प्रोक्ति विश्लेषण
विशेष व्याख्यान
प्रो. उमाशंकर उपाध्याय
प्रोक्ति के साथ विज्ञान शब्द का प्रयोग नहीं होता बल्कि विश्लेषण शब्द का प्रयोग होता है क्योंकि विज्ञान होने के लिए एक सिद्धांत होना आवश्यक है। अभी इसका कोई सिद्धांत विकसित नहीं हुआ है।
इसी प्रकार व्यतिरेकी विश्लेषण की भी बात की जाती है।
एक दूसरे से जुड़े हुए सतत वाक्यों का समूह प्रोक्ति है। यह संरचना या व्याकरण की इकाई नहीं है। संरचना का प्रकार्य संप्रेषण है।
प्रोक्ति speech event या Communicative event को गठित करने वाले उच्चारों के समुच्चय से युक्त व्यावहारिक इकाई है।
वाक्य व्याकरण का शब्द है, उच्चार संप्रेषण का शब्द है।
प्रोक्ति का संबंध भाषा व्यवस्था के साथ न हो
प्रर भाषा व्यवहार के साथ है। व्यवस्था जान लेने से आप व्यवहार भी कर लें, यह आवश्यक नहीं है।
इसीलिए dell hymns द्वारा communicative competence की बात की गई है। इसी प्रकार literary competence की भी बात की जा सकती है।
आगे
प्रोक्ति अभिव्यक्ति (expression) और निर्वचन (interpretation) की सतत प्रक्रिया है।
इसके प्रकार्य को समाजभाषावैज्ञानिक, मनोभाषावैज्ञानिक और भाषावैज्ञानिक विधियों का प्रयोग करके समझा जा सकता है।
मनोभाषावैज्ञानिक - वक्ता के मन में क्या है।
समाजभाषावैज्ञानिक- परिवेश क्या है।
भाषावैज्ञानिक- आधारभूत
वाक्य व्याकरण और संप्रेषण का संधिस्थल है।
हे राम! (महात्मा गांधी) : एक प्रोक्ति है।
प्रोक्ति को उपप्रोक्तियों में बाँटा जा सकता है।
विवाद-
गहन संरचना या बाह्य संरचना
Monologue or dialogue
एक वाक्य या अनेक वाक्य
लिखित या मौखिक
मूर्त या अमूर्त
तीन पक्ष
पाठ (text): प्रोक्ति में प्रयुक्त भाषा पाठ है। पदार्थ के रूप में यह dull होता है। पाठ में भाषा का संरचनात्मक पक्ष रहता है।
संदर्भ (context): उसे जीवंतता प्रदान करता है। text को context सक्रिय करता है।
प्रोक्ति के बारे में पूछा जाता है कि इसमें हम वह भी कैसे समझ लेते हैं जो नहीं कहा गया है। उसका कारण संदर्भ ही है।
प्रकार्य (function) : पाठ से वक्ता क्या करवाना चाहता है।
भाषा का पूरा प्रयोग प्रोक्ति आधारित है। प्रयोक्ता में प्रोक्ति competence भी होता है। केवल वाक्य तक जानकर हम किसी भाषा के ज्ञान का दावा नहींकर सकते।
....................................
