भाषा शिक्षण में परीक्षण और मूल्यांकन संबंधी सिद्धांत
 भाषा शिक्षण में परीक्षण और मूल्यांकन के संबंध
में निम्नलिखित सिद्धांतों की बात की गई है-
1.     परीक्षण पाठ्यक्रम तथा
शिक्षार्थी के उद्देश्य के अनुरूप होना चाहिए ।
2.     परीक्षण विद्यार्थी की
योग्यता की जांच तथा उसमें वृद्धि को केंद्र में रखकर किया जाना चाहिए इसका संबंध
उत्तीर्ण या अनुत्तीर्ण से नहीं होना चाहिए ।
3.     परीक्षण यथासंभव लक्ष्यभाषा
में किया जाना चाहिए, अर्थात परीक्षण उसी भाषा में होना चाहिए जिसे शिक्षार्थी
सीख रहा होता है ।
4.     परीक्षण में एक बार में
किसी एक कौशल के एक ही शिक्षण बिंदु पर फोकस किया जाना चाहिए। इससे विद्यार्थी को
दुविधा नहीं होती और हम उस शिक्षण बिंदु विशेष की दृष्टि से विद्यार्थी की योग्यता
का पता लगा पाते हैं ।
5.     परीक्षण के लिए विद्यार्थी
को दिए जाने वाले निर्देश संक्षिप्त, स्पष्ट और तर्कपूर्ण होने चाहिए जिससे विद्यार्थी
को परीक्षा के संबंध में किसी भी प्रकार की उलझन ना हो। 
6.     परीक्षण की समयावधि
विद्यार्थी के स्तर के अनुरूप होना चाहिए। समय इतना कम ना हो कि विद्यार्थी पूरी
तरह से हल न कर पाए और इतना अधिक भी ना हो कि विद्यार्थी के लिए उबाऊ हो जाए ।
7.     परीक्षण में परिचित संदर्भ
एवं तथ्यों का ही परीक्षण करना चाहिए। अर्थात ऐसा ना हो कि विद्यार्थी को ऐसे
प्रश्न या ऐसे तथ्यों संबंधी प्रश्न दे दिए जाएं जिनका अध्यापन में प्रयोग नहीं
किया गया था या जिनसे विद्यार्थी का परिचय नहीं है, क्योंकि इससे विद्यार्थी
में परीक्षण के प्रति अरुचि पैदा होने का खतरा रहता है ।
8.     परीक्षण में विद्यार्थी की
मनोवैज्ञानिक स्थिति का भी ध्यान रखना चाहिए। शिक्षक को समय-समय पर विद्यार्थी का
संबल बढ़ाते रहना चाहिए और उसकी कठिनाइयों का निराकरण करते रहना चाहिए। परीक्षा से
पूर्व हमें यह देख लेना चाहिए कि विद्यार्थी परीक्षण के लिए मानसिक रूप से कितना
तैयार है ।
अच्छे परीक्षण की विशेषताएँ
 अच्छे परीक्षण के संबंध में 6 प्रकार की विशेषताओं की बात की जाती है-
·      
वैधता 
·      
विश्वसनीयता 
·      
वस्तुनिष्ठता
·      
समग्रता 
·      
विभेदकता 
·      
सरलता एवं स्पष्टता
 
 
 
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