संज्ञानात्मक भाषाविज्ञान और प्रकार्यात्मक भाषाविज्ञान
(Cognitive Linguistics and functional Linguistics)
भाषा में पाई जाने वाली इकाइयों का
अध्ययन दो दृष्टि से किया जा सकता है- संरचना की दृष्टि से तथा प्रकार्य की दृष्टि
से। संरचना की दृष्टि से भाषावैज्ञानिकों द्वारा यह देखने का प्रयास किया जाता है कि
भाषा की छोटी इकाइयों द्वारा किन नियमों के अंतर्गत परस्पर मिलते हुए अपने से बड़ी
इकाइयों का गठन किया जा रहा है। प्रकार्य की दृष्टि से भाषावैज्ञानिक यह देखने का
प्रयास करते हैं कि भाषिक इकाइयों के माध्यम से गठित रचनाएं अपने से बड़ी इकाइयों
में कौन-सा प्रकार्य संपन्न कर रही हैं। उदाहरण के लिए शब्दों या पदों के योग से पदबंधों
की रचना होती है तथा पदबंधों के योग से वाक्य की रचना होती है। वाक्य में आने वाले
सभी पदबंध कोई-न-कोई प्रकार्य संपन्न करते हैं, जैसे-
कर्ता, कर्म, करण, पूरक आदि।
इसी प्रकार भाषा व्यवहार में प्रयुक्त
होने वाले वाक्य भी कोई-न-कोई प्रकार्य संपन्न करते हैं, जैसे- सूचना का संप्रेषण करना, श्रोता को प्रभावित
करना या अभिप्रेरित करना, वक्ता के उद्गार की अभिव्यक्ति
करना आदि। भाषा में प्रकार्य की बात प्रोक्ति के स्तर पर भी की जाती है। प्रत्येक प्रोक्ति
का अपना एक प्रकार्य होता है। उदाहरण के लिए जब हम कोई कथा,
कहानी सुनते हैं या कोई फिल्म देखते हैं तो उसमें अंततः एक ‘संदेश’ या ‘घटना का चित्रण’ उभरकर
सामने आता है, जिससे हम प्रभावित होते हैं। उस प्रोक्ति का
वही प्रकार्य होता है।
भाषिक इकाइयों द्वारा संपन्न सभी
प्रकार के प्रकार्यों का अध्ययन प्रकार्यात्मक भाषाविज्ञान के अंतर्गत किया जाता
है। संज्ञानात्मक भाषाविज्ञान को भाषा और संज्ञान की स्थितियों को समझते हुए उनमें
प्रकार्यात्मक इकाइयों की भूमिका को समझने की आवश्यकता पड़ती है। इस क्रम में
प्रकार्यात्मक भाषाविज्ञान संज्ञानात्मक भाषाविज्ञान के लिए उपयोगी होता है। इसी
प्रकार प्रकार्यात्मक भाषाविज्ञान में भी संज्ञानात्मक भाषाविज्ञान के विश्लेषण से
प्राप्त निष्कर्ष उपयोगी होते हैं।
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