कार्पस भाषाविज्ञान (Corpus Linguistics)

(18) भाषा प्रौद्योगिकी/ प्राकृतिक भाषा संसाधन

 

संदर्भ (References):

(1) भाषाविज्ञान की भूमिका (Bhashavigyan ki Bhumika) : देवेंद्रनाथ शर्मा

(2) भाषाविज्ञान का सैद्धांतिक अनुप्रयुक्त एवं तकनीकी पक्ष : धनजी प्रसाद

(3) The handbook of applied linguistics : Alan Davis

(4) 2O Open Access Journals

(5) An Introduction to Applied Linguistics : Alan Davies

प्रोक्तिविज्ञान


संदर्भ-
                          

प्रकरणार्थविज्ञान

(pragmatics)
संदर्भ-
                         

मनोभाषाविज्ञान

(Manobhashavigyan)

संदर्भ-

                   

समाजभाषाविज्ञान




संदर्भ-
                  

आधुनिक भाषाविज्ञान

(aadhunik bhashavigyan)
भोलानाथ तिवारी (1993)







Sunday, December 23, 2018

भाषाविज्ञान एवं भाषाशास्त्र

Bhashavigyan evm Bhashashastra
डॉ. कपिलदेव द्विवेदी









Tuesday, December 18, 2018

प्रोग्रामिंग और प्रोग्रामिंग भाषा


प्रोग्रामिंग और प्रोग्रामिंग भाषा -
कंप्यूटर में प्रोग्राम बनाने की प्रक्रिया प्रोग्रामिंग है। इसके लिए विशेष प्रकार की भाषाओं का प्रयोग किया जाता है, जिन्हें प्रोग्रामिंग भाषाएँ कहा जाता है। ये कृत्रिम भाषाएँ (artificial languages) होती हैं, जो कंप्यूटर को सीधे-सीधे निर्देश देने के उद्देश्य से तैयार की गई रहती हैं। कंप्यूटर जिस भाषा का प्रयोग करता है, उसे मशीनी भाषा कहते हैं। यह विद्युत के ऑन और ऑफ पर आधारित होती है। ऑन और ऑफ के ही विभिन्न संयोजनों के माध्यम से कंप्यूटर को किसी कार्य विशेष को संपन्न करने या न करने के लिए निर्दिष्ट किया जाता है। इसके लिए लॉजिकल सर्किट बनाए जाते हैं, जो विद्युत के प्रवाह को नियंत्रित करते हैं। हम अपनी सुविधा के लिए ऑन और ऑफ को ‘1’ तथा ‘0’ से प्रदर्शित करते हैं। इनके संयोजन बनने वाले किसी प्रतीक या निर्देश का स्वरूप इस प्रकार हो सकता है-
0001010101
1101010101
इस प्रकार के प्रत्येक प्रतीक से कंप्यूटर को किसी एक इकाई या एक कार्य को समझाया है। ऐसे प्रतीकों को याद कर पाना मनुष्य के लिए संभव नहीं है। इसीलिए प्रोग्रामिंग भाषाओं का विकास किया गया है। इन भाषाओं में मानव भाषाओं (जैसे- अंग्रेजी) के शब्दों और प्रतीकों का प्रयोग किया जाता है, जिसे हम आसानी से समझ सकते हैं। इन प्रतीकों का एक निश्चित संक्रम (syntax) होता है, जिससे मशीन को निर्देश समझने में कोई जटिलता न आए। प्रतीकों और उनकी व्यवस्था का समुच्च्य ही प्रोग्रामिंग भाषा कहलाती है। अतः प्रोग्रामिंग भाषा ऐसी भाषा है, जिसके माध्यम से कंप्यूटर को सीधे-सीधे निर्देश दिए जाते हैं। इन्हें मनुष्य और मशीन के बीच अंतरमध्यवर्ती भाषा (intermediate language) भी कहा जाता है। प्रोग्रामिंग भाषाओं की पीछे कंपाइलर या इंटरप्रेटर लगे रहते हैं, जो प्रतीक शब्दों और उनके संक्रम के माध्यम से दिए गए निर्देशों को मशीनी भाषा में परिवर्तित कर देते हैं और कंप्यूटर हमारे निर्देश को समझ जाता है।
 मनुष्य द्वारा मानव भाषा का प्रयोग किया जाता है, जो स्वनिम से लेकर प्रोक्ति तक विभिन्न स्तरों की इकाइयों की जटिल व्यवस्था है। मानव भाषा में दिए गए आदेशों को कंप्यूटर नहीं समझ सकता और मशीन द्वारा समझे जाने वाले संकेतों को मनुष्य द्वारा याद रखना संभव नहीं है।
अतः मशीनी भाषा के सापेक्ष मनुष्य की स्थिति कुछ इस प्रकार होती है-

