भाषाशिक्षण की प्रक्रिया (The Process of Language Teaching)
भाषा शिक्षण एक लंबी प्रक्रिया है, जो कई चरणों में संपन्न होती है। साथ ही भाषा प्रकार की दृष्टि से इसके दो वर्ग किए जा सकते हैं-
(क) मातृभाषा /प्रथमभाषा शिक्षण प्रक्रिया
(ख) अन्य भाषा शिक्षण प्रक्रिया
इन्हें संक्षेप में इस प्रकार से समझ सकते हैं-
(क) मातृभाषा /प्रथमभाषा शिक्षण प्रक्रिया
मातृभाषा /प्रथमभाषा शिक्षण प्रक्रिया को भी दो संदर्भों में देखा जा सकता है-
(अ) प्राथमिक शिक्षा/ भाषा अर्जन के संदर्भ में
(आ) प्रौढ़ शिक्षा के संदर्भ में
(अ) प्राथमिक शिक्षा/ भाषा अर्जन के संदर्भ में मातृभाषा /प्रथमभाषा शिक्षण प्रक्रिया
जन्म के पश्चात मानव शिशु या बालक द्वारा अनौपचारिक /औपचारिक रूप से ‘मातृभाषा /प्रथमभाषा को सीखना’ भाषा अर्जन/अधिगम है। इसमें अर्जन तथा अधिगम दोनों प्रक्रियाओं का समावेश होता है-
अर्जन द्वारा ज्ञात कौशल
सुनना
बोलना
अधिगम द्वारा सीखे जाने वाले कौशल
पढ़ना
लिखना
अतः मातृभाषा/प्रथम भाषा के संदर्भ में भाषा अधिगम को देखा जाए तो हम कह सकते हैं कि इसमें बच्चे द्वारा मूलतः दो भाषा कौशलों का अधिगम किया जाता है- पढ़ना और लिखना। शेष दो कौशल वह भाषा अर्जन के माध्यम से प्रारंभ में ही सीखकर आता है, जिनमें दो बातें उल्लेख्य हैं-
(1) व्यवस्थित रूप से बोलना या भाषण देना आदि का प्रशिक्षण भी दिया जा सकता है जो ‘बोलना’ कौशल का प्रगत (Advance) रूप है।
(2) इसी प्रकार शुद्ध-शुद्ध उच्चारण करने का शिक्षण देना भी बोलना कौशल से संबंधित है।
इसी प्रकार मातृभाषा /प्रथमभाषा शिक्षण प्रक्रिया कुछ अन्य बातें भी आती हैं-
प्रोक्ति बोधन :- कहानी, कविता आदि पढ़ना और उसका कथ्य (content) संदेश (message) समझना।
कल्पना शक्ति :- पूर्व कल्पित चीजों से कथ्य (content) या संदेश (message) ग्रहण करना। इसी प्रकार बालक द्वारा स्वयं कल्पना भी कर सकना। पंचतंत्र की कथाएँ, जैसे- कछुए और खरगोश की कहानी, शेर और चूहे की कहानी, मगरमच्छ और बंदर की कहानी आदि।
गणित एवं तर्क :- ये संपूर्ण शिक्षण से संबंधित हैं, इन्हें भाषा शिक्षण में सहायक के रूप में देखा जा सकता है।
स्मृति :- याद रखने की क्षमता का विकास। शब्दावली, पाठ आदि के माध्यम से प्रशिक्षण।
इसमें केवल भाषा कौशलों का शिक्षण ही मूल बात नहीं होती, बल्कि बालक के संपूर्ण विकास पर ध्यान देने की आवश्यकता होती है।
(आ) प्रौढ़ शिक्षा के संदर्भ में मातृभाषा /प्रथमभाषा शिक्षण प्रक्रिया
प्रौढ़ शिक्षा उद्देश्य आधारित होती है। इसमें शिक्षक सर्वप्रथम यह देखना चाहता है कि व्यक्ति उसे क्यों सीखना चाह रहा है। इसमें केवल भाषा कौशलों का शिक्षण मूल बात होती है, संपूर्ण विकास पर ध्यान देने की आवश्यकता नहीं होती।
मातृभाषा शिक्षण में शिक्षण सामग्री
§ वर्णमाला
§ ध्वनि व्यवस्था (स्वर-व्यंजन)
§ स्वर व्यंजन योग (देवनागरी के संदर्भ में बारहखड़ी)
§ शब्द निर्माण (सरल से कठिन की ओर)
§ गिनती
§ पहाड़ा
§ आधारभूत शब्दावली
§ छोटी छोटी कविताएँ एवं कहानियाँ
§ क्रमशः कठिन पाठ एवं रचनात्मकता का विकास
इसके पश्चात भाषा शिक्षण साहित्य शिक्षण की ओर उन्मुख हो जाता है। उद्देश्यों को ध्यान में रखते हुए बाद में भाषा का प्रयोजनमूलक स्वरूप भी बताया जाता है, जैसे- प्रयोजनमूलक हिंदी।
(ख) अन्य भाषा शिक्षण प्रक्रिया
इसके भी दो वर्ग कर सकते हैं-
(अ) द्वितीय एवं तृतीय भाषा शिक्षण प्रक्रिया
ये भाषाएँ विद्यार्थी के समाज में किसी-न-किसी रूप में प्रचलित होती हैं। उदाहरण के लिए मराठी भाषी समाज में हिंदी/अंग्रेजी पूर्व प्रचलित हैं। अर्थात विद्यार्थी को इनका कुछ-कुछ इनपुट पहले से रहता है।
(आ) विदेशी भाषा शिक्षण प्रक्रिया
ये भाषाएँ विद्यार्थी के समाज में में प्रचलित नहीं होती हैं। अतः विद्यार्थी को इनका कोई इनपुट पहले नहीं होता है, जैसे- वर्धा में जापानी सीखने वाले को पहले से जापानी का कोई ज्ञान नहीं होता।
(नोट- पूर्व में किया गया स्वाध्याय हो सकता है, किंतु वह अपवादस्वरूप है।)
अन्य भाषा को सामान्यतः भाषा अधिगम के माध्यम से ही सीखा जाता है। उनमें भी मूलत तीन कौशलों- पढ़ना, लिखना और बोलना ही अधिगम के माध्यम से सीखता है और ‘सुनना’ प्रायः अनौपचारिक रूप से ही सीख जाता है। भाषा प्रयोगशाला द्वारा प्रशिक्षण इस कौशल के विकास का प्रगत (Advance) रूप है।
यहाँ ध्यान रखने वाली है कि अन्य भाषा अधिगम के समय विद्यार्थी के पास मातृभाषा /प्रथमभाषा पहले से होती है। अतः नई भाषा सीखते समय वह माध्यम का काम करती है।
भाषा शिक्षण के चरण-
§ पूर्वनियोजन
शिक्षार्थी का निर्धारण - आयु, वर्ग, लिंग, क्षेत्र, आर्थिक स्थिति आदि आधारों पर शिक्षक देखता है कि हमारा विद्यार्थी कौन होगा?
§ पाठ्यचर्या विकास (शिक्षार्थी की स्थिति के अनुसार)
§ शिक्षण सामग्री विकास (शिक्षार्थी की स्थिति के अनुसार)
§ कक्षाध्यापन
§ परीक्षण एवं मूल्यांकन
§ सुधारात्मक शिक्षण
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