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Sunday, July 11, 2021

रवीन्द्रनाथ श्रीवास्तव : एक परिचय

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 हिन्दी के आलोचक : जिनका आज जन्मदिन है-41

हिन्दी में शैलीविज्ञान के प्रस्तोता : प्रो. रवीन्द्रनाथ श्रीवास्तव

बलिया ( उ.प्र.) में जन्मे, लेनिनग्राद और कैलीफोर्निया में पढ़-लिखे और हिन्दी में शैली विज्ञान को प्रतिष्ठित करने वाले प्रो. रवीन्द्रनाथ श्रीवास्तव ( 09.07.1936-03.10.1992) मूलत: विज्ञान के विद्यार्थी थे लेकिन उन्होंने भाषा विज्ञान और साहित्य के अध्ययन का रास्ता चुना. भारत में आने के बाद अपनी प्रतिभा और लेखन से यहाँ के भाषा विज्ञान और साहित्य के अध्ययन की पद्धतियों को व्यापक रूप से प्रभावित किया. उन्होंने श्रवणिक ध्वनिविज्ञान, सैद्धांतिक भाषा विज्ञान, शैली विज्ञान, समाज भाषा विज्ञान, अनुवाद विज्ञान, भाषा शिक्षण और कंप्युटेशनल भाषा विज्ञान आदि भाषा विज्ञान के विविध पक्षों पर कार्य किया है. उन्होंने साहित्य, संस्कृति, शिक्षा और संप्रेषण से संबंधित विविध विषयों पर पुस्तकें लिखी हैं.

रवीन्द्रनाथ श्रीवास्तव की मौलिक पुस्तकों में ‘प्रगतिशील आलोचना’, ‘शैली विज्ञान और आलोचना की नई भूमिका’, ‘भाषा शिक्षण’, ‘संरचनात्मक शैलीविज्ञान’, ‘प्रयोजनमूलक हिन्दी व्याकरण’, ‘भाषाई अस्मिता और हिन्दी’, ‘हिन्दी भाषा का समाजशास्त्र’, ‘हिन्दी भाषा संरचना के विविध आयाम’, ‘भाषा विज्ञान : सैद्धांतिक चिन्तन’,  ‘अनुप्रयुक्त भाषा विज्ञान : सिद्धांत और प्रयोग’, ‘साहित्य का भाषिक चिन्तन’ आदि महत्वपूर्ण हैं.  इसके अलावा  ‘प्रयोजनमूलक हिन्दी’, ‘हिन्दी भाषा : संरचना और प्रयोग’, ‘व्यावहारिक हिन्दी’, ‘हिन्दी का शैक्षिक व्याकरण’, ‘अनुप्रयुक्त भाषाविज्ञान’, ‘साहित्य अध्ययन की दृष्टिय़ाँ’, ‘भाषा के सूत्रधार’, ‘अनुवाद : सिद्धांत समस्याएं’, ‘भाषा विज्ञान परिभाषा कोश’, ‘हिन्दी के संदर्भ में सैद्धाँतिक एवं अनुप्रयुक्त भाषा विज्ञान’ आदि उनकी संपादित पुस्तकें हैं.

रवीन्द्रनाथ श्रीवास्तव ने भाषा को प्रतीक व्यवस्था माना है तथा भारतीय बहुभाषिकता को बहुभाषी एवं बहुसांस्कृतिक समाज की सहज संप्रेषण व्यवस्था के रूप में प्रस्तावित किया है. उनकी मान्यता है कि, “ भाषा का गहरा संबंध समाज से है और इसी कारण वह विषमरूपी होने की नियति से बँधी है. भाषा वस्तुत: प्रयोजनसिद्ध शैलियों के समुच्चय का दूसरा नाम है. किसी एक भाषा की विभिन्न शैलियाँ आपस में अंतत: या तो सामंजस्य की स्थिति में रहती हैं या फिर तनाव की स्थिति में. सामंजस्य की स्थिति शैलियों को प्रयोजन से बाँधती हैं और तनाव की स्थिति उनमें प्रतिस्पर्धा का कारण बनती हैं. भाषा न केवल व्यक्ति के संज्ञानात्मक बोध का प्रतिबिम्ब है बल्कि इस संप्रदाय में वह ऐसा दर्पण भी है जिसमें आधारभूत शैली अन्य आरोपित शैलियों के साथ अपने संबंधों का चित्र भी प्रतिबिंबित करती हैं. इसीलिए भाषा वैज्ञानिकों का दायित्व है कि किसी भाषा के व्याकरण के भीतर वे शैलीभेद संबंधी चर-संयुक्त उपनियमों की व्यवस्था को भी समेंटें.” ( भाषाई अस्मिता और हिन्दी, पृष्ठ-10)

