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Tuesday, June 9, 2020

अल्ज़ाइमर bbc

BBC विशेष

लिंक: https://www.bbc.com/hindi/vert-fut-52907099

अल्ज़ाइमर बीमारी का इलाज जगमगाती रोशनी कैसे कर सकती है?

रोशनीइमेज कॉपीरइटEMMANUEL LAFONT
Image captionचमकीली रोशनी और क्लिकिंग साउंड्स के संयोजन से एक ख़ास तरह की तरंग तैयार की गई है
अल्ज़ाइमर, भूलने की बीमारी है. इस बीमारी में इंसान की याददाश्त कमज़ोर होने लगती है. बोलने में लड़खड़ाहट हो जाती है और फ़ैसला लेने की क्षमता कमज़ोर हो जाती है.
ये बीमारी अमूमन 60 साल की उम्र के बाद होती है और इसका कोई स्थाई इलाज भी नहीं है. हालांकि नियमित जाँच और शुरुआती इलाज से इस पर क़ाबू पाया जा सकता है.
लेकिन मरीज़ पूरी तरह ठीक हो ही जाएगा कहना मुश्किल है.
अब वैज्ञानिकों ने इसके इलाज का अनूठा तरीक़ा निकाला है.
चमकीली रोशनी और क्लिकिंग साउंड्स के संयोजन से एक ख़ास तरह की तरंग तैयार की गई है. जिसे गामा तरंग कहते हैं. इन गामा तरंगों से अल्ज़ाइमर का इलाज संभव बनाने का प्रयास किया जा रहा है.

डिमेंशिया की बीमारी में लाभप्रद

रिसर्चर ली-ह्युई त्साई इस दिशा में लंबे समय से काम कर रही हैं. उनका अभी तक का शोध डिमेंशिया की सबसे सामान्य बीमारी ठीक करने में काफ़ी हद तक कारगर साबित हुआ है.
पूरी दुनिया में अभी क़रीब 5 करोड़ लोग डिमेंशिया का शिकार हैं. 2050 तक ये संख्या तीन गुनी हो जाने की आशंका है.
ग्राफ़िक्सइमेज कॉपीरइटEMMANUEL LAFONT
Image captionफ्लेमेंको डांसर के पैरों की थाप जैसे साउंड से दिमाग़ में हलचल पैदा होती है.
अल्ज़ाइमर के मर्ज़ में दिमाग़ की कोशिकाओं के बाहर विषैले अमाइलॉइड की परत जम जाती है. इस परत की वजह से ही दिमाग़ के सभी हिस्सों में तालमेल नहीं बैठ पाता. पिछले तीन दशक से अमाइलॉइड की परत हटाने की दवा बनाने पर ही काम किया जा रहा है. लेकिन अभी तक कामयाबी नहीं मिली है.
नए अध्ययनों से इशारा मिल रहा है कि केमिकल इलाज के बजाय बिजली से उपचार इसका एक बेहतर विकल्प हो सकता है.
तरंगों के माध्यम से ज़हरीले पदार्थ को अपना असर शुरू करने से पहले ही ख़त्म किया जा सकता है. जिस तरह टीवी और रेडियो में अलग-अलग रेडियो वेव के माध्यम से कार्यक्रम प्रसारित किए जाते हैं
ठीक उसी तरह अलग-अलग फ्रीक्वेंसी वाली ब्रेनवेव के माध्यम से ये इलाज किया जाता है.

