भाषाशिक्षण और भाषा अधिगम (Language Teaching and Language Learning)
जैसा कि नाम से ही स्पष्ट है- ‘औपचारिक रूप से भाषा सिखाने की प्रक्रिया’ भाषा शिक्षण कहलाती है तथा ‘औपचारिक रूप से भाषा सीखने की प्रक्रिया’ भाषा अधिगम कहलाती है। इन्हें सूत्र रूप में इस प्रकार से प्रदर्शित कर सकते हैं-
भाषा शिक्षण = शिक्षक द्वारा औपचारिक रूप से भाषा सिखाने की क्रिया
भाषा अधिगम = विद्यार्थी द्वारा औपचारिक रूप से भाषा सीखने की प्रक्रिया
इसे चित्र रूप में निम्नलिखित प्रकार से दर्शा सकते हैं-
इस प्रकार स्पष्ट है कि भाषा शिक्षण किसी भाषा की शिक्षा देने की प्रक्रिया है तो भाषा अधिगम किसी भाषा की शिक्षा ग्रहण करने की प्रक्रिया है। भाषा शिक्षण का आधार ‘शिक्षक’ होता है जबकि भाषा अधिगम का आधार ‘शिक्षार्थी’ होता है, किंतु भाषा शिक्षण और भाषा अधिगम दोनों का लक्ष्य ‘शिक्षार्थी’ ही होता है। अर्थात शिक्षार्थी ही वह व्यक्ति या इकाई है जिसे भाषा की शिक्षा ग्रहण करनी है। शिक्षक को उसी की आवश्यकताओं के अनुसार शिक्षण करना आवश्यक होता है। शिक्षक के प्रतिमानों के अनुसार शिक्षार्थी अधिगम करे, यह आवश्यक नहीं है।
भाषा अधिगम और भाषा अर्जन (Language Learning and Language Acquisition)
भाषा को सीखने के संदर्भ में दो प्रकार की तकनीकी शब्दावली प्रचलित है- भाषा अधिगम और भाषा अर्जन। जैसा कि ऊपर चर्चा की जा चुकी है औपचारिक रूप से किसी भाषा को सीखने की प्रक्रिया भाषा अधिगम के अंतर्गत आती है। इसकी जगह मानव शिशु द्वारा जन्म के पश्चात अपने परिवेश या परिवार की भाषा को स्वतः से सीख लेने की प्रक्रिया भाषा अर्जन के अंतर्गत आती है।
सुनना, बोलना, पढ़ना, लिखना चारों भाषा कौशलों की दृष्टि से देखा जाए, तो भाषा अर्जन केवल दो आधारभूत कौशल ‘सुनना’ और ‘बोलना’ का हो पाता है। पढ़ना और लिखना का मानव शिशु सदैव अधिगम ही करता है, चाहे वह अनौपचारिक रूप से होता हो या औपचारिक रूप से। अर्थात यदि मानव शिशु घर में अपनी माता या किसी घरेलू व्यक्ति के साथ अनौपचारिक रूप से भी पढ़ना और लिखना सीखना है, तो वह उसका अधिगम ही कहलाएगा, क्योंकि सिखा रहे व्यक्ति द्वारा प्रक्रिया विशेष का पालन करते हुए शिक्षण करने के बाद ही मानव शिशु सीख पाता है। इन कौशलों का सामान्यतः शिक्षण संस्थाओं या विद्यालयों आदि में बच्चों का औपचारिक रूप से शिक्षण किया जाता है।
भाषा अधिगम के आधार पर भाषा प्रकारों की दृष्टि से भाषा अर्जन और भाषा अधिगम की बात करें तो मातृभाषा और प्रथम भाषा का ही भाषा अर्जन होता है। द्वितीय भाषा और अन्य भाषा का सदैव अधिगम ही होता है।
द्वितीय भाषा और अन्य भाषा के शिक्षण और अधिगम के संदर्भ में ध्यान रखने वाली बात है कि इसमें पढ़ना, लिखना और बोलना तीन कौशलों का औपचारिक रूप से या सचेतन रूप से शिक्षण किया जाता है, जबकि शिक्षार्थी ‘सुनना’ स्वयं से सीखता है। यद्यपि जब हम किसी अन्य भाषा की ध्वनि को सुन रहे होते हैं तो अपनी मातृभाषा में उसके आसपास की समतुल्य ध्वनि ही उसे समझते हैं, जबकि हो सकता है कि उसका उच्चारण मातृभाषा वाली समतुल्य ध्वनि के उच्चारण से कुछ भिन्न हो। वर्तमान में भाषा प्रयोगशालाओं के माध्यम से यह सुविधा उपलब्ध हो गई है कि द्वितीय भाषा या अन्य भाषा की ध्वनियों को सुनकर उनका उच्चारण बार-बार दोहराया जा सके और सामने कंप्यूटर के स्क्रीन पर अपने उच्चारण की शुद्धता की जांच की जा सके इस प्रकार किसी ध्वनि के वास्तविक उच्चारण तक शिक्षार्थी पहुंच पाता है।
मातृभाषा/प्रथम भाषा के संदर्भ भाषा अधिगम
मातृभाषा/प्रथम भाषा के संदर्भ में भाषा अधिगम को देखा जाए तो हम कह सकते हैं कि इसमें बच्चे द्वारा मूलतः दो भाषा कौशलों का अधिगम किया जाता है- पढ़ना और लिखना। शेष दो कौशल वह भाषा अर्जन के माध्यम से प्रारंभ में ही सीखकर आता है। यद्यपि उसे व्यवस्थित रूप से बोलना या भाषण देना आदि का प्रशिक्षण भी दिया जा सकता है जो ‘ बोलना’ कौशल का प्रगत (Advance) रूप है।
अन्य भाषा के संदर्भ में भाषा अधिगम
बच्चा अन्य भाषा को सामान्यतः भाषा अधिगम के माध्यम से ही सीखता है। उनमें भी मूलत तीन कौशलों- पढ़ना, लिखना और बोलना ही अधिगम के माध्यम से सीखता है और ‘सुनना’ प्रायः अनौपचारिक रूप से ही सीख जाता है। भाषा प्रयोगशाला द्वारा प्रशिक्षण इस कौशल के विकास का प्रगत (Advance) रूप है।
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