सर्जनात्मक लेखन और निबंध लेखन
सर्जनात्मक लेखन का सबसे प्राथमिक उदाहरण 'निबंध
लेखन' है।
प्रारंभ में जब हम निबंध लिखना सीखते हैं तो हमें एक विषय दे दिया जाता है और उस
पर हम अपने मन से कुछ सूचनाओं को क्रमबद्ध रूप से गठित करते हुए लिखते हैं। बचपन
में हम लोगों ने 'गाय' पर या 'विज्ञान : वरदान या अभिशाप', 'भारत देश हमारा' जैसे
विषयों पर निबंध लिखे हैं। इस तरह से निबंध लिखवाने का उद्देश्य विद्यार्थी की
सर्जनात्मक शक्ति को जागृत करना होता है। निबंध लिखने के क्रम में विद्यार्थी
जाने-अनजाने में वाक्य से ऊपर उठकर वाक्यों के समूह को एक विशेष व्यवस्था में
प्रस्तुत करना सीखता है। इस प्रकार के निबंध लेखन संबंधी विषय भी कई प्रकार या कई
स्तर के होते हैं, जैसे-
(क)
वस्तुपरक विषय
इस प्रकार के विषय स्थूल विषय होते हैं जिनको हम अपने आसपास
देख सकते हैं महसूस कर सकते हैं अथवा जिनमें हम जी रहे होते हैं अतः केवल उनके
बारे में हमें बताना होता है, जैसे - गाय,
मेरा विद्यालय,
मेरा परिवार आदि। ऐसे विषयों पर लेखन करते समय सर्जनात्मक
शक्ति के प्रयोग के लिए कम स्थान रहता है।
(ख)
विचारपरक विषय
इस प्रकार के विषय अमृत विषय होते हैं जिन पर हमें अपना
विचार देना होता है अर्थात उसमें हमें स्वयं विचार करके कुछ बातें करनी होती हैं
जो उसके पक्ष या विपक्ष में हमारी धारणा की अभिव्यक्ति हो सकती है, जैसे
- विज्ञान वरदान या अभिशाप, प्रकृति और हम आदि। ऐसे विषयों पर लिखते समय वस्तु पर
विषयों की तुलना में सर्जनात्मक शक्ति के प्रयोग के लिए अधिक स्थान रहता है।
(ग)
स्वतः अभिव्यक्त विषय
जब धीरे-धीरे हमारे अंदर सर्जनात्मक शक्ति की अभिव्यक्ति
संबंधी व्यवस्था का विकास हो जाता है,
तो हमारे मन में स्वतः है कुछ विषय स्फूर्त रूप से आ जाते
हैं, जिन
पर कुछ नया लिखने की इच्छा होती है। ऐसा लेखन करना सर्जनात्मक लेखन की वास्तविक
स्थिति है। यहां पर हम अपनी सर्जनात्मक शक्ति का जितना चाहे उतना प्रयोग कर सकते
हैं।
लेखन के क्रम धीरे-धीरे आगे बढ़ते हुए हमारे अंदर जैसे-जैसे
गहराई बढ़ती जाती है, वैसे-वैसे लेखन में कलात्मकता भी आती जाती है और अंततः
हमारा लेखन उच्च कोटि का सर्जनात्मक लेखन बन जाता है।
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