Reader oriented text
संदर्भ के प्रकार
1. स्थित्यात्मक (Situational)- बात होने की जगह का भौतिक परिवेश।
कमरे में अँधेरा हो रहा है = खिड़की खोल दो।
गर्मी लग रही है = पंखा चला दो
Immediate physical presence
2. पृष्ठभूमिक ज्ञान (background knowledge):
दो प्रकार
2.1 अंतरवैयक्तिक ज्ञान (interpersonal knowledge) का संदर्भ : वक्ता श्रोता का एक दूसरे के संदर्भ में। बात या प्रसंग। यह हर दो व्यक्तियों के बीच भिन्न होता है।
2.2 साझा सांस्कृतिक ज्ञान का संदर्भ : हम जिस समाज या समुदाय में रहते हैं, उसके ज्ञान की बात। संबंध, खानपान, जीवन शैली आदि। समाज में सांस्कृतिक समुदाय होते हैं। जैसे जैसे क्षेत्र सीमित होता है वैसे वैसे साझा ज्ञान अधिक होता है।
3. अंतरपाठीयता का संदर्भ: कोई भी पाठ शून्य में खड़ा नहीं होता। वह पूर्व पाठ या संबंधित समकालीन पाठ के संदर्भ में खड़ा होता है।
इनके अलावा कुछ युक्तियाँ
1. संदर्भ निर्देशी तत्व
अंतर्मुखी (endophoric) संदर्भ निर्देश : यह co textual संदर्भ है जो पाठ में ही होता है। दो प्रकार-
क. Anaphora - पहले नाम, बाद में संदर्भ शब्द = सर्वनाम।
ख. Cataphora - पश्चोन्मुखी। सर्वनाम पहले, नाम बाद में।
बहिर्मुखी (exocentric) संदर्भ-
तीन प्रकार-
1. प्रथमोल्लेख- प्रोक्ति में पहली बार उल्लेख।
2. स्थिति निर्देशक तत्व Deixis - 3 प्रकार.
व्यक्ति निर्देश (person)
समय निर्देश (time)
स्थान निर्देश (place)
3. अंतरपाठीयता (intertexuality) : वक्ता श्रोता के बीच का इतिहास।
परिभाषा-
अंतरपाठीयता वार्तालाप कर्ताओं के बीच का अंतर्भेदी (intersectional) अंश है।
..............
प्रकार्य
लघुअवधिक प्रयोजन -
प्यास लगी है - पानी लाएगा।
दीर्घअवधिक प्रयोजन-
जो लंबे समय के लिए हो।
Tact- अपने हित को दूसरे के हित की तरह प्रस्तुत करना।
जब दो लोग बात करते हैं तो दोनों एक दूसरे को mold करने का प्रयास करते हैं।
विशेष व्याख्यान
प्रो. उमाशंकर उपाध्याय
प्रोक्ति के साथ विज्ञान शब्द का प्रयोग नहीं होता बल्कि विश्लेषण शब्द का प्रयोग होता है क्योंकि विज्ञान होने के लिए एक सिद्धांत होना आवश्यक है। अभी इसका कोई सिद्धांत विकसित नहीं हुआ है।
इसी प्रकार व्यतिरेकी विश्लेषण की भी बात की जाती है।
एक दूसरे से जुड़े हुए सतत वाक्यों का समूह प्रोक्ति है। यह संरचना या व्याकरण की इकाई नहीं है। संरचना का प्रकार्य संप्रेषण है।
प्रोक्ति speech event या Communicative event को गठित करने वाले उच्चारों के समुच्चय से युक्त व्यावहारिक इकाई है।
वाक्य व्याकरण का शब्द है, उच्चार संप्रेषण का शब्द है।
प्रोक्ति का संबंध भाषा व्यवस्था के साथ न हो
प्रर भाषा व्यवहार के साथ है। व्यवस्था जान लेने से आप व्यवहार भी कर लें, यह आवश्यक नहीं है।
इसीलिए dell hymns द्वारा communicative competence की बात की गई है। इसी प्रकार literary competence की भी बात की जा सकती है।
आगे
प्रोक्ति अभिव्यक्ति (expression) और निर्वचन (interpretation) की सतत प्रक्रिया है।
इसके प्रकार्य को समाजभाषावैज्ञानिक, मनोभाषावैज्ञानिक और भाषावैज्ञानिक विधियों का प्रयोग करके समझा जा सकता है।
