भाषा कौशल (Language Skills)
भाषा कौशल : अर्थ
भाषा का उचित प्रकार से व्यवहार करने के लिए आवश्यक कौशल
भाषा कौशल कहलाते हैं। यहाँ पर उचित प्रकार से व्यवहार करने का तात्पर्य है- अपने
विचारों को ठीक-ठीक तरीके से श्रोता तक पहुँचाना तथा वक्ता द्वारा अभिव्यक्त किए
गए विचारों को ठीक-ठीक प्रकार से समझ पाना। इस दृष्टि से चार कौशलों की बात की
जाती है-
§ सुनना
§ बोलना
§ पढ़ना
§ लिखना
कोई व्यक्ति अपनी
बात कितने सामर्थ्यपूर्ण तरीके से रख पाएगा? यह उसके बोलने
और लिखने के कौशल पर निर्भर करता है। एक ही विषय पर जब दो लोग अपनी बात रखते हैं
तो एक व्यक्ति द्वारा कही गई बात श्रोताओं को आसानी से समझ में आ जाती है, जबकि दूसरे
व्यक्ति द्वारा कही गई बात श्रोताओं को सरलता से समझ में नहीं आती, और वे बार-बार
प्रश्न करते हैं। यह बात अभिव्यक्ति कौशल (बोलना या लिखना) से संबंधित है।
इसी प्रकार किसी एक
ही व्यक्ति द्वारा कही गई बात को कोई व्यक्ति ठीक तरीके से सुनकर समझ लेता है, जबकि दूसरा
व्यक्ति उसी को कई बार पूछता है। यह बोधन कौशल (सुनना और पढ़ना) से संबंधित बात है।
अभिव्यक्ति और बोधन के संदर्भ में भाषा कौशलों के प्रकार
(क) अभिव्यक्ति कौशल (बोलना या लिखना)
(ख) बोधन कौशल (सुनना और पढ़ना)
वक्ता और श्रोता के
बीच में होने वाले विचारों के आदान-प्रदान को संप्रेषण कहते हैं। उचित संप्रेषण के
लिए आवश्यक है कि वक्ता ठीक तरीके से अपनी बात को अभिव्यक्त कर पाता हो तथा श्रोता
वक्ता द्वारा कही गई बात को ठीक तरीके से समझ पाता हो। यह तभी हो पाएगा जब संबंधित
भाषा में उक्त चारों कौशलों में दक्षता वक्ता और श्रोता के अंदर हो -
भाषा शिक्षण की दृष्टि से इन चारों कौशलों के 02 वर्ग किए गए हैं-
(क) प्रधान कौशल
(ख) गौण कौशल
(क) प्रधान कौशल
भाषा का मूल रूप
इसका वाचिक रूप है, जिसके माध्यम से वक्ता और श्रोता द्वारा संप्रेषण किया
जाता है। वाचिक रूप से संप्रेषण के लिए ‘बोलना और सुनना’ कौशलों की
आवश्यकता पड़ती है। इसलिए इन दोनों ही कौशलों को प्रधान कौशल कहा गया है। किसी
व्यक्ति के पास किसी भाषा का ज्ञान है या नहीं है? उसका पैमाना
उसके बोलने और सुनने की क्षमता से ही निर्धारित होता है। आज भी ढेर सारे आदिवासी
समाजों में लोग बोलने और सुनने के माध्यम से ही आपस में संप्रेषण करते हैं। पढ़ने
और लिखने की कोई व्यवस्था नहीं है, किंतु उनका काम सरलतापूर्वक चल रहा है, किंतु यदि
बोलना और सुनना ही ना आए तो व्यक्ति सामाजिक व्यक्ति नहीं बन सकता। इस कारण इन
दोनों कौशलों को प्रधान कौशल कहा गया है।
(ख) गौण कौशल
भाषिक अभिव्यक्ति
के लिखित रूप का विकास मानव सभ्यता के विकास में हुए क्रांतिकारी परिवर्तनों में
से एक है। इसके कारण भाषिक अभिव्यक्ति को लंबे समय तक सुरक्षित रख पाना तथा एक
स्थान से दूसरे स्थान पर ले जाना संभव हो सका। अर्थात लिखित रूप के विकास से
संप्रेषण के संदर्भ में समय और स्थान की समस्या से मुक्ति मिल गई और इसी कारण मानव
सभ्यता का मार्ग प्रशस्त हो सका है। अतः एक व्यक्ति सर्वांगीण विकास के लिए बोलना
और सुनना के अलावा लिखना और पढ़ना भी आना चाहिए, किंतु इसके
बिना भी मानव जीवन अत्यंत सरलता से चल जाता है। ‘पढ़ना और लिखना’ सीख जाने से हम
औपचारिक क्रियाकलापों के भागीदार हो जाते हैं या दूसरे शब्दों में साक्षर हो जाते
हैं, किंतु इन कौशलों के बिना भी मनुष्य का काम चल जाता है। इन
कौशलों की महत्ता मानव जीवन में अतिरिक्त है। इस कारण ‘पढ़ना और लिखना’ को
गौण कौशल कहा गया है।
चारों भाषा कौशलों के औपचारिक नाम इस प्रकार हैं-
सुनना = श्रवण कौशल
बोलना = भाषण कौशल
पढ़ना = वाचन या
पठन कौशल
लिखना = लेखन कौशल
उपर्युक्त चारों कौशलों के शिक्षण संबंधी बातों को निम्नलिखित
बिंदुओं के अंतर्गत देखा जा सकता है-
(क) श्रवण कौशल (सुनना)
§ श्रवण कौशल शिक्षण :
महत्व /आवश्यकता
§ श्रवण कौशल शिक्षण के उद्देश्य
§ श्रवण कौशल की कठिनाइयाँ /में होने वाली त्रुटियाँ
(ख) भाषण कौशल (बोलना)
§ भाषण कौशल शिक्षण :
महत्व /आवश्यकता
§ भाषण कौशल शिक्षण के उद्देश्य
§ भाषण कौशल की कठिनाइयाँ /में होने वाली त्रुटियाँ
(ग) वाचन या पठन कौशल (पढ़ना)
§ वाचन या पठन कौशल शिक्षण :
महत्व /आवश्यकता
§ वाचन या पठन कौशल शिक्षण के उद्देश्य
§ वाचन या पठन कौशल की कठिनाइयाँ /में होने वाली त्रुटियाँ
(घ) लेखन कौशल (लिखना)
§ लेखन कौशल शिक्षण :
महत्व /आवश्यकता
§ लेखन कौशल शिक्षण के उद्देश्य
§
लेखन
कौशल की कठिनाइयाँ /में होने वाली त्रुटियाँ
चारों भाषा कौशलों के बारे में उपयुक्त विषयों पर विस्तार
से निम्नलिखित लिंक पर अध्ययन किया जा सकता है—
http://ppup.ac.in/download/econtent/pdf/BEd%20C7a%20MethodHindi%20LanguageSkill%200406.pdf
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