अर्थविज्ञान की प्रमुख शाखाएँ इस प्रकार हैं-
(क) शब्दवृत्तिक अर्थविज्ञान (Lexical semantics) : इसमें शब्द के स्तर पर आर्थी संरचना को केंद्र में रखकर
चलते हैं। इस शाखा का आरंभ 19वीं शताब्दी के आरंभ में हुआ था। इसमें शब्दों की
आंतरिक आर्थी संरचना का विश्लेषण उनके बीच प्राप्त आर्थी संबंधों के आधार पर किया
जाता है। इसमें विश्लेषण के मुख्यतः दो पक्ष हैं- (क) शब्दों की के बीच प्राप्त
आर्थी संबंध, जैसे- पर्यायता, विलोमता, अधिनामिता और अवनामिता (hypernymy and hyponymy), बहुअर्थकता (polysemy) रूपक
और रूपकीकरण (metaphor
& metonymy) आदि का विश्लेषण; तथा (ख) कोशीय क्षेत्र (lexical fields), कोशीय संबंधों के आधार पर आर्थी संजालों (semantic networks) और साँचों (frames)
आदि का निरूपण।
(ख) संरचनात्मक अर्थविज्ञान (Structural Semantics) : इसमें ‘संरचना’ की दृष्टि से अर्थ के विविध पक्षों पर विचार किया गया है।
अंग्रेजी में इसे Structuralist Semantics भी
कहा गया है। संरचनावादी अर्थवैज्ञानिकों के अनुसार किसी भाषा का शब्दभंडार (vocabulary) शब्दों
का असंरचित संग्रह नहीं है, बल्कि विभिन्न प्रकार के आर्थी संबंधों से जुड़ी संकल्पनाओं (concepts) या
आर्थी इकाइयों का संरचित संजाल (structured
network) है। अतः आर्थी
अध्ययन की इस पद्धति ने उस संरचित संजाल को उद्घाटित करने का प्रयास किया है। इस
क्रम में संरचनात्मक अर्थविज्ञान में विश्लेषण की कई पद्धतियाँ भी विकसित हुई हैं, जैसे- शब्दवृत्तिक क्षेत्र सिद्धांत (Lexical field theory), घटकीय विश्लेषण (Componential analysis), संबंधपरक अर्थविज्ञान (Relational semantics) और नवसंरचनात्मक अर्थविज्ञान
(Neostructural Semantics) आदि।
(ग) संज्ञानात्मक अर्थविज्ञान (Cognitive Semantics) : भाषा की सत्ता मानसिक है। इसलिए ‘मन’ के परिप्रेक्ष्य में भाषा अध्ययन के कई सिद्धांत विकसित हुए हैं, जिन्हें मनोवादी सिद्धांत (mentalist theory) कहते हैं। ‘मन’ का भाषा और व्यवहार संबंधी भाग ‘संज्ञान’ कहलाता है। संज्ञान में ‘भाषा की अमूर्त संरचना’ और ‘संकल्पनात्मक अर्थ’ दोनों आते हैं। ‘संज्ञानात्मक अर्थविज्ञान’ भाषा विश्लेषण के केंद्र में ‘अर्थ’ को रखकर चलता है। इसमें आर्थी विश्लेषण और प्रस्तुति को- ‘वर्गात्मक प्रस्तुति (Categorical Representation) ‘रूपक और रूपकीकरण’ (metaphor & metonymy)’ आदि के रूप में देखा गया है और इनके आधार पर अमूर्तिकृत संज्ञानात्मक मॉडल (Idealized Cognitive Model) तथा साँचापरक अर्थविज्ञान (Frame semantics) आदि पद्धतियों का विकास किया गया है।
(घ) रूपात्मक अर्थविज्ञान (Formal Semantics) : ‘रूपात्मक अर्थविज्ञान’ आर्थी
विश्लेषण और प्रस्तुति की वह विधा है, जो तार्किक रूपों (logical forms) के माध्यम से
प्राकृतिक भाषाओं की आर्थी संरचना को मशीन में निरूपित (represent) करने
का प्रयास करती है। इसमें दो निरूपण पद्धतियाँ अत्यंत प्रचलित हैं-
प्रतिज्ञप्तिपरक तर्क (Propositional
logic) और विधेय तर्क (Predicate Logic/First order logic)।
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