सत्यता-स्थितिपरक अर्थविज्ञान (Truth-conditional semantics)
सत्यता-स्थितिपरक
अर्थविज्ञान वाक्यार्थ को समझने-समझाने की एक नवीन पद्धति है, जो उन स्थितियों का विश्लेषण करती है, जिनमें कोई
कथन ‘सत्य’ (true) या ‘असत्य’ (false) होता है। इसके लिए कुछ ‘सत्यता स्थितियों’ (truth conditions) की बात की जाती है।
वह
स्थिति जिसमें कोई वाक्य या कथन ‘सत्य’ होता है, सत्यता स्थिति (truth condition) कहलाती है। सत्यता स्थितियों को बाह्य संसार से जोड़कर भी देखा जाता है
तथा वाक्य के अंदर आए हुए घटकों के अर्थों के संयोजन द्वारा भी। उदाहरण के लिए निम्नलिखित
वाक्य देखें-
आज
वर्धा में बारिश हो रही है।
इस
वाक्य की सत्यता की जाँच बाह्य संसार के संदर्भ पर आधारित है। इसके लिए हमें ‘वर्धा’ नामक स्थान की स्थितियों को देखना होगा, किंतु निम्नलिखित वाक्य देखें-
आज
रात में सूरज चमक रहा था।
इस
वाक्य की सत्यता की जाँच के लिए बाह्य संसार के संदर्भ की आवश्यकता नहीं है। ‘रात’ और ‘सूरज’ शब्दों के अर्थ और उनके संबंध के आधार पर ही स्पष्ट हो जा रहा है कि
वाक्य द्वारा अभिव्यक्त कथन ‘सत्य’
नहीं है।
यह
सिद्धांत ;भाषा और मन या संज्ञान’ (language–mind/cognition) के संबंधों को देखने के
बजाय ‘भाषा और संसार’ (language–world) के संबंधों को देखने का प्रयास करता है। इस सिद्धांत में सत्यता
स्थितियों के अंतर्गत यह देखने का प्रयास किया जाता है कि वाक्यों के माध्यम से
अभिव्यक्त विचार या सूचनाएँ बाह्य संसार की दृष्टि से भी कितनी सही होती हैं।
सत्यता-स्थितिपरक
अर्थविज्ञान मुख्यतः उन स्थितियों की खोज करने का प्रयास करता है, जिनमें कोई कथन सत्य या असत्य होता है। अतः सत्यता स्थितियाँ मूलतः
सैद्धांतिक इकाइयां हैं। सत्यता-स्थितिपरक अर्थविज्ञान में सत्यता स्थितियों को
सार्वभौमिक नियमों के रूप में प्रस्तुत करने का प्रयास किया जाता है। इस सिद्धांत के
अनुसार किसी वाक्य का अर्थ तभी संप्रेषित हो जाता है, जब
उसकी सत्यता स्थितियों का बोधन हो जाता है।
यहां
ध्यान रखने वाली बात है कि बहुत से ऐसे वाक्य हो सकते हैं, जिनकी सत्यता स्थितियां सीधे-सीधे ना बताई जा सकें।
सत्यता-स्थितिपरक
अर्थविज्ञान पर Donald Davidson (1917
– 2003) द्वारा काम किया गया है। इस सिद्धांत में किए गए कार्यों के
आधार पर रूपात्मक अर्थविज्ञान (formal semantics) का भी
विकास हुआ है, जिसमें प्रतिज्ञप्तिपरक तर्क और विधेय तर्क (Propositional
Logic and Predicate Logic) जैसे सिद्धांतों के माध्यम से आर्थी
इकाइयों एवं संरचनाओं का यथासंभव मशीनी संसाधन किया जा सका है।
इसी
प्रकार ‘सत्यता के आर्थी सिद्धांत’ (semantic theory
of truth) की बात भी की गई है, जो मुख्यतः
भाषा और दर्शन से संबंधित सिद्धांत है। इस सिद्धांत की स्थापना में Polish तर्कशास्त्री Alfred Tarski के कार्यों का विशेष
योगदान रहा है। उनकी स्थापनाओं को ‘On the Concept of Truth in Formal
Languages’ (1935) में देखा जा सकता है।
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