प्लेटो की नज़र में किसी समाज की सफलता का राज़ क्या है?
- क्रिस्टिना जे. ओर्गाज़
- बीबीसी न्यूज़ वर्ल्ड
प्लेटोनिक समाज में हरेक की भूमिका होती है, ग़ुलामों से लेकर आज़ाद लोगों तक, लेकिन समाज के चलने के लिए इसके ढांचे में वर्गीकरण होना चाहिए और हर चीज़ के ऊपर एक नेता होगा.
प्लेटो (418 ईसा पूर्व से 347 ईसा पूर्व), ग्रीक दार्शनिक और पश्चिमी दर्शन में सबसे रचनात्मक और प्रभावी विचारकों में से एक थे. उन्हें उनके राजनीतिक और नैतिक लेखों और लोकतांत्रिक संस्थानों के कट्टर आलोचक के तौर जाना जाता है.
प्लेटों के मुताबिक, आदर्श राज्य तीन वर्गों से मिलकर बना होता है. आर्थिक ढांचा व्यापारी वर्ग पर निर्भर करता है. सुरक्षा सैनिकों के कंधों पर होती है. और राजनीतिक नेतृत्व दार्शनिक राजाओं को ग्रहण करना चाहिए.
राजा ही बाकी लोगों के दिमागों को इतना तैयार करता है कि बाकी दूसरे वर्ग के लोग विचारों को समझने में सक्षम होते हैं और इसलिए जनता से उलट समझदारी भरा निर्णय लेते हैं.
नॉर्थवेस्टर्न यूनिवर्सिटी में क्लासिकल थॉट्स की प्रोफ़ेसर सारा मोनोसोन के अनुसार, “प्लेटो के विचार से उनमें तार्किक क्षमता होती है और उनके पास दुनिया में घटित होने वाली मुश्किल चीजों से निपटने का बहुत सारा अनुभव और ट्रेनिंग होती है. ये राजनीतिक सत्ता के सबसे मूल्यवान लोग हैं.”
प्लेटो के नज़रिए से, दार्शनिक राजा अपने लिए सत्ता नहीं चाहता है, ऐसे लोग ईमानदार और गंभीर होते हैं, इसीलिए वे भ्रष्टाचार से आकर्षित नहीं होते हैं और सबसे भरोसेमंद सत्ता प्रतिष्ठान बन जाते हैं.
एथेंस को ही लीजिए, डेमोक्रेसी (लोकतंत्र) का उद्गम (डेमोस- लोग, क्रेटीन- शासन) निर्विवाद नहीं था, लेकिन मोनोसोन का कहना है कि प्लेटो ख़ासकर सूचना-विहीन जनता के ख़तरे को लेकर चिंतित थे.
वो कहती हैं, “प्लेटो के लिए, बिना दार्शनिक शिक्षा के, नागरिकों के इस्तेमाल किए जाने और चालाक नेता द्वारा बहकाए जाने का ख़तरा होता है.”
“ये ख़तरा इतना बड़ा होता है कि प्लेटो ने सोचा कि जनता से ही तानाशाह उभरते हैं. वो ऐसा व्यक्ति होता है जो बाकी लोगों को भरोसा दिलाता है कि वही सारी समस्याओं का हल है, लेकिन इससे भी आगे, जब वो सत्ता में जम जाता है तो खुद अत्याचारी बन जाता है.”
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