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Tuesday, December 15, 2020

भाषाविज्ञान और शैलीविज्ञान (Linguistics and Stylistics)

 भाषाविज्ञान और शैलीविज्ञान (Linguistics and Stylistics)

 शैलीविज्ञान भाषाविज्ञान का एक अनुप्रयुक्त क्षेत्र है। इसलिए इसे अनुप्रयुक्त भाषाविज्ञान की एक शाखा कहते हैं। जैसा कि हम जानते हैं भाषाविज्ञान वह विज्ञान है जिसके अंतर्गत मानव भाषाओं का अध्ययन-विश्लेषण किया जाता है। इसके माध्यम से मानव भाषाओं में पाई जाने वाली इकाइयों और नियमों का अध्ययन किया जाता है। इस अध्ययन से प्राप्त ज्ञान का प्रयोग जिन क्षेत्रों में होता है उन्हें भाषाविज्ञान के अनुप्रयोग क्षेत्र कहते हैं। भाषाविज्ञान में किए जाने वाले सैद्धांतिक अध्ययन और उस अध्ययन के अनुप्रयोग की दृष्टि से भाषाविज्ञान के दो प्रकार किए जाते हैं-

(1) सैद्धांतिक भाषाविज्ञान

(2) अनुप्रयुक्त भाषाविज्ञान

इस दृष्टि से देखा जाए तो शैलीविज्ञान अनुप्रयुक्त भाषाविज्ञान के अंतर्गत आता है।

 भाषावैज्ञानिक अध्ययन के माध्यम से प्राप्त ज्ञान के अनुप्रयोग को दो क्षेत्रों में विभक्त करके देखा जाता है- अंतरानुशासनिक अनुप्रयोग और व्यावहारिक अनुप्रयोग। अंतरानुशासनिक अनुप्रयोग वह है जिसमें भाषावैज्ञानिक अध्ययन से प्राप्त ज्ञान का अनुप्रयोग अन्य शास्त्रों के साथ मिलकर भाषा से जुड़ी चीजों का और अधिक गहराई से अध्ययन करने के लिए किया जाता है। उदाहरण के लिए समाजभाषाविज्ञान और मनोभाषाविज्ञान भाषाविज्ञान के अंतरानुशासनिक अनुप्रयोग क्षेत्र हैं, क्योंकि इनमें भाषाविज्ञान और समाजशास्त्र तथा भाषाविज्ञान और मनोविज्ञान आपस में मिलते हैं, और क्रमशः भाषा और समाज तथा भाषा और मन के संबंध में और अधिक ज्ञान अर्जित किया जाता है। इसी प्रकार में व्यावहारिक अनुप्रयोग में भाषा शिक्षण और अनुवाद आदि आते हैं, जिनमें भाषावैज्ञानिक ज्ञान का सीधे-सीधे अनुप्रयोग संबंधित क्षेत्र में व्यावहारिक रूप से किया जाता है। इसी प्रकार कंप्यूटर के विकास से एक तकनीकी अनुप्रयोग का क्षेत्र भी विकसित हो गया है, जिसके अंतर्गत भाषा प्रौद्योगिकी और कंप्यूटेशनल भाषाविज्ञान जैसे विषय विषय आते हैं।

इस दृष्टि से विचार किया जाए तो शैलीविज्ञान भाषाविज्ञान के अंतरानुशासनिक अनुप्रयोग अंतर्गत आता है। इसे निम्नलिखित आरेख के माध्यम से समझ सकते हैं-



इस प्रकार स्पष्ट है कि शैलीविज्ञान अनुप्रयुक्त भाषाविज्ञान की एक शाखा है, जिसके अंतर्गत साहित्य का भाषावैज्ञानिक सिद्धांतों के आधार पर अध्ययन किया जाता है। अर्थात भाषावैज्ञानिक सिद्धांतों का साहित्य के अध्ययन या समझने में प्रयोग शैलीविज्ञान है।

 ऐतिहासिक दृष्टि से साहित्यशास्त्रियों और भाषाशास्त्रियों में बहुत बड़ा विरोध रहा है। भाषाशास्त्रियों के अनुसार भाषा एक व्यापक संकल्पना है, साहित्य उसका एक बहुत छोटा सा अंश है, जो प्रायः असहज होता है- अर्थात यह विशिष्ट रूप होता है। भाषा का स्वाभाविक रूप बोलचाल की भाषा है, साहित्य भाषा का विशिष्ट प्रयोग है। साहित्य शास्त्रियों के अनुसार साहित्य ऊंची चीज है। भाषा साहित्य से निचले स्तर की चीज है। अतः साहित्यकारों ने भाषा पक्ष को छोड़ दिया और भाषा शास्त्रियों ने साहित्य को।

 धीरे-धीरे लोग सचेत हुए। साहित्य भाषा की समस्त संभावनाओं को उद्घाटित करता है। साहित्यशास्त्री निरंतर हो रहे भाषावैज्ञानिक शोधों का लाभ साहित्य को समझने में उठा सकते हैं, साहित्य की सभी युक्तियां आम भाषा में आती हैं किंतु बिखरी हुई रहती हैं। साहित्य में वे सोदेश्य सुगठित रूप में प्रस्तुत की जाती हैं।

 भाषावैज्ञानिकों के अनुसार भाषा मनुष्य को मनुष्य बनाने वाले तत्वों में सबसे मूलभूत तत्व है। साहित्य के संदर्भ में भी यही बात कही गई है-

 साहित्य संगीत कला विहीनः साक्षात पशु पूछविषाण हीनः।

साहित्य पढ़ने के लिए भाषा के प्रति एक तीव्र संवेदना होनी चाहिए। संवेदनशीलता मनुष्य को मनुष्य बनाती है। साहित्य मनुष्य को संवेदनशील बनाता है। अतः साहित्य और भाषा निसंदेह रूप से एक-दूसरे से घनिष्ठता के साथ संबंधित हैं। प्राग स्कूल स्कूल के रोमन याकोब्सन ने कहा है-

भाषा के काव्यफलन के प्रति बधिर भाषावैज्ञानिक तथा भाषावैज्ञानिक समस्याओं से उदासीन एवं भाषावैज्ञानिक प्रणालियों से अपरिचित साहित्यकार दोनों ही अपने समय से बहुत पीछे (Anachronism) हैं। अतः दोनों के निकट आने की आवश्यकता है।

शैली विज्ञान इसी आवश्यकता की पूर्ति करता है।

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