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Sunday, July 4, 2021

संज्ञानात्मक व्याकरण (Cognitive Grammar)

 संज्ञानात्मक व्याकरण (Cognitive Grammar)

भाषा का अध्ययन दो दृष्टियों से किया जाता है – व्यावहारिक और मानसिक। संज्ञान का संबंध भाषा के मानव मस्तिष्क में बोधन से है। 20वीं शताब्दी के आरंभ से लेकर अब तक भाषा के रूपात्मक अध्ययन का वर्चस्व रहा है। प्रजनक अध्ययन ने इसे जोरदार चुनौती दी और पिछले 50 वर्षों में इसने भी अपनी महत्वपूर्ण उपस्थिति दर्ज कराई है। इसी क्रम में जिन नए व्याकरणों का विकास हुआ है उनमें से ही ‘संज्ञानात्मक व्याकरण’ एक महत्वपूर्ण व्याकरण है। इसका विकास रोनाल्स लैंगाकर द्वारा किया गया। इसमें मनुष्य के अनुभवों पर आधारित संकल्पनात्मक अर्थविश्लेषण (conceptual semantics) का प्रयोग किया गया है। संज्ञानात्मक व्याकरण की महत्वपूर्ण अवधारणाएँ निम्नलिखित हैं –

1.     किसी भाषा का व्याकरण मानव संज्ञान का एक भाग है और यह दूसरी संज्ञानात्मक इकाइयों (faculties) के साथ अंतरक्रिया करती है जो मुख्यत: बोधन (perception), ध्यान (attention) और स्मृति (memory) आदि से संबंधित होती है।

2.     किसी भाषा का व्याकरण उसके वक्ता द्वारा विश्वजगत के बारे में अनुभव किए गए phenomena के सामान्यीकरण को प्रस्तुत करता है।

3.     भाषा में पाए जाने वाले रूप (जैसे शब्द) अर्थपूर्ण होते हैं और वे कभी भी अर्थहीन नहीं होते, जैसा कि व्याकरण के संरचनात्मक मॉडलों में अर्थपक्ष को सामान्यत: छोड़ दिया जाता है।

4.     भाषा का व्याकरण उसके मूल वक्ताओं के संपूर्ण ज्ञान (कोशीय और व्याकरणिक) को प्रस्तुत करता है।

5.     भाषा प्रयोग आधारित है और यह वक्ताओं को किसी वस्तु या घटना के बारे में अपना दृष्टिकोण रखने के लिए कई विकल्प उपलब्ध कराती है।

संज्ञानात्मक व्याकरण की महत्वपूर्ण अवधारणाएँ

संज्ञानात्मक व्याकरण की आधारभूत इकाई ‘प्रतीक’ है और यह व्याकरण अपनी प्रकृति में ‘प्रतीकात्मक’ है। एक प्रतीक आर्थी संरचना और स्वनिक क्रम का प्रतिनिधित्व करता है और व्याकरण यह सुनिश्चित करता है कि इन तत्वों को जोड़कर बड़ी भाषिक इकाइयों का निर्माण कैसे हो। कोई भी प्रतीकात्मक संरचना (∑) इन दोनों - ‘S’ (semantic structure) और ‘P’ (phonetic structure) को सहसंबंधित करते हुए निर्मित होती है। इसे नीचे के चित्र में देखा जा सकता है:


 संज्ञानात्मक व्याकरण की महत्वपूर्ण अवधारणाएँ

1.   Construal

संकल्पनात्मक कथ्य (conceptual content) के सापेक्ष construal की अवधारणा दी गई है। इसका संबंध किसी बाह्य घटना या स्थिति को व्यक्त करने की एक से अधिक विधियों से है जो मानव मस्तिष्क में रहती हैं, जैसे – किसी गिलास में आधा गिलास पानी होने पर उसे व्यक्त करने के लिए बनने वाले 4 construal इस प्रकार हैं –

‘गिलास में आधा भरा हुआ पानी’ कथ्य को निम्नलिखित 4 प्रकार से व्यक्त किया जा सकता है –

1.     ‘पानी से एक युक्त एक ग्लास है’ इसमें पात्र (container) पर बल दिया गया है।

2.     ‘ग्लास में पानी है’ इसमें पात्र में रखे द्रव पर बल दिया गया है।

3.     ‘ग्लास आधा भरा हुआ है’ द्रव पदार्थ (पानी) द्वारा ग्लास का आधा हिस्सा ही घेरे जाने पर बल है ।

4.     ‘ग्लास आधा खाली है’ द्रव पदार्थ द्वारा आधे भाग को घेरे जाने के बाद बचे हुए आधे भाग पर बल है।

 2. व्याकरणिक वर्ग (Grammatical Classes)

संज्ञानात्मक व्याकरण में पैटर्न को प्राप्त करने के लिए व्याकरणिक वर्गों की बात की गई है। इनकी अवधारणाओं को आर्थी दृष्टि से दो स्तरों पर परिभाषित किया गया है- prototype स्तर और schema स्तर।

(3) रचनाएँ [Constructions]

व्याकरण में भाषिक अभिव्यक्तियों के निर्माण के लिए प्रतिमान (patterns) होते हैं। अभिव्यक्तियों और प्रतिमानों को संयुक्त रूप से ‘रचनाएँ’ (constructions) कहते हैं।



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