त्रुटियाँ और त्रुटि विश्लेषण (Errors & Error Analysis)
भाषा सिखाना भाषा कौशलों को सिखाना है। कौशल सीखने में
व्यक्ति से त्रुटियाँ होने की संभावना सदैव बनी रहती है, जैसे-
ड्राइविंग (कौशल) सीखना। भाषा के संबंध में ये त्रुटियाँ भूलवश या ध्यान की कमी के
कारण या वास्तविक स्वरूप के अज्ञान के कारण के कारण या अभ्यास की कमी के कारण होती
हैं।
भाषा अधिगम में विद्यार्थी मातृभाषा, प्रथम भाषा, द्वितीय भाषा, तृतीय भाषा और
विदेशी भाषा सभी प्रकार की भाषाओं को सीखने के दौरान त्रुटियाँ करता है।
मातृभाषा/ प्रथम भाषा शिक्षण
के संदर्भ में त्रुटि-विश्लेषण
अपनी मातृभाषा या प्रथम भाषा को बच्चा घर में सीखता है, किंतु बालक जो
घर पर बोलता एवं सीखता है वही भाषा स्कूल में नहीं सिखायी जाती है। स्कूल में मानक
(स्टैंडर्ड) भाषा सिखाई जाती है। ‘भाषा’ शब्द का अर्थ ही है- भाषा का मानक रूप। भाषा का जो
रूप घर में सुनते एवं बोलते हैं, उसे उसका ‘क्षेत्रीय रूप’
कहा जा सकता है, जो वहाँ परिवेश में प्रचलित होता है। यदि वही ‘क्षेत्रीय
रूप’ स्कूल में सिखाया जाए, तो सीखने में
अधिक दिक्कत/परेशानी नहीं होगी।
किंतु व्यवहार में इस प्रकार का अवसर बहुत कम ही आता है कि
जो भाषा घर में बोलते हैं, उसी की स्कूल में औपचारिक शिक्षा हो, क्योंकि वहाँ
मानक रूप सिखाए जाते हैं।
अतः पढ़ते समय क्षेत्रीय (स्थानीय) रूप और मानक भाषा में जो
अंतर होता है, वह अंतर भाषा सीखने में कठिनाइयाँ उत्पन्न करता है। इस
कारण सीखने की प्रक्रिया में व्यक्ति या विद्यार्थी त्रुटि करता है।
यहाँ ध्यान रखने वाली बात है कि ‘त्रुटियाँ सीखने
की प्रक्रिया का अनिवार्य चरण’ हैं। यह एक प्रकार की सीढ़ी का काम करती है। इसके द्वारा
और ऊपर चढ़ते हैं और अधिक सीखते हैं। त्रुटियाँ करना गलत नहीं है। त्रुटि करना
भाषा अधिगम प्रक्रिया का अनिवार्य अंग है।
इन्हें बिंदुवार इस प्रकार दर्शा सकते हैं-
1. मानक रूप का शिक्षण होता है।
2. इसमें परिवेश से प्राप्त रूप (अमानक/स्थानीय) के कारण त्रुटियाँ होने की संभावना
बनी रहती है।
3. अन्य स्वाभाविक कारण भी होते हैं- भूलवश या ध्यान की कमी, वास्तविक स्वरूप का अज्ञान, अभ्यास की कमी।
भाषा अधिगम में व्यक्ति को लक्ष्य भाषा
(मातृभाषा,
द्वितीय भाषा तथा विदेशी भाषा) तक पहुंचने के लिए त्रुटियों से होकर
गुजरना पड़ता है। घर में जो स्थानीय रूप बोला जाता है, उसका संबंध घर
में एक-दूसरे के साथ संवाद करने से होता है। स्कूल में जो पढ़ाया जाता है, वह भाषा का
मानक रूप होता है। अतः उसका व्याकरण बच्चे द्वारा घर में प्रयुक्त भाषा के व्याकरण
से अलग होता है। उसका उच्चारण, वाक्य विन्यास और शब्दावली भिन्न होती है। इसका मतलब यह है कि भाषा अधिगम में विद्यार्थी पने
मन को एक सामान्य व्याकरण से दूसरे मानक व्याकरण की ओर ले जाता है। अतः उसके मन
