द्वितीय भाषा शिक्षण /तृतीय भाषा शिक्षण
द्वितीय और तृतीय भाषाएँ भी किसी न किसी रूप में शिक्षार्थी
के समाज में प्रचलित होती हैं। सभी जगहों पर द्वितीय और तृतीय भाषा दोनों का होना
आवश्यक नहीं है, कहीं-कहीं केवल द्वितीय भाषा हो सकती है, कहीं-कहीं
द्वितीय और तृतीय दोनों भाषाएँ होती हैं। उदाहरण-
केवल द्वितीय भाषा-
हिंदी भाषी क्षेत्र – हिंदी (प्रथम भाषा), अंग्रेजी (द्वितीय
भाषा)
द्वितीय और तृतीय भाषा-
हिंदीतर हिंदी क्षेत्र – (अर्थात हिंदी का प्रचलन तो है, किंतु हिंदी
प्रथम भाषा नहीं है)
महाराष्ट्र- मराठी (प्रथम भाषा), हिंदी
(द्वितीय भाषा), अंग्रेजी (तृतीय भाषा)
बंगाल- बंगाली (प्रथम भाषा), हिंदी
(द्वितीय भाषा), अंग्रेजी (तृतीय भाषा)
शिक्षण की दृष्टि से जटिलता/नियोजन की आवश्यकता
ऐसे क्षेत्रों में कुछ बातें निर्धारित करनी पड़ती हैं, जैसे-
(1) शिक्षण की माध्यम भाषा क्या हो?
प्रायः ऐसा देखा जाता है कि किसी समाज में जितनी भाषाएँ
प्रचलित होती हैं, उन सभी को माध्यम बनाने वाले विद्यालय रहते हैं, जैसे-
महाराष्ट्र-
मराठी माध्यम के विद्यालय
हिंदी माध्यम के विद्यालय
अंग्रेजी माध्यम के विद्यालय
बंगाल-
बंगाली माध्यम के विद्यालय
हिंदी माध्यम के विद्यालय
अंग्रेजी माध्यम के विद्यालय
किंतु इन विद्यालयों की संख्या या उपलब्धता उन भाषाओं का
मातृभाषा या प्रथम भाषा के रूप में प्रयोग करने वाले लोगों की उपलब्धता के अनुरूप
ही होती है।
यद्यपि यह भी देखा जाता है कि जो भाषा अधिक प्रभुत्वशाली
होती है, उसी के माध्यम के विद्यालय सर्वाधिक संख्या में होते हैं, जैसे- भारत में
अंग्रेजी।
(2) माध्यम भाषा के अलावा अन्य भाषाओं को कब और कितना
सिखाया जाए?
उदाहरण के लिए महाराष्ट्र में निम्नलिखित तीन स्थितियों को देखते हैं-
(क) मराठी माध्यम के विद्यालय
हिंदी और अंग्रेजी कब और कितना
सिखाया जाए?
(ख) हिंदी माध्यम के विद्यालय
मराठी और अंग्रेजी कब और कितना
सिखाया जाए?
(ग) अंग्रेजी माध्यम के विद्यालय
मराठी और हिंदी कब और कितना
सिखाया जाए?
यही स्थिति विभिन्न भाषिक परिवेशों में प्राप्त होती है।
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