हिंदी भाषा के विकास में विश्वविद्यालय के बढ़ते कदम
डॉ. धनजी प्रसाद
सहायक प्रोफेसर, (भाषा-प्रौद्योगिकी)
महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय, वर्धा (महाराष्ट्र)
dhpr.langtech@gmail.com
स्थापना दिवस (29-12-2018) हेतु वक्तव्य
महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी
विश्वविद्यालय, वर्धा अपनी स्थापना के बाद से ही हिंदी भाषा के विकास के प्रति अग्रसर
है। हिंदी भाषा वर्तमान समय में विश्व पटल पर एक सशक्त भाषा के रूप में स्थापित
रखने के लिए इसे कंप्यूटर और इंटरनेट की भाषा बनाना आवश्यक है। इस संदर्भ में
विश्वविद्यालय ने विभिन्न दिशाओं से प्रयास किए हैं। विश्वविद्यालय द्वारा विकसित ‘हिंदी समय’ (http://www.hindisamay.com/) इस दिशा में एक उल्लेखनीय कदम है, जिसमें हिंदी के प्रमुख
साहित्यकारों की रचनाओं की सामग्री पाँच लाख पृष्ठों से अधिक मात्रा में उपलब्ध है
और आगे भी कार्य निरंतर जारी है। हिंदी के विविध रचनाकारों को इसमें वर्णानुक्रम
में उनके नाम के अनुसार खोजा जा सकता है, अथवा हिंदी साहित्य
के विविध क्षेत्रों के लिए दिए गए टैबों को क्लिक करके भी आवश्यक सामग्री प्राप्त
की जा सकती है-
इसके माध्यम से लाखों पृष्ठ की हिंदी
सामग्री डिजिटल रूप में विश्व-पटल पर उपस्थित हो सकी है और आज इसे विश्व के
कोने-कोने से देखा जा रहा है। विश्वविद्यालय ने UGC-MHRD की EPG पाठशाला
नामक महत्वाकांक्षी परियोजना के अंतर्गत हिंदी में 280 पाठ और ऑडियो-विडियो
निर्मित किए हैं, जिनमें से 40 भाषा से संबंधित हैं।
इसी प्रकार विश्वविद्यालय
द्वारा हिंदी भाषा से संबंधित कुछ सॉफ्टवेयरों का विकास भी किया गया है, जिनमें टंकण और फॉन्ट
परिवर्तन संबंधी टूल्स हैं, जिनका मुख्य संबंध कंप्यूटर पर
हिंदी माध्यम से टंकण करने और उसका किसी भी कंप्यूटर पर प्रयोग करने से है। ‘कृतिदेव-यूनिकोड’ में परस्पर अंतरण संबंधी टूल
विश्वविद्यालय की वेबसाइट पर उपलब्ध है। इस क्रम में प्रखर देवनागरी फॉन्ट
परिवर्तक आदि भी उल्लेखनीय हैं। इसी प्रकार विराम-चिह्न,
वर्तनी, मानक प्रयोग और व्याकरण आदि में होने वाली त्रुटियों
का विभिन्न सॉफ्टवेयरों के माध्यम से स्वचलित सुधार आवश्यक है, जिनमें मुख्य रूप से ‘वर्तनी जाँचक’ की बात की जाती है। ये सॉफ्टवेयर वर्तनी संबंधी त्रुटियों की पहचान करते हैं
और सुझाव प्रस्तुत करते हैं। विश्वविद्यालय में सक्षम और कुशल नामक वर्तनी जाँचक
भी विकसित किए गए हैं। व्याकरण संबंधी त्रुटियाँ होने पर उनका परीक्षण कर सुधार
प्रस्तुत करना एक अधिक उच्च स्तर का कार्य है। इस दिशा में विश्वविद्यालय द्वारा
प्रयास किया जा रहा है और ‘आचार्य’
नामक व्याकरण जाँचक निर्माणाधीन है। इसी प्रकार हिंदी के भाषायी संसाधन से संबंधित
टूल्स, जैसे- रूप विश्लेषक (Morph Generator) : ऐसे सॉफ्टवेयर जो पदों (वाक्य में प्रयुक्त होने वाले शब्दों) का
रूपिमिक विश्लेषण करते हैं, रूप प्रजनक (Morph
Analyzer) : ऐसे सॉफ्टवेयर जो शब्दों से पदों (वाक्य में प्रयुक्त
होने वाले रूपों) का प्रजनन करते हैं, टैगर (Tagger) : ऐसे