तरंगों के प्रवाह से काम करने लगा माइक्रोग्लिया

वर्ष 2000 की एक स्टडी में बताया गया है कि अल्ज़ाइमर के मरीज़ों में गामा तरंग कमज़ोर होती हैं. दिमाग़ में ये ख़लल बीमारी के बाद शुरू होती है या किसी न्यूरोडिजेनरेशन का परिणाम होता है, कहना मुश्किल है.
इसके लिए त्साई की टीम ने ऑप्टोजेनेटिक्स नाम की तरंगों को खोपड़ी में भेजकर गामा तरंग को उत्तेजित करके निरीक्षण किया.
उनकी टीम ने पाया कि इस प्रयोग से ना सिर्फ़ अल्ज़ाइमर रोग से जुड़े अमाइलॉइड के टुकड़ों में कमी आई. बल्कि, जिस तंत्र की वजह से ये मर्ज़ होता है उसे नियंत्रित करने में भी कामयाबी मिली.
गामा तरंगों के माध्यम से माइक्रोग्लिया सक्रिय हो गयाइमेज कॉपीरइटEMMANUEL LAFONT
Image captionगामा तरंगों के माध्यम से माइक्रोग्लिया सक्रिय हो गया
माइक्रोग्लिया मस्तिष्क में एक विशेष प्रकार की कोशिकाएं होती हैं जो दिमाग़ के कार्यवाहक और सुरक्षा गार्ड के रूप में काम करती हैं.
प्रोफ़ेसर त्साई कहती हैं कि ये कोशिकाएं दिमाग़ की इम्यून सर्विलांस हैं. पिछली रिसर्च में पाया गया था कि अल्ज़ाइमर के मरीज़ों में माइक्रोग्लिया अपनी ज़िम्मेदारियां सही तरीक़े से नहीं निभा रहे थे. लेकिन गामा तरंगों के माध्यम से माइक्रोग्लिया से उसका काम पूरी कामयाबी के साथ करा लिया गया. मात्र एक घंटे तक तरंगों के प्रहार से माइक्रोग्लिया सक्रिय रूप से काम करने लगीं.
गामा तरंगों को लेकर अभी तक जितने प्रयोग हुए हैं उनके नतीजे काफ़ी संतोषजनक हैं.
ऑप्टोजेनेटिक स्टिमयुलेशन के लिए सर्जरी की आवश्यकता होती है. लेकिन ये ऐसा उपचार नहीं है जिसे आसानी से मनुष्यों पर लागू किया जा सके. इसलिए इसका प्रयोग चूहे पर किया गया.
गामा तरंगों का परीक्षण चूहों पर तो कामयाब रहाइमेज कॉपीरइटEMMANUEL LAFONT
Image captionगामा तरंगों का परीक्षण चूहों पर तो कामयाब रहा

चूहों पर परीक्षण सफल

एक प्रयोग में चूहों पर हर रोज़ एक घंटे के लिए प्रकाश डाला गया जबकि दूसरे प्रयोग में तेज़ ध्वनियों का इस्तेमाल किया. पाया गया कि गामा तरंगे दिमाग़ की सुरक्षा गार्ड माइक्रोग्लिया कोशिकाओं की बढ़ी हुई गतिविधियों के साथ-साथ विषाक्त अमाइलॉइड के कम स्तर के साथ भी थीं.
यही नहीं चूहों के व्यवहार में भी अंतर देखा गया. उत्तेजना प्राप्त करने वाले चूहों को एक भूलभुलैया के आसपास अपना रास्ता सीखना आसान हो गया, जबकि अन्य बड़े होने के साथ-साथ भुलक्कड़ हो गए.
गामा तरंगों का परीक्षण चूहों पर तो कामयाब रहा. लेकिन, अब इंसान पर भी इसे आज़माने के लिए क्लिनिकल ट्रायल शुरू हो चुका है. डिमेंशिया के शुरुआती लक्षण वाले मरीज़ों में तो इस प्रयोग का नतीजा बहुत ही कारगर साबित हुआ है.
लेकिन अभी ये नतीजे बहुत शुरुआती हैं. ज़्यादा बेहतर नतीजों के लिए अभी बड़े सैम्पल के साथ यही प्रयोग दोहराने की ज़रूरत है.
महिलाएंइमेज कॉपीरइटEMMANUEL LAFONT
Image captionअल्ज़ाइमर बीमारी के इलाज में गामा नए रास्ते खोल सकता है

सेहतमंद इंसानों को भी दी जा सकती है?

मरीज़ को गामा तरंगें कितनी फ़्रिक्वेंसी पर दी जानी हैं अभी इसका भी ट्रायल होना बाक़ी है. साथ ही ये भी पता लगाने की कोशिश की जा रही है कि क्या गामा तरंगें किसी सेहतमंद इंसान को भी दी जा सकती हैं.
लेकिन प्रोफ़ेसर त्साई कहती हैं कि किसी भी तरंग के इस्तेमाल की एक सीमा है. फिर भी एक उम्र के बाद याद्दाश्त कमज़ोर होने के लक्षण शुरू होने के साथ ही गामा तरंगे इस्तेमाल करने की सलाह दी जा सकती है.
बहरहाल, अल्ज़ाइमर जैसी बीमारी से जड़े अभी बहुत से सवाल ऐसे हैं जिनका जवाब तलाशना अभी बाक़ी है. लेकिन, जिस दिशा में रिसर्च आगे बढ़ रहे हैं, उन्हें देख कर ये लगता है कि बहुत जल्द इस बीमारी का सही इलाज तलाश लिया जाएगा.
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