शैलीमापक्रमी (Stylometry)
साहित्य में भाषा और शैली के अध्ययन
के दो पक्ष हैं-
(1) शैलीवैज्ञानिक अध्ययन
(2) शैलीमापक्रमी अध्ययन
इनमें से शैलीवैज्ञानिक अध्ययन गहन प्रकार का
अध्ययन है, जो यह विश्लेषित करता है कि किसी
साहित्यिक रचना में वे कौन से तत्व हैं, जो उसे सामान्य भाषा
व्यवहार से अलग साहित्य बना देते हैं। उन सभी तत्वों की वह ‘शैली’ के रूप में खोज करता है।
शैलीमापक्रमी अध्ययन उस प्रकार का गहन अध्ययन
नहीं है, बल्कि यह एक प्रकार का सांख्यिकीय अध्ययन है। इसमें किसी रचना में कितने
तरह के शैलीवैज्ञानिक प्रयोग हुए हैं और प्रत्येक प्रकार का प्रयोग कितनी बार हुआ
है? इन सबको देखा जाता है। उदाहरण के लिए हम शैलीविज्ञान के
अंतर्गत ‘अग्रप्रस्तुति’ और ‘शैली चिन्हक’ की बात करते हैं। अग्र प्रस्तुति के
चार प्रतिमान हैं-
विचलन,
समानांतरता, विपथन और विरलता
किसी कृति में लेखक द्वारा कहाँ-कहाँ, किस प्रकार से और क्यों? इन प्रतिमानों का प्रयोग
किया गया है? इसका अध्ययन शैलीविज्ञान करता है, किंतु कहाँ-कहाँ और कितनी बार प्रयोग किया गया है?
यदि यह देखना हो तो वह काम शैलीमापक्रमी अध्ययन के अंतर्गत आता है।
संदिग्ध रचनाओं के असली लेखक को ज्ञात करने के
लिए शैलीमापक्रमी अध्ययन अत्यंत उपयोगी होता है। इस विधि में उन सभी लेखकों की
प्रामाणिक रचनाओं का अध्ययन करते हुए उनकी विशेषताओं को ज्ञात किया जाता है, जिनकी वह संदिग्ध रचना हो सकती है। फिर संदिग्ध रचना की विशेषताओं का
अध्ययन किया जाता है। जिस लेखक की रचनाओं की विशेषताएँ उस कृति में सबसे अधिक समान रूप से पाई जाती हैं, उस लेखक की वह कृति मान ली जाती है।
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