प्रकार्यात्मक वाक्यविज्ञान (Functional Syntax)
मूल प्रकार्य संप्रेषण। इसके लिए भाषा की सभी इकाइयाँ आपस
में संबद्ध होती हैं। भाषा में संप्रेषण की मूल इकाई वाक्य है। अत: वाक्यात्मक
विश्लेषण प्रकार्यात्मक दृष्टि से भी करते हुए विभिन्न व्याकरणिक सिद्धांत दिए गए
हैं। शब्दवृत्तिक प्रकार्यात्मक व्याकरण (Lexical functional
grammar) इस प्रकार के व्याकरणों में सबसे प्रसिद्ध व्याकरण है।
प्रकार्यात्मक वाक्यविज्ञान मुख्यत: संरचनात्मक वाक्यविज्ञान से भिन्न रूप में
प्रस्तुत किया गया। चॉम्स्की के प्रजनक व्याकरण में दी गई अवधारणाएँ भी इसके उद्भव
का कारण रही हैं। प्रकार्यात्मक वाक्यविज्ञानियों के अनुसार –
“A language is a
set of constructions, from morphemes to discourse structures. A construction is a pairing of form and
function.” (Langacker 1987, Goldberg 1995)
भाषा में प्राप्त होने वाली संरचनाओं का प्रयोग मनुष्य
द्वारा अपने विचारों को संरचित और अभिव्यक्त करने के लिए एक टूल के रूप में किया
जाता है। कोई भी अभिव्यक्ति पूरी तरह अपने प्रकार्य द्वारा निर्धारित नहीं होती।
फिर भी किसी अभिव्यक्ति को उसके प्रकार्य के सापेक्ष ही समझा जा सकता है। भाषा की
संरचनाओं में सभी भाषिक इकाइयाँ (शाब्दिक और प्रकार्यात्मक) तथा कोटियाँ (categories) रहती हैं, जैसे – कर्ता, संज्ञा, संज्ञा पदबंध (NP), वृत्ति, वाच्य आदि। जैसा कि इनके व्यापक तौर पर दो वर्ग निर्मित किए गए हैं –
भाषा विशिष्ट और सार्वभौमिक। प्रकार्यवादी यह भी देखने का प्रयास करते हैं कि किसी
भाषा में इनकी क्या स्थिति है।
प्रकार्यवादियों द्वारा तीन महत्वपूर्ण अवधारणाएँ दी गई हैं
–
·
Motivation : इसका संबंध अभिव्यक्ति निर्माण के लिए प्रेरित होने से
है, जैसे – कोई व्यक्ति ‘घर’ की बात क्यों करेगा? हो सकता है ...
·
इसी प्रकार motivated
association की भी बात की गई है,
जिसमें लक्ष्य वस्तु से जुड़े शब्दों का समुच्चय आता है।
·
Routinization : इसका संबंध किसी बात या कार्य को अपने व्यवहार में लाने
से है। किसी नए कार्य को करने के लिए हमें एक पर्याप्त मात्रा में संज्ञानात्मक
प्रक्रिया से गुजरना पड़ता है, जबकि किसी
अभ्यस्त कार्य को हम सामान्य रूप से कर लेते हैं। भाषिक अभिव्यक्तियों के निर्माण
और प्रयोग के साथ भी ऐसी स्थिति पाई जाती है।
·
Diachrony : यह अभिव्यक्ति निर्माण के नए स्वरूपों एवं उनके
प्रकार्यों से संबंधित है।
· प्रकार्यात्मक व्याकरण
प्रकार्यात्मक व्याकरण के अंतर्गत वे व्याकरण और मॉडल आते
हैं जिनमें भाषा की संरचना के साथ-साथ प्रकार्य का भी ध्यान रखते हुए नियम और
सिद्धांत दिए गए हैं। इन व्याकरणों के अनुसार संप्रेषण के माध्यम के रूप में भाषा
एक टूल है। अत: इसकी प्रत्येक संरचना के निर्माण में उसका प्रकार्य महत्वपूर्ण