सॉफ्टवेयर जो किसी पाठ के प्रत्येक शब्द के साथ उसके टैग से संबंधित सूचनाएँ जोड़
देते हैं, आदि की दिशा में पहल की गई है।
शब्दकोश और व्याकरण किसी भी भाषा के
आधार होते हैं। हिंदी को समय के साथ अद्यतन बनाए रखने के लिए यह आवश्यक है कि
हिंदी के शब्दकोश और व्याकरण निरंतर प्रकाशित किए जाते रहें। विश्वविद्यालय ने इस
क्षेत्र में योगदान दिया है और न केवल हिंदी भाषा बल्कि हिंदी समाज, संस्कृति, लोक और हिंदी के अंतरराष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य को समाहित करते हुए विविध
कोश निर्मित किए हैं, जिनमें ‘वर्धा
हिंदी शब्दकोश, समाज-विज्ञान विश्वकोश,
अहिंसा-विश्वकोश, भोजपुरी-हिंदी-अंग्रेजी शब्दकोश, स्पेनी-अंग्रेजी-हिंदी शब्दकोश,
जापानी-अंग्रेजी-हिंदी शब्दकोश’ आदि प्रमुख हैं। वर्तमान में
‘मानक हिंदी प्रयोग कोश’ परियोजना के
माध्यम से हिंदी शब्दों को उनके वास्तविक प्रयोगों के माध्यम से अर्थ को देखने का
प्रयास एक बड़ी योजना है, जिसमें अब तक लगभग 10,000 प्रविष्टियाँ डाली जा चुकी हैं। ‘हिंदी का
संगणकीय व्याकरण’, ‘हिंदी का अंतरराष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य’ आदि व्याकरण
और हिंदी शिक्षण से संबंधित नवीन पुस्तकों में हैं। विश्वविद्यालय निरंतर
पत्र-पत्रिकाओं का प्रकाशन भी कर रहा है, जिनमें बहुवचन, पुस्तक-वार्ता, Hindi Language Discourse Writing, निमित्त, अनुसृजन आदि में विविध प्रकार के शोध-आलेख
देखे जा सकते हैं। ब्लॉग और सोशल मीडिया प्लेटफार्मों द्वारा भी हिंदी सामग्री
उपलब्ध कराने की दिशा में विश्वविद्यालय के कुछ विभागों ने अभिनव प्रयास किए हैं, जिनमें से ‘भाषा और भाषा प्रौद्योगिकी’ (https://lgandlt.blogspot.com/) को देखा जा सकता है।
आज देश-विदेश में हिंदी सीखने वालों की
भरमार है। उन सभी को उनकी आवश्यकता के अनुसार शिक्षण सामग्री उपलब्ध कराने का
हिंदी विश्वविद्यालय द्वारा निरंतर प्रयास किया गया है। अब तक 500 से अधिक विदेशी
विद्यार्थी विभिन्न पाठ्यक्रमों के माध्यम से हिंदी सीख चुके हैं, जो चीन, थाईलैंड, जापान, श्रीलंका, जर्मनी, इटली, फ्रांस इजराइल
आदि विविध देशों से रहे हैं। थाईलैंड और श्रीलंका के विद्यार्थियों ने
विश्वविद्यालय से एम.ए. और पीएच.डी. की उपाधियाँ भी प्राप्त की हैं। विश्वविद्यालय
ने उनके लिए चार सप्ताह, एक माह, तीन
माह, छह माह, एक वर्ष आदि विविध
समयावधियों के पाठ्यक्रम तैयार किए हैं और तदनुरूप पाठ्य-सामग्री भी विकसित की
है। हिंदी को एक भाषा के रूप में सीखने
वाले विद्यार्थियों को सॉफ्टवेयर या प्रोग्राम के माध्यम से हिंदी की भाषिक
सामग्री उपलब्ध कराने का प्रयास भी विश्वविद्यालय द्वारा किया जा रहा है।
विश्वविद्यालय में हिंदी के
शिक्षण-प्रशिक्षण और सामग्री विकास के साथ ही हिंदी के विविध पक्षों पर शोधकार्य
भी निरंतर किया जा रहा है। ये शोधकार्य हिंदी भाषा, तकनीकी, अनुवाद, साहित्य, मीडिया, शिक्षा, डायस्पोरा, गांधी विचार (अहिंसा आदि), स्त्री, दलित, जनजाति, आदिवासी चिंतन, हिंदी और अन्य भारतीय भाषाएँ तथा
लोक सभी क्षेत्रों से जुड़े हैं।
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