में स्थित पुराना सामान्य व्याकरण त्रुटियाँ करवाता है, जिसकी उसे आदत
होती है।
त्रुटि विश्लेषण की ओर भाषा चिंतकों का ध्यान Chomsky द्वारा ‘प्रजनक व्याकरण’ (जेनरेटिव ग्रामर) के प्रतिपादन के बाद गया है। इसमें Chomsky ने सार्वभौमिक व्याकरण की बात की है। यह व्याकरण का वह रूप
है, जो सभी भाषाओं के लिए समान होता है। उन्होंने
कहा कि भाषा का मामला संज्ञानात्मक मनोविज्ञान (कोग्नेटिव साइकोलॉजी) का मामला है।
प्रत्येक व्यक्ति प्रयत्न लाघव या शॉर्टकट चाहता है। अन्य
भाषा सीखते समय हम एक भाषा पहले से जानते हैं। Chomsky
के अनुसार जो नियम या व्याकरण आप पहले से जानते हैं, वह द्वितीय
भाषा एवं अन्य भाषा सीखते समय व्याघात उत्पन्न करता है। इस कारण भी त्रुटियाँ होती
हैं।
त्रुटियों के मुख्य कारण-
§
भूलवश
या ध्यान की कमी
§
वास्तविक
स्वरूप का अज्ञान
§
अभ्यास
की कमी
निवारण- उक्त के स्वरूप के आधार पर उनका निवारण किया जाता
है।
अन्य भाषा शिक्षण के संदर्भ में त्रुटि-विश्लेषण
विद्यार्थी द्वारा अन्य भाषा सीखते समय भी त्रुटियाँ की
जाती हैं। ‘मातृभाषा/ प्रथम भाषा का व्याघात’ इसका एक बड़ा
कारण होता ही है, जिसका निवारण भाषा शिक्षक ‘व्यतिरेकी
विश्लेषण’ द्वारा करता है। अन्य स्वाभाविक कारणों से होने वाली
त्रुटियों के निवारण संबंधी उपाय भाषा शिक्षक द्वारा आवश्यकतानुसार किया जाता है।
त्रुटियों के प्रकार-
त्रुटि विश्लेषण में विद्यार्थी द्वारा की जाने वाली
त्रुटियों के कुछ प्रकार किए जाते हैं, जो निम्नलिखित हैं-
(क) व्यवहार संदर्भित त्रुटियाँ
इन्हें सामान्य भाषा में ‘दोष’ (lapses) भी कहते हैं। इन त्रुटियों के पीछे अज्ञान कारण नहीं
होता। अर्थात विद्यार्थी को नियम पता होता है। शीघ्रता में या ध्यान नहीं देने के
कारण हो जाने वाली त्रुटियाँ इस प्रकार के अंतर्गत आती हैं।
(ख) अज्ञान संदर्भित त्रुटियाँ
इन्हें सामान्य भाषा में ‘गलतियाँ’ (mistakes) भी कहते हैं। इन त्रुटियों के पीछे अज्ञान कारण होता
है। अर्थात विद्यार्थी को सही प्रयोग का नियम ही नहीं पता होता।
(ग) अंतरभाषा संदर्भित त्रुटियाँ
इन्हें सामान्य भाषा में ‘त्रुटि’ (errors) कहते हैं।अंतरभाषा त्रुटि-विश्लेषण के अंतर्गत दी गई एक
अवधारणा है। इसके अनुसार भाषा अधिगम के दौरान शिक्षार्थी के मस्तिष्क में उसकी
मातृभाषा (मूल भाषा) और लक्ष्य भाषा (सीखी जाने वाली भाषा) के बीच की एक भाषा
उत्पन्न होती है। अतः अधिगम के आरंभ में शिक्षार्थी उसी अंतरभाषा का व्यवहार करता
है। जैसे-जैसे वह लक्ष्य भाषा को सीखता जाता है, उसकी अंतरभाषा लक्ष्य भाषा के पास
पहुँचती जाती है। पूर्णतः सीख लेने के बाद इस भाषा का अस्तित्व समाप्त हो जाता है।
इसे आरेख के रूप में निम्नलिखित प्रकार से दर्शा सकते हैं-
नई भाषा सीखने की प्रक्रिया में शिक्षार्थी कहीं-कहीं लक्ष्य भाषा के वाक्यों की जगह अंतरभाषा के वाक्य ही बोल देता है। इस प्रकार होने वाली त्रुटियाँ अंतरभाषा संदर्भित त्रुटियाँ कहलाती हैं।