भूमिका निभाता है। इसमें दो संरचनाओं के बीच संबंधों को देखने के लिए उनके
प्रकार्यों के बीच के संबंधों को भी देखा जाता है।
कुछ प्रमुख प्रकार्यात्मक व्याकरण निम्नलिखित हैं –
1. प्रकार्यात्मक व्याकरण का मूल प्राग स्कूल में 1920 के दशक
में देखा जा सकता है, जिसे संरचनात्मक प्रकार्यवाद (structuralist
functionalism) कहा गया है।
2. हैलिडे द्वारा प्रस्तावित systemic
functional grammar एक महत्वपूर्ण प्रकार्यात्मक व्याकरण है। इसमें
स्पष्ट कहा गया है कि भाषा कैसे कार्य करती है को हम मानव समाज में अंतरक्रिया की
स्थितियों के आधार पर ही ठीक से बता सकते हैं।
3. André Martinet ने फ्रांस में प्रकार्यात्मक व्याकरण पर पर्याप्त
कार्य किया है। उनकी दो पुस्तकें - A functional view of language (1962) और Studies in Functional Syntax (1975)
अत्यंत प्रसिद्ध रही हैं।
4. Joan Bresnan और Ronald Kaplan द्वारा
1970 के दशक में प्रस्तावित Lexical functional grammar एक
शक्तिशाली प्रकार्यात्मक व्याकरण है। इसमें वाक्य रचना के नियम पदबंध संरचना
नियमों की तरह ही होते हैं। किंतु उनके साथ लक्षण संरचना (feature
structure) के रूप में रूपविज्ञान और अर्थविज्ञान संबंधी प्रतिबंध
या नियम भी जुड़ जाते हैं।
5. Robert Van Valin ने Role and reference grammar में भाषा के प्रकार्यात्मक फ्रेमवर्क को formal विधि
से प्रस्तुत किया गया है। इसमें वाक्य नियमों को आर्थी संरचना और संप्रेषणात्मक
प्रकार्य के आधार पर विवेचित किया गया है।
6. इस क्रम में Danish functional
grammar भी है जो संकेतप्रयोगविज्ञान (pragmatics) और प्रोक्ति (discourse) पर फोकस करता है।
7. Simon Dik द्वारा 1970 और 1980 के दशकों में प्रस्तावित
प्रकार्यात्मक व्याकरण (FG) अत्यंत प्रसिद्ध रहा है। इसने
अन्य प्रकार्यात्मक व्याकरणों को भी प्रभावित किया है। बाद में इसका विकास Kees
Hengeveld द्वारा Functional Discourse Grammar के रूप में किया गया है।
भाषा में व्याकरणिक प्रकार्य
भाषा में विभिन्न स्तरों पर अलग-अलग तरह के प्रकार्य करने
वाली इकाइयाँ पाई जाती हैं। भाषा के तीन केंद्रीय स्तरों पर पाए जाने वाले
प्रकार्यात्मक संबंध इस प्रकार हैं –
1.
वाक्यात्मक प्रकार्य
(Syntactic functions) : ये किसी वाक्य की रचना के निर्माणक परिप्रेक्ष्यों को
सुनिश्चित करते हैं, जैसे – कर्ता और कर्म (subject and
Object)।
2.
आर्थी प्रकार्य (Semantic function) : ये अभिव्यक्तियों में आने वाले घटकों की भूमिका को व्यक्त करते हैं, जैसे - Agent, Patient,
Recipient आदि।
3.
संकेतप्रायोगिक
प्रकार्य (Pragmatic functions) : ये किसी अभिव्यक्ति के संकेतप्रायोगिक संदर्भ के आधार पर उसकी सूचनात्मक
स्थिति को व्यक्त करते हैं, जैसे –
Theme और Rheme, Topic और Focus आदि।
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