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Friday, December 24, 2021

समाज सांस्कृतिक संदर्भ (Socio-Cultural Context)

 समाज सांस्कृतिक संदर्भ (Socio-Cultural Context)

भाषा अपने समाज की संस्कृति की भी संवाहक होती है। अतः जब विद्यार्थी किसी नई भाषा को सीखता है, तो भाषा के साथ-साथ उसे संस्कृति का भी परिचय देना आवश्यक हो जाता है। यह बात मुख्य रूप से विदेशी भाषा शिक्षण के संदर्भ में लागू होती है। इसके अलावा द्वितीय और तृतीय भाषा शिक्षण में भी इसकी आवश्यकता हो सकती है।

भाषा में अनेक प्रकार की शब्दावली देखी जा सकती है, जैसे-

(क) आधारभूत शब्दावली :- फलों/फूलों/सब्जियों/जानवरों ....... के नाम।

(ख) तकनीकी शब्दावली

(ग) प्रक्षेत्र आधारित (Domain specific) शब्दावली, जैसे- बैंकिंग, रेलवे आदि।

(घ) साहित्यिक शब्दावली

(ङ) प्रयोजनमूलक शब्दावली          ..........

(च) सांस्कृतिक शब्दावली

इस प्रकार सांस्कृतिक शब्दावली भाषा की आधारभूत शब्दावली का एक हिस्सा है। जब पाठक या विद्यार्थी किसी नई भाषा में कोई पाठ पढ़ता है, या फिल्म देखता है या उससे जुड़ी किसी घटना से गुजरता है, तो उसमें सांस्कृतिक शब्द आ जाते हैं। उन शब्दों के अर्थ का बोधन करने के लिए उस भाषायी समाज के समाज-सांस्कृतिक संदर्भ का ज्ञान आवश्यक होता है।

उदाहरण-

विदेशियों को हिंदी शिक्षण

= विदेशी विद्यार्थी हिंदी सीख रहा है। उसे एक हिंदी पाठ का निम्नलिखित वाक्य मिलता है-

तुम तिलकधारी मेरे मंगलसूत्र की कीमल क्या समझोगे।

इस वाक्य में आए हुए तिलकधारी और मंगलसूत्र शब्दों के वास्तविक अर्थ समझाने के लिए शिक्षक को सर्वप्रथम इनका पूरा समाज-सांस्कृतिक संदर्भ भी बताना/ समझाना होगा।

महात्मा गांधी पर बनी फिल्म के दो अंग्रेजी संस्करणों में उनके अंतिम उद्गार के लिए निम्नलिखित वाक्यों का प्रयोग किया गया था-

हे राम!           = Hey Ram! , Oh God.

वास्तव में हे राम का अनुवाद ‘Oh God’ नहीं हो सकता, क्योंकि राम केवल भगवान का नाम नहीं है, बल्कि उसके बोधन का एक पूरा समाज-सांस्कृतिक संदर्भ है।

अतः इस प्रकार की शब्दावली का प्रयोग होने पर उनके अर्थ का बोधन कराने के लिए पूरे समाज-सांस्कृतिक संदर्भ के शिक्षण/ व्याख्या की आवश्यकता पड़ती है।

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