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क्या हम कभी जानवरों से बातें कर पाएंगे?
हममें से बहुत से लोग अपने आस-पास के जानवरों को अपना ही हिस्सा समझते हैं.
पालतू जानवरों और अपने प्यारे दोस्तों से हम लंबी बातें करते हैं और अक्सर सोचते हैं कि हम उनसे जो भी कह रहे हैं वे उनको समझ सकते हैं.
लेकिन मानव और ग़ैर-मानव संचार के बीच की खाई अब भी बहुत चौड़ी है.
क्या कभी ऐसा समय आएगा जब डॉक्टर डूलिटल की तरह हम जानवरों से बातें करने में सक्षम होंगे और वे भी हमें जवाब देंगे?
वैसे तो यह कोरी गप और कल्पना की बात लगती है लेकिन क्या मशीनों की कृत्रिम बुद्धि और नई तकनीक से जानवरों की बोली का अनुवाद मुमकिन है?
जानवर बातें कर रहे हैं
जानवर कई तरीक़ों से संचार करते हैं- इशारों से, भाव-भंगिमाओं से, रंग बदलकर, आवाज़ें निकालकर, केमिकल छोड़कर, तरंगें पैदा करके, शरीर को गर्म या ठंडा करके और स्पर्श से.
इन संकेतों के कई कारण हो सकते हैं जिनमें साथी को आकर्षित करने से लेकर शिकारियों के बारे में चेतावनी देना तक शामिल हो सकता है.
शिकारी जानवरों के संचार में अपने साथियों को शिकार के मौजूद होने की जगह के बारे में जानकारी हो सकती है.
इस तरह के ज़्यादातर संचार एक ही प्रजाति के जानवरों के बीच सूचनाएं पास करने के लिए होते हैं लेकिन अंतर-प्रजातीय संचार के उदाहरण भी बहुतायत में हैं, ख़ासकर शिकारी और शिकार के बीच.
उस कीड़े या मछली के बारे में सोचिए जो अपना रंग बदलकर हमलावर को अपने ज़हरीले होने के बारे में आगाह करती है.
लेकिन क्या इस तरह की घटनाएं इंसानों और अन्य जानवरों के बीच हो सकती हैं?
क्या हम कभी एक-दूसरे को समझ पाएंगे?
पालतू कुत्ते के मालिकों को पता है कि वो अपने जज़्बात ज़ाहिर कर सकते हैं और पालतू जानवर उसे समझ जाते हैं.
यदि आप कुत्ते को किसी ग़लत काम के लिए डांटते हैं तो वह जानता है कि इससे दूर रहने को कहा जा रहा है और वह उसी हिसाब से प्रतिक्रिया देता है. फिर भी यह सोचने में ख़तरा है कि मानव संचार जानवरों के लिए आसान है.
जैसा कि अमरीकी दार्शनिक थॉमस नैगेल ने कहा है कि हमारी अपनी चेतना और विशिष्ट इंसानी तजुर्बे की वजह से जानवरों की चेतना हमारी पहुंच से दूर है.
बाकी जानवरों के साम्राज्य में दुनिया को लेकर उनका तजुर्बा हमारे लिए पूरी तरह अनजाना है.
इसलिए, अगर हम यह समझ भी लें कि उनकी चीं-चीं, म्याऊं-म्याऊं और घुरघुराने का क्या अनुवाद है तो क्या हम उनका मतलब समझ पाएंगे?
वास्तव में हम यह भी नहीं जानते कि इंसानों ने बोलना कैसे शुरू किया.
जानवरों की भाषा को (यदि ऐसी किसी चीज़ का अस्तित्व है) समझने की कोशिश में एक और दिक़्क़त यह है कि हम पूरी तरह इंसान की अपनी भाषा के बारे में भी नहीं जानते. न ही हमें यह पता है कि इसका विकास कैसे हुआ.
हमें असल में यह नहीं मालूम कि कैसे और क्यों हमने संचार की ऐसी व्यवस्था बनाई जो दूसरे जानवरों से इतनी अलग है.
