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Wednesday, January 11, 2023

सर्जनात्मक लेखन के प्रकार

 सर्जनात्मक लेखन के प्रकार

विविध आधारों पर सर्जनात्मक लेखन के विभिन्न वर्ग-उपवर्ग किए जा सकते हैं। उपयोगिता के आधार पर सर्जनात्मक  लेखन के व्यापक रूप में दो प्रकार किए जा सकते हैं- अभिव्यक्तिपरक या मूल (CORE) साहित्यिक लेखन और आजीविकापरक या व्यावसायिक लेखन। विभिन्न प्रकार की साहित्यिक विधाओं में अपने अंदर उठने वाले भावों, विचारों आदि को कलात्मक रूप से कृतियों के रूप में अभिव्यक्त करने की भावना से लिखना अभिव्यक्तिपरक साहित्यिक लेखन है। इसमें लेखक केवल अपने भावों या विचारों को अभिव्यक्त करने पर केंद्रित रहता है। उसकी अभिव्यक्ति श्रोता को किस प्रकार से प्रभावित करेगी, इस ओर लेखक ध्यान नहीं देता। हो सकता है कि वह श्रोताओं को पसंद आ जाए या ना भी आए। 

इसके विपरीत श्रोता को प्रभावित करने के उद्देश्य से किया जाने वाला लेखन व्यवसायिक लेखन है। इस प्रकार का लेखन लेखक द्वारा अपनी आजीविका के लिए अथवा धन के अर्जन के लिए किया जाता है। इसमें लेखक  सर्जनात्मक लेखन के दूसरे पक्ष - 'कैसे कहा गया है या कैसे कहा जाएका पूरा ध्यान रखता है।  वह अपनी बात को जानबूझकर इस तरह से प्रस्तुत करता है कि उसकी बात श्रोता को पसंद ही आए, क्योंकि ऐसा नहीं होने पर उसके लेखन से धन का अर्जन नहीं हो सकेगा । 

 'सर्जनात्मक लेखन' मूल रूप से स्वाभाविक रूप से मानव मन में पाई जाने वाली 'प्रतिभा' से संबंधित है। इस बात की बहुत कम संभावना है कि हमारे अंदर नई बातें सृजित करने वाली प्रतिभा का अभाव हो तथा किसी और से सीखकर हम सर्जनात्मक लेखन करें। फिर भी थोड़ी बहुत प्रतिभा हो तो उसे दूसरों की सर्जनात्मक कृतियों का विश्लेषण करते हुए या उनकी लेखन पद्धति को समझते हुए कुछ हद तक अपनी प्रतिभा पर उसे लागू करके लेखन शैली को और उपयुक्त बनाया जा सकता है।

'क्या कहना है' और 'कैसे कहना है' कि दृष्टि से विचार किया जाए तो सृजनात्मक लेखन में इस बात का प्रशिक्षण दिया जा सकता है कि किसी रचना में अपनी बात को 'कैसे कहना है''क्या कहना है' का संबंध स्वाभाविक प्रतिभा से ही है और यह लेखक के अंदर से आनी चाहिए। यदि कोई दूसरा व्यक्ति लेखक को 'क्या कहना है' की विषयवस्तु बता रहा है, तो ऐसी स्थिति में लेखक एक प्रभावशाली रचना का निर्माण नहीं कर सकता।

ऐसा भी संभव है कि दो लोगों द्वारा मिलकर लेखन किया जाए। इसमें 'क्या कहना है' वाला पक्ष लेखक के मन में उभरता हो और दूसरा सहायक लेखक जो 'कैसे कहना है' की कला में माहिर हो, तो दोनों के संयोग से एक अच्छी रचना या कृति का निर्माण हो सकता है।

इसी प्रकार साहित्यिक विधा के आधार पर हम इनके विभिन्न वर्ग-उपवर्ग कर सकते हैं, जैसे- कहानी, उपन्यास, निबंध, कविता, नाटक, एकांकी, रिपोर्ताज आदि।

 माध्यम के आधार पर भी कुछ भेद किए जा सकते हैं, जैसे-

§  लिखित रूप में अभिव्यक्त

§  दृश्य रूप में अभिव्यक्त

§  श्रव्य रूप में अभिव्यक्त

§  दृश्य श्रव्य रूप में अभिव्यक्त

 अन्य आधारों पर भी इसी तरह से वर्गीकरण किया जा सकता है ।


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