त्रुटियों के कारण-
(क) नियमों का अपूर्ण ज्ञान
लक्ष्य भाषा के नियमों का पूरा-पूरा ज्ञान नहीं होने पर
त्रुटियाँ होती हैं। उदाहरण के लिए हिंदी में ‘ने’ परसर्ग का
प्रयोग सदैव नहीं होता। यह केवल भूतकाल में सकर्मक क्रियाओं के साथ आता है। अतः
निम्नलिखित वाक्य शुद्ध हैं-
§
मैंने
खाया।
§
उसने
रोटी पकाई।
§
मोहन
ने आम खरीदा।
किंतु ये वाक्य अशुद्ध हैं-
§
मैंने
जाना है।
§
तुमने
खाना खाना होगा।
§
मोहन
ने घर गया।
§
सीता
ने सोई।
अतः ‘ने’ प्रयोग के नियम का पूर्ण ज्ञान आवश्यक है।
(ख) उपनियमों का ज्ञान न होना
भाषाओं में कुछ नियम ऐसे होते हैं, जो परिस्थिति
विशेष में लागू होते हैं। उनका ज्ञान नहीं होने पर भी त्रुटियाँ होती हैं। उदाहरण
के लिए ऊपर हिंदी में ‘ने’ परसर्ग प्रयोग के संदर्भ में कुछ उपनियम भी हैं। उदाहरण के
लिए ‘अकर्मक क्रिया’ होते हुए भी निम्नलिखित वाक्य
शुद्ध हैं-
§
मैंने
छींका।
§
उसने
खाँसा।
(ग) अतिसामान्यीकरण
सामान्यीकरण मानव मन या मस्तिष्क की एक सामान्य प्रक्रिया है।
मानव शिशु सामान्यीकरण और विशेषीकरण की प्रक्रिया द्वारा ही भाषा सीखता है। अतः
भाषा सीखने के क्रम में समान्यीकरण का सिद्धांत कहीं-न-कहीं हमारे मन में काम करता
रहता है, किंतु जब यह अतिसामान्यीकरण का रूप ले लेता है। तब भाषा व्यवहार
में त्रुटियाँ देखी जा सकती हैं, विशेष रूप से तब, जब विद्यार्थी द्वारा किसी अन्य
भाषा का अधिगम किया जाता है। उदाहरण के लिए हिंदी के संदर्भ में निम्नलिखित
वाक्यों को देखें-
§ तुम घर जाओ
§ आप घर जाओ
हिंदी में इस तरह
के प्रयोग देखे जा सकते हैं, परंतु इनमें से दूसरे वाक्य का सही रूप निम्नलिखित है-
§
आप
घर जाइए
इसकी जगह ‘आप घर जाओ’ वाक्य का निर्माण ‘तुम घर जाओ’ वाक्य रचना के
नियम का अतिसामान्यीकरण करने से हुआ है। अंग्रेजी में भी ‘shall’ और ‘will’ के प्रयोग
में अतिसामान्यीकरण की स्थिति देखी जा सकती है, यथा-
अंग्रेजी में भविष्य काल में ‘I’ और ‘We’ के साथ
‘shall’ का प्रयोग होता है। दृढ़ता के लिए भले इनके साथ ‘will’ का प्रयोग
हो जाता हो, किंतु स्पोकेन इंग्लिश में इस प्रकार के प्रयोग देखे जा सकते
हैं-
I will go.
We will come.
यह अतिसामान्यीकरण का ही उदाहरण है।
(घ) भ्रांतिपूर्ण धारणा
किसी नई भाषा को सीखते समय कई बार शिक्षार्थी के मन में कोई
भ्रांतिपूर्ण धारणा बैठ जाती है, जिसके कारण वह त्रुटियाँ करता है। उदाहरण के लिए अंग्रेजी
में indefinite के लिए present tense में नकारात्मक और प्रश्नवाचक वाक्यों में ‘do/does’ सहायक
क्रियाओं का प्रयोग होता है, किंतु हो सकता है कि ठीक से
अधिगम न करने की स्थिति में शिक्षार्थी इस प्रकार के वाक्य होने की संभावना मन में
बैठा ले-
I do go.
He does eats.
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