रवीन्द्रनाथ श्रीवास्तव के अनुसार,” हिन्दी मात्र व्याकरण नहीं है और न ही वह केवल विशिष्ट भाषिक संरचना है. भाषा के रूप में वह एक सामाजिक संस्था भी है, संस्कृति के रूप में सामाजिक प्रतीक भी है और साहित्य के रूप में वह एक जातीय परंपरा भी है. “ ( उपर्युक्त, पृष्ठ- 12)

रवीन्द्रनाथ श्रीवास्तव ने हिन्दी के सवाल को भारतीय सांस्कृतिक एवं सामाजिक प्रश्न से जोडकर देखने की आवश्यकता को रेखांकित करते हुए कहा है, “ हम अपनी सामाजिक अस्मिता को पहचानें और इस संदर्भ में भाषाई अस्मिता के सवाल पर एक बार फिर गौर करें. अगर हिन्दी –उर्दू भाषा आम जनता के लिए एक है तो इसी कारण कि वह शैक्षणिक स्तर पर बनाए गए कृत्रिम विभाजन को स्वीकार नहीं करती. वह हिन्दी और उर्दू की अपनी मूल संरचना, प्रकृति और नियमों के आधार पर भाषा का प्रयोग करती है और इस दृष्टि से हिन्दी और उर्दू एक भाषा, एक जबान ठहरती है. इस एक जबान को बोलने वालों में न कोई भेद- भाव है और न सामाजिक अस्मिता के धरातल पर कोई दुराव. “ ( सामाजिक अस्मिता और हिन्दी –उर्दू का सवाल, पृष्ठ- 40-41)

उनके भाषा चिन्तन के बारे में प्रो. दिलीप सिंह ने लिखा है, “ उनका संपूर्ण लेखन उनके भाषानुरागी मन का स्वच्छ चमकीला प्रतिबिम्ब है. उनके लेखन के साथ चलना पूर्व और पश्चिम के भाषा चिन्तन की सधी रज्जु पर चलना है. अपनी संपूर्ण सजग चेतना के साथ. इस चेतना के बिना उनके लेखन की गहराई को माप पाना सहज नहीं है. “ ( वे भाषा के अनुरागी थे, दिलीप सिंह, पूर्णकुंभ, सितंबर 1996, रवीन्द्रनाथ श्रीवास्तव स्मृति ग्रंथ, पृष्ठ-33)

अंग्रेजी भाषा में भी उनकी अनेक पुस्तकें प्रकाशित हैं जिनमें ‘लिटरेसी’, ‘स्टाइलिस्टिक्स’, ‘मल्टीलिंगुअलिज्म’, ‘अप्लॉयड लिंग्विस्टिक्स’, ‘हिन्दी लिंग्विस्टिक्स’, ‘लैंग्वेज थियरी एंड लैंग्वेज स्ट्रक्चर’ तथा ‘जेनेरेटिव फोनोलॉजी’ आदि प्रमुख हैं.

 जन्मदिन के अवसर पर हम उनके महान योगदान का स्मरण करते हैं और उन्हें श्रद्धासुमन अर्पित करते हैं।

( किसी मित्र के पास यदि रवीन्द्रनाथ श्रीवास्तव की तस्वीर हो तो कृपया उपलब्ध करा दें.)

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