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Wednesday, December 1, 2021

भाषा शिक्षण के संदर्भ में भाषा

 भाषा शिक्षण के संदर्भ में भाषा

सामान्य शब्दों में-

“भाषा वह व्यवस्था है, जिसके माध्यम से हम विचार करते हैं या विचारों का आदान-प्रदान करते हैं।”

इसे ठीक से समझने के लिए हमें यह जानना होगा कि भाषा क्या है? जिसे इस लिंक पर देख सकते हैं-

https://lgandlt.blogspot.com/2020/12/what-is-language.html

इस लिंक पर भाषा संबंधी चित्र दर्शनीय है-

उक्त लिंक पर दिया गया ‘भाषा’ संबंधी विवरण भाषाविज्ञान की दृष्टि से है। हम आगे देखते हैं कि ‘भाषा शिक्षण के संदर्भ में भाषा’ क्या है? इसे समझने के लिए हमें भाषाविज्ञान के सैद्धांतिक और अनुप्रयुक्त पक्ष को संक्षेप में देखना होगा।

भाषाशिक्षण : अवधारणा और स्वरूप

1. भाषाशिक्षण का अर्थ

किसी भाषा का औपचारिक रूप से किया जाने वाला शिक्षण ‘भाषा शिक्षण’ है। सैद्धांतिक दृष्टि से भाषा की परिभाषा इस प्रकार से दी जाती है-

 “भाषा वह व्यवस्था है, जिसके माध्यम से हम विचार करते हैं या विचारों का आदान-प्रदान करते हैं।”

विचारों के आदान-प्रदान को तकनीकी रूप से ‘संप्रेषण’ (communication) कहते हैं। संप्रेषण करने के लिए कम-से-कम दो लोगों (या दो पक्षों) की आवश्यकता पड़ती है- वक्ता और श्रोता। इनके बीच संप्रेषण की प्रक्रिया को चित्र रूप से इस प्रकार से दर्शा सकते हैं-

यह भाषा को समझने का सैद्धांतिक पक्ष है। व्यावहारिक दृष्टि से देखा जाए तो ‘वक्ता’ बोलता है और ‘श्रोता’ सुनकर समझता है। इस आधार पर हम संक्षेप में कह सकते हैं-

किसी व्यक्ति को किसी भाषा में ‘बोलना’ (विचारों को भाषा से अभिव्यक्त करना) तथा ‘सुनकर समझना’ सिखाना भाषा शिक्षण है।

किंतु समाज में हम देखते हैं कि केवल और बोलने और सुनने से ही संप्रेषण नहीं होता, बल्कि वक्ता लिखकर भी अपनी बात कह सकता है, जिसे श्रोता ‘पढ़कर समझता’ है। अतः भाषा शिक्षण में इन्हें भी सम्मिलित करना आवश्यक हो जाता है। इस प्रकार हम कह सकते हैं-

किसी व्यक्ति को किसी भाषा में ‘बोलना’ (विचारों को भाषा के माध्यम से अभिव्यक्त करना), ‘सुनकर समझना’, ‘लिखना’ और ‘पढ़कर समझना’ सिखाना ‘भाषा शिक्षण’ है।

(नोट- हम किसी को विचार करना नहीं सिखा सकते। वह स्वतः स्फूर्त मानसिक प्रक्रिया है। भाषा का कार्य उस विचार को ‘वाक्यों’ में बदलकर श्रोता तक पहुँचाना है।)

भाषा शिक्षण दो प्रकार से किया जा सकता है- औपचारिक रूप से (शिक्षण केंद्रों/विद्यालयों में) तथा अनौपचारिक रूप से (घर में)। एक विषय के रूप में भाषा शिक्षण का संबंध ‘औपचारिक रूप से शिक्षण’ से होता है।


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