मनोभाषावैज्ञानिक - वक्ता के मन में क्या है।
समाजभाषावैज्ञानिक- परिवेश क्या है।
भाषावैज्ञानिक- आधारभूत
वाक्य व्याकरण और संप्रेषण का संधिस्थल है।
हे राम! (महात्मा गांधी) : एक प्रोक्ति है।
प्रोक्ति को उपप्रोक्तियों में बाँटा जा सकता है।
विवाद-
गहन संरचना या बाह्य संरचना
Monologue or dialogue
एक वाक्य या अनेक वाक्य
लिखित या मौखिक
मूर्त या अमूर्त
तीन पक्ष
पाठ (text): प्रोक्ति में प्रयुक्त भाषा पाठ है। पदार्थ के रूप में यह dull होता है। पाठ में भाषा का संरचनात्मक पक्ष रहता है।
संदर्भ (context): उसे जीवंतता प्रदान करता है। text को context सक्रिय करता है।
प्रोक्ति के बारे में पूछा जाता है कि इसमें हम वह भी कैसे समझ लेते हैं जो नहीं कहा गया है। उसका कारण संदर्भ ही है।
प्रकार्य (function) : पाठ से वक्ता क्या करवाना चाहता है।
भाषा का पूरा प्रयोग प्रोक्ति आधारित है। प्रयोक्ता में प्रोक्ति competence भी होता है। केवल वाक्य तक जानकर हम किसी भाषा के ज्ञान का दावा नहींकर सकते।
....................................
Reader oriented text
संदर्भ के प्रकार
1. स्थित्यात्मक (Situational)- बात होने की जगह का भौतिक परिवेश।
कमरे में अँधेरा हो रहा है = खिड़की खोल दो।
गर्मी लग रही है = पंखा चला दो
Immediate physical presence
2. पृष्ठभूमिक ज्ञान (background knowledge):
दो प्रकार
2.1 अंतरवैयक्तिक ज्ञान (interpersonal knowledge) का संदर्भ : वक्ता श्रोता का एक दूसरे के संदर्भ में। बात या प्रसंग। यह हर दो व्यक्तियों के बीच भिन्न होता है।
2.2 साझा सांस्कृतिक ज्ञान का संदर्भ : हम जिस समाज या समुदाय में रहते हैं, उसके ज्ञान की बात। संबंध, खानपान, जीवन शैली आदि। समाज में सांस्कृतिक समुदाय होते हैं। जैसे जैसे क्षेत्र सीमित होता है वैसे वैसे साझा ज्ञान अधिक होता है।
3. अंतरपाठीयता का संदर्भ: कोई भी पाठ शून्य में खड़ा नहीं होता। वह पूर्व पाठ या संबंधित समकालीन पाठ के संदर्भ में खड़ा होता है।
इनके अलावा कुछ युक्तियाँ
1. संदर्भ निर्देशी तत्व
अंतर्मुखी (endophoric) संदर्भ निर्देश : यह co textual संदर्भ है जो पाठ में ही होता है। दो प्रकार-
क. Anaphora - पहले नाम, बाद में संदर्भ शब्द = सर्वनाम।
ख. Cataphora - पश्चोन्मुखी। सर्वनाम पहले, नाम बाद में।
बहिर्मुखी (exocentric) संदर्भ-
तीन प्रकार-
1. प्रथमोल्लेख- प्रोक्ति में पहली बार उल्लेख।
2. स्थिति निर्देशक तत्व Deixis - 3 प्रकार.
व्यक्ति निर्देश (person)
समय निर्देश (time)
स्थान निर्देश (place)
3. अंतरपाठीयता (intertexuality) : वक्ता श्रोता के बीच का इतिहास।
परिभाषा-
अंतरपाठीयता वार्तालाप कर्ताओं के बीच का अंतर्भेदी (intersectional) अंश है।
..............
प्रकार्य
लघुअवधिक प्रयोजन -
प्यास लगी है - पानी लाएगा।
दीर्घअवधिक प्रयोजन-
जो लंबे समय के लिए हो।
Tact- अपने हित को दूसरे के हित की तरह प्रस्तुत करना।
जब दो लोग बात करते हैं तो दोनों एक दूसरे को mold करने का प्रयास करते हैं।
Good help to higher students
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