एक सिद्धांत यह है कि हमारी भाषा धीरे-धीरे विकसित हुई जिसकी शुरुआत शारीरिक संकेतों और हाव-भाव से हुई. फिर हमने कुछ ध्वनियां निकालीं, जब तक कि पूरी शब्दावली तैयार नहीं हो गई.
एक और सिद्धांत कहता है कि इंसानी भाषा चिड़ियों के गीत की तरह शुरू हुई. इसमें ध्वनियों की एक जटिल श्रृंखला है जिसमें उसका अर्थ निहित है.
लेकिन यदि इन दो में से कोई एक बात भी सही है तो सवाल है कि दूसरी प्रजातियों ने इसी तरह अपनी भाषा क्यों नहीं विकसित की?
क्या कोई भी दूसरा जीव भाषा का वैसा ही इस्तेमाल करता है जैसा हम करते हैं- सिर्फ़ बाहरी उत्तेजनाओं पर प्रतिक्रिया देने के लिए नहीं, बल्कि अपने अमूर्त विचारों को व्यक्त करने और रचनात्मकता जगाने के लिए?
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पशु भाषाविद?
जानवरों के संकेतों का अनुवाद करके उसे समझने के प्रयासों में हम कितना आगे बढ़े हैं?
सांकेतिक भाषा के 1000 संकेतों में महारत हासिल करने वाली मशहूर गोरिल्ला कोको के बारे में गहराई से छान-बीन हुई है.
विज्ञान के कुछ क्षेत्रों में यह महसूस किया गया कि कोको को वास्तव में इस बात की बहुत कम या बिल्कुल भी समझ नहीं थी कि उसके इशारों का असल मतलब क्या है.
एक और उदाहरण तोते का है जो 100 शब्दों को सीख और बोल सकते हैं. वे अपनी ज़रूरतों और इच्छाओं को व्यक्त कर सकते हैं, जैसे भोजन की ज़रूरत.
लेकिन शोधकर्ताओं को यह मालूम नहीं है कि क्या उनको वाक़ई इन शब्दों की समझ है. क्या यह सिर्फ़ सीखा हुआ व्यवहार है?
वैज्ञानिक डॉल्फिन, हाथी, ह्वेल, घोड़े, कुत्ते और बंदरों के साथ भी बुनियादी किस्म की संचार समझ व्यक्त करने में सक्षम हैं.
क्या तकनीक इसका जवाब है?
तकनीक का विकास करने से हमें जानवरों के बारे में हमारी समझ बढ़ाने में कैसे मदद मिलेगी?
पिछले कई साल से, कंपनियां यह दावा कर रही हैं कि उन्होंने जानवरों की भाषा का अनुवाद करने वाले ऐप या इंटरफ़ेस बना लिए हैं.
लेकिन ऐसे कई दावे ख़ारिज हो गए या वे बहुत ही बुनियादी किस्म के संचार के बारे में ही मददगार हैं (जैसे मेरा कुत्ता ग़ुस्से में है, उदास है या नींद में है).
मशीनों की कृत्रिम बुद्धि और डीप लर्निंग एल्गोरिद्म के विकास ने बड़े डेटा का इस्तेमाल करके जानवरों की शब्दावली तैयार करने के विचार को आगे बढ़ाया है.
दशकों से प्रेयरी डॉग (चूहों की नस्ल के जीव) की ध्वनियों का अध्ययन कर रहे एक शोधकर्ता को यकीन है कि अगले दस साल के अंदर पालतू कुत्तों की आवाज़ का अनुवाद करने वाली मशीन उपलब्ध होगी.
लेकिन समस्या बनी हुई है. हम कभी यह कैसे जान पाएंगे कि हम जिसे कुत्ते का भौंकना समझते हैं वहां असल में कुत्ते कुछ बताना चाहते हैं?
क्या कभी कोई जानवर हमें यह बता पाएगा कि हमारा अनुवाद सटीक है? और क्या हमें कभी जानवरों को समझने का प्रयास करना चाहिए?
खेतों में काम करने वाले जानवरों या पालतू जानवरों के मामले में मुमकिन है कि वे ऐसा कुछ कहें जिसे हम सुनना न चाहें.
(मूल लेख अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें, जो बीबीसी अर्थ पर उपलब्ध है.)
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