विदेशी भाषा शिक्षण
विदेशी भाषा वह भाषा है जो उस देश में किसी भाषायी समाज में
किसी भी रूप में प्रचलित नहीं होती। भारत के संदर्भ में विदेशी भाषाएँ- चीनी, रूसी, जापानी, फ्रेंच, जर्मन आदि हैं।
यह देखा गया है कि व्यक्ति जितनी अधिक भाषाएँ सीखता है या
जानता है वह उसके व्यक्तित्व तथा कैरियर के लिए उतना ही लाभकारी
होता है। इससे व्यक्ति अधिक सक्षम बनता है एवं उसकी जीवन दृष्टि अधिक व्यापक होती
है, क्योंकि नई भाषा के साथ-साथ नवीन संस्कृतियों से भी वह
परिचित हो पाता है।
विदेशी भाषा शिक्षण के संदर्भ में भाषा कौशलों को क्रमानुसार
अंग्रेजी में इस प्रकार से देख सकते हैं-
§
Listening: When people are learning a new language they first hear
it spoken.
§
Speaking: Eventually, they try to repeat what they hear.
§
Reading: Later, they see the spoken language depicted
symbolically in print.
§
Writing: Finally, they reproduce these symbols on paper.
किंतु व्यवहार में सदैव ऐसा नहीं होता। प्रायः शिक्षण का
आरंभ ध्वनियों और लिपि-चिह्नों की पहचान से होता है। अतः हम ध्वनियों का उच्चारण
और लेखन पहले सिखाते हैं। फिर शब्द या पाठ स्तर पर भाषण और पठन कौशलों की आवश्यकता
पड़ती है।
विदेशी भाषा अधिगम प्रायः उद्देश्य आधारित होता है, जैसे- पर्यटन
के लिए, व्यापार के लिए, रोजगार के लिए, साहित्य में
रुचि के कारण आदि। अतः शिक्षक या शिक्षण संस्थान को विदेशी भाषा शिक्षण में
पाठ्यचर्या निर्माण और शिक्षण उसी के अनुरूप करना चाहिए। इसीलिए प्रायः देखा जाता
है कि विदेशी भाषाओं के सर्टिफिकेट, डिप्लोमा, क्रैशकोर्स जैसे छोटे-छोटे कार्यक्रम अधिक प्रभावी होते
हैं, क्योंकि ये उद्देश्य विशेष को ध्यान में रखकर चलाए जाते
हैं। इनकी समयावधि भी कम होती है, जैसे-
कोर्स अवधि
सर्टिफिकेट 06
माह
डिप्लोमा 01
वर्ष
क्रैशकोर्स 01
से 03 माह
इसके अलावा विभिन्न विश्वविद्यालयों में वैश्विक स्तर पर
प्रभुत्वशाली भाषाओं का रेगुलर कोर्स के रूप में बी.ए., एम.ए., पीएच.डी. आदि
कार्यक्रम भी संचालित किए जाते हैं।
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