इसी प्रकार मानव भाषा के सापेक्ष मशीन की स्थिति कुछ इस प्रकार हो जाती है-

इस कारण मानव भाषा के कुछ शब्दों और तार्किक संक्रम (logical syntax) को आधार बनाकर निर्मित वह भाषा प्रोग्रामिंग भाषा है जिसमें दिए गए आदेश कंप्यूटर समझ लेता है और उनके अनुरूप इनपुट को संसाधित कर आउटपुट प्रदान करता है। प्रोग्रामिंग भाषाओं के माध्यम से कंप्यूटर प्रोग्राम बनाए जाते हैं जो किसी कार्य विशेष को संपन्न करते हैं। अत: सरलतम शब्दों में प्रोग्रामिंग भाषा वह भाषा है जिसमें कंप्यूटर प्रोग्राम बनाए जाते हैं। प्रोग्रामिंग भाषाओं में दिए गए आदेशों को मशीनी भाषा में रूपांतरित करने के लिए कंपाइलर और इंटरप्रेटर बनाए जाते हैं। मानव और मशीन के सापेक्ष प्रोग्रामिंग भाषा को चित्र के माध्यम से इस प्रकार से समझ सकते हैं-

प्रोग्रामिंग भाषा के प्रकार-
(1) स्तर के आधार पर
(क) निम्न-स्तरीय प्रोग्रामिंग भाषा (low level language)
(ख) उच्च-स्तरीय प्रोग्रामिंग भाषा (high level language)
(2) प्रकृति के आधार पर
(क) प्रक्रियात्मक प्रोग्रामिंग भाषा (procedural programming language)
(ख) वस्तु-केंद्रित प्रोग्रामिंग भाषा (object-oriented programming language)
(3) उद्देश्य के आधार पर
(क) सामान्य प्रोग्रामिंग भाषा
(ख) विशिष्ट प्रोग्रामिंग भाषा
                                     आदि।
प्रमुख प्रोग्रामिंग भाषाएँ-
Java
JavaScript
C#
PHP
Python
Objective-C
Ruby
Perl
C, C++

Visual Basic

प्रोग्राम क्या है ?(What is Program)


प्रोग्राम
किसी उद्देश्य विशेष की पूर्ति के लिए बनाई गई कोई भी कार्य-योजना प्रोग्राम है। हम अपने दैनिक जीवन में भी प्रोग्राम बनाते हैं, जैसे – फिल्म देखने का प्रोग्राम, किसी स्थान विशेष पर भ्रमण करने का प्रोग्राम आदि। प्रोग्राम में कोई उद्देश्य होता है और उसे पूरा करने के लिए चरणबद्ध तरीके से काम किया जाता है। कंप्यूटर में प्रोग्राम की अवधारणा भी इसी से जुड़ी हुई है। किसी कार्य (task) को पूर्ण करने लिए कंप्यूटर दिए जाने वाले चरणबद्ध आदेशों का समुच्चय प्रोग्राम है। कंप्यूटर प्रोग्राम में आदेश (commands) किसी डाटा का संसाधन करके समुचित आउटपुट प्रदान करने के लिए होते हैं। अत: प्रोग्राम –
                                                   

यह तो कंप्यूटर प्रोग्राम की एक सामान्य परिचयात्मक अवधारणा है। इसमें आदेश किस प्रकार के होंगे और उनके द्वारा कितने तरह की क्रियाएँ की जा सकेंगी, आदि प्रश्न भी महत्वपूर्ण होते हैं। इसके लिए भिन्न-भिन्न प्रकार के कथन (statement) लिखे जाते हैं। संसाधन के दौरान दो प्रक्रियाओं में से किसी एक का चयन करने के लिए तार्किक संरचनाओं (logical structures) का निर्माण किया जाता है। कंप्यूटर प्रोग्राम निर्माण के लिए प्रयुक्त डाटा को भी कई टाइपों में बाँटा गया है। इन्हें आगे विस्तार से बताया जाएगा।

Thursday, December 13, 2018

Wednesday, December 12, 2018

हिंदी वर्णमाला की लेखन विधि

केंद्रीय हिंदी निदेशालय द्वारा प्रकाशित 
देवनागरी लिपि तथा हिंदी वर्तनी का मानकीकरण पुस्तिका (2016) से साभार