भाषा क्या है? (What is Language)
भाषा वह व्यवस्था है, जिसके माध्यम से हम विचार करते हैं तथा अपने विचारों का आपस में आदान-प्रदान करते हैं। हमारे मस्तिष्क में विचार, भाव और सूचनाओं आदि का जो संग्रह होता है उसे भाषा की दृष्टि से अर्थ (Meaning) कहते हैं और उन्हें अभिव्यक्त करने के लिए हम ध्वनि (phone/sound) का प्रयोग करते हैं। अतः हम कह सकते हैं कि भाषा वह व्यवस्था है जो ध्वनि को अर्थ से जोड़ती है। इसे चित्र रूप में इस प्रकार से प्रदर्शित किया जा सकता है-
विचारों के संप्रेषण की प्रक्रिया में एक ‘वक्ता’ (Speaker- S) होता है और दूसरा श्रोता (Listener- L)। सबसे पहले वक्ता के मन में विचार (Idea- I) उत्पन्न होता है, फिर वह उसे ध्वनियों में ढालता है तथा मुख से उच्चरित करता है। इसके बाद ध्वनि तरंगों (Sound Waves-W) के रूप में वे ध्वनियाँ श्रोता के कानों तक पहुंचती हैं, जहां उसका मस्तिष्क ‘अर्थबोध’ की प्रक्रिया द्वारा पुनः उस अर्थ को प्राप्त करता है। अर्थ बोध होने की प्रक्रिया को ही ‘समझना’ कहते हैं। जब कोई बात कहने के बाद हम पूछते हैं कि ‘समझ गए?’ तो इसका अर्थ होता है- जो वाक्य (या वाक्य समूह) श्रोता के कानों तक पहुँचा है, उसका अर्थबोध हुआ या नहीं।
इस संपूर्ण प्रक्रिया को एक चित्र के माध्यम से इस प्रकार समझ सकते हैं-
इस प्रक्रिया में अमूर्त विचारों (अर्थ) को एक निश्चित ध्वनि समूह के रूप में ढालने और उससे पुनः विचार को प्राप्त करने का कार्य भाषा करती है। अतः इस प्रक्रिया में भाषा की स्थिति को चित्र के रूप में इस प्रकार से दर्शा सकते हैं-
वक्ता और श्रोता के संदर्भ में ‘भाषा’ के कार्य को इस प्रकार से प्रस्तुत कर सकते हैं-
उक्त चित्र के माध्यम से स्पष्ट है कि वक्ता विचार (अर्थ) को भाषा के माध्यम से ध्वनियों/ध्वनि-समूहों में परिवर्तित करता है और श्रोता भाषा के माध्यम से ही ध्वनियों/ध्वनि-समूहों से उनमें निहित अर्थ का बोध करता है। ध्वनि-तरंगें कुछ निश्चित ध्वनियों का समूह होती हैं। अतः दूसरे शब्दों में कहा जाए तो शब्दों और वाक्यों आदि के रूप में संगठित ध्वनि-समूहों का उत्पादन वक्ता द्वारा भाषा के माध्यम से किया जाता है, जिनमें निहित अर्थ को बाद में श्रोता द्वारा भाषा के माध्यम से ही प्राप्त किया जाता है। इसलिए इस संदर्भ में यह जानना आवश्यक है कि भाषा के संदर्भ में ‘ध्वनि/स्वन’ और ‘ध्वनि समूह’ क्या हैं?
ध्वनि और स्वन (Sound and Phone)
हमारे कानों द्वारा महसूस की जा सकने वाली कोई भी आवाज ‘ध्वनि’ है, जबकि केवल किसी मानव भाषा में प्रयुक्त ध्वनि ‘स्वन’ है। अतः दूसरे शब्दों में ध्वनि के अंतर्गत सभी प्रकार की आवाजें आती हैं, जैसे- पंखे की आवाज, चिड़िया की आवाज, गाड़ी की आवाज, पटाखे की आवाज और किसी व्यक्ति के बोलने से उत्पन्न होने वाली आवाज। ‘स्वन’ के अंतर्गत केवल भाषा वाली ध्वनियाँ आती हैं, अतः उपर्युक्त उदाहरणों में से स्वन के अंतर्गत केवल ‘किसी व्यक्ति के बोलने से उत्पन्न होने वाली आवाज’ ही आएगी।
इस प्रकार ध्वनि और स्वन के अंतर को एक वेन आरेख के माध्यम से हम इस प्रकार से दर्शा सकते हैं-
हम भाषा व्यवहार में जिन ध्वनियों का प्रयोग करते हैं, उन्हें भाषावैज्ञानिकों को द्वारा ‘स्वन’ कहा गया है, जिससे इन्हें अन्य सभी प्रकार की ध्वनियों से अलग किया जा सके।
स्वन और स्वनिम (Phone and Phoneme)
हम अपने जीवन में किसी भी स्वन (भाषायी ध्वनि) का लाखों-करोड़ों बार प्रयोग करते हैं, किंतु प्रत्येक स्वन का केवल एक अमूर्त प्रतीक ही हमारे मन में रहता है। किसी भाषाई ध्वनि का व्यवहार में बार-बार प्रयोग ‘स्वन’ है, जबकि मन में निर्मित उसकी अमूर्त संकल्पना ‘स्वनिम’ है। इसे एक उदाहरण से इस प्रकार से देख सकते हैं-
आगे पढ़ें--
2. एक व्यवस्था के रूप में भाषा (Language as a System)
3. भाषा और भाषाविज्ञान (Language and Linguistics)
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