मातृभाषा का व्याघात (Interference of Mother Tongue)
शिक्षार्थी की अपनी भाषा होने या नहीं होने के आधार पर
भाषाओं के दो वर्ग किए जा सकते हैं-
(क) स्वभाषा-
मातृभाषा और प्रथम भाषा
(ख) अन्य भाषा-
द्वितीय भाषा, तृतीय भाषा और विदेशी भाषा
मानव शिशु या बच्चा अपनी मातृभाषा में सुनना और बोलना
कौशलों का अर्जन अपने परिवार या परिवेश करता है। शेष दो कौशलों का अधिगम
औपचारिक शिक्षण के माध्यम से करता है। मातृभाषा और प्रथम भाषा भिन्न होने पर भी
प्रथम भाषा का इनपुट उसे परिवेश (टी.वी./औपचारिक कार्यक्रम आदि) से उसे मिलता रहता
है। विद्यालय आदि में औपचारिक शिक्षण के माध्यम से चारों कौशलों का अधिगम करता है।
अतः मातृभाषा और प्रथम भाषा वह पहली बार ही सीख रहा होता है, इसलिए इनके
संदर्भ में सामान्यतः कोई समस्या नहीं आती। कभी-कभी प्रथम भाषा पर मातृभाषा का
प्रभाव देखने को मिल जाता है, जैसे- भोजपुरी भाषी क्षेत्र में हिंदी में भी ‘श/ष/स’ तीनों का
उच्चारण ‘स’ ही होता है।
जब विद्यार्थी अन्य भाषा (द्वितीय भाषा, तृतीय भाषा और विदेशी
भाषा) सीखता है तो उसके पास ‘मातृभाषा और
प्रथम भाषा’ पहले से होती है। अतः नई भाषा सीखने में वह भाषा अपना
प्रभाव डालती है, जिसे भाषा व्याघात (Language Interference) कहते हैं। यह व्याघात ‘सकारात्मक’ (positive) और ‘नकारात्मक’ (negative)
दोनों हो सकता है। इसे चित्र रूप में निम्नलिखित प्रकार से दर्शा सकते हैं-
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