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Tuesday, December 14, 2021

मातृभाषा /प्रथमभाषा शिक्षण प्रक्रिया

 मातृभाषा /प्रथमभाषा शिक्षण प्रक्रिया

मातृभाषा /प्रथमभाषा शिक्षण प्रक्रिया को भी दो संदर्भों में देखा जा सकता है-

(अ) प्राथमिक शिक्षा/ भाषा अर्जन के संदर्भ में

(आ) प्रौढ़ शिक्षा के संदर्भ में

(अ) प्राथमिक शिक्षा/ भाषा अर्जन के संदर्भ में मातृभाषा /प्रथमभाषा शिक्षण प्रक्रिया

जन्म के पश्चात मानव शिशु या बालक द्वारा अनौपचारिक /औपचारिक रूप से मातृभाषा /प्रथमभाषा को सीखना भाषा अर्जन/अधिगम है। इसमें अर्जन तथा अधिगम दोनों प्रक्रियाओं का समावेश होता है-

अर्जन द्वारा ज्ञात कौशल

   सुनना

   बोलना

अधिगम द्वारा सीखे जाने वाले कौशल

  पढ़ना

  लिखना

अतः मातृभाषा/प्रथम भाषा के संदर्भ में भाषा अधिगम को देखा जाए तो हम कह सकते हैं कि इसमें बच्चे द्वारा मूलतः दो भाषा कौशलों का अधिगम किया जाता है- पढ़ना और लिखना। शेष दो कौशल वह भाषा अर्जन के माध्यम से प्रारंभ में ही सीखकर आता है, जिनमें दो बातें उल्लेख्य हैं-

(1) व्यवस्थित रूप से बोलना या  भाषण देना आदि का प्रशिक्षण भी दिया जा सकता है जो बोलनाकौशल का प्रगत (Advance) रूप है।

(2) इसी प्रकार शुद्ध-शुद्ध उच्चारण करने का शिक्षण देना भी बोलना कौशल से संबंधित है।

इसी प्रकार मातृभाषा /प्रथमभाषा शिक्षण प्रक्रिया कुछ अन्य बातें भी आती हैं-

  प्रोक्ति बोधन :- कहानी, कविता आदि पढ़ना और उसका कथ्य (content) संदेश (message) समझना।

  कल्पना शक्ति :- पूर्व कल्पित चीजों से कथ्य (content) या संदेश (message) ग्रहण करना। इसी प्रकार बालक द्वारा स्वयं कल्पना भी कर सकना। पंचतंत्र की कथाएँ, जैसे- कछुए और खरगोश की कहानी, शेर और चूहे की कहानी, मगरमच्छ और बंदर की कहानी आदि।

  गणित एवं तर्क :- ये संपूर्ण शिक्षण से संबंधित हैं, इन्हें भाषा शिक्षण में सहायक के रूप में देखा जा सकता है।

  स्मृति :- याद रखने की क्षमता का विकास। शब्दावली, पाठ आदि के माध्यम से प्रशिक्षण।

इसमें केवल भाषा कौशलों का शिक्षण ही मूल बात नहीं होती, बल्कि बालक के संपूर्ण विकास पर ध्यान देने की आवश्यकता होती है।

(आ) प्रौढ़ शिक्षा के संदर्भ में मातृभाषा /प्रथमभाषा शिक्षण प्रक्रिया

प्रौढ़ शिक्षा उद्देश्य आधारित होती है। इसमें शिक्षक सर्वप्रथम यह देखना चाहता है कि व्यक्ति उसे क्यों सीखना चाह रहा है। इसमें केवल भाषा कौशलों का शिक्षण मूल बात होती है, संपूर्ण विकास पर ध्यान देने की आवश्यकता नहीं होती।

मातृभाषा शिक्षण में शिक्षण सामग्री

§  वर्णमाला

§  ध्वनि व्यवस्था (स्वर-व्यंजन)

§  स्वर व्यंजन योग (देवनागरी के संदर्भ में बारहखड़ी)

§  शब्द निर्माण (सरल से कठिन की ओर)

§  गिनती

§  पहाड़ा

§  आधारभूत शब्दावली

§  छोटी छोटी कविताएँ एवं कहानियाँ

§  क्रमशः कठिन पाठ एवं रचनात्मकता का विकास

इसके पश्चात भाषा शिक्षण साहित्य शिक्षण की ओर उन्मुख हो जाता है। उद्देश्यों को ध्यान में रखते हुए बाद में भाषा का प्रयोजनमूलक स्वरूप भी बताया जाता है, जैसे- प्रयोजनमूलक हिंदी।

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