प्रत्यय
प्रत्यय= प्रति (साथ में पर बाद में)+ अय (चलनेवाला) शब्द का अर्थ है,पीछे चलना। जो शब्दांश शब्दों के अंत में विशेषता या परिवर्तन ला देते हैं, वे प्रत्यय कहलाते हैं। जैसे- दयालु= दया शब्द के अंत में आलु जुड़ने से अर्थ में विशेषता आ गई है। अतः यहाँ 'आलू' शब्दांश प्रत्यय है। प्रत्ययों का अपना अर्थ कुछ भी नहीं होता और न ही इनका प्रयोग स्वतंत्र रूप से किया जाता है। प्रत्यय के दो भेद हैं-
कृत् प्रत्यय
वे प्रत्यय जो धातु में जोड़े जाते हैं, कृत प्रत्यय कहलाते हैं। कृत् प्रत्यय से बने शब्द कृदंत (कृत्+अंत) शब्द कहलाते हैं। जैसे- लेख् + अक = लेखक। यहाँ अक कृत् प्रत्यय है, तथा लेखक कृदंत शब्द है।
क्रम | प्रत्यय | मूल शब्द\धातु | उदाहरण |
---|---|---|---|
1 | अक | लेख्, पाठ्, कृ, गै | लेखक, पाठक, कारक, गायक |
2 | अन | पाल्, सह्, ने, चर् | पालन, सहन, नयन, चरण |
3 | अना | घट्, तुल्, वंद्, विद् | घटना, तुलना, वन्दना, वेदना |
4 | अनीय | मान्, रम्, दृश्, पूज्, श्रु | माननीय, रमणीय, दर्शनीय, पूजनीय, श्रवणीय |
5 | आ | सूख, भूल, जाग, पूज, इष्, भिक्ष् | सूखा, भूला, जागा, पूजा, इच्छा, भिक्षा |
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