भाषा और भाषाविज्ञान (Language and Linguistics)
भाषा की सर्वसामान्य परिभाषा इस प्रकार दी गई है-
भाषा यादृच्छिक ध्वनि-प्रतीकों की वह व्यवस्था
है,
जिसके माध्यम से मनुष्य विचार करता है तथा
अपने भाषायी समाज में विचारों का आदान-प्रदान करता है।
इस परिभाषा में कुछ शब्दों को बोल्ड किया गया है। जिन्हें समझने
के बाद इस परिभाषा को सरलता से समझा जा सकता है। बोल्ड किए गए पारिभाषिक शब्द इस प्रकार
है-
·
यादृच्छिक
·
ध्वनि-प्रतीक
·
व्यवस्था
·
मनुष्य
·
विचार
करना
·
अपना
भाषायी समाज
·
विचारों
का आदान-प्रदान
भाषा की परिभाषा और इनकी व्याख्या को इस लिंक पर जाकर देखा जा
सकता है-
हम विचारों की अभिव्यक्ति के लिए ध्वनि-प्रतीकों का प्रयोग करते
हैं, जि निरर्थक होते हैं। भाषा उन्हें वाक्य या
पाठ (प्रोक्ति) के रूप में गठित कर देती है। इस कारण वे अर्थ को धारण करने में सक्षम
हो जाते हैं। किंतु ऐसा नहीं होता है कि भाषा ध्वनियों से सीधे-सीधे वाक्य (या प्रोक्ति)
बना दे, बल्कि इसके नियम कई स्तरों पर कार्य करते हैं। इन सभी
स्तरों पर भाषाविज्ञान भाषा का वैज्ञानिक अध्ययन करता है। बढ़ते हुए क्रम में भाषिक
स्तर इस प्रकार हैं:
स्वनिम
रूपिम शब्द पदबंध
उपवाक्य वाक्य प्रोक्ति
उपर्युक्त इकाइयों में प्रत्येक बड़ी इकाई एक से अधिक छोटी
इकाइयों (या कम से कम एक) के परस्पर मिलने से बनी होती है। भाषावैज्ञानिक उन
नियमों और स्थितियों को खोजने का प्रयास करते हैं जिनमें छोटी इकाइयों को मिलाकर
बड़ी इकाई का निर्माण किया जाता है और व्यवहार में लाया जाता है। सामान्य भाषिक
व्यवहार में ‘स्वन’ भाषा की सबसे छोटी इकाई है। जब स्वनों का प्रयोग वाक्यात्मक और अर्थपूर्ण
ढंग से किया जाता है तब ये संप्रेषणात्मक हो जाते हैं और इनका प्रयोग ‘अर्थ’ (अर्थपूर्ण विचारों) के प्रेषण और ग्रहण हेतु
किया जाता है। यहाँ पर एक बात महत्वपूर्ण है कि न तो ‘स्वन’ भाषा हैं और न ही ‘अर्थ’।
भाषा एक व्यवस्था है जो स्वनों को अर्थ से जोड़ती है। यह अमूर्त होती है और मानव
मस्तिष्क में पाई जाती है। भाषाविज्ञान में इसी व्यवस्था का अध्ययन विभिन्न शाखाओं
के माध्यम से किया जाता है, जिन्हें इस प्रकार से देख सकते हैं-
भाषाविज्ञान की उक्त शाखाओं का विवेच्य विषय सैद्धांतिक भाषाविज्ञान
के अंतर्गत आता है। यहाँ हम अनुप्रयुक्त भाषाविज्ञान की चर्चा करने जा रहे हैं।
अनुप्रयुक्त
भाषाविज्ञान (Applied Linguistics)
भाषाविज्ञान मानव भाषाओं का वैज्ञानिक दृष्टि से सैद्धांतिक
अध्ययन करता है। किंतु आप एक प्रश्न कर सकते हैं कि उस अध्ययन का हम करेंगे क्या? इस प्रश्न के उत्तरस्वरूप
उन क्षेत्रों की चर्चा की जाती है, जिनमें भाषा के सैद्धांतिक
ज्ञान का उपयोग किया जाता है। उन सभी क्षेत्रों को अनुप्रयोग क्षेत्र कहते हैं और उन्हें
सामूहिक रूप से अनुप्रयुक्त भाषाविज्ञान के अंतर्गत रखा जाता है। इन क्षेत्रों के प्रयोग, रूप और प्रकृति के अनुसार निम्नलिखित तीन वर्गों में रखा जा सकता है :
1. व्यावहारिक अनुप्रयोग
2. अंतरानुशासनिक अनुप्रयोग
3.
