संज्ञानात्मक भाषाविज्ञान और प्रकरणार्थविज्ञान
(Cognitive Linguistics and Pragmatics)
किसी भाषिक इकाई ( वाक्य) के अर्थ का
पूर्णतः बोधन सब तभी संभव हो पाता है, जब उसे
उसके सभी संदर्भों के साथ देखा जाए। संदर्भ के बिना बनाए गए वाक्य कृत्रिम वाक्य
होते हैं। उदाहरण के लिए व्याकरण पढ़ाते समय हम निम्नलिखित प्रकार के वाक्यों की
रचना करते हैं-
§ राम
खाना खाता है
§ मोहन
घर जाता है
§ तुम
घर जाओ
§ आपका
क्या नाम है
आदि।
इस प्रकार के वाक्य कृत्रिम वाक्य कहलाते हैं, क्योंकि ये बाह्य संसार में किए जा रहे वास्तविक व्यवहार से नहीं लिए गए
हैं, बल्कि वक्ता द्वारा वाक्य संरचना को समझने-समझाने के
लिए गढ़े गए हैं। बाह्य संसार के सभी वास्तविक वाक्य अपने संदर्भ से जुड़े होते हैं।
उदाहरण के लिए इनमें से पहला वाक्य-
राम खाना खाता है।
को लिया जाए तो सबसे पहले ‘
राम’ नाम
नामक एक व्यक्ति होना चाहिए और वह वक्ता और श्रोता से संबद्ध होना चाहिए। फिर यह
भी जानने का प्रयास किया जाएगा कि उसके ‘खाना खाने संबंधी
सूचना’ क्यों अपेक्षित है? इन सभी
बातों के परिणामस्वरूप उक्त वाक्य व्यवहार में आता है, तभी हम
इसके वास्तविक अर्थ और संपूर्ण अर्थ का बोधन कर पाते हैं।
प्रकरणार्थविज्ञान संपूर्ण संदर्भ या प्रकरण को
ध्यान में रखते हुए किसी वाक्य के अर्थ का बोधन करने पर केंद्रित शास्त्र है। इस
ज्ञानशाखा में वाक्य में आए हुए शब्दों के योग से निर्मित अर्थ को ही नहीं लिया
जाता, बल्कि प्रकरण या संदर्भ से प्राप्त होने वाले वास्तविक अर्थ तक पहुंचने
का प्रयास किया जाता है। उदाहरण के लिए निम्नलिखित संवाद को देखा जा सकता है-
मोहन-
सोहन, मुझे ₹10000 चाहिए।
सोहन-
अरे यार अभी मैंने अपने छोटे भाई को ₹20000 भेज दिए।
इस वार्ता में सोहन ने कहीं भी यह नहीं कहा है
कि वह पैसे नहीं देना चाह रहा है, किंतु संवाद के दोनों
वाक्यों को पढ़कर संदर्भ या प्रकरण से यह बात स्पष्ट हो जा रही है कि सोहन मोहन को
पैसे नहीं देने वाला है। प्रकरण के माध्यम से इसी प्रकार के अर्थों को ज्ञात करने
का काम प्रकरणार्थविज्ञान द्वारा किया जाता है।
किसी अभिव्यक्ति या वाक्य द्वारा
व्यक्त अर्थ को पूर्णतः समझने के लिए संज्ञानात्मक अर्थविज्ञान को भी प्रकरणार्थविज्ञान
की आवश्यकता पड़ती है, क्योंकि इस प्रकार की
परिस्थितियों में मानव संज्ञान की कौन-सी युक्तियां, किस
प्रकार से सक्रिय होती हैं कि उक्त प्रकार के वाक्यों की रचना की जाती है तथा उनके
अर्थ का बोधन किया जाता है? इन सभी को प्रकरणार्थविज्ञान की
सहायता से संज्ञानात्मक भाषाविज्ञान ठीक तरीके से समझ सकता है।
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