भाषा नियोजन (Language Planning)
किसी ‘क्षेत्र’ की एक या एकाधिक भाषाओं के प्रकार्य, संरचना एवं भाषा अर्जन या अधिगम हेतु किया जाने वाला नियोजन भाषा नियोजन कहलाता है। यहाँ ‘क्षेत्र’ से तात्पर्य भाषायी समाज, देश का एक निश्चित भौगोलिक क्षेत्र आदि से है। नियोजन का अर्थ है- ‘योजनाबद्ध ढंग से प्रभावित करना’। चूँकि इसमें लिए जाने वाले निर्णय विशाल जनसंख्या को प्रभावित करते हैं, इस कारण प्रायः यह कार्य सरकार द्वारा किया जाता है, किंतु साथ ही इसमें अनेक सरकारी/ गैर-सरकारी संस्थाएँ एवं व्यक्ति भी सहभागी होते हैं। इसमें सहभागी होने वाले लोगों के लिए भाषाविज्ञान या समाजभाषाविज्ञान का ज्ञान आवश्यक होता है। यद्यपि अन्य प्रकार के लोग भी इसमें सहभागी होते हैं, किंतु भाषाओं की स्थिति और प्रकार्य के निर्धारण में समाजभाषावैज्ञानिकों की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण होती है, क्योंकि वे द्विभाषिकता, बहुभाषिकता, भाषाद्वैत, भाषा विस्थापन, भाषा निष्ठा, भाषा संरक्षण आदि संबंधी स्थितियों से भली-भाँति परिचित होते हैं।
भाषा-नियोजन के अंतर्गत मुख्य रूप से निम्नलिखित कार्य आते हैं-
(1) स्थिति नियोजन (Status planning)- जब किसी भाषायी समाज में एक से अधिक भाषाओं का व्यवहार होता है, तो यह निर्धारित करना कि किस भाषा का प्रयोग किस प्रयोजन के लिए होगा? स्थिति नियोजन के अंतर्गत आता है। इसमें हम केवल प्रयोजन का ही निर्धारण नहीं करते हैं, बल्कि उन भाषाओं के प्रयोग की स्थितियों का निर्धारण करते हैं। उदाहरण के लिए हिंदी भाषी समाज में ‘हिंदी’ और ‘अंग्रेजी’ के संदर्भ में स्थितियों का निर्धारण किया गया है। जैसे उच्च न्यायालय एवं उच्चतम न्यायालय की मूल भाषा ‘अंग्रेजी’ होगी तथा आवश्यकतानुसार कहीं-कहीं ‘हिंदी’ के प्रयोग की अनुमति है। यह विधि के क्षेत्र में इन भाषाओं की स्थिति का निर्धारण है।
इसी प्रकार किसी देश की राजभाषा का निर्धारण, राष्ट्रभाषा की स्थिति पर विचार, किसी भाषा की लिपि का निर्धारण/विकास आदि संबंधी कार्य भी इसके अंतर्गत आते हैं। हिंदी अंग्रेजी और अन्य भारतीय भाषाओं की स्थिति के निर्धारण के संबंध में राजभाषा अधिनियम 1976 के अंतर्गत भारत सरकार द्वारा किए गए प्रावधानों को निम्नलिखित लिंक पर ‘15.6.2 संपर्क भाषा’ शीर्षक के अंतर्गत देखा जा सकता है-
हिंदी का अधुनिक विकास और संवैधानिक स्थिति
(2) कॉर्पस नियोजन (Corpus planning)- तकनीकी रूप से किसी भाषा के वास्तविक व्यवहार से संकलित पाठों का विशाल संग्रह कार्पस कहलाता है। पाठों का यह संग्रह इतना विशाल और इतना वैविध्यपूर्ण होता है कि उसमें उस भाषा के व्यवहार के सभी प्रयोग क्षेत्र, उनकी प्रयुक्तियाँ (registers), शब्दावली तथा विविध प्रकार की वाक्य रचनाएँ आदि सभी का समावेश हो जाता है। किंतु हम जानते हैं कि भाषा निरंतर परिवर्तनशील एवं विकासशील इकाई है। अतः समय के साथ नये शब्दों, अभिव्यक्तियों का सृजन आदि होता ही रहता है। अतः उसके लिए आवश्यक शब्दावली, अभिव्यक्ति रूपों तथा भाषा के मानक रूप का निर्माण, जैसे- वर्तनी और व्याकरण, शब्दकोश निर्माण, भाषायी शुद्धता बनाए रखने संबंधी कार्य आदि कार्पस नियोजन के अंतर्गत आते हैं।
हिंदी के संदर्भ में देखा जाए तो भारत सरकार द्वारा केंद्रीय हिंदी निदेशालय के अंतर्गत वैज्ञानिक एवं तकनीकी शब्दावली निर्माण आयोग को मानक हिंदी वर्तनी तथा शब्दावली के विकास का कार्य दिया गया है। आयोग द्वारा समय-समय पर मानक हिंदी वर्तनी संबंधी पुस्तिका का प्रकाशन किया जाता है इनमें से 2016 में प्रकाशित मानक हिंदी वर्तनी संबंधी पुस्तिका को इस लिंक पर देख सकते हैं-
https://lgandlt.blogspot.com/2020/08/2016.html
(3) अर्जन नियोजन (Acquisition planning)- मानव शिशु जन्म के पश्चात अपने परिवार और परिवेश में प्राप्त भाषा को सीखता है, जिसे उसकी मातृभाषा कहते हैं, किंतु जब उस समाज में एक से अधिक भाषाओं का प्रयोग होता है या हो रहा होता है, तो ऐसी स्थिति में उसके प्राथमिक शिक्षण के दौरान कौन-सी भाषा का किस रूप में शिक्षण किया जाए तथा किस भाषा के माध्यम से शिक्षण प्रक्रिया संपन्न की जाए? आदि इसके अंतर्गत आते हैं।
अतः इसमें प्रथम भाषा का शिक्षण, द्वितीय भाषा का शिक्षण, शिक्षण की माध्यम भाषा का निर्धारण आदि संबंधी बिंदु आते हैं। उदाहरण के लिए भारतीय समाज में अंग्रेजी का प्रभुत्व धीरे-धीरे बढ़ता जा रहा है। इस कारण अब माता-पिता प्रारंभ से ही बच्चों को अंग्रेजी माध्यम के विद्यालयों में प्रवेश दिलाते हैं, किंतु विभिन्न शोधों द्वारा स्पष्ट हुआ है कि कोई भी बच्चा अपनी मातृभाषा में ही अपना सर्वोत्तम विकास कर सकता है।
इसे ध्यान में रखते हुए भारत सरकार द्वारा राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 जारी की गई है, जिसमें बच्चों को प्राथमिक शिक्षा उनकी मातृभाषा में ही दिए जाने पर बल दिया गया है। यह भाषा अर्जन संबंधी नियोजन का एक उपयुक्त उदाहरण है ।
भाषा नियोजन के लक्ष्य
भाषा नियोजन के निम्नलिखित लक्ष्य हैं-
§ भाषा शुद्धि
§ भाषा पुनरुद्धार के भीतर से विचलन
§ भाषा सुधार
§ भाषा एकीकरण
§ भाषा के बोलने वालों की संख्या बढ़ाने का प्रयास
§ शब्दकोशीय समृद्धि
§ शब्दावली एकीकरण
§ लेखन शैली सरलीकरण
§ अंतरभाषायी संप्रेषण
§ भाषा संरक्षण
§ सहायक-कोड विकास (मूक बधिरों आदि के लिए)
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