तकनीकी अनुप्रयोग
(1) व्यावहारिक अनुप्रयोग (Practical Application)
यहाँ पर ‘व्यावहारिक’ शब्द का तात्पर्य ‘वास्तविक जीवन में सीधे-सीधे
अनुप्रयोग’ से है। मानव जीवन के अनेक कार्य ऐसे हैं जिनमें
भाषावैज्ञानिक ज्ञान की आवश्यकता होती है। ये कार्य मुख्यत: भाषा और
अध्ययन-अध्यापन से जुड़े हैं; जैसे : अनुवाद का कार्य, कोश निर्माण का कार्य आदि। इन सभी क्षेत्रों में भाषावैज्ञानिक ज्ञान का
उपयोग करते हुए ऐसी वस्तुओं का निर्माण या विकास किया जाता है जिन्हें वास्तविक
जीवन में देखा जाता है और प्रयोग में लाया जाता है। जैसे : ‘अनुवाद’ में दो भाषाओं के भाषावैज्ञानिक ज्ञान का उपयोग किया जाता है और इसके
माध्यम से लक्ष्यभाषा में एक अनूदित पाठ प्राप्त होता है। ‘कोशविज्ञान’ में विभिन्न भाषाओं के कोशों का निर्माण किया जाता है।
(2) अंतरानुशासनिक अनुप्रयोग
इस प्रकार के अनुप्रयोगों को ‘ज्ञानार्जन
आधारित अनुप्रयोग’ भी कहा जा सकता है। भाषाविज्ञान के
अंतरानुशासनिक या ज्ञानार्जन आधारित अनुप्रयोग का तात्पर्य ‘भाषावैज्ञानिक
ज्ञान का प्रयोग अन्य शास्त्रों के साथ मिलकर करते हुए भाषा के सभी पक्षों के बारे
में अधिक से अधिक ज्ञान अर्जित करने’ से है।
इस आधार पर बनने वाले अंतरानुशासनिक अनुप्रयोग के क्षेत्र इस
प्रकार हैं-
तकनीकी अनुप्रयोग (Technological Application
भाषावैज्ञानिक ज्ञान का तकनीकी क्षेत्र में
अनुप्रयोगात्मक पक्ष मुख्यतः तकनीकी क्षेत्र के आधुनिक अविष्कारों संगणक, मोबाइल और
अन्य स्वचलित मशीनों के विकास से संबंधित है। दूसरे शब्दों में भाषाविज्ञान का
तकनीकी अनुप्रयोग डिजिटल मशीनों मुख्यतः संगणक से जुड़ा हुआ है। आज अनेक ‘सॉफ्टवेयरों और अनुप्रयोग प्रणालियों’ (Softwares
and Application systems) का विकास संगणक द्वारा किया जा रहा है। ये
हमारे जीवन के सभी क्षेत्रों से जुड़े हुए हैं। इनका प्रयोग करते हुए आज हम पहले की
अपेक्षा अधिक सरलता से और तेजी से अपने दैनिक, कार्यालयी एवं
व्यवसायिक कार्यों को कर लेते हैं। किंतु यह सत्य है कि हमारे सभी कार्य किसी न
किसी रूप में भाषा से जुड़े हुए हैं। इसीलिए संगणक को और अधिक उपयोगी बनाने के लिए
इसमें भाषिक ज्ञान को स्थापित करना आवश्यक हो जाता है।
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