प्रोक्ति /रचना और सर्जना
भाषा के माध्यम से प्रोक्ति के रूप में निर्मित की जाने
वाली रचनाओं के 02 वर्ग किए जा सकते हैं- सूचनात्मक रचनाएं या ज्ञानपरक रचनाएँ
तथा कलात्मक रचनाएं या सर्जनात्मक रचनाएँ । इन दोनों ही प्रकार की रचनाओं के
निर्माण हेतु प्रतिभा की आवश्यकता पड़ती है,
किंतु सूचनात्मक या ज्ञानपरक रचनाओं में किसी वस्तु या विषय
के बारे में जानकारी दी जाती है, जबकि कलात्मक या सर्जनात्मक रचनाओं में वक्ता द्वारा
अभिप्रेत संदेश विशेष होता है, जिसकी प्रस्तुति विशिष्ट होती है। सूचनात्मक रचनाओं में भी
एक से अधिक वाक्य एक व्यवस्थित क्रम में सुगठित रूप से अभिव्यक्त किए जाते हैं, तथा
एक बड़ी इकाई के बारे में पूर्ण या संदेश स्तर की सूचना दी जाती है, किंतु
उसमें रस या आनंद का भाव नहीं होता बल्कि उसे पढ़ने के उपरांत हमें केवल संबंधित
विषय वस्तु के बारे में ज्ञान या सूचनाओं की सामूहिक रूप से प्राप्ति होती है। ऐसी
रचनाओं को पढ़ते हुए पाठक इस बात पर केंद्रित होता है कि 'क्या
कहा गया है?' 'कैसे कहा गया है?'
इस पर उसका ध्यान नहीं जाता ।
दूसरी ओर कलात्मक या सर्जनात्मक रचनाएं ऐसी रचनाएँ होती हैं, जिन्हें
पढ़ने या सुनने के बाद हमें संदेश की प्राप्ति के साथ-साथ आनंद की भी प्राप्ति
होती है अथवा हमारी संवेदनाएं जागृत हो जाती हैं। ऐसी भाषिक अभिव्यक्तियों को
कलात्मक अभिव्यक्ति या सर्जनात्मक अभिव्यक्ति कहते हैं। ऐसी रचनाओं के निर्माण में
'क्या
कहा गया है?' के साथ-साथ 'कैसे कहा गया है?'
की भी उतनी ही महत्वपूर्ण भूमिका होती है।
इन दोनों प्रकार की रचनाओं में अभिव्यक्ति की स्थिति को
सूत्र रूप में इस प्रकार से दर्शाया जा सकता है-
रचना का प्रकार विषय वस्तु/ अभिव्यक्ति की स्थिति
सूचनात्मक रचनाएं या ज्ञानपरक रचनाएँ क्या कहा गया है (केंद्र)
कलात्मक रचनाएं या सर्जनात्मक रचनाएँ क्या कहा गया है तथा कैसे कहा गया है
एक सर्जनात्मक अभिव्यक्ति का केवल कलात्मक अभिव्यक्ति होना
आवश्यक नहीं है, वह सूचनात्मक या ज्ञानपरक भी हो सकती है, किंतु
ऐसी रचना कहीं से सूचनाओं को पढ़कर उनकी वैसे ही प्रस्तुति नहीं होती, बल्कि
उसमें लेखक या वक्ता द्वारा अपनी रचनात्मक शक्ति का भी मिश्रण कर दिया जाता है। इस
प्रकार से उसमें सौंदर्य तत्व का भी योग हो जाता है।
No comments